ज्योतिष-सर्व-संग्रहः

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( क )
* विषय-सूची *
* जातक प्रकरण प्रथम भाग *

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( ख )

योनी दोष देखना भद्रावास, भद्रा के साथ चन्द्रमा देखना
योनी वैर ग्रह मैत्री देखना भद्रा फल, कन्या या पुत्र कितने हैं बताना
गण देखना
गण फल देखना स्त्री या पुरुष, प्रथम किसकी मृत्यु होगी, कुन्डली जीवित की है या मरे की संक्रांति पुण्यकाल फल देखना
नाड़ी दोष, नाड़ी चक्र देखना
नाड़ी फल, ग्रह गोचर संक्रांति आदि मध्य अन्त भोगनी देखना
द्वादश लग्न भाव फल
ग्रह शान्ति चक्र ग्रह बाहन देखना संक्रांति मुहूर्त भेद
ग्रहभाग फल नपुंसक देखना
भकूट व पाये देखना भद्रा मुख, पुच्छ चक्र संक्रांति समय फल देखना
सर्वोपरिक्रम मङ्गली या सादा देखना
विवाह प्रकरण

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( ग )

मुहूर्त प्रकरण

गौना द्विरागमन मुहूर्त गर्भाधान मुहूर्त
चन्द्रमा वास फल देखना नामकरण, प्रसूति स्नानमुहूर्त
गोधूलिमास, जन्म चन्द्रमा वास फल देखना कुआं पूजना, स्त्री पुरुष नवीन वस्त्र धारण करना
तीनों लोकोंमें चन्द्रमावास नवान्न भोजन, अन्न प्राशन
चन्द्रमा रङ्ग बाहन, घात चन्द्रमा चूडाकर्म मुंडन, विद्यारम्भ
सन्मुख चन्द्रमा फल यज्ञोपवीत मुहूर्त
पुष्य नक्षत्र फल कर्णछेदन, नींव धरने का मुहूर्त
सिद्धि योग, मृत्युयोग तालाब, कूप, देव प्रतिष्ठा
पञ्चक देखना, शुक्र अस्त के त्याग कार्य देखना गृह प्रवेश, और कर्म
शुक्र दोष परिहार, चीज बेचना, खरीदना मुहुर्त हल चलाने का मुहूर्त
चन्द्रमा ग्रहण, सूर्य ग्रहण का सूतक सब चीजों का मुहूर्त स्वरविचार
चंद्रमा का उदय अस्त, शुभ कर्मों में सूतक पातक,किस किस राशि को गहता है पशु बेचना, खरीदना, मन्त्र उपदेश मुहूर्त
औषध करना, तिथि घात नक्षत्र घात लग्न घात चन्द्र घात ग्राम, नगर में रहने का मुहूर्त
यात्रा मुहूर्त, हवनका मुहूर्त रोगीस्तान, यात्रा मुहूर्त
ग्रहके मुखमें आहुति व योगनी देखना प्रस्थान करना, यात्रा समय शकुन देखना
योगिनी फल दिशाशूल देखना
काल विचार नित्य दिशा देखना
चौखट, दरवाजा व कुआँ खोदने का मुहूर्त
यात्रा वार फल, दिशाशूल परिहार बाग प्रतिष्ठा, कन्या के शिर में डोरे गेरना
कष्टयोग, ज्वालामुखी योग
राहु विचार, रविविचार, सूतक पातकं निर्णय
मरने का पातक त्रिपुष्कर योग

(घ)

शेषनाग विचार फल बधू प्रवेश, बाग लगाने का मुहूर्त
पृथ्वी शयन, तिथि व व्रत निर्णय मुख्य द्वार मुहूर्त
हरिवासर देखना
सर्व प्रतिष्ठा मुहूर्त
बिटौरे का मुहूर्त साघ पहरना, दुकान, राज दर्शन, नौकरी करना, नाव बनाना, नाव चलाना, नाज बोना, जच्चा को बाहरनिकाला इत्यादि मुहूर्त
गोद लेने का मुहूर्त पशु व्याने के मास वर्जित
प्रश्न प्रकरण

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** सावधान—**आज कल चन्द आदमियों ने हमारी पुस्तकों की नकल करनी शुरू कर दी है, इसलिये सब सज्जनों को सूचित किया जाता है कि जिस पुस्तक पर प्राचीन पता “हरिहर प्रेस” का न हो वह पुस्तक नकली समझनी चाहिये ।

॥ श्रीगणेशायनमः \।\।

ज्योतिष सर्व संग्रह

[ भाषा टीका ]
जातक प्रकरण प्रथम भाग
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॥ श्लोक ॥

**प्रणम्य परमात्मानं बालधीबृद्धिसिद्धये। **

समाहृत्यान्यग्रन्थेभ्यौ सर्वसंग्रहः लिख्यते॥

अबद्वादश मासों के नाम संस्कृत और भाषा में

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सोलह तिथियों के नाम

१ प्रतिपदा २ द्वितीया ३ तृतीया ४ चतुर्थी ५पंचमी ६ षष्ठी ७ सप्तमी ८ अष्टमी ९ नवमी १० दशमी ११ एकादशी १२ द्वादशी १३ त्रयोदशी १४ चतुर्दशी ३० अमावस्या १५ः पौर्णमाशी।

तीन २ तिथियों के नाम

१ पड़वा ६ छट ११ एकादशी ये नन्दा तिथि हैं २ दोयज ७ सातें १२ द्वादशी ये भद्रा तिथि हैं ३ तीज आठें १३ त्रयोदशी ये जया तिथि हैं ४ चौथ ९ नवमी १४ चतुर्दशी ये रिक्ता तिथि हैं ५पंचमी १० दशमी १५ पूनो ३० अमावस्या ये तिथि हैं।

अथ सप्त वाराः

आदित्यवार। चन्द्रवार। भौमवार। बुधवार। गुरुवार। शुक्रवार। शनिवार॥

आदित्यवार को एतवार, चन्द्रवार को- सोमवार, भौमवारको मङ्गलवार, बुद्धको- बुध, गुरुको- बृहस्पत ब जुमेरात शुक्र को जुमा, शनिश्चर को थावर भी कहते हैं. राहु केतु- ये दोनों सात वार में मिलकर नवग्रह कहलाते हैं।

एक महीने के दो पक्ष होते हैं कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष अंधेरी रात को कृष्णपक्ष और चांदनी को शुक्लपक्ष महीनेकी शुरू की पड़वा से अमावस तक कृष्णपक्ष मावस से पौर्णमासी तक शुक्ल पक्ष, अंधेरी रात को बदी, चांदनी को सुदी कहते हैं।

अष्टाविंशति नक्षत्राणि

अब२८ नक्षत्र लिखते हैं।

अश्विनी १ भरणी २ कृतिका ३ रोहिणी ४ मृगशिर ५ आद्रा ६ पुनर्वसु ७ पुष्प ८ श्लेषा ९ मघा १० पूर्वा फाल्गुणी ११ उत्तरा फाल्गुणी १२ हस्त १३ चित्रा १४ स्वाति १५ विशाखा १६ अनुराधा १७ ज्येष्ठा १८ मूल १९पूर्वाषाढ २० उत्तराषाढ २१ अभिजित् २२ श्रवण २३ धनिष्ठा २४ शतभिषा २५ पूर्वाभाद्रपद २६ उत्तरा भाद्रपद २७ रेवती २८।

नक्षत्रों के देवता चक्रम्

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सप्तविंशति योगः
श्लोक

**विष्कुम्भः प्रीतिरायुष्मान् सौभाग्यः शोभनस्तथा। **

**अतिगंडः सुकर्मा च धृतिः शूलस्तथैव च॥१॥ **

**गंडो वृद्धिध्रुश्चैव ब्याघातो हर्षणस्तथा। **

**बज्रंसिद्धिर्व्यतीपातो वरियान् परिघः शिवः॥२॥ **

**सिद्धिः साध्यः शुभः शुक्लो ब्रह्म चैन्द्रोऽथवैधृतिः। **

सप्त विंशतिराख्यातां नामतुल्यफलप्रदाः॥३॥

विष्कुम्भ १ प्रीति २ आयुष्मान् ३ सौभाग्य ४ शोभन् ५ अतिगण्ड ६ सुकर्मा ७ घृति ८ शूल ९ गरुड १० वृद्धि ११ ध्रुव १२ व्याघात १३ हर्षण १४ वज्र १५ सिद्धि १६ व्यतिपात १७ वरियान् १८ परिघ १९ शिव २० सिद्धि २१ साध्य २२ शुभ २३ शुक्ल २४ ब्रह्म २५ एन्द्र २६ वैधृत २७ इति सप्तविंशति योग समाप्त॥ ये सच्चाईस योग हैं।

अथ षट् ऋतवः

बसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त शिशिर

एक एक ऋतु दो महीने वर्तमान रहती है। जैसे मेष वृष के सूर्यमें यानी वैशाख ज्येष्ठमें वसन्त ऋतु होती है। मिथुन, कर्क के सूर्य में यानी आषाणश्रावण में ग्रीष्म। सिंह कन्या के सूर्य यानी भाद्रपद आश्विन में वर्षा ऋतु होती है। तुला वृश्चिक के सूर्य में यानी कार्तिक, मङ्गशिर में शरद्। धन मकर केसूर्य में यानी पोष माघ में हेमन्त। कुम्भ मीनके सूर्य में यानी फाल्गुण, चैत्र में शिशिर। छः महीने सूर्य उत्तरायण और ६ महीने दक्षिणायण रहता है। उत्तरायण सूर्य में देवताओं का दिन होता है और दक्षिणायण में रात होती है। इसी कारण जितने शुभ काम हैं उत्तरायण सूर्य में अच्छे होते हैं। माघ, फाल्गुण, चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ अषाढ़ इन छः महीनों में सूर्य उत्तरायण रहता है। और श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मङ्गशिर, पूष इन ६ महीनों में सूर्य दक्षिणायण रहता है। ये संक्रांति के हिसाब से है सो पत्रमें लिखा रहता है। मीन की संक्राति के जब नौ अंश जायेंगे उसी रोज से सूर्य उत्तरायण हो जाता है। और कन्या की संक्रांति के नौ अंश जब जायेंगे उसी रोज से सूर्य दक्षिणायण हो जाता है।

अष्ट दिशाओं के स्वामी

अष्ट दिशा चक्रम

पूर्व का इन्द्र स्वामी। अग्नि का अग्नि स्वामी। दक्षिणका यमस्वामी। नैऋतिका निॠत्य। पश्चिमका वरुण।वायव्यकावायु। उत्तर का कुबेर, ईशान का शिव। ये आठों दिशाओं के आठ मालिक हैं इसी प्रकार चक्र में जानने चाहिये।

अथ एकादश करणानि

वब १, बालव २, कौलव ३, तैतिल ४, गर ५, वणिजू ६, विष्टि ७।

ये सात करण चर हैं।

शकुनी ८, चतुष्पद ९, नाग १०, किंस्तुघ्न ११।

ये चार करण और स्थिर हैं इस कारण ग्यारह करण हैं ।

बारह राशियों के नाम

१ मेष २ वृष ३ मिथुन ४ कर्क ५सिंह ६ कन्या ७ तुला ८ वृश्चिक ९ धन १० मकर ११ कुम्भ १२ मीन।

