भाषा की सरसता तथा भावों की भावुकता से युक्त गणेशमहिम्नस्तोत्र में ३१ पद्य हैं। कवि ने गणेश को परब्रह्म स्वरूप तथा सकलदेवमय बताते हुए कहा है - फत किशोक कर गणेशं गाणेशाः शिवमिति च शैवाश्च बिबुधा शाला शिन्छ समाजमी रविं सौरा विष्णु प्रथमपुरुषं विष्णुभजकाः। वदन्त्येके शाक्ता जगद्यमूलां परशिवां मिली कशमीर तिः एक तर तिलक के न जाने किं तस्मै नम इति परं ब्रह्मसकलम् ।। ति न भगवान् गणपति को उत्पत्ति, स्थिति और लय का कारण बताते हुए पुष्पदन्त लिखते गकारो हेरम्बः सगुण इति पुंनिर्गुणमयो द्विधाऽप्येको जातः प्रकृतिपुरुषो ब्रह्म हि गणः। स चेशश्चोत्पत्तिस्थितिलयकरोऽयंप्रथमको मारमा यतो भतं भव्यं भवति पतिरीशो गणपतिः।।