कालिदास का मेघदूत तथा जयदेव का गीतगोविन्द-संस्कृतसाहित्य में ये दोनों काव्यकृतियाँ अनूठी ही हैं। आकार में लघु होते हुए भी इन दोनों काव्यों ने भारतीय काव्य को एक-एक नवीन विधा दी। मेघदूत से सन्देशकाव्य या दूतकाव्य की विधा प्रस्फुटित हुई तो जयदेव के गीतगोविन्द ने रागकाव्य की विधा को प्रतिष्ठित किया। इन दोनों ही काव्यों, का अनुकरण करते हुए सैकड़ों कवियों ने सन्देशकाव्य तथा रागकाव्य की विधाओं में रचनाएँ प्रस्तुत की, और इन दोनों कालजयी कृतियों का व्यापक प्रभाव केवल संस्कृत काव्यधारा पर ही नहीं, प्रायः समूची भारतीय काव्यपरम्परा पर पड़ा। मेघदूत में महाकवि ने कविता का एक उदात्त और भव्य मानदण्ड खड़ा कर दिया था, जो जितना ही समुत्रत था, उतना ही कमनीय और आकर्षक भी। परवर्ती कवियों ने इस मानदण्ड की ऊँचाई तक पहुँचने का अपने-अपने ढंग से प्रयास किया, पर मेघदूत का स्थूल कलेवर ही उनकी रचनाओं में अधिक संक्रान्त हुआ, उसकी अन्तर्निहित भावधारा की गहराई कम आयी। तथापि इसमें कोई सन्देह नहीं कि मेघदूत की उपजीव्यता ने भारतीय साहित्य को सम्पन्नतर बनाया है, और उससे प्रेरित होकर जो बहुसंख्य दूतकाव्य लिखे गये, उनमें शृंगार, प्रणय और विरहवेदना की अभिव्यक्ति के साथ-साथ कवियों ने अपने समय की भौगोलिक और सांस्कृतिक छवियाँ भी उकेरी हैं। केवल सौ पद्यों वाली एक रचना से प्रेरित होकर एक सहस्राब्दी तक उसकी विधा और भावधारा में निरन्तर नयी रचनाएँ होती रहे- इसका अन्य उदाहरण अन्य भाषाओं के साहित्य में कठिनाई से मिलेगा। “मेघदूत ने संस्कृत के ही कवियों को नहीं, प्राकृत, को भी प्रेरित किया। अपभ्रंश में मेघदूत से प्रेरित होकर लिखा गया सबसे प्राचीन काव्य अद्दहमाण (अब्दुलरहमान) का ‘सन्देशरासक’ यद्यपि सन्देशकाव्य का व्यवस्थित सूत्रपात एक स्वतन्त्र विधा के रूप में मेघदूत से हुआ, पर संस्कृत साहित्य में उसकी मूल परम्परा बहुत पुरानी है। फल की जगी डाकिर कार्तिक मानकापनि कम १. मुनि जिनविजय सन्देशरासक का रचनाकाल बारहवीं शती के पूर्व, राहुल सांकृत्यायन ग्यारहवीं शती तथा पं. हजारी प्रसाद द्विवेदी १२-१३वीं शती मानते हैं।- सन्देशरासक, पं. ह.प्र. द्विवेदी, विश्वनाथ त्रिपाठी, भूमिका, पृष्ठ- २२-२३॥ ३१० काव्य-खण्ड