अथ दिनमान देखना

** **सुनो ! साठ घड़ी का एक दिन होता है। कभी दिन बड़ा हो जाता है कभी रात बड़ी हो जाती है और एक घड़ी के साठ पल होते हैं और ६० पलकी एक घड़ी होती है और एक पल के ६० विपल होते हैं और ६० विपल का एक पल होता है। २॥ पल का एक मिनट होता है और २४ मिनट की एक बड़ी होती है २॥ घड़ी का एक घण्टा और २४ घण्टों का एक दिन रात होता है। और एक नक्षत्र के चार चरण होते हैं। यानी चार हरूफ जब किसी बालक का जन्म होता है उस रोज देखनाकि कौनसा नक्षत्र है उस नक्षत्र के चार भाग करले; जब से बह नक्षत्र शुरू हुआ हो और जब तक रहेगा। जैंसे अश्विनी नक्षत्रमें जन्म हुआ हो तो देखो कि यह नक्षत्र ६० घड़ी भोग करताहै तो पन्द्रह पन्द्रह घड़ीकेचार चरण हुये और जो नक्षत्र ६० घड़ी से कमती बढ़ती हो तो उतनी हीघड़ियों को चार जगह बांटे, जितना बंट आवे, उतनी ही घड़ियों पलोंका एक चरण जाने, जौन से चरण में जन्म हो उसी चरण का अक्षर नाम में पहिले आता है इसका कुछ प्रमाण नहीं है कि एक नक्षत्र ६० ही घड़ी भोगे जो पंडित ६० घड़ी लगाते हैं उनके लगाने से राशि में फर्क आता है। अब देखिये कि अश्विनी नक्षत्र में जन्म हुआ तो यह देखो कि कौन से चरण में जन्म हुआ, उसी चरण के अक्षर पै नाम घरे। जैसे चू चे चौला अश्विनी। पहले चरण का अक्षर चू है दूसरे का चे है तीसरेका चो है और चौथेका ला है। जो चू पै लड़केका जन्म हो तो चुन्नी। लड़की का जन्म हो तो चुनिया। चे पै हो तो चेतराम, चेतो। चो पै चोखराज, चोलावती। लापै लाला या लालमण, या लालजी, या लाली सब नक्षत्रों पै ऐसे ही नाम धरे। ब्राह्मण के यहां मिश्र करके लिखे क्षत्री के यहां सिंह करके। और जिस नक्षत्र के चरण में लड़के या लड़की जन्म होगा उसका वही नक्षत्र होगा। जैसे यहां चार अक्षरोका एक नक्षत्र ले इसी प्रकार चार २ अक्षरों के २८ नक्षत्र हैं उन २८ नक्षत्रों के नाम आगे के पत्र में लिंखे हैं ।

चार अक्षरों के नक्षत्र

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और नौ अक्षरों की एक राशि होती है जैसे चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, आ=मेष। इन नौ हर्फो की मेष राशि हुई। इन हर्फोमें जिनके नाम का अक्षर होगा उसकी मेष राषि होगी ऐसे ही ये बारह राशि हैं। इन बारह राशियों के नाम आगे के पत्र में लिखे हैं।

नौ अक्षरों की राशि दो अक्षरों की राशि

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और सवा दो नक्षत्रों का एक चन्द्रमा होता है। जैसे अश्विनी-भरणी-कृतिका के एक चरण तक मेष के चन्द्रमा रहते हैं और जिसे का आश्विनी नक्षत्र का जन्म होगा या भरणी का होगा और कृतिका के एक चरण तक का होगा उसकी मेष राशि होगी।

चंद्रमा देखना

** अश्विनी भरणी कृतिका पादे मेषः। कृतिकानाम त्रयः पादा रोहिणी मृगशिर अर्द्ध वृषः॥ मृगशिर अर्द्वं आद्रा पुनर्वसुपाद त्रयं मिथुन। पुनर्वसुपाद मेकं पुष्या श्लेषान्ते कर्क। मघा च पूर्वाफालगुणी**

उत्तरापादे सिंह। उत्तराणां त्रयःपादा हस्तचित्रार्द्धंकन्या। चित्रार्द्धं स्वातिविशाख पादत्रयंतुल। विशाखा पादमेकं अनुराधा ज्येष्ठान्ते वृश्चिक। मूल व पूर्वाषाढ़ उत्तरापादे धन। उत्तराणाँ त्रयः पादाः श्रवणनिष्ठार्द्ध मकर। धनिष्ठार्द्ध शतभिषा पूर्वा भाद्रपदपादत्रयं कुम्भ॥ पूर्वाभाद्रपद पादमेकं उत्तरा भाद्रपद रेवती मीन॥

टीका-अश्विनी के ४ चरण भरणी के ४ चरण कृतिका का १ चरण तक मेषके चन्द्रमा रहेंगे। कृतिकाके ३ रोहिणी के ४ मृगशिर के २ चरण तक वृष के चन्द्रमा रहेंगे। मृगशिर के २ आर्द्राके४ पुनर्वसुके तीन चरण तक मिथुन के चंद्रमा रहते हैं। पुनर्वसुका १ पुष्व के ४ श्लेषा के ४ तक कर्कके चंद्रमा रहेंगे। मघा के ४ पूर्वाफाल्गुनी के ४ उत्तराफाल्गुनी के १ चरण तक सिंह के चन्द्रमा। उत्तरा फाल्गुनी तीन हस्तके४ चित्राके२ तक कन्या के चन्द्रमा। चित्रा २ स्वा० ४ बि० ३ तक तुल के चन्द्रमा। वि० १ अनु० ४ ज्ये० ३ तक वृश्चिक के चन्द्रमा। मृ० ४ पू० पा० ४ उ० पा० १ तक धन के चन्द्रमा। उ० पा० ३ श्र० ४ धन २ तक मकर के चन्द्रमा॥ धन२ श० ४ पूर्वा भाद्र ० तीन तक कुम्भके चन्द्रमा। पू० भा० १ उ०भा० ४ रेवती ४ तक मीनके चन्द्रमा रहेंगे। इस क्रमसे सबके जानलें।

जब किसी लड़के का जन्म हो उस वक्त लग्न देखना कि इस वक्त क्या लग्न है। पहले यों देखे कि इस महीने में सूर्य काहे का है जिस राशि का सूर्य हो उस से सातवीं राशि पर सूर्य छिप जाता है। जिस राशि पै सूर्य हो उसको संक्राति कहते उस राशि का एक अंश रोज घटता है। २९ अंश तक। ३० अंश पे सूर्य दूसरी राशि पै होजाता है। वो ही संक्राति है। एक महीना सूर्य एक राशि पर रहता है। १२ राशियों पर इसी प्रकार घूमता है। अब लग्न देखना चाहिये कि चैत्र के महीने में किसी के बालक हुआ तो चैत्र के महीन में मीन की संक्रांति होती है। अर्थात् मीन का सूर्य होता है। जिस दिन से संक्रांति शुरू होगी उसी दिनसे मीनको सूर्य होता है। जिस वक्त सूर्य उदय होता है। उस वक्त मीन लग्न रहता है। और तीन घड़ी चौंतीस पल भोगता है। यानी तीन घड़ी चौतीस पल दिन चढ़े तक रहता है। फिर मेष आजाता है। ऐसे ही दिन रात में १२ लग्न भोग करते हैं, और संक्राति के जितने अंश बीतते जायेंगे वो लग्न उतना ही रात में बीतता जायगा। अबदेखिये कि मीन की संक्रांति के १० दिन गये जब किसी के बालक हुआ तो संक्रांति के १० अंश गये तो वह मीन लग्न तिहाई रात में बीत जाता है क्यों कि दशती तीश अब मीन लग्न ३ घड़ी ३४ पलका है १ घड़ी १२पल रात मैं बीता और २ घड़ी २२ पल दिन चढ़े तक रहा फिर मेष आ गया जो १० घड़ी १५ पलदिन चढ़े किसी के बालक हुआ तो १० घड़ी १५ पल का इष्ट हुआ ऐसे ही जोड़े। चाहे किसी के किसी वक्त बालक हुआ वो ही उसका इष्ट होता है। २ घड़ी २२ पल मीन लग्न बाकी रहा और ३।३४ मेष और ४। ७ वृष। इनको जोड़ो तो १० \।३ आया अब देखो इष्ट १०। १५ का है तो जानो मिथुन लग्न रहा॥ एक कायदा और है इष्टकी घड़ी पल यानी जितना दिनचढ़ाहो या जितनी रात गई हो अर्थात् जितना इष्ट हो यों देखे कि संक्रांति के कितने अंश गये हैं पत्र में देखे जितने सूर्य की राशि के अंश गये हों उतने अंश के कोष्ट में लग्न सारणी में देखे उसी खाने की घड़ी पल इष्टमें जोड़ दे जो घड़ियां ६० से अधिक हों। फिर उसमें साठ का भाग दे जो अंक बचे लग्न सारणी में देखे इन अंक पर क्या लग्न है जहां अंक मिले वो ही लग्न जानना

अथ लग्न देखना
श्लोक

** मीने मेषे २१४ कृत भूनेत्रे बृष कुम्भे २४७ मुनि वेद भजा मकरे मिथुने ३०१ शशिख बन्हिः कर्के धनुषि शराकृत रामाः ३४५ वृश्चिकसिंहे३५१ रूप शराग्निः कन्या तुल ३४२ भुजवेद गुणा॥**

अथ लग्न योग चक्रम्

घड़ी
३४ ४५ ५१ ४२ ४२ ५१ ४५ ३४ पल
मे० वृ० मि० कर्क सिंह कन्या तुल वृ० धन म० कु. मी लग्न

अथ तिथिगन्डातं लिख्यते

नन्दा तिथिश्च नामादौ पूर्णानां च तथांति के।

घटिकैफाशुभा त्याज्या तिथि गंडे घटिद्वयम्॥

टीका—नन्दा तिथि के आदि की-पूर्णा के अन्त की एक एक घड़ी अशुभ होती है।

अथ नक्षत्रगण्डान्तम्

ज्येष्ठा श्लेषा रेवती च नक्षत्रान्ते घटिकाद्वयम्।

आदौमूलमघा शिवन्या झगण्डे घटिकाद्वयम्॥

टीका— ज्येष्ठा श्लेषा रेवती के अन्त की २ घड़ी और मूल मघा अश्विनी के आदि की दो दो घड़ी शुभ कार्य में अशुभ होती हैं।

अथ लग्नगण्डांतमाह

मीनवृश्चिक कर्कांते घटिकार्धं परित्यजेत्।
आदौमेषस्यचापस्य सिंहस्य घटिकार्द्धकम्॥

टीका— मीन, वृश्चिक, कर्क-के अन्त की आधी घड़ी, मेष, धन, सिंह के आदि की आधी घड़ी में शुभ काम न कीजे।

तिथिगण्डे भगण्डे च लग्न गण्डे च जातकः।

न जीवति यदाजातो जीविते च धनौभवेत्॥

टीका—तिथि, नक्षत्र, लग्न के गडांत में बालक का जन्म हो तो न जीवे। जो जीवे तो धनी हो। ये छः नक्षत्र गंड हैं। मृ० ज्ये• श्ले० अ० रे० म०। ज्ये० मू० श्ले० इन तीन का रिवाज जारी है। अ० रे० म० इन तीन का कम है।

ज्येष्ठा नक्षत्र फल

** ज्येष्ठादौ जननींमाता द्वितीये जननीपिता। तृतीये जननीभ्रातास्वयं माता चतुर्थके। आत्मानं पञ्चमे हन्ति षष्टे गोत्रक्षयौ भवेत्। सप्तमे चोभय कुलं ज्येष्ठभ्रातरमष्टमे। नवमे श्वसुरं हन्ति सर्वं हन्ति दशांशकम्॥**

टीका—६० घड़ी के दस भाग करे फिर छः छः घड़ी का फल कहे ज्येष्ठा नक्षत्र की पहली ६ घड़ी में जो बालक का जन्म हो तो नानी को अशुभ। दूसरी ६ घड़ी में नाना को कष्ट। तीसरे ६ घड़ी में मामा को कष्ट। चौथी ६ घड़ी में माता को कष्ट। पांचवीं ६ घड़ी में बालक को कष्ट। छटी ६ घड़ी में गोत्र वालों को कष्ट। सातवीं ६ घड़ी में नाना के परिवार को और अपने कुटुम्ब को कष्ट। आठवीं ६ घड़ी में बड़े भ्राताको कष्ट। नवीं ६ घड़ी में ससुर को कष्ट। दशवीं ६ घड़ी में सबकुटुम्ब को कष्ट कहै।

