११ मुकुन्दमाला

श्री वैष्णव सम्प्रदाय के स्तोत्रों में मुकुन्दमाला का अपना विशिष्ट गौरवशाली स्थान है। इसमें ३४ श्लोक हैं। अत्यन्त सरल भाषा में सहजभाव से भक्ति की कवि ने अभिव्यक्ति की है। अनुप्रास की छटा रमणीय है कमलाकि कि वन्दे मुकुन्दमरविन्ददलायताक्षं मानने को त कुन्देन्दुशङ्खदशनं शिशुगोपवेशम्। इन्द्रादिदेवगणवन्दितपादपीठ वृन्दावनालयमहं वसुसदेवसूनुम् ।। कवि कभी अपनी दीन दशा का वर्णन करते आत्म-विस्मृत हो जाता है तो, कभी वह भगवान् के विराट रूप के दर्शन से चमत्कृत हो उठता है। वह कामना करता है- मेरा निवास इस धरती पर हो या स्वर्ग में हो। हे नरक को परे भगाने वाले, चाहे मेरी स्थिति 9. द. संस्कृत साहित्य का इतिहास । वाचस्पति गैरोला (सन् १E८५ ई.) पृ. ७७८ २. हिस्ट्री आफ क्लासिकल संस्कृत लिटरेचर, पृ. ३२६ मा स्तोत्रकाव्य नरकस्थ ही क्यों न हो, आपके शरद् ऋतु के खिले कमलों की शोभा का अपमान करने पाल पण काममा पार करता ही जा रही नाम दिवि वा भुवि वा ममास्तु वासो कि बार सारा नरके वा नरकान्तक प्रकामम् । यी जिला अवधीरितशारदारविन्दौ नि तयार चरणौ ते मरणे विचिन्तयामि ।। (७) सभी पद्यों में अनुप्रासालंकार के साथ परिकर आदि का अच्छा प्रयोग है। यथा क्षीरसागरतरङ्गसीकरा सारतारकित चारुमूर्तये। भोगिभोगशयनीयशायिने माधवाय मधुविद्विषे नमः।। (१५) मुकुन्दमाला भक्त-हृदय के भावों को सुतरां प्रकटित करने वाला सुन्दर स्तोत्र-मणि है। मुकुन्द के स्वरूप का चित्रण सौन्दर्य का आस्वाद कराता है। ३४ पद्यों के इस काव्य में कुलशेखर ने विविध छन्दों का प्रयोग किया है। शार्दूलविक्रीडित, मन्द्राकान्ता, मालिनी आदि छन्दों में रचनाबन्थ प्रशस्य है। वसन्ततिलका छन्द में कवि का लालित्य तथा पदावली की मसृणता प्रभावशाली है। बारहवें छन्द में शार्दूलविक्रीडित में प्रभु के विराट रूप का वर्णन वैश्विक दृष्टि और कल्पनाशीलता की अनूठी अभिव्यक्ति है।