०८ वामनभट्ट बाण का हंसदूत

‘हंसदूत’ सन्देश-काव्य के लेखक वामन भट्टराजा वेमभूपाल के राजकवि और विद्यारण्य के शिष्य थे। इस सन्देशकाव्य की रचना पंचदशशतक के पूर्वार्द्ध में की गई है। वामनभट्ट ने नलाभ्युदय, रघुनाथ-चरित, हंसदूत और बाणासुर-विजय नामक काव्यों के साथ ही पार्वती-परिणय, कनकलेखा और शृङ्गारभूषण भाण ये नाटक ग्रन्थ, वेमभूपाल चरित नामक गद्य-ग्रन्थ तथा दो कोषग्रन्थों की रचना की है। हंसदूत की कथा : हंसदूत की कथा मेघसन्देश जैसी ही है। अलकापुरी से निर्वासित एक यक्ष अपनी प्रियतमा के पास अपना विरह-सन्देश भेजता है। पूर्वभाग में ६१ तथा उत्तर-भाग में ६० श्लोक हैं। मार्गवर्णन में मलयपर्वत से हिमाचल स्थित अलकापुरी तक के मार्ग में आने वाले स्थानों का वर्णन किया गया है। मलयपर्वत से उड़कर हंस को ताम्रपर्णी नदी के किनारे उड़ते हुए मदुरा नगरी और वहाँ से रंगदेश, चोलदेश, कांजीवरम्, पुण्यकोटि और कम्पा नदी जाने को कहा है। आन्ध्र देश से विन्ध्यपर्वत, नर्मदा, यमुना, गंगा को पार करके अयोध्या, कुरुक्षेत्र, हिमालय, कैलाशपर्वत को पार कर अलकापुरी पहुंचने का परामर्श दिया गया है। वहाँ यक्ष के गृह का, नायिका की विरहावस्थाओं का वर्णन है। यहीं हंस को प्रेयसी के प्रति दिया जाने वाला सन्देश बताया है। अन्त में हंस के प्रति शुभकामना है। साहित्यिक समीक्षा : यह सन्देश-काव्य मेघसन्देश की कथा को लेकर लिखा गया है। भाव, भाषा-शैली में मेघसन्देश का प्रभाव है। कवि ने अनुकरण करते हुए भी अपनी भावप्रवणता, सुकुमार कल्पना और उदात्त वर्णनशक्ति का परिचय दिया है। सर्वत्र माधुर्य और प्रसादयुक्त भाषा का प्रयोग किया है। कवि की अनूठी कल्पना में सरसता है। हंस - जो उसका सन्देशवाहक है, कवि ने उसकी पत्नी को भी साथ ले जाने का अनुरोध किया १. डॉ.जे.बी. चौधरी द्वारा सन् १८८८ में कलकत्ता से प्रकाशित । काव्य-खण्ड है। इस काव्य में उपमा, अनुप्रास, रूपक, उत्प्रेक्षा अलंकार से सरसता आयी है। प्रियविरह से व्याकुल कन्दर्पलेखा का शब्द-चित्रांकन सुन्दर है। यथा - लेखामिन्दोरिव दिनमुखे दीनतामश्नुवानां ।। भग्नोपहनामिव नवलतां छायया मुच्यमानाम् । मेघापाये सरितमिव तां बिभ्रतीमेकवेणीं। दृष्ट्वा यावद् भवसि करुणाशोकयोरेकपात्रम् ।। २।। १०१ र काव्य में भावपूर्ण सूक्तियाँ हैं। यथा - १. मित्रस्यार्थे विहितमनसां कालहानिः कथं स्यात् ।। १।। ३४. से यार किये २. को वा लोके विरहजनितां वेदनां सोढुमीष्टे ।। १।। ३. ही यह सन्देश-काव्य उच्चकोटि की काव्य-क