अथ मूल नक्षत्र फल

**मूलेष्टौ मूलवृक्षस्य घटिकाः परिकीर्तिता। **

**स्तम्भेषु षष्टघटिकास्त्वचि चैकादश स्मृता॥ **

शाखायां च नव प्रोक्ताः षत्रे प्रोक्ताश्चतुर्दश।

पुष्पेपञ्च फले वेदाः शिखायां च त्रयः स्मृता॥

मूले नाशोहि मूलस्य स्तम्भे हानिर्धनक्षयः ।

**त्वचि भ्रातुर्विनाशश्च शाखायां मातृपीडनम् ॥ **

**परिवारक्षयं पत्रे पुष्पे मन्त्री च भूपतिः । **

फले राज्यं शिखायां स्या अल्पजीवी च बालकः ॥

टीका—अबमूल संज्ञक नक्षत्र के विचारने की रीति मूलचक्र से कहते हैं। मूल वृक्ष बनाकर ८ घड़ी जड़ में घरे ६ स्तम्भ में ११ त्वचा में नौ शाखा में १४ पत्र में ५ पुष्प में ४ फल में ३ शिखा में इस प्रकार ६० घड़ी धरिये। फिर उसका फल कहै। जो मूल की ८ घड़ी में बालक का जन्म हो तो मूल नाश हो। स्तम्भ की ६ घड़ी में होय तो धन हानि। त्वचा की ११ घड़ी में होय तो भ्रात का नाश। शाखा की नौ घड़ी में होय तो माता को पीड़ा करे। पत्तों की १४ घड़ी में होय तो परिवार का नाश। फूलों की ५ घड़ी में होय तो राजा का मन्त्री हो। फलों की ४ घड़ी में जन्म हो तो राजा हो। अथवा वंश में या देश में श्रेष्ठ होय। शिखा की ३ घड़ी में जन्म हो तो आयु अल्प पावे अर्थात् उमर थोड़ी हो।

मूल वृक्ष फलम्

शिखा फल फूल पत्र शाखा त्वचा स्तम्भ मूल
१४ ११
अल्पायु राजा राजा मं० परि० क्षय मा०कष्ट भ्रा० ना० घनहा० मू०नाश

श्लेषा नक्षत्र फलम्

** मूर्द्धास्यनेत्रगलकासयुगं च बाहू- हृज्जानु गुह्य पदमित्यहि देहभागः॥ वाणाद्रि नेत्रहुतभुक् श्रति नाग रुद्रं-षड् नंद पंच शिरसः क्रमशस्तु नाड्यः॥१॥** राज्यं पितुक्षयो मातृनाशः कामक्रियारतिः। पितृभक्तो बली स्वप्नस्त्यागी भोगी धनी क्रमात्॥२॥

टीका—श्लेषा नक्षत्र के जिस भाग में बालक का जन्म हो उसका फल कहना। श्लेषा नक्षत्र की पहली ५ घड़ी में बालक का जन्म हो तो राज प्राप्ति। दूसरे भाग की ७ घड़ी में पिता को कष्ट। तीसरे भाग की २ घड़ी में माता को कष्ट। चौथे भाग की ३ घड़ी में पर स्त्री रत। पांचवेंभाग की ४ घड़ी में पिता का भक्त। छट भाग की ८ घड़ी में बलवान्। सातवें भाग को ११ घड़ी में आत्मघाती। आठबें भाग की६ घड़ी में त्यागी। नवमें भाग की ९ घड़ी में भोगी । दशवें भाग की ५ घड़ी में धनवान्। इस प्रकार ६० घड़ी के १० भाग करके फल कहै।

मूल ज्येष्ठा श्लेषा इन के अलग २ विचार

जो इन ६ नक्षत्रों में से किसी नक्षत्र में बालक का जन्म हो तो इनका २८००० मन्त्र का जाप करवाये या जितनी श्रद्धा हो दसवें दिन साधारण दसूठन करने के बाद और जबवह नक्षत्र २८ दिन में फिर आवे जिस नक्षत्र का मन्त्र जपा हो उस दिन शान्ति करे और जितना मन्त्र जपा हो उसके दशांश का हवन करे और ७ या १४ या २१ या २८ ब्राह्मण जिमावे तब मूल आदि का दोष दूर होता है नहीं तो विघ्न होता है।

अथ मूल नक्षत्र मंत्रः

ॐ मातेव पुत्रम्पृथिवी पुरीष्य मग्नि 0 स्वेयो नाव मारुषा तां विश्वेर्देवैऋर्तुभिः संविदानः प्रजापति विश्वकर्मा विभु चतु॥१॥

श्लेषा मंत्रः

**ॐ नमोस्तुसर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु। **

ये अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः॥२॥

ज्येष्ठा मन्त्र

** ॐ सइषुहस्तैः सनिषं गीर्भिर्व्व शीस 0 सृष्टा सयुधऽइंद्रोगणेन।स0सृष्ट जित्सोमपाबाहु शद्धर्युग्र धन्वाप्रति हिताभिरस्ता॥३॥**

अश्विनी मन्त्र

ॐ अश्विनीतेजसाचक्षुः प्राणेन सरस्वती वीर्यम्।

वाचेन्द्र वलेन्द्रायदधुरिन्द्रियम्। ॐ अश्विभ्यानमः॥४

अश्विनी नक्षत्र के प्रथम चरण में बालक का जन्म हो तो पिता को बाधा हो, दिनमें जन्म हो तो पिता को कष्ट, रात्रिमैं जन्म हो तो माता को कष्ट, संध्या में हो तो अपने को कष्ट हो।

मघा मन्त्र

ॐ पितृभ्यः स्वधा यिभ्यः स्वधानमः पितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधानमः प्रपितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधानमःअक्षन्नपितरोऽमीमदन्त पितरोऽतीतपंतपितरः शुन्धध्वम्॥५॥

मचाके प्रथम चरण में जन्म हो तो मातृपक्ष को कष्ट द्वितीयमें पिताको कष्ट। तृतीय चरण में सुख संपत्ति, चतुर्थ चरण में धन प्राप्ति हो।

रेवती मन्त्र

ॐ पूषन् तवब्रते वयन्तरिष्येम कदाचन स्तोतारस्त इहस्मसि॥६॥ ॐ पूष्णे नमः॥
रेवती नक्षत्र के प्रथम चरण में राजा हो, दूसरे चरण में मन्त्री तृतीय चरण में सुख सम्पत्ति, चतुर्थ चरण में आपे को कष्ट हो।

अथ सामग्री लिख्यते

घड़ा १ करवा १ सराईं १० पचरङ्ग ) नारियल २ सुपारी ५०, चून, चावल, फूल, हार, दूबकुशा, बताशे )। धूप)॥ कपूर )। अङ्गोछे २, कपड़ा लाल दो गज चंदोयेके वास्ते पांचों मेवा)। केले ४, २७ खेड़ों की कंकर २७ पेड़ों के पत्ते २७ कुओं का पानी, आम की टहनी, गंगाजल यमुनाजल हरनंदका जल, समुद्रका जल या समुद्रझाग, पंचरत्न पंचपल्लव पंचगव्य, पंचामृत, वंदरवार, हल, बांस की टोकरी घड़ा कच्चा १०१ छेदका, घंटी १, छायादान की कटोरी २, वृषदान, गोदान मूर्ती सोने की नूल की, चांदी की १ मूलनी की, सतनजा २७ सेर या श्रद्धा सहित, मिट्टी हाथी के नीचे की, घोड़े के नीचेकी, गौ के नीचे की रथके नीचे की, बमी की, नदी के आरपारकी राजद्वार की। हवन की सामिग्री-चावल १ हिस्सा, घी २, जौ ४ तिल ४, बूरा २, मेवा ५ छटांक, अष्टगंध इन्द्रजौ, भोजपत्र पीली मिट्टी ५सेर, एक लक्ष मंत्रपै १ मन चरु होना चाहिए इसी हिसाब से जितना मंत्र जपा हो उतनी ही सामिग्री होनी चाहिये।

अथ जन्मपत्री लिखना

** ॐ श्रीगणेशायनमः॥ यं ब्रह्म वेदांन्तविदो वदन्ति परं प्रधानं पुरुष तथान्ये। विश्वोद्गतेः कारणमीश्वरं वा दस्मै नमो बिघ्नविनाशनाय १ जननी जन्म सौख्यानां वर्द्धनी कुलसंपदाम् पदवी पूर्वपुण्यानां लिख्यते जन्मपत्रिका। अथ शुभ संवत्सरेऽस्मिन् श्री नृपतिविक्रमादित्यराज्ये संवत् १९९२ शोके शालिवाहनस्य १८५७ उत्तरायणे वा दक्षिणायने वर्षाऋतौ मासानां मासोत्तमे मासे भाद्रपदमासे कृष्ण पक्षे शुभतिथौ ३ तृतीयायां भौमवासरे घठ्यः३१ पलानि ०१ पूर्वाभाद्रपदनाम नक्षत्रो ४३।०१ अतिगंड नामयोगे० ५।३१ वब नामकरणे ३१।०१ तत्र दिन प्रमाणं ३४।५७ रात्रिप्रमाणं २५।०३ कर्कार्क गतांशाः २५ शेषांशाः ५ तत्रैष्टम् ३४।५७ तत्समये मकरलग्नो दये विप्रवंशे वशिष्ठगोत्रे मिश्र रामप्रसादजी तत्पुत्रमिश्र घासीरामजी तत्पुत्र मिश्र केदारनाथजी गृहे पुत्रो जातः। पूर्वा भाद्रपदमे ४ चरणे जन्म नाम मिश्र दिवानसिंहजी स चेश्वरकृपया दीर्घायुष्मान भवतु तस्यराशिः मीन, वर्ण, विप्र, वैश्य जलचर, योनि, अश्व, राशीश, गुरुः, गण, मनुष्य, नाड़ी, आद्य, वर्ग्ग, सर्प्प, एते गुणा विवाहादौ व्यवहारादौ च विचारणीयाः शुभम् भूयात्॥**

लग्न परीक्षा और ग्रहों का फल

शब्दे मेषेवृषे सिंहे मकरे च तथा तुले।

अर्द्धशब्दो घटे कन्या शेषे शब्द विवर्जयेत्॥

टीका— मेष, वृष, सिंह, मकर, तुल, इन लग्नों में बालक का जन्महोतो होते ही रोवे और कुम्भ, कन्या में रौकर चुप हो जाय अर्थात् थोड़ा रोवे और लग्नों में बालक रोवे नहीं।

शीर्षोदये विलग्ने मूर्धा प्रसवोऽन्यथोदयेचरणौ
उभयोदये च हस्तौ शुभदृष्टःशोभनोऽन्यथा कष्टः ॥

४, ६, ७, ८, ३, ११ इन लग्नों में जन्म हो तो शिर से पैदा हुआ और १२ लग्न में हाथों के बल पहले दोनों हाथ आये और १, २, ४, ९, १०, इन लग्नों में पैरों की तरफ से जन्म कहना। लग्न पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो बिना कष्ट पापग्रह की दृष्टि से कष्ट से हुआ।

मीने मेषे च द्वे भार्ये चतस्रो बृषकुम्भयोः।

तुलायां च सप्तकन्यायां वाणः च धनकर्कयोः।

अन्य लग्ने भवे त्रीणि सूतिकायां विधीयते॥

टीका—मीन, मेष लग्न में २ स्त्री कहै। वृष, कुम्भ में ४ स्त्री कहै। तुल, कन्या में ७ स्त्री कहै। धन, कर्क में ५ स्त्री कहै।

**शशि लग्ने समाधात्रो ज्येगृहेशे दिगम्बरं। **

ते बीच मन्दिरनारी बालकस्य युवा वृद्धः॥

टीका—लग्न से जहां चन्द्रमा पड़े उस बीच में जो ग्रह हों उतनी स्त्री कहै बाल, युवा, बृद्ध।

**पापश्च विधवा नारी क्रूरग्रहे कुमारिका। **

सौभ्यग्रहे सुभागा च सूतकायां विधीयते॥

टीका—लग्न के और चन्द्रमा के बीच में जो पापग्रह हों उतनी विधवा स्त्री कहै। जो क्रूर ग्रह हों उतनी कुवारी कहै। और जो शुभ ग्रह हों उतनी सुहागन कहै।

**यत्र राहुस्तत्र शय्या मङ्गलं तत्र भंगदः। **

रविस्थाने दीपकश्च शनिः लोहं च जायते॥

टीका—जहां राहु हो वहाँ खाट कहै। जहां मंगल हो खाट पुरानी या पावा फटा हुआ कहै। जहां सूय हो वहां दीपक का स्थान कहै जहां शनिश्चर हो वहां लोहा कहै।

उदयस्थेपि वा मन्दे कुजे वास्तं समागते।

स्थिते वातः क्षया नाथे शशांक सुत शुक्रयोः॥

टीका- जो शनि लग्नमें हो या ७ मंगल हो या चन्द्रमा ३,६,२,७ इन राशियों का होय तो पिता घर नहीं था ऐसा कहना।

