१३ माधव कवीन्द्र का उद्धवदूत

उद्धवदूत के रचयिता श्री माधव कवीन्द्र भट्टाचार्य तालितनगर नामक स्थान के रहने वाले थे। श्री कृष्णमाचारियर इस कवि को १६वीं शताब्दी में और एस.के. दे इस कवि को १७वीं शताब्दी में मानते हैं। वाचस्पति गैरोला इनको १६वीं शताब्दी में मानते हैं। मध्यकाल में बंगाल के कृष्णभक्त कवियों द्वारा लिखे गये संस्कृत के दूत-काव्यों में इस काव्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है। को पोकामावर काव्य की कथा : श्रीकृष्ण गोपियों के लिये अपना सन्देश देकर उद्धव को मथुरा से गोकुल भेजते हैं। उद्धव के गोकुल में पहुंचते ही राधा उन्हें कृष्ण का भेजा हुआ दूत समझकर अपनी तथा अन्य गोपियों की विरह-व्यथा सुनाकर कृष्ण को उपालम्भ देती है। तदनन्तर कृष्ण को अपना सन्देश सुनाती है। जानकारी १. जीवानन्द सागर द्वारा सन् १८८८ में कलकत्ता से प्रकाशित । - २. हिस्ट्री ऑफ क्लासिकल संस्कृत लिटरेचर, पृ. ३६६, पा.हि.। ३. ए हिस्ट्री ऑफ संस्कृत लिटरेचर, क्लासिकल पीरियड, प्र.भा., पृ. ७५२ मा वाम ४. संस्कृत साहित्य का इतिहास (सन्देशकाव्य), पृ. ६०३। जन्म तिमलित न TRE ३३२ काव्य-खण्ड सन्देश में सर्वप्रथम यशोदा, नन्द, गोपालगृहों, गायों, बैलों, वृन्दावन, ग्वाल-बाल और गोपियों की कृष्णविरहजन्य दुरवस्था वर्णित की गई है। कृष्ण के कुब्जा-प्रेम की भर्त्सना के साथ-साथ कृष्ण के गोपियों के भूल जाने पर भी मधुर आक्षेप निहित हैं। अक्रूर को भी फटकार सुनाई गई है। आशा और निराशा में दोलायमान अपने क्षुब्ध मन के साथ राधा ने गोपियों के सुकुमार चित्त के साथ कठोरता न करने का निवेदन भी किया है। हृदयस्पर्शी उपालम्भ प्रस्तुत करती हुई व्याकुल हृदय से हाहाकार सुनाकर राधिका मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ती है। उद्धव शीतल जल से उपचार करते हैं। जब राधा को होश आता है, उद्धव अपना परिचय देकर कृष्ण का सन्देश सुनाते हैं। राधा के अनन्य कृष्ण-प्रेम और श्रद्धा-भक्ति से पुलकित होकर उद्धव उसको प्रणाम करते हैं और श्रीकृष्ण का उत्तरीय उनके प्रेम के प्रतीकस्वरूप राधा को मेंट में देते हैं। दोनों ही भावविह्वल हो जाते हैं। उद्धव गोकुल की जनता से विदा लेकर मथुरा की ओर जाते हैं। राधा कृष्ण के प्रेम-सन्देश का ध्यान करती हुई आनन्दमग्न हो जाती है।

  • काव्य-समीक्षा : ‘श्रीमद्भागवत’ के प्रसिद्ध कथानक का आधार लेकर यह काव्य लिखा गया है। इस काव्य में १४१ श्लोक हैं। सर्वत्र मन्दाक्रान्ता छन्द का तथा अन्त में । अनुष्टुप् छन्द का प्रयोग किया गया है। भाव, भाषा तथा शिल्प-विधान में कवि की मौलिकता दिखाई देती है। नायक तथा नायिका दोनों के ही सन्देश को काव्य में स्थान देकर कवि ने सन्देश-काव्य की परिकल्पना को विस्तार दिया है। काव्य में विप्रलम्भ-शृङ्गार का प्रमुख रूप से चित्रण है। माधुर्यव्यञ्जित वैदर्भी रीति का प्रयोग है। जिस प्रकार राधा ने कृष्ण-विरह में अपनी व्याकुलता दिखलाई है, उसी प्रकार कृष्ण भी राधा के विरह में उतने ही व्याकुल हैं। कवि ने दोनों की मनोव्यथा का समान रूप से वर्णन करके, राधा-कृष्ण के उदात्त प्रेम का आदर्श प्रस्तुत किया है। सन्देश के अन्त में राधा कहती है - अशिवितो शिर निजी विणत-निक भासाया अत्रागचछ त्वरितमथवा तिष्ठ तत्राब्दलक्षमण गुमा वा महासनिक शृण्वन्त्वेते जनपदजना मुक्तकण्ठा ब्रवीमि । मला यामि स्वर्ग निरयमथवा प्राणिमीह प्रिये वा नाम श्यामादन्यो नहि नहि नहि प्राणनाथो ममास्ते।। स्त राधा के उपर्युक्त सन्देश में प्रेम की गूढ़ व्यञ्जना है। कवि की वर्णन शैली रमणीय है।