११ राघवपाण्डवीयम् (कविराजसूरी)

लेखक-परिचय : ‘राघवपाण्डवीयम्’ काव्य के रचयिता कवि ‘कविराजसूरि’ हैं। पुरातत्वविद् के.बी. पाठक के अनुसार ‘कविराज’ यह इनका उपनाम था, इनका वास्तविक नाम ‘माधव भट्ट’ था। परन्तु डा. सुब्बैया के अनुसार इन्होंने स्वयं अपने काव्य ‘राघवपाण्डवीयम्’ में कविराज के अनन्तर ‘सूरि’ शब्द का प्रयोग किया है। डा. सुब्बैया के अनुसार ‘सूरि’ शब्द नाम के अनन्तर ही प्रयुक्त होता है शास्त्रकाव्य, सन्धानकाव्य, चित्रकाव्य तथा यमककाव्य वेर म तस्यावदातैः कविसूक्तिसूत्रैः संस्यूतनानागुणरत्नराशेः। विनोदहेतोः कविराजसूरिर्निबन्धनद्वन्द्वमिदं विधत्ते।। (रा.पा. १३५) ‘कविराजसूरि’ ने अपने काव्य राघवपाण्डवीयम् में जो उल्लेख किये हैं तदनुसार कवि ‘कविराज’ कादम्बवंश के राजा कामदेव-जो जयन्तीपुरराधिप थे-के आश्रित कवि थे। राजा कामदेव का समय वि.सं. १२३६ से १२४४ (११८२ से ११८७ ई.) है। अतः यह निर्धारित है कि कविराजसूरि का समय बारहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध है। रचना-कविराजसूरि की एकमात्र रचना है ‘राघवपाण्डवीयम्’। यह १३ सर्गों का महाकाव्य है। इसमें कवि ने प्रत्येक सर्ग के अन्तिम श्लोक में कामदेव शब्द का प्रयोग किया है। इसी कारण इस काव्य को ‘कामदेवाक’ काव्य भी कहा गया है। प्रस्तुत काव्य में कवि ने श्लेष की सहायता से आरम्भ से अन्त तक रामायण एवं महाभारत के कथानकों का निर्वाह किया है। कवि ने प्रस्तुत काव्य में वर्णित दो सर्वथा भिन्न कथानकों में भी अति सूक्ष्म दृष्टि से साम्य की प्रस्तुति कर एक ही वाक्य से दोनों कथानकों को उपस्थापित किया है। उदाहरणार्थ रामायण की कथा-राम को विश्वामित्र के साथ भेजना का साम्य महाभारतीय कथा-युधिष्ठिर के वारणावत नगर भेजने से, ताड़का का हिडिम्बा से, सीता-स्वयंवर में धनुभंग का द्रौपदी-स्वयंवर में लक्ष्यभेदन से साम्य प्रस्तुत कर अद्भुत चमत्कार उपस्थापित । किया है। इसी प्रकार कवि ने सम्पूर्ण महाकाव्य में रामायणीय घटनाओं को महाभारत की उन-उन घटनाओं से सम्बद्ध कर वर्णित किया है। कवि ने प्रस्तुत काव्य में स्वयं अपने “काव्य की निबन्धनशैली की रूप-रेखा निम्न श्लोकों द्वारा प्रदर्शित की है-तलागार प्रायः प्रकरणैक्येन विशेषणविशेष्ययोः।। II हिरा परिवृत्त्या क्वचित्तद्वदुपमानोपमेमयोः।। म नि क्वचित् पदैश्च नानार्थैः क्वचिद्वक्रोक्तिभङ्गिभिः। विधास्यते मया काव्यं श्रीरामायणभारतम्।। (रा.पा. ११३७-३८) छन्द एवं अलंकार-‘राघवपाण्डवीयम्’ काव्य में कवि ने अपने छन्दः प्रयोग-नैपुण्य का स्पष्ट निदर्शन किया है। जहाँ कवि अनुष्टुप छन्द का प्रयोग सामान्य सूचना प्रदान करते समय करता है, वहीं विषयगाम्भीर्यानुरोधेन शार्दूलविक्रीडित का भी प्रयोग किया है। सामान्यतया इन्द्रवजा, उपेन्द्रवजा, स्रग्धरा का ही प्राधान्येन उपभोग किया गया है। स्थान-स्थान पर प्रायः सभी प्रसिद्ध एवं अप्रसिद्ध छन्दों का भी प्रयोग कवि ने किया है ताडकावधप्रसंग में कवि ने ‘कालभारिणी’ नामक छन्द का प्रयोग किया है जो प्रायः अप्रयुक्त १. अस्ति कादम्बसन्तान-सन्तानकनवाकरः। म FIR मत मणीयमाहाचा कशात कामदेवः क्षमादेव-कामधेनुर्जनेश्वरः।। (रा.पा. १।१३) ना कि विपी कील२४ मामला पण मला काव्य-खण्डमा याता अपि स्वयममेधितचित्रभानुहेतिस्फुरितां तां वसतिं विहाय भूपः। सि वनान्तरममुद्यतारिभीमः सुगुरोर्भूतधुरो घरः प्रणेदे।।। (रा.पा. १८१) दो कथाओं का युगपत् समुपस्थापन रूपी कठिनतम कार्य में भी कवि दत्तावधान है और स्थान-स्थान पर उपमा, उत्प्रेक्षा, काव्यलिंग विरोधाभास-सन्देह संभावना आदि प्रायः सभी महत्त्वपूर्ण अलंकारों का अतिरमणीय प्रयोग भी प्रस्तुत काव्य में प्राप्त होता है। निःसन्देह कविश्रेष्ठ कविराज ने प्रस्तुत काव्य में अपनी अलौकिक कवि-प्रतिभा का । प्रदर्शन कर चमत्कारप्रधान काव्य-रचयिताओं में अपना स्थान बनाया है। स्वयं कविराज सबन्धुर्बाणभट्टश्च कविराज इति त्रयः। वक्रोक्तिमार्गनिपुणाश्चतुर्थो विद्यते न वा।। (रा.पा. १।४१) धतिला कह कर अपने आपको सुबन्धु एवं बाणभट्ट की समकक्षता प्रदान करते हैं। कवि के अद्भुत रचनाकौशल को देखते हुए कवि की गर्वोक्ति उचित ही प्रतीत होती है। शाशा इतने जटिल कथानक का निर्वाह करते समय कवि का दो चार स्थानों पर निर्वहण में स्खलन भी हुआ है, यथा कवि ने पाण्डव-पक्ष का वर्णन राम के वर्णन से मिलाकर तथा कौरवपक्ष का वर्णन रावण-पक्ष के वर्णन से मिलाकर करने का उपक्रम किया था। सामान्यतया कवि ने इसका पूर्ण निर्वाह भी किया है- परन्तु दो तीन स्थानों पर निर्वहणक्रम भंग भी हुआ है, यथा- रावण के हाथों जटायु की दुर्दशा का साम्य भीम के हाथों हुई जयद्रथ की दुर्दशा से, मेघनाद द्वारा हनुमान के बन्धन का साम्य विराट् नगर में अर्जुन द्वारा दुर्योधन के अवरोध से, किया गया। इन दो तीन घटनाओं के अतिरिक्त कवि ने अपने उपक्रम का सर्वत्र निर्वाहकर संस्कत-साहित्याकाश में एक जाज्वल्यमान नक्षत्र के समान अतीव चमत्कारजनक काव्य की रचना की है।