राशियों के स्थान

१ मेष, शिर, २ मुख, ३ स्तन, ४ हृदय, ५ उदर, ६ कंठ ७ नामि, ८ लिंग; नौ गुदा, १० जां, ११ घुटना १२ परै। इनमें से जन्म समय जिस राशि में पापयुक्त ग्रह हो उसी जगह तिल या लहसन का निशान बताना।

सिंह कन्या धनेमींने कर्कटे च तथा तुले।

अंतरिक्षे भवेज्जन्म शेषौ भूमौ च जायते॥

टीका- सिंह, कन्या, धन और मीन कर्क तुल इन लग्नों में बालक का जन्म शैया पर कहे या हाथों पर और लग्नों में पृथ्वी पर कहै।

**दशमे बुधजावश्च केन्द्रस्थाने यदा भवेत्। **

सूर्यश्च तथा भौमश्च बालकस्य षडंगुली॥

**सव्यहस्तं करं चैव दक्षिणे करमेव च। **

वामहस्ते भवेद्राज्यं सजातो कुलदीपकः॥

टीका- दशवें स्थान बुध या गुरु हो या केन्द्र १,४,७,१०

में हों या सूर्य मंगल हो तो बालक के ६ उङ्गली कहै बांयेमें या. दांये हाथ में या पैर में। बांये हाथ में छः उंगली अच्छी होती हैं।

तनुस्थाने यदा चन्द्रो अथवा षष्ठे वा भवेत्।

बालकस्य भवेज्जन्म तैलं दीपे न दृश्यते॥

शुक्रः शौरिर्दशम्यां च पञ्चम राशिचंद्रमा।

**तस्यबालस्य भवेज्जन्म दीपकं परिपूर्णकं॥ **

खंडदीपं तथा बुधे अष्टमे च बृहस्पतौ॥

टीका- तनु स्थानमें या छठे स्थानमें चन्द्रमा होतो दीपक में तेल नहीं था। शुक्र शनि दशवें स्थान हो, चन्द्रमा पांचवें होतो दीपकमें तेल भरा हुआ कहै। बुध हो तो आधा दीपक तेल से भरा हुआ कहै। अष्टम बृहस्पति होतो थोड़ा तेल भरा हुआ ऐसा कहै। जो लग्नके आरम्भमें जन्म होतो बत्ती पूरी थी और जो मध्यमें आधी और अन्तमें नहीं रही थी ऐसा कहना चाहिए।

चरलग्ने करे दीपं स्थिरे तत्रैव संस्थिते।

द्विस्वभावे तथा लग्ने दीपं हस्ते प्रवालयेत्॥

टीका- जो सूर्य चर राशिमें हों या चर लग्न होतोदीपक हाथ में उठाया हुआ कहै। स्थिर लग्न में वहीं धरा कहै। द्विस्वभाव में उठा के वहीं घर दिया या बत्ती और गेरी हो।

**लग्नेन्दुमध्ये शनिर्मिष्टतैलं सूर्योभवेत्तस्य घृतस्यदीषं। **

शेषग्रहे कटुमैंसतैंलं एवं प्रसूताखिलदीपमाहुः॥

टीका- जो लग्नमें चन्द्रमा या शनि हो तो दीपकमें मीठा तैल कहै, सूर्य हो तो घी का कहै और कोई ग्रह होतो कड़वाकहे।

**द्वादशे भवने भौमे वामनेत्रं विनश्यति। **

द्वादशे रवि राहुश्च दक्षिणं चक्षु नाशयेत्॥

टीका- १२ स्थान मङ्गल हो तो बांया नेत्र बिगड़ा कहै।और १२ सूर्य राहु हो तो दाहिनी आंख का नाश कहै।

शुक्रश्चतृतीये स्थाने सिंहे मेषे वृहस्पतौ।

दशमे अर्केभौमे च मूको भवति बालकः॥

टीका- तीसरे शुक्र हो, मेष का या सिंह का गुरु हो और दशमें सूर्य हो या मङ्गल हो तो बालक गूंगा हो।

तुलालि कुम्भो अकुलीर लग्ने वाच्यं प्रसूता गृह पूर्वद्वारे। कन्याधनुर्मीननृयुग्नलग्नग्ने स्यादुत्तरा पश्चिमतो वृषे च। मेषे च सिंहे मकरे च याम्ये “निगद्यते सौमुनिद्वारदेशः॥

टीका- तुल, वृश्चिक, कुम्भ, कर्क इन लग्नों में बालक का जन्म हो तो बच्चा के घर का दर्वाजा पूरव को बतावे। और ६॥९॥ १२॥३॥ इनमें उत्तर को, २ में पश्चिम को, १। ५। १०। में दक्षिण को दर्वाजा कहै।

**अर्कसुतः कुजोराहुः पंचमस्थो प्रसूतिर्व। **

लशुनं वामकुक्षौ च गर्गाचार्येण भाषितं॥

टीका- शनि राहु मङ्गल ये ग्रह पांचवें स्थान हों तो बाईं कोक में लस्सन कहना ऐसा गर्ग मुनि कहते हैं।

सिंह लग्ने यदा जातो यामित्रे च शनैश्चरः।

ब्रह्मपुत्रोपि संजातो म्लेच्छो भवति बालकः॥

टीका- जो सिंह लग्न में बालक का जन्म हो और सातवें स्थान शनि हो तो ब्राह्मणके यहाँ भी बालक म्लेच्छहो जाता है।

**रिपुस्थाने यदा चंन्द्रः षट्रात्रं नैव लंघते। **

अथवा षष्ठमासं च जातकाय विचारयेत् ॥

टीका- जिसके ६ स्थान में पाप ग्रह के साथ चन्द्रमा हो तो ६ दिन तक कष्ट कहै। या ६ महीने तक जीवे॥

रवि शशि मंगल वारास्वा कृतिका भरणी युता श्लेषा छट आठे चौदस्या सो उपजे कन्या धीया। आप मरे या माय सतावे, कुल क्षयकरे कलंक लगावे॥

टीका- रवि, शनि, मङ्गल, ये वार और कृतिका, भरणी श्लेषा ये नक्षत्र ६।८।१४ ये तिथि जो इनमें कन्या का जन्म हो तो या तो कन्या मरे या माता मरे या कुल क्षय हो, या कहीं कलंक लगे ।

आदित्य नवमे तात माता चन्द्र माता चतुर्थके।

भौमे च तृतीये भ्राता बुध तृतीये च मातुले॥

टीका- सूर्य से नवमें स्थान में पिता को देखे चन्द्रमा से ४ स्थान माता को देखे। मङ्गल से ३ स्थान में भाई को देखे। बुध से ३ स्थान में माभा को देखे। अच्छा ग्रह हो तो अच्छा फल, बुरा हो तो बुरा फल कहै॥

चौथ चतुर्दशी नवमी जानों, रवि गुरु मंगल वारपहिचानों। जो तीनों में उत्तरा लहै, निश्चें बीज पराया क है॥

टीका– ४।१४।९। ये तिथि सूर्य, गुरु मंगल ये वार औंर तीनों उत्तरा नक्षत्र में गालक हो तो और का बिन्द कहै॥

चतुष्पदगते भानौ शेषैर्वीर्यंसमन्वितैः।

द्वितनुस्थैः चक्ष्वयमलौभवः कोशवेष्टितौ॥

टीका- सूर्य चतुष्पद राशि १।२।९ परार्ध मकर पूवार्ध में होवे और सब ग्रह द्विस्वभाव में बलवान होय तो दो बालक का जन्म कहै॥

**षष्ठाष्ठमे च मूर्तौच राहुश्च भवति यदि। **

चतुर्वर्षे भवेन्मृत्यु रक्षति यदि शंकरः॥

टीका- ६।८।१। राहु हो तो चौथे वर्ष में मृत्यु कहै। जो महादेव भी रक्षा करें तो भी न जीवे।

चतुर्थे च गतो राहुः अथवा दशमो भवेत्।

तस्य बालस्य जन्मेषु दशमेमासि न जीवति ॥

टीका- ४या १० स्थान राहू हो तो दशवें महीने में कष्ट कहै॥

मीने च लग्ने गुरुर्भार्गवः स्यात् मेषे च सूर्य्योमकरे कुजः स्यात्। महीपति छत्रधरोपि बालः दशापि जाता नृपतिर्भवेत्॥

टीका- जो मीन लग्न हो और उसमें शुरु शुक्र पड़े हों और मेष राशि का सूर्य पड़े, मकर का मंगल पड़े तो बालक नृप हो या राजा का मन्त्री हो या धनाढ्य हो।

लग्ने शुक्रो बुधो यस्य यस्य केन्द्रे बृहस्पतिः।

दशमेङ्गारकायस्थ सजातो कुलदीपकः॥

टीका- लग्न में शुक्र या बुध हो केन्द्र, में १।४।७ १० में गुरु और १० मंगल हो तो बालक कुल में दीपक हो॥

लग्ने शुक्रो बुधो नास्ति नास्ति केन्द्रे बृहस्पतिः।

दशमेङ्गारकोनास्ति सजातः किं करिष्यति ॥

टीका- लग्नमें शुक्र बुध न हो और केन्द्रमें गुरुभी न हो और १० मंगल भी न होतो वो जन्मलेकर क्या करेगा यानी टहलवा

**लग्नस्थाने यदा सौरी रिपुस्थाने च चन्द्रमा। **

कुजश्च दशमस्थाने मृतकः जायते पिता॥

टीका- लग्न में शनि ६ चन्द्रमा १० मंगल हो तो उसके पिता की मृत्यु हो या कष्ट हो॥

चतुर्थे कर्मणि सोमः सुखेन प्रसवं कराः।

त्रिकोणेऽस्तंगते पापाः कष्टतः प्रसवंकराः॥

टीका- लग्न से ४-१० स्थान चन्द्रमा हो तो माता को कष्ट नहीं हुआ और जो ९-५-७पाप ग्रह हों तो माता को कष्टहुआ

**कृष्णपक्षे दिवा जन्म शुक्लपक्षे यदा निशि। **

षष्ठाष्ठमे भवेत् चन्द्रः सर्वारिष्टं निवारयेत्॥

टीका- जो कृष्णपक्षमें दिनमें और शुक्लपक्षमें रात्रि में बालक का जन्म हो और ६-८ घरमें चन्द्रमा हो तो सबकष्ट दूर करे॥

**लग्नस्थाने यदा शौरिः षष्ठे भवति चन्द्रमा। **

कुजश्चसप्तमेस्थाने पिता तस्य न जीवति॥

टीका—लग्न में शनि ६ चन्द्रमा ७ मंगल हों तो पिता न जीवे।

दशमस्थाने यदा भौमः शत्रुः क्षेत्रस्थितो यदि।

मृतये तस्य बालस्य पिता शीघ्र न जीवति॥

टीका- १० स्थान मंगल हो और शत्रु की राशि में हो उस बालक का पिता शीघ्र मरे।

त्रिभिरुच्चैभवेद्राज्यं त्रिभिः स्वस्थानि मंत्रिणाँ।

त्रिभि र्नाचैर्भवेद्दासः त्रिभिस्त र्भवेत्शठः॥

टीका- जिसके तीन ग्रह उच्च के पड़े हों वह राजा होताहै और जो ३ ग्रह अपने स्थान के हों तो मन्त्री और ३ ग्रहनीच के हों तो दास हो और जो ३ ग्रह अस्त के पड़े हों तो वह मूर्ख होता है।

जन्म लग्ने यदा भौमः चाष्टमे च वृहस्पतिः।

वर्षे च द्वादशे मृत्युः यदि रक्षति शंकरः॥

टीका- जो जन्म लग्न में मंगल और ८ बृहस्पति हों तो १२ वर्ष में मृत्यु हो शंकर भी रक्षा करे तो भी न जीवे।

चतुर्थे च यदा राहुः षष्ठे चन्द्रोष्टमेपि वा।

सद्य एव भवेन्मृत्युः शंकरो यदि रक्षति॥

टीका- ४ स्थान राहु हो ६ । ८ चन्द्रमा हो तो बालक तत्काल मृत्यु पावे।महादेव भी रक्षा करे तो न जीवे।

**लग्ने क्रूरश्च भवने क्रूरः पातालगोयदा। **

दशमे भवने क्रूरः कष्टे जीवति बालकः॥

टीका- क्रूर ग्रह का लग्न ही और क्रूर ग्रह ४ स्थान हो। या दशवें स्थान हों तो भी बालक कष्ट से जीवे।

