०५ वासुदेव कवि का भृगुसन्देश

भृगसन्देश’ दक्षिण भारत के किसी वासुदेव नामक कवि की रचना है। इसके रचनाकाल के विषय में विद्वानों में मतभेद है। सन्देश-काव्य में कोचीन के राजा रविवर्मा मिनम आई साकः कीजिए १, त्रिवेन्द्रम संस्कृत सीरीज से संख्या १२८ के रूप में संवत १७ में प्रकाशित PPTOPP ३२२ का उल्लेख आता है। अतः यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि यह सन्देशकाव्य १५वीं शताब्दी के अन्तिम तथा षोडश शताब्दी के प्रारम्भ में लिखा गया होगा। क वि काव्य की कथा : इस काव्य में एक विरही प्रेमी ने स्यानन्दूर (त्रिवेन्द्रम्) से श्वेतदुर्ग में स्थित अपनी प्रेमिका के पास भंग द्वारा सन्देश भेजा है। किसी समय नायक अपनी नायिका के साथ प्रासाद पर निद्राविहार कर रहा था। इसी अवसर पर कोई यक्षी उसके सौन्दर्य पर मुग्ध होकर उसे मलयपर्वत पर उड़ा कर ले जाने लगी। मार्ग में अपने यक्ष को आता देखकर वह उस नायक को वहीं छोड़ देती है। स्यानन्दूर में पद्मनाभस्वामी के मन्दिर के निकट पुष्पाराम में जब वह नायक जागता है, जब अपने को अकेला पाकर वह दुःखी होकर भुंग को दूत बनाकर अपनी प्रेयसी के पास भेजता है। इसी प्रसंग में स्यानन्दूर से श्वेतदुर्ग तक का मार्ग-वर्णन किया है। हि पद्मनाभस्वामी के दर्शन करने के बाद उत्तर की ओर चलने पर सर्वप्रथम राजा रविवर्मा के राज्य तदनन्तर उदयमार्तण्ड राजा की नगरी पहुँचने का भुंग को परामर्श दिया है। तदनन्तर क्रमशः कुमारग्राम, वैक्कम, त्रिपुणतीर्थ, कोचीन, गुणकपुरी, मुक्तिस्थान, निला नदी, कुण्डगेह आदि स्थान को पार करने के बाद अन्त में प्रेयसी के निवास स्थान श्वेतदुर्ग का वर्णन है। स्फटिक मणियों से निर्मित सरोवर के उत्तर में बालयक्ष गृह में नायिका विरहव्याकुल बैठी है। यहीं पर भृग से नायक ने प्रेयसी को सन्देश सुनाने की प्रार्थना की है। सन्देश में उसने अपनी विरहावस्था, नायिका के लिये आश्वासन और अभिज्ञान-घटनायें वर्णित की हैं। अन्त में नायक ने पुनर्दर्शन की अभिलाषा प्रकट करते हुए मुंग को आशीर्वाद दिया FELLPEPPA काव्य-समालोचना : मेघदूत के अनुकरण पर लिखे गये इस काव्य के पूर्वभाग में E५ और उत्तर भाग में ८० श्लोक हैं। मन्दाक्रान्ता छन्द और विप्रलम्भ शृङ्गार की प्रधानता है। मेघदूत का प्रभाव सर्वत्र है। मार्ग-वर्णन मनोरम है। सरस मार्ग-वर्णन में कवि ने तत्तत्स्थलों के सुन्दर शब्दचित्र उपस्थित किये हैं। नगरी, समुद्र और नदियों के वर्णन में कल्पना की उड़ान और अलंकार-सौन्दर्य है तो मन्दिरों और गृह के वर्णन में सरस भावों का निदर्शन है। नायिका के सौन्दर्य-वर्णन और विरहावस्थाओं के चित्रण में मेघदूत से भावसाम्य है। उपमा, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास और रूपक अलंकार का सौन्दर्य रमणीय है। निला नदी के वर्णन में कवि ने सुन्दर उपमा दी है। कवि ने निला नदी को समुद्र की लहरों के नीले रेशमी वस्त्रों के साथ धारण की हुई पृथ्वी की हारवल्ली कहा है। म यह सन्देश-काव्य दक्षिण भारत के तत्कालीन भौगोलिक, धार्मिक तथा राजनैतिक परिस्थितियों का ज्ञान देता है। ऐसा कहा जाता है कि इस भृगसन्देश की प्राप्ति पर उद्दण्ड कवि ने उत्तरस्वरूप अपना कोकिलसन्देश नामक काव्य लिखा। समा म ERE सन्देशकाव्यपरम्परा