कालिदास भारतीय मनीषा के प्रतिनिधि कवि हैं। भारतीय जीवन-दर्शन, सांस्कृतिक बोध और परम्पराओं को कविता की वाणी में इतना कमनीय परिधान अन्यत्र नहीं मिला, जितना उनकी वाणी में। सौन्दर्य के साथ साधना, रूप के साथ अनघता और शुचिता और प्रेम तथा राग के साथ तपोवृत्ति का ऐसा सजीव समन्वय भी अन्यत्र दुर्लभ ही है, जो कालिदास के काव्यों में मिलता है। __महायोगी श्री अरविन्द ने कालिदास के कवित्व का आकलन करते हुए उचित ही कहा है- ‘उनकी काव्यसृष्टि रूप, शब्द, रस, घ्राण, स्पर्श, स्वाद और कल्पना के आनन्दों के ताने-बाने से बनी हुई है। इसमें उन्होंने भावात्मक बौद्धिक, रसात्मक आदर्श के अत्यन्त मनोज्ञ कुसुम उगा दिये हैं। उनकी काव्यरचना की दृश्यावली शोभन वस्तुओं की मनोरम रंगस्थली है। उसमें पार्थिव सुषमा के अधिनियम का एक शासन है, नैतिकता रसमय बना दी गयी है, बुद्धि सौन्दर्य-भावना से ओतप्रोत और शासित हो गयी है और फिर भी घुल-मिल कर अपनी सत्ता विलीन नहीं कर देती। इन्द्रियपरक सामान्य कविता के समान अपने ही माधुर्य से छक कर यह कविता-कामिनी निद्रालय पलकों और धुंघराले केशों और शिथिल चरित्र के भार से बोझिल नहीं हो गयी है। कालिदास अपनी शैली के परिमार्जन, पदावली की सटीकता, एवं शक्तिमत्ता तथा अपनी सतर्क कलात्मक जागरूकता के कारण इस दुर्बलता से बच गये हैं।" ' १. कालिदास की लालित्य योजना : हजारी प्रसाद द्विवेदी (१९७०), पृ. ६-१० पर उद्धृत।
तृतीय अध्यायला लागि कि शाजानी र ॐ