दशमे भवने राहुः पितामात्रोः प्रपीडनं।

द्वादशे वत्सरेमृत्युः बालकस्य न संशयः॥

टीका- १० स्थान में राहु हो तो माता पिता को कष्ट और उसको १२वेंवर्ष में मृत्यु तुल्य अरिष्ठ हों इसमें संशय नहीं।

**शनिक्षेत्रे यदाभानुर्भानुक्षेत्रे यदा शनिः। **

द्वादशे वत्सरे मृत्युः बालकस्य न संशयः॥

टीका- शनि के क्षेत्र में सूर्य और सूर्य के क्षेत्र में शनि हों तो १२ वर्ष में अरिष्ठ हो ( क्षेत्र स्थान घर को कहते हैं )

**मूर्तौ शुक्रबुधौ यस्य केन्द्रे चैव वृहस्पतिः। **

दशमेऽङ्गारकश्चैव संज्ञेयः कुलदीपकः॥

टीका- जिसके जन्म लग्न में बुध, शुक्र हो केन्द्र ४.५, ७, १० में गुरु हो और १० स्थान मंगल हो तो वह बालक कुल में दीपक हो।

पंचमे च निशानाथो त्रिकोणे यदि वाक्पतिः।

दशमे च महीसुतः परमायुः स जीवति॥

टीका- लग्न से चन्द्रमा ५ स्थान त्रिकोण में वृहस्पति हो ५। ९ । १० । मंगल हो तो उसकी परमायु जानना अर्थात् सौ वर्ष की उमर हो।

धनस्थाने यदा शौरिः सिंहकेयो धरात्मजः।

शुक्रो गुरुः सप्तमे च अष्टमे रवि चंद्रमा॥

ब्रह्मपुत्रो यदि वापि वैश्यासु च सदा रतिः।

प्रा तो विंशतिमे वर्षे म्लेच्छो भवतिनान्यथा॥

टीका- दूसरे स्थान में शनि राहु मंगल हो और सातवें स्थान शुक्र गुरु हो और ८ स्थान रवि चन्द्र हो तौ ब्राह्मण का पुत्र भी हो तो वेश्यागामी हो और २० वर्ष की उमर में म्लेछ हो जाय।

**अजे सिंहे कुजे शौरी लग्ने तिष्ठति पंचमे। **

पितरं मातरं हंति भ्रातरं शिशुनः क्रमात्॥

टीका- जो रवि राहु मंगल शनिश्चर ये ग्रह १।५ स्थान पड़े तो कष्ट देते हैं शनिश्चर रवि हो तो पिता को कष्ट दे। राहु माताको, मंगल भ्राता को। शनिश्चर बालकको कष्ट करता है।

**भौमक्षेत्रे यदा जीवः षष्ठासु च चन्द्रमाः। **

वर्षेष्टमेपि मृत्युर्वै ईश्वरो रक्षति यदि॥

टीका- मंगल के क्षेत्र में बृहस्पति हो और ६।८ स्थान में चन्द्रमा हो तो ८ वर्ष में बालक को कष्ट कहना जो ईश्वर ही रक्षा करे तौही बचे ।

दशमेपि यदा राहु जन्म लग्ने यदाभवेत्।

वर्षे तु षोडषे ज्ञेयो बुधैर्मृत्युर्नस्स्य च ॥

टीका- १० राहु अथवा लग्न में हो तो १६ वर्ष में अरिष्ठजानना

**षष्ठे च भवने भोमः राहुश्च सप्तमे भवेत्। **

अष्टमे च यदा शौरी तस्य भार्या न जीवति॥

टीका- ६ स्थान मंगल हो, और ७ स्थान राहु हो, और ८ स्थान सनि हो, तो उसकी स्त्री को कष्ट कहै।

कन्या की जन्म पत्री में पापग्रह क्रूर ग्रह सातवें स्थानमें क्योंकि ये वैधव्य योग करते हैं इसका इतना ही देखना बहुत है।

शुभ और अशुभ ग्रह देखना

टीका- चन्द्रमा, बुध, बृहस्पति, शुक्र ये शुभ ग्रह हैं और सूर्य, मंगल, शनि, राहु-केतु ये पाप और क्रूर ग्रह हैं।

स्त्री कुंडली फलम्

सप्तमे, भार्गवे जाता कुल दोषकरा भवेत्।

कर्कराशिस्थिते भौमे सौरे भ्रमति वेश्मसु॥

टीका- सातवें घर में जिस स्त्री के शुक्र हो वो कुल को दोष लगावे कर्क राशि में मंगल हो या शनि हो तो बंध्या हो या घर २ वास करे।

बाल्ये च बिधवा भौमे पतित्याज्या दिवाकरे।

तस्मै शौरिः पाप दृष्टे कन्यैव समुपेष्यति॥

टीका- जिस स्त्री के ७ स्थान भौम हो उसको बाल विधवा जोग कहै सूर्य हो तो पति त्यागन करदे। शनि हो या पाप ग्रह की दृष्टि हो तो उस कन्या का विवाह बड़ी उमर में हो।

**एकएव सुरराज पुरोवा केन्द्रगोनवपंचङ्गो वा। **

शुभग्रहस्य विलोकयुतोवा शेषखेचरबलेन किंवा॥

टीका- जिस स्त्री के गुरु तोकेन्द्र में १ । ४ । ७।१० हो या ९।५। हो तो और शुभग्रहों की उन पर दृष्टि हो फिर खोटे ग्रह कुछ नहीं कर सकते।

भाषा- सूर्य से नौ स्थान पिता का हाल कहना अच्छा या बुरा और चन्द्रमा से ४ स्थान माता का हाल कहना मंगल से ३ स्थान भाई का और शनि से ८ स्थान मृत्यु का कहना।

बुध से ६ स्थान रोगों का हाल कहना। मामा और शत्रु का कहना।गुरु से ५ स्थान सन्तान का कहना। शुक्र से ७ स्थान स्त्री का कहना।यह दूसरा कायदा है जो ग्रह शुभ पड़े अच्छा कहै पापी या क्रूर पड़े तो खोटा कहै।

जिस स्थान का स्वामी अपने स्थान से दूसरे स्थान को देखता हो उस स्थान को बढ़ावेगा, पाप ग्रह और क्रूर ग्रह घटावेगा। ये ग्रहों का देखना है जिस स्थान में शुभ ग्रह हो तो उसे बढ़ावेगा और पापी और क्रूर ग्रह का नाश करेगा।

मूर्तौ करोतिविधवां दिनकृत् कुजश्च राहुर्विनष्ट

तनयां रविजोदरिद्राम्। शुक्रः शशांकतनयश्च

गुरुश्च साध्वीमायुःक्षयं प्रकुरुतेत्र च शर्वरीशः॥

जिसके लग्न में सूर्य और मंगल हो वह स्त्री विधवा होती है राहु केतु सन्तान का नाश करता है, शनिश्चर हो तो दरिद्रा होती है और शुक्र, बुध अथवा वृहस्पति होय तो साध्वी (भली हो) और चन्द्रमा हो तो आयु कम करता है।

कुर्वन्तु भास्करशनैश्चर राहुभौमाः दारिद्र यदुःख

मतुलं सततं द्वितीये। वित्तेश्वरीमविधवां गुरु

शुक्रसौम्याः नारी प्रभृततनयां कुरुते शशांकः॥

टीका- सूर्य शनिश्चर राहु केतु और मंगल यह ग्रह दूसरे स्थान में स्थित हो तो वह स्त्री अत्यन्त दरिद्रा और दुःखित होती है बृहस्पति शुक्र या बुध हो तो वह स्त्री सौभागवती और अधिक धनवती होनी चाहिये और चन्द्रमा बहुत पुत्रवती करता है।

शुक्रेन्दुभौंमगुरुसूर्यबुधास्तृतीये कुर्युः सतीं बहु

सुतां धनभोगनीं च। कन्यां करोति रविजो बहु

वित्तयुक्ताम् पुष्टिं करोति नियतं खलु सैंहिकेयः॥

टीका- जिस स्त्री के तीसरे स्थान में शुक्र, चन्द्रमा, मंगल बृहस्पति सूर्य अथवा बुध इनमें से कोई ग्रह बैठा होय तो वह स्त्री पतिव्रता अनेक पुत्रवती और धन सम्पन्न वाली होती है शनि बैंठा होय तो उसके विशेष धन होता है, उसी स्थान में राहु केतू बैठा हो तो शरीर को पुष्ट करता है।

स्वल्पं पथः क्षितिजसूर्यसुते चतुर्थे सौभाग्यशील

रहितां कुरुते शशांकः। राहुः सपत्निस हितांक्षिति

वित्तलाभम् दद्याद्बुधःसुरगुरुर्भृगुजश्च सौख्यम्॥

टीका- चतुर्थ स्थान में मंगल अथवा सूर्य स्थित हो तो उस स्त्री के दुग्ध स्वल्प अर्थात् थोड़ा होता है। चन्द्रमा, शौभाग्य और सुशीलता का नाश करताहै, राहु केतु हो तो उसके कन्या ज्यादा होती हैं ओर उसको भूमि तथा धन का भी लाभ होता है बुध वृहस्पति और शुक्र हो तो उसे अनेक प्रकार के सुख की प्राप्ति होती है।

नष्टात्मजां रविकुजौ खलु पंचमस्थौ-चन्द्रात्मजौ

बहुसुताँ गुरुभार्गवौ च॥ राहुर्ददाति मरणं रवि

जश्च रोगं, कन्यानिधानमुदरं कुरुते शशांकः॥

टीका- पञ्चम स्थान में यदि सूर्य अथवा मंगल हो तो सन्तान को कष्ट करता है, बुध बृहस्पति और शुक्र हो तो वह स्त्री अनेक पुत्रवती होती है राहु केतू मरण करता है और शनिश्चर ज्यादा रोग उत्पन्न करता है औह यदि चन्द्रमा इस स्थान में हो तो कन्या ज्यादा होती हैं।

षष्ठेशनैश्चरकुजौ रविराहुजीवाः। नारी करोति

शुभागांपतिसेविनीं च। चन्द्रःकरोति विधवामुशना

दरिद्राम् वेश्यां शशाँकतनयः कलहप्रिया वा॥

टीका- जिस स्त्री के छटे स्थान में शनीश्छर सूर्य, राहु केतु वृहस्पति अथवा मंगल इनमें से कोई ग्रह बैठा होय तो वह स्त्री अच्छी (सदाचरण करनेवाली ) और पतिकीअत्यन्त सेवा करनेवाली होती है छटे स्थान में चन्द्रमा होय तो विधवा करता है।

और इसी स्थान में शुक्र के स्थित होने से वह स्त्री दरिद्री होती है और उस स्थान में बुध बैठा होय तो वह स्त्री वेश्या अथवा नित्य कलह करने वाली होती है॥६॥

सूर्याऽऽरसौरिशशिसौम्यगुरु विंदुशुक्रा नारी करोति

सततं निज जन्मलग्नात्। ईशैर्विहीनविधवाँ च

जरा समेतां सौन्दर्यभर्तृ सुखभोगयुताँ क्रमेण॥

टीका- जिस स्त्री के सूर्य सप्तम हो तो वो पतिको त्याग दे, मंगल हो तो विधवा हो, शनि हो तो बहुत बड़ी का विवाह हो, चन्द्रया हो तो सुन्दर हो, बुध हो तो सौभाग्यवती, बृहस्पति हो तो सर्व सुख वाली, शुक्र हो तो भोग भोगने वाली भाग्यवान हो।

थानेऽष्टमे गुरुबुधौ नियतं वियोगं मृत्यु शशाँक

मृगवश्च तथैव राहुः। सूर्यकरोति विधवां शुभगाँ

महीजःसूर्य्यात्मजौबहुसुतां पतिबल्लभा च॥

टीका- जिस स्त्री के अष्टम स्थान में बृहस्पति अथवा बुध बैठे हों उसका अपने पति से वियोग रहता है, चन्द्रमा शुक्र तथा राहु केतूस्थित हों तो उसका मरण होता है, सूर्य विधवा करता है, मंगल सदाचरण करने वाली बनाता है और शनिश्चर उस स्थान में हो तो उसके पुत्र बहुत हों तथा वह स्त्री अपने पति को प्यारी होती है।

