मयूर कवि के सूर्यशतक पर विवेचन इस ग्रन्थ के चतुर्थ अध्याय के मुक्तककाव्य विषयक शतककाव्य में किया गया है। अनुश्रुतियों के अनुसार मयूर, बाण, मातङ्ग-दिवाकर तथा धावक आदि कवि कान्यकुब्ज के महाराज श्रीहर्ष (सातवीं शताब्दी) की सभा को सुशोभित करते थे। मयूराष्टक में आठ शृङ्गारपरक पद्य हैं। सभी पद्य स्रग्धरा छन्द में हैं। पूरे अष्ठक में कवि ने अभिसारिका नायिका का ही वर्णन किया है, जो अपने प्रिय से समागम कर के वापस आ रही है। सौन्दर्य तथा लालित्य की दृष्टि से सभी पद्य हृद्य और निरवद्य हैं। स्रग्धरा छन्द का प्रवाह रमणीय है तथा वैदर्भी रीति का वचोविन्यास भी मनोहारी है। उदाहरण के लिए - एषा का स्तनपीठभारकठिना मध्ये दरिद्रावती विभ्रान्ता हरिणी विलोलनयना सन्त्रस्तयूथोद्गता। अन्तः स्वेदगजेन्द्रगण्डगलिता संलीलया गच्छति दृष्ट्वा रूपमिदं प्रियाङ्गगहनं वृद्धोऽपि कामायते।।। जापान काव्य-खण्ड