अपमुंश महाकाव्यों में सर्वप्रथम उल्लेखनीय रचना धनपालकृत ‘भविस्सदत्तकहा’ है। धनपाल स्वयम्भू (आठवीं शती) के पश्चात् हुए। इसमें भविष्यदत्त का विचित्र चरित्र तथा अन्त में निर्वाणप्राप्ति वर्णित है। पुष्पदन्त ने अपनी सुप्रसिद्ध प्राकृत रचना महापुराण की रचना १०२२ वि. सं. (E६५ ई.) में की थी। महापुराण की रचना के पश्चात् इन्होंने अपभ्रंश में जसोहरचरित तथा नामकुमारचरिउ नामक दो महाकाव्यों की रचना की। नयनन्दि ने धारा नगरी में रहकर वि० सं० १००० (१०४३ ई०) में सुदर्सनचरिउ महाकाव्य की रचना की। कनकामर ने ११२२ वि० सं० (१०६५ ई०) में करकुडचरिउ महाकाव्य लिखा। ये सभी महाकाव्य वस्तुतः चरितकाव्य हैं, तथा जैन आचार्यों द्वारा मुख्यतः धर्मप्रचार के उद्देश्य से लिखे गये हैं। इनके अतिरिक्त सम्प्रदायमुक्त महाकाव्य भी अपभ्रंश में लिखे गये, पर ये प्रायः विलुप्त हो गये हैं।’