चन्द्रात्मजो भृगुदिवाकरसौम्यधिषणाः धर्मस्थिता

विदधते किल धर्मनिष्ठाम्। भौमोरुजं सूर्यसुतश्च

रण्डा नारी प्रसूततनयां कुरुते शशांकः॥

टीका- जिस स्त्री के बुध शुक्र सूर्य और बृहस्पति नवम स्थान में हों उस स्त्री की बुद्धिको धर्म करने में लगाते हैं मंगल रोग उत्पन्न करता है शनीश्चर विधवा करता है तथा चन्द्रमा सन्तान विशेष उत्पन्न करता है।

राहु करोति विधवाँ यदि कर्मणि स्यात् पापे रतिं

दिनकरश्च शनैश्चरश्च। मृत्यु कजोऽर्थरहिता

कलाटाँवचन्द्रः शेषाग्रहा धनवती सुभगा च कर्य्युः।

टीका- कर्म अर्थात् दशम स्थान में जिस स्त्री के राहु स्थित हो वह विधवा होती है, सूर्य शनि पापमें प्रीति करते हैं मंगल धन का नाश और मृत्यु करता है चन्द्रमा उस स्त्री को कुलटा परपुरुष से प्रीति अन्य ग्रह धनवती और सुभागा करते हैं।

**आयुः स्थितश्च तपनः करुते सुपुत्रा पुत्रीवतीं **

मोहिजोऽर्थवतोहि चन्द्र। आयुष्मतीं सुरगुरु
तथैव सौम्यराहुः करोति विधवाभृगुरर्थयुक्ताम्॥

टीका- स्त्री के ग्यारहवें स्थान में सूर्य हो तो वह सुपुत्रवती होती हैं, उस ही स्थान में मङ्गल पड़ा हो तो उसे पुत्र की सदैव अभिलाषा बनीरहै और चन्द्रमा धनवती करता है, बृहस्पति आयु की वृद्धि करते हैं, बुध राहु और केतु विधवा करदेते हैं तथा शुक्र अनेक प्रकार के धन का लाभ कराते हैं।

अन्ते गुरुर्हि विधवाकृद्दरिद्रां चन्द्रोधनव्ययकरीं

कुलटां च राहुः। साध्वी भयेत् भृगुवुधौ बहुपुत्र

पौत्रा प्राणप्रसक्तसु हृदा कुजश्च॥

टीका- बारहवें स्थान में जिस स्त्री के बृहस्पति हो तो विधवा करते हैं, सूर्य दरिद्रा (धनहीन) कर देता है, चन्द्रमा धन खर्च कराता है राहु केतू कुलटा (व्यभिचारणी) करता है, यदि उस स्थान में शुक्र अथवा बुध हो तो वह स्त्री पतिव्रता होती है, और मङ्गल अनेक पुत्र पौत्र युक्त करके सुफल बनाता है,

छटी दसूठन बताना

टीका- ६ दिन की छटी और १० दिन का या ११ दिन का दसूठन शुभ वार का हो और जन्मपत्री में चन्द्रमा पड़े वही उसकी राशि समझनी चाहिये।

वर्ग देखना लिख्यते

अवर्गोगरुडो ज्ञेयौ विडालः स्यात्कवर्गकः। चवर्ग

हिंहनामास्याद्टवर्गः कुक्कुरः स्मृतः। सर्पाख्यः

स्यात्तवर्गोपि यवर्गो मूषकः स्मृतः। यवर्गोमृगनामा

स्यात्तथा मेषः शवर्गकः॥

॥ वर्ग चक्रम् ॥

[TABLE]

वर्ग बैर देखना

**बैरं मूषकमार्जारं तद् वैरं मृगसिंहयोः। बैरं **

गरुड़सर्पश्च तद् वैरं श्वानमेषयोः॥

टीका- मूसे का और विलाव का बैर है। मृग औह सिंह का बैर। गरुड़ सर्प का बैर कुत्तेमेंढ़ा का बैर।

वर्ग फल देखना

स्ववर्गात् पञ्चमे शत्रु श्चतुर्थे मित्रसंज्ञकः।
उदासीनेतृतीयश्च बर्गभेदस्त्रिधोच्यते॥

टीका-अपने वर्ग से ५ वां वर्ग हो तो बैर जानो चौथा हो तो मित्रता। तीसरा हो तो उदासीन जानना।

बारह स्थानों के नाम(द्वादश भाव संज्ञा)

तनु १ र्धनं २ सहोत्थाख्यं ३ सुहत ४ पुत्रा

५रि ६ योषितः ७ निधनं ८धर्म ९ कर्म्मा १० ऽऽय

११व्यया १२ भावा स्ततोः क्रमात्॥

टीका- इन बारह स्थानों के नाम ऊपर के चक्र में लिखे हैं

ग्रहों की दृष्टि

टीका- जिस स्थानको जो ग्रह देखता है उसका नाम दृष्टिहै।

पादैकदृष्टिर्दशमे तृतीय द्विपाददृष्टि र्नत्र पंचमेवा। त्रिपाद दृष्टिश्चतुष्टके च संपूर्णदृष्टिः समसप्तके च तृतीये ३ दशमें १० मंदो नवमे ९ पंचमे ५ गुरु। चतुरा ४ ष्टम ८ भवेत्भौम शेषं सप्त ग्रहा स्मृता॥

टीका- सब ग्रह अपने स्थानसे तीसरे दशवें घर में एक पाद दृष्टि से देखते हैं ९ वें ५ वें घर में दो पाद दृष्टि ४ । ८ वें ह घर में तीन पाद और ग्रहों को वे घर में दृष्टि होती है॥ शनि ३।१० वें घर में भी। गुरु ५।९वें घरमें भी मङ्गल ४ । ८ वें घर में भी। संपूर्ण देखते हैं।

ग्रहों की अवधि

**मासं शुक्रबुधादित्याश्चन्द्रः पादिनद्वयम्। **

**भौमर्स्त्रिपक्षं जीवोऽव्दं सार्द्धवर्षद्वयं शनिः॥ **

**राहुःकेतुः सदाभुक्ते सार्द्ध मेकन्तु वत्सरं। **

टीका- सूर्य, शुक्र, बुध एक २ महीना एक राशि पै भोग करते हैं यानी रहते हैं। चन्द्रमा सवा दो दिन रहता है। मङ्गल १॥ महीने बृहस्पति १ वर्ष, शनिश्चर २॥ वर्ष-राहु-केतु-डेढ़ २ वर्ष भोग करते हैं।

नव ग्रहों की जाति

**ब्राह्मणौजीवशुक्रौ च क्षत्रियौभौमभास्करौ। **

सोमसौम्यौ विशौ प्रोक्तौ राहु मंदौतथाऽसुरौ॥

टीका- शुक्र, बृहस्पति की ब्राह्मण जाति है। मङ्गल, सूर्य की क्षत्री। बुध, चन्द्रमा की वैश्य। शनिश्चर, राहु-केतु इनकी राक्षस जाति है।

राशि भाव संज्ञा

मेष १ सिर २ मुख ३ बाहु ४ हृदय ५ पेट ६ कमर ७ सूडीं ८ लिंग ९ गुदाः १० जंघा ११ घुटना १२ चरण।

बारह राशियों के रङ्ग

१ अरुण २ श्वेत ३ हरित ४ पाटल ५ पांडु ६ पिंगल ७ चित्रा ८श्वेत ९ पूर्वार्ध सुवर्ण उत्तरार्ध पिंगल १० पिंगल ११ बिचित्र १२ भूरा॥

राशियों के भाव

एक चर दूसरी स्थिर तीसरी द्विस्वभाव इसी प्रकार १२ राशियों को गिने इनकी यही तीन संज्ञा हैं।

ग्रहों के रङ्ग लिख्यते

रक्तावङ्गारकादित्यौश्वेतौ शुक्रनिशाकरौ।

**हरितः बुधौ गुरुः पीत शनिः कृष्णस्तथैवच। **

राहु केतु स्तथा धूम्रं कार येच्च विचक्षणः॥

टीका-मङ्गल, सूर्य इनका लाल रङ्ग—चन्द्रमा शुक्र का सफेद रंग, बृहस्पति का पोला, बुध का हरा, शनि का काला, राहु केतु का धुंवे जैसा। ग्रह स्थान कहते हैं। सूर्य तो शरीर चन्द्रमा मन, मंगल सत्व, बुध वाणी, वृहस्पति ज्ञान व सुख शुक्र, वीर्य अर्थात् कामदेव शनि दुःख। और बलवान ग्रह पुष्ट और निर्बल ग्रह न होते हैं।

टीका- सूर्य राजा, चन्द्रमा मन्त्री, मंगल सेनापति, बुध गुरु शुक्र मन्त्री, शनि दूत, जो ग्रह फल देने वाला है वह ऐसे ही अधिकारी के द्वारा फल देता है।

स्वामी देखना

मेषवृश्चिकयोर्भौमः शुक्रोवृषतुलाधिपः बुधःकन्यामिथुनयोः पतिः कर्कस्य चन्द्रमाः॥ स्वामी मीनधनुर्जींवः शनिर्मकरकुम्भयोः। सिंहस्याधिपतिः सूर्यः कथितोगणकोत्तमेः॥ कन्याराहोर्गृहंप्रोक्तंकेतोश्चमीनसंज्ञकम्॥

[TABLE]

उच्च नीच ग्रह देखना

रविर्मेषे तुले नीचोबृषे चन्द्रस्तुवृश्चिके। भौमोश्च नक्रे कर्केच स्त्रियाँसौम्योझषेतथा॥ गुरु कर्के च नक्रेच मीने कन्ये सितस्य च। मन्दुस्तुलायां मेषे च कन्या राहु गृहस्य च॥ राहुर्युग्मे च चापे च तमोवत् केतुजं फलं। नीचत्वं च क्रमाद्बुधैः॥

ग्रह सू० चं० मं० बु० गु० शु० श० रा० के०
ऊंच १० १२
नीच १२ १०

टीका- जो गृह उच्च का होता है उससे वो ही ग्रह ७ वीं राशी का नीच का होता है।

ग्रहों के दान

सूर्याय धेनुन्ताम्रंचगोधूमं रक्तचन्दनम्। चंद्रं शंख चन्दनं च सितवस्त्रं च तण्डुलम्। कुज वस्त्र प्रदाद्रव्या रक्तवस्त्रं गुडौदनं। बुधे कर्पूर मुग्धेच हरित्वस्त्रं हरिन्मणिं॥ पीतवस्त्रद्वयं जीवो हरिद्रा चणिकंमणिम्। अश्वं शुक्रः सितं देयाच्छुक्ल धान्यानि यानि च। शनौ तैलतिले देयात्कृष्ण गोदानमुत्तमम्। राहुश्चमहिषी छागौ माषाश्चतिल सर्पणौ॥ अजा मेषश्च दातव्योकेत्श्चान्नं च मिश्रितं स्वर्णगोविप्रपूजाभिः सर्वेषु शांतिरुत्तमा॥

ग्रह दान वस्तु चक्रम्

सू० गुड, लग्ल गेहूं, लाल कपड़ा, सोना, ताँबा, लाल चन्दन, लाल फूल, घृत, केशर, मूंगा. लाल गौ, माणिक यानी मणी कुसुम
चं० सफेद, चाँवल, कपूर. चांदी, घृत, चन्दन श्वेत, श्वेत वस्त्र, दही श्वेत फूल, वूरा, मोती, शंख, मिसरी, सफेद बैल
मं० मूंगा, गेहूँ लाल, ताँबा, गुड, लाल कनेर का फूल, घृत, क्षाल कपड़ा, लाल चन्दन, मसूर, लाल वैल, सोना, कस्तूरी
बु० मूंग कांसे का पात्र, सोना, घृत, हाथीदाँत, हरा वस्त्र, हरी मणी, हरा फूल, पान, हरे फल, मिसरी, पन्ना, खांड, कपूर, शस्त्र
वृ० हलदी, पुस्तक, पीला कपड़ा, घृत, पीले फूल, पुखराज, चने की दाल, सोना, घोड़ा, कांसी, पीला फल, केशर शक्कर
शुक्र सफेद कपड़ा, चावल, गाय, सोना, चांदी, सफेद घोड़ा, चन्दन, सफेद शंख, घृत, बूरा, हीरा, दही मिश्री, सफेद फूल
शनि उड़द, तिल, तेल, काला कपड़ा, भैंस, लोहा, काले जूते, काली गऊ, काला कम्बल, काला फूल, सोना, कस्तूरी, नीलम
राहु काली गौ, तिल, तेल, नीला कपड़ा, लोहा, घोड़ा, सरसों, बकरी सतनजा, नील, काला कम्बल, कालाफूल, सोना, शीशा
केतु कैड़, तिल, तेल, सोना, कस्तूरी, मैंडा, छुरी, सतनजा-कालाकम्बल लोहा-कालेफूल राहु केतु का दान बुध या शनिश्चर को करे

