०५ शिवमहिम्नस्तोत्र

पुष्पदंत का यह स्तोत्र शिव-भक्तों का परमप्रिय एवं सुविख्यात स्तोत्र है। यद्यपि मधुसूदन सरस्वती ने इसके ३२ पद्यों की ही टीका की है, तथापि नवीन प्रतियों में इसके ४० पद्य उपलब्ध होते हैं। नर्मदा-तट पर अमरेश्वर महादेव मन्दिर में इस स्तोत्र के ३१ पद्य ही उत्कीर्ण हैं। बाद में € पद्य भक्तगण ने इसमें जोड़ दिये हों, यह संभावित है। स्तोत्र का प्रथम पथ इस प्रकार होगा कि भारत की ती माला काम महिम्नः पारं ते परमविदुषो यद्यसदृशी के किसी चरिक स्तुतिर्ब्रह्मादीनामपि तदवसन्त्रास्त्वयि गिरा -कता अथावाच्यः सर्वः स्वमतिपरिणामावधि गृणन् की मांग है ममाप्येष स्तोत्रे हर निरपवादः परिकरः।। कालावी हस्तोत्रकाव्य ०३६६ राजकीर न्याय-वैशेषिक के आचार्यों तथा राजशेखर ने इस स्तोत्र के निम्नलिखित पद्य को कन्याय-वैशेषिक के सिद्धान्त को प्रतिपादित करने के लिये उदाहरण के रूप में उद्धृत किया है- जिससे प्रतीत होता है कि यह राजशेखर (६०० ई.) से प्राचीन है। कि शाह नागानि कि किमीहः किङ्कायः स खलु किमुपायस्त्रिभुवनं । किमाधारो धाता सृजति किमुपादान इति च। अतक्यैश्वर्यं त्वय्यनवसरदुःस्थो हतधियः कुतर्कोऽयं कांश्चिन्मुखरयति मोहाय जगतः।। 1 प्रकाशित प्रतियों में इस स्तोत्र का ३२वाँ पद्य सुविख्यात एवं सर्वप्रिय है - असितागिरिसमं स्यात् कज्जलं सिन्धुपात्रे सुरतरुवरशाखा लेखनी पत्रमूर्वी। ক্ষমা _ लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालं চাও

  • तदपि तव गुणानामीश पारं न याति।। की (नीलगिरि के समान काली स्याही हो, समुद्र दावात हो, कल्पतरु की डाल की लेखनी । हो, यह विशाल धरती कागज हो- इस सामग्री से युक्त भगवती सरस्वती यदि आपके गुणों को लिखें तो भी हे भगवन्! वह आपके गुणों के अन्त तक नहीं पहुँच सकती।) पुष्पदन्त ने महेश के अतिरिक्त कोई देवता नहीं तथा महिम्न के समान कोई स्तुति नहीं- ‘महेशान्नपरो देवो महिम्नो नापरा स्तुतिः’ कह कर शिव-महिमा को सम्यक् महत्त्व दिया है। भले ही ३१ के बाद के पद्य प्रक्षिप्त हों तथापि वे पुष्पदन्त की महिमा के परिचायक यह स्तोत्र शिखरिणी छन्द में निबद्ध है तथा संगीतमय है। गेयता-गुणयुक्त होने से इसे सदा-सर्वदा यत्र-तत्र-सर्वत्र वाद्ययंत्रों पर गाया-बजाया जाता है। यह पद्य न केवल भक्तिमय रचना है प्रत्युत इसमें ईश्वर की सत्ता तथा दार्शनिक विषय को भी प्रस्तुत किया गया है। मधुसूदन सरस्वती (१६वीं शती) ने इस स्तोत्र में शिव के साथ विष्णु का भी अपनी टीका में वर्णन करने वाला बताया है।