३४ बौद्ध सन्देशकाव्य

मातृचेट : कनिष्कलेख

मातृचेट प्रथम शती ई. के सुप्रसिद्ध सम्राट् कनिष्क और महाकवि अश्वघोष के समकालीन थे। कवि के उदात्त व्यक्तित्व से प्रभावित होकर कनिष्क ने उनका साहचर्य करने के लिए राज्यसभा में आने के लिए आमन्त्रण दिया, किन्तु वे नहीं आये। कनिष्क को जो उत्तर मातृचेत ने भेजा वह ‘कनिष्कलेख’ के नाम से प्रसिद्ध है। इसका केवल तिब्बती अनुवाद मिलता है। इसके ८५ पद्यों में राजा को सद्धर्म की प्रेरणा देते हुये, पशु-हिंसा से विरत रहने की सीख दी गयी है।

नागार्जुन : सुहृल्लेख

दूसरी शती ई. के प्रसिद्ध दार्शनिक नागार्जुन का ‘सुहल्लेख’ सन्देश-काव्य के रूप में है। इसमें नागार्जुन ने किसी राजा (सातवाहन) के पास बौद्ध-जीवन-दर्शन का सन्देश भेजा है। इसका पूरा नाम आर्य-नागार्जुन-बोधिसत्व सुहल्लेख है। इसका एक पद्य सुभाषितावली में मिलता है १. जैनमेघदूतम्- सं. रविशंकरमिश्र, भूमिका, पृ. १० २. वही, पृ. ११ ३. वही, पृष्ठ १३ ४. वही, पृष्ठ १५काब-खण्ड विषस्य विषयाणाञ्च दूरमत्यन्तमन्तरम्। कामकाज उपभुक्ते विषं हन्ति विषयाः स्मरणादपि ।। कालावधि