टीका- ब्राह्मणों साधुओं को और भूखों को भोजन कराने से और पीपल की पूजा करने से वेद ब्राह्मण को प्रणाम करनेसे गुरुजनों की आज्ञा पालन से कथा के पढ़ने सुननेसे हवन, दान, जप करने से सवग्रह प्रसन्न होजाते हैं।

होरा देखना

**वारातु षष्ठ षष्ठस्य, होरा सार्द्ध द्विनाडिकाः। अर्कः **

**शुक्रोबुधश्चन्द्रो मंदोजीवोधरासुतः॥ गुरुर्बिवाहे **

**गमने भृगुपुत्र शुभावहा ज्ञाने सौम्यस्य वै चंद्रः **

**सर्व कार्ये शुभप्रदा॥ युद्धेतु भूमिपुत्रस्य सेवायां **

भूपतेःरवेः। धनम् च ये तु मन्दस्यशुभा होरा प्रकी

र्तिता॥ यस्य ग्रहस्य वारेतु यत्कर्म्म मुनिभिस्मृतम्।

काल होरा सुतस्यस्यात् तत्तकर्म्म.शुभप्रदम् ॥

टीका- जिस दिन जो वार हो उसी वारकी होरा २॥ घड़ी रहती है फिर छठे वारको होरा २॥घड़ी जैसे रविवार से शुक्रकी। फिर २॥ घड़ी बुधकी। फिर २॥घड़ीचन्द्रमाकी । फिर २॥ घड़ी शनिश्चरकी। फिर २॥ घड़ी गुरुकी। फिर २॥घड़ी मङ्गलकी। इसी रीति से सबदिन की होरा जानो। सोमवार के दिन पहले चन्द्रमा की २॥ घड़ी दिन चढ़े तक होरा रहती है। फिर छटे ग्रह की उसी दिन फिर उससे छटे की ऐसे ही दिन रात्रिमें २४ होरा सातों वारों की होती हैं जरूरी कार्य जिस वारमें करना लिखा है उसदिन वो वार न हो तो उसकी होरा में करलें॥ जौनसा बार हो २॥ घड़ी की पहिले उसकी होरा होती है फिर छठे छटे की आवेगी गुरु की होरा में विवाह शुभ है। यात्रा में शुक्र की होरा। ज्ञान कार्य में बुध की। सर्व कार्य में चन्द्रमा की। युद्ध में मंगल की। राज सेवा में सूर्य की। धन इकट्ठा करनेमें शनि की होरा ये सब शुभदायक होती हैं॥

ग्रह जप संख्या

रवेः सप्त सहस्राणि चंन्द्रस्यैकादशैवतु। भौमे दश सहस्राणि बुधे चाष्टसहस्रकं॥ एकोनविंशतिर्जीवे शुक्रस्यैकादशैव तु। त्रयोविंशति मंदे च राहोरष्टादशैव तु। केतोःसप्तसहस्राणि जप संख्याः॥ प्रकीर्तिताः॥

टीका– सूर्य का जप ७००० करना चाहिये। चंद्रमा का११००० मङ्गल का १०००० बुध का ८००० वृहस्पयि का १९००० शुक्र का ११००० शनिका १३००० राहुका १८००० केतु का ७०००, इस प्रकार जप कराने चाहिये।

ग्रह दान समय

बुधस्य घटिका पंचशौरिर्मध्याह्नमेव च। चन्द्रे जीवचे संध्यायां भौमेच घटकाद्वयं॥ राहुकेत्वा अर्धरात्रे सूर्यशुक्रेऽरुणोदये। अन्यकाले न कर्तव्यं कृते दानान्तु निष्फलं॥

टीका- बुध का ५ घड़ी दिन चढ़े दान करना। शनिश्चर का दुपहरी में। चन्द्रमा और बृहस्पति का सन्ध्याको मङ्गलका २घड़ी दिनचढ़े तक। राहु-केतुका आधी रातको सूर्य और शुक्र का सूर्य उदय पर, और समयकरे तो निष्फल होता है, और छाया दान कांसेकी कटोरी में घृत भरकर सूर्य उदयपर होनाचाहिये।

अथ वर्ण देखना

मीनालिकर्कटापिप्राः क्षत्रीमेषो हरिर्धनुः।
शूद्रोयुग्मं तुलाकुं भौ वैश्यौ कन्या बृषो मृगः

अथ वर्ण चक्रम

मीन राशि का बृश्चिक का कर्क का ब्राह्मण वर्ण
मेष का सिंह का धन का क्षत्री वर्ण
मिथुन का तुला का कुम्भ का शूद्र वर्ण
कन्या का वृष का मकर का वैश्यवर्णहोता है

अथ वर्ण फलम

नोत्तमामुद्वहेत्कन्यां ब्राह्मणी च विशेषतः।

**म्रियते होनवर्णश्च ब्रह्मणा रक्षितोयदि॥ **

विप्रवर्णे च या नारी शूद्र वर्णे च यः पतिः।

ध्रुवं भवेति वैधव्यं शक्रस्य दुहिता यदि॥

टीका- जो उत्तम वर्ण की कन्या और नीच वर्ण का पुरुष हो तो पुरुष की मृत्यु हो इस वास्ते उत्तम वर्ण की कन्या से विवाह करना वर्जित है। ब्राह्मण वर्ण की विशेष करके मनैहै। ब्राह्मण वर्ण की कन्या और शूद्र वर्ण का पति हो तो इन्द्रकी भी पुत्री हो तो भी विधवा होय।

अथ वश्य देखना

**मकरस्य पूर्वभागोमेषसिंह धनुर्वृषाः। **

**चतुष्पदाः कीटसंज्ञः कर्कः सर्पश्च वृश्चिकः॥३६॥ **

**तुला च मिथुन कन्या पूर्वार्द्ध धनुषश्च यत्। **

द्विपदास्तु मृगार्द्ध तुकुम्भमीनौ जलाश्रितौ।३७।

टीका- मकरराशि का पहला अर्ध भाग (उत्तराषाढ़के तीनों चरण और श्रवण के डेढ़ चरण पर्यन्त का चन्द्रमा) मेष, सिंह, आधा धनका पिछला भाग वृषये चतुष्पद (चौपाये) को संज्ञा जानिये और कर्क राशि की कीट संज्ञा है, वृश्चिक की सर्प संज्ञा है और तुला. मिथुन, कन्या और आधा धन का पहला भाग इनको द्विपद जानिये, मकर का पिछला भाग कुम्भ, मीन को जलचर जानिये।

अथ वैश्व फलम

हित्वा मृगेन्द्रं नरराशिवश्याः सर्वे तथैषां जल जाश्च भक्ष्याः। सर्वेपि सिंहस्य वशे विनाऽलिंज्ञेयं नराणां व्यवहारतोऽन्यत्॥

टीका- सिंह के बिना मनुष्य राशियों के सब वश में हैं जल चर राशि तो मनुष्यों का भोजन ही है और वृश्चिक को छोड़ सिंह के सब वश में हैं और सब मनुष्यों के व्यवहार से जानो अर्थात् वर की राशि के वश में कन्या की राशि हो तो शुभ है।

अथ तारा देखना

जन्मभाद् गणयेद्धीमान् क्रमाच्च दिनभावधिं।

नवभिस्तु हरेद्भागं शेषं तारा विनिर्दिशेत्॥

टीका– जन्म नक्षत्र से ब्याह के दिन के नक्षत्र तक गिने उसमें नौ का भाग दे शेष बचे सो तारा जानिये॥

अथ तारों के नाम

**जन्म संपद्विपत्क्षेम प्रत्यिरः साधको वधः। **

मैत्रातिमैत्रं ताराः स्युस्त्रिरावृत्या नवैव हि॥

टीका- जन्म तारा, सम्पत्ति, विपत्ति, क्षेम, प्रत्यारि, साधक वध मैत्र, अति मैत्र, ये नौ तारों के नाम हैं॥

तारा शुभाऽशुभ फलम

जन्मतारा द्वितीया च चतुष्टाष्टमी तथा।
नौमी षष्टी शुभा ताराः शेषास्तिस्त्रोऽशुभावहाः ॥

टीका- जन्म तारा, संपत, क्षेम, साधक, मैत्र, अति मैत्र, ये छः तारे शुभदायक हैं विपत्ति, प्रत्यरि, वध, ये तीन तारे अशुभ होते हैं।

अथ योनि देखना

अश्विनी वारुणश्चाश्वो रेवती भरणी गजः।

**पुष्यश्च कृतिका छागो नागश्च रोहिणी मृगः॥ **

**आर्द्रा मूल मपिश्वानं मूषकः फाल्गुनी मघा। **

**मार्जारो दितिरा श्लेषा गोजातिरुत्तराद्वयम्॥ **

**महिषः स्वातिहस्तौव मृगो ज्येष्ठाऽनुराधिका। **

**व्याघ्रश्चित्रा विशाखा च श्रुत्याषाढौ च मर्कटः॥ **

**वसुभाद्रपदौ सिंहो नकुलोऽभिजिद्विश्वयोः। **

यौनयः कथिता भानां वैरमैत्री बिचार्यताम्॥

अथ योनि चक्रम्

[TABLE]

अथ योनि वैर देखना

**गोव्याघ्रं गजसिंहमश्वमहिषं श्वैणंच वभ्रूरगम्। **

वैरं वानरमेषकं च सुमहत्तद्वद्विडोलोन्दुरु॥

लोकाना व्यवहारतो निगदितं ज्ञात्वा प्रयत्नादिदं।

दभ्यत्योर्नृ पभृत्ययो रपिसदा वर्ज्यं शुभस्यार्थिभिः॥

योनि वैर चक्रम्

गायका हाथीका घोड़ेका कुत्तेका नेवलेका बन्दरका बिलावका
भेड़िये का शेरका भैंसेका हिरनका सर्प का मैंढ़ेका चूहे का
बैर बैर बैर बैर बैर बैर बैर

ग्रह शत्रु मित्र देखना

शत्रु मंदसितौ समश्च शशिजो मित्राणिशेषा रवेः। तीक्ष्णांशुर्हिमरश्मिजश्च सुहृदौ, शेषा समाः सितगोः। जीवेन्दूष्णकराः कुजस्य सुहृदौ शौरिः सितार्क्की समौ॥ मित्रे सूर्यसितौ बुधस्य हिमगुः शत्रसमाश्चापरे। सूरेः सौम्य सिताबरी रविसुतोमध्यः परो त्वन्यथा सौम्यार्की सुहृद, समौ कुजगुरुःशुक्रस्य शेषावरी॥ शुक्रज्ञौ सुहृदौ समौसुरगुरुः सौरेस्तथान्येरयः। ये प्रोक्ताः सुहृदस्त्रिकोणभवनात्तेऽमी मया कीर्तिताः॥

ग्रह शत्रु मित्र चक्रम्

[TABLE]

अथ गण देखना

**अश्विनी मृगरेवत्यो-र्हस्तः पुष्यः पुनर्वसुः। **

**अनुराधा श्रुतिः स्वाती कथ्यते देवतागणः॥ **

**तिस्रःपूर्वाश्चोत्तराश्च तिस्रोऽप्यार्दा च रोहिणी। **

**भरणी च मनुष्याखो गणश्च कथितो बुधैः॥ **

कृत्तिका च मघा श्लेषा विशाखा शततारका।

चित्रा ज्येष्ठा धनिष्ठा च मूलं रक्षोगणः स्मृतः॥

अथ गण चक्रम्

अश्विनी मृगशिर रेवती हस्त पुष्प
पुनर्वसु अनुराधा श्रवण स्वाति देवता गण
पूर्वाफाल्गुनी पूर्वाषाढ़ा पूर्वाभाद्रपद उत्तरा फाल० उत्तराषाढ़
उत्तरा भाद्र० आद्रा रोहिणी भरणी मनुष्य गण
कृतिका मघा श्लेषा विशाखा शत भिषा
चित्रा ज्येष्ठा धनिष्ठा मूल राक्षसगण

