१७ स्तुतिकुसुमाञ्जलि

स्तुतिकुसुमाञ्जलि में ३८ स्तोत्र हैं तथा कुल १४१५ श्लोक हैं। सम्पूर्ण स्तोत्र भगवान् शङ्कर को समर्पित है। एक श्लोक का सौन्दर्य देखिये गाना - स्वैरेव यद्यपि गतोऽहमधः कुकृत्यै स्तत्रापि नाथ तव नास्म्यवलेपपात्रम्। दृप्तः पशुः पतति यः स्वयमन्धकूपे नोपेक्षते तमपि कारुणिको हि लोकः।। - विकिन कि के (यद्यपि मैं अपने ही कुकृत्यों से इस अधोगति को प्राप्त हुआ हूँ, तथापि मैं आप जैसे करुणासागर के तिरस्कार का पात्र नहीं हूँ। यदि कोई उद्धत पशु अपनी ही उद्दण्डता के वश किसी अंधकूप में गिर जाता है तो दयालु लोग उसकी उपेक्षा कर क्या उसे वहीं छोड़ देते हैं ?) कवि की स्तुति नितान्त प्रभावशाली तथा हृदयहारी है। इस काव्य का कलापक्ष नितान्त कलात्मक एवं कमनीय है। श्लेष व यमक की छटा सर्वत्र बिखरी है। दार्शनिकता से ओतप्रोत स्तोत्रावली त्रिक सिद्धान्तों का भाण्डागार है - चारुचन्द्रकलयौपशोभितं भोगिभिः सह गृहीत सौहृदम्। अभ्युपेतघनकालशात्रवं नीलकण्ठमतिकौतुकं स्तुमः।। यह स्तोत्रावली काव्यमाला में राजानक रत्नकण्ठ की टीका के साथ प्रकाशित हुई है। १६६४ में काशी से इसका भाषानुवाद भी प्रकाशित हुआ है।