अथ गण फलम्

स्वगणे परमा प्रीतिर्मध्यमा देवमर्त्ययोः।

मर्त्यराक्षसयोर्मृत्युः कलहो देवरक्षसोः॥

टीका- जो स्त्री पुरुष दोनों का एक ही गण हो तो उनमें ज्यादा प्रीति हो। और जो देवता और मनुष्य गण होतो मध्यम प्रीति हो। मनुष्य और राक्षस गण हो तो मृत्यु हो। देवता और राक्षस गण हो तो क्लेश रहे।

एकाधिपत्ये राशीश मैत्र्यां दुष्ट भकूटके।

नाड़ी नक्षत्रशुद्धिश्चेद् विवाहःशुभदस्तदा॥

टीका- वर और कन्या दोनों की राशि का स्वामी एकही ग्रह हो अथवा दोनों राशि में मित्रता हो और नाड़ी नक्षत्र शुद्ध रहें तो दुष्ट भकूट आदि में भी विवाह होता है।

अथ नाड़ी चक्रम्

आदि अ० आ० पु० उ०फा० ह० ज्ये० मू० श० पु०भा०
मध्य भ० मृ० पुष्य पु०फा० चि० अ०नु० पु०पा० ध० उ०भा०
अन्त कृ० रो० श्लेषा म० स्वा० वि० उ०षा० श्र० रे०

अथ नाड़ी देखना

आदिमध्यान्तकेवापि अन्तमध्यादिभानिच।

अश्विन्या दिक्रमेणैव रेवत्यन्तं सुसंलिखेत्॥

ऊर्ध्वगा वेद रेखाः स्युस्तिर्यग्रेखा दश स्मृताः।

सर्पाकारंलिखेद्भानां नाडीचक्र बदेद्बुधः॥

टीका- आदि-मध्य, अन्त्य अन्त्य मध्य, आदि इस प्रकार अश्विनी रेवती तक गिने ४ रेखा खड़ी और १० रेखा तिर्छी इसी प्रकार सत्ताईस कोठों को नाड़ी चक्र कहते हैं॥

नाड़ी दोष देखना

**नाड़ीदोषस्तु विप्राणां वर्णदोषश्च क्षत्रीये। **

गणदोषश्चवैश्येषु योंनिदोषस्तु पादजान्॥

टीका- नाड़ी का विचार ब्राह्मण को अवश्य करना चाहिये वर्ण का विचार क्षत्री को करना चाहिये। गण का विचार वैश्य को करना चाहिये। योनी का विचार शूद्र को करना चाहिये।

अथ नाड़ी फलम्

**एक नाड़ीस्थ नक्षत्रे दम्पत्योर्मरणं ध्रुवम्। **

**सेवायांच भवेद्धानिर्विवाहेचाशुभं भवेत्॥ **

टीका- जो वर कन्या दोनों की एक नाड़ी हो तो दोनों की मृत्यु हो और नाड़ी के वेध में विवाह करे तो हानि हो॥

**आदि नाड़ी वरं हन्ति मध्य नाड़ी च कन्यकाम्। **

अन्त्यनाड़ी द्धयोर्मृत्युर्नाड़ीदोषं त्यजेद् बुधः॥

टीका- जो आदि नाड़ीका वेध होय तो बरको अरिष्ट करे और मध्य नाड़ीका वेध होय तो कन्याको कष्टकरे। अन्त्य नाड़ी का वेध लगे तो दोनों की मृत्यु हो॥ वेध नाड़ीकोही कहते हैं॥

**एक नक्षत्र जातानां नाड़ी दोषो न विद्यते। **

**अन्यर्क्षपति वेधेषु विवाहो वर्जितः सदा॥ **

टीका- जो वर कन्या दोनों का एक ही नक्षत्र का जन्म होय तो एक नाड़ी का दोष न मानिये। अन्य नक्षत्र में जन्म होय तो विवाह वर्जित है।

अथ गोचर ग्रह देखना

**त्रिषष्टैकादशे भौमो राहुः केतुः शनिःशुभः। **

**षष्ठाष्टमे द्वितीये वा चतुर्थे दशमे बुधः॥ **

**द्वितीये पंचमे जीवः सप्तमे नवमे शुभः। **

एकादशे ग्रहाः सर्वे सर्वकार्येषु शोभना॥

टीका- ३ । ६ । ११ स्थान में मङ्गल राहु केतु शनि शुभ हैं॥६ । ८ । २ ।४ । १० बुध शुभ है २ । ५ । ७।९ बृहस्पति शुभ है ११ स्थान सब ग्रह शुभ दायक होते हैं।

द्विजन्मनि पंचमसप्तमगाः चतुरष्टकद्वाद्वश धर्मयुताः।

धनधान्यहिरण्यविनाशकरा रवि राहु शनैश्चरभूमिसुताः॥

टीका- २ । १ । ५ । ७।४।८।१२।९ स्थानों में सूर्य मङ्गल राहु शनिश्चर बैठे तो धनका और अन्नका नाश करते हैं।

१ अथ द्वादश लग्नभाव फलम्

**लग्नेशः सप्तमे यस्य तस्य भार्या न जीवति। **

प्रवासी च विकामी च पिता तस्य ऋृृणी भवेत्॥

**लग्नेशोभ्युदितो लग्ने मृजीयोऽस्तङ्गतो यदि। **

जीवत्येव तदाऽवश्यं शस्त्रविद्धोपि मानवः॥ १

टीका- जो लग्नेश लग्न में उदय हो और लग्नका मालिक लग्न में ही बैठा हो और अष्टमेंश अस्त हो तो अर्थात् आठवें घर का मालिक अस्त हो तो वो बालक जरूर जीवे शस्त्र का छेदा भी नहीं मरे और लग्नेश सप्तम स्थान में हो तो उस मनुष्य की स्त्री नहीं जीवे और कामना निष्फल हो और उसका पिता ऋृणी हो।

२ अथ धनभाव फलम्

**धनेशः केन्द्रगोवापि धनसौख्यं महद्भवेत्। **

त्रिकस्थे वाऽथ सहजे धनसौख्यं न जायते॥

टीका—जो धनेश दूसरे घर का मालिक केन्द्र १ । ४ । ७। १० इन स्थानों में पड़े तो वो धनवान् और ३ । ६ । ८ । १२ । घर में पड़े तो धन का सुख नहीं हो।

३ भ्रातृ भाव फलम्

सहजे सहजाधीशे भ्रातृ सौख्यं प्रजायते।

केन्द्रेपि तद्वहुज्ञेयं त्रि कस्थे चाशुभं भवेत्॥

टीका- जो तीसरे स्थान का मालिक ३ । १ । ४ । ७।१० इन स्थानों में पड़े तो भाई का सुख हो ६।८।१२ में पड़े तो भाई का सुख नहीं हो।

४ मातृ भाव फलम्

**शनिभौमकयोर्मध्ये यदि तिष्ठति चन्द्रमाः। **

**तदा मातृभयं विद्याच्चतुर्थे दशमे पितुः॥ **

**तूर्येशः स्यात् शुभे राशौ पापग्रहैर्विवर्जितं। **

केन्द्रे चेन्मातुःसौख्यं स्यादन्यत्र नाशयेत्तथा॥

टीका- जो शनि मङ्गलके बीच चन्द्रमा चौथे स्थान में पड़े तो माता नष्ट कहै दशवें स्थान हो तो पिता नष्ट कहै, और जो चौथे स्थान का मालिक केन्द्र में १ । ४ । ७ । १० में पड़े और पाप ग्रहों से वर्जित हो तो माता का सुख कहै। अन्यथा नहीं।

५. पुत्रभाव फलम्

**सुतेशः सप्तमे यस्य तस्य गर्भो विनश्यति। **

अन्यत्र यदि पुत्रेशः सुखं त्रिकं विहायवा॥

टीका- जो पाँचवे घर का मालिक सातवें स्थानमें हो तो गर्भ नष्ट हो यदि ६ । ८ । १२ इन स्थानों को छोड़कर और स्थानों में होवे तो पुत्र का सुख कहै।

६ रिपुभाव फलम्

षष्ठेशोलग्नगेहस्थो रिपुहंता नरो भवेत्।

केन्द्रेचेदरिपुभिःकिंचित् व्ययाऽष्टरिपु गेनहि॥

टीका- जो छटे स्थान का स्वामी लग्न में हो तो दुश्मन के नाश करने वाला हो यदि वह और ग्रह केंद्र में हो तो दुश्मनों का भय ज्यादा रहे और ६ । ८ । १२ । इन घरों में हो तो दुश्मन नष्ट कहना और मामाओं को भी नष्ट करता है।

७ स्त्रीभाव फलम्

सप्तमेशः केन्द्रगो वा पित्तादिभिर्विकारवान्।

**स्त्रीसौख्यं विजानीयात् भ्रातृवान् धनवानपि॥ **

**अन्यत्रयदि गेहस्थे स्त्री विहीनो नरो भवेत्। **

धने सहजेऽथलाभे वा स्त्रीसौख्यं महद भवेत्॥

टीका- जो सप्तमेश अर्थात् ७ वें स्थान का मालिक केन्द्र १ । ४ । ७ । १० इन स्थानों में हो तो पित्तादि विकार युक्तहो और स्त्री का सुख भी अच्छा हो और भाई का सुख, धन का सुख बढ़ता है और इनके सिवा और स्थानों में हो तो स्त्री को सुख नहीं हो और जो ३ या ११ स्थान में हो तो स्त्री का सुख अच्छा हो।

८ मृत्युभाव फलम्

अल्पायुर्दिननाथस्य शत्रौ लग्नाधिपे यदि।

समत्वे मध्यमायुः स्यान्मित्रेदीर्घायुरादिशेत्॥

टीका- जो लग्नेश नाम लग्न का स्वामी सूर्य का शत्रु हो तो अल्पायु ३२ वर्ष की उमर कहै और जो सूर्यं से ( सम ) हो तो मध्यमायु ६४ वर्ष की उमर कहै और जो ( मित्र ) होतो पूर्ण आयु ९६ वर्ष की उमर कहना।

९ धर्मभाव फलम्

धर्मेशोधर्मगेहस्थोधर्मवान् भाग्यवांस्तथा।

केंद्रेपि च तदागेवोऽन्यत्रस्थोप्यशुभो भवेत्॥

टीका- धर्म स्थान का मालिक धर्म स्थान में हो वा केन्द्र १ । ४ । ७ । १० इन स्थानों में पड़े तो धर्मवान् व भाग्यवान् हो और जगह पड़े तो अशुभ है।

१० कर्मभाव फलम्

कर्मेशे लग्नगे वापि राजतुल्यो नरोभवेत्।

पितृसौख्यं विशेषण लक्ष्मोः पूर्णा च जायते॥

टीका- कर्मेश १० स्थान का मालिक लग्नमें हो तो राजा के समान आचरण करने वाला मनुष्य हो, पिता का पूर्ण सुख और धनबहुत हो।

११ लाभभाव फलम्

लाभेशे लग्नगे वापि केन्द्रे वाप्यथवा भवेत्।
दिने दिनेपि लाभं तु त्रिके हानिः प्रजापते॥

टीका- जो लाभ स्थान का मालिक लग्न में हो अथवा केन्द्र १ । ४ । ७ । १० में पड़े तो दिन प्रति दिन लाभ ही हो और जो ८ । ६ । १२ हो तो लाभ की हानि कहे।

खर्च भाव फलम्

व्ययेशे च त्रिकस्थे वा सर्वसपद्युतोनरः।

केन्द्रेवाऽथत्रिलाभे वा दरिद्री जायते ध्रुवम्॥

टीका- जो बारहवें स्थान का मालिक ६ । ८ । १२ पड़े तो सम्पूर्ण सुख हो और केन्द्र १ । ४ । ७ । १० वें पड़े वा ३ । ११ वें पड़े तो दरिद्री हो ये निश्चय जानो जिसके चन्द्रमा से २ और १२ वें कोई ग्रह नहीं हो तो वो मनुष्य दरिद्री होता है यदि चन्द्रमा को वृहस्पति देखता हो तो उसका दरिद्री योग नहीं कहना।

ग्रह बाहन चक्रम् ग्रह शान्ति रत्न चक्रम्

[TABLE]

वाहन सवारी को कहते हैं॥ इन चीजों के देने से ग्रह प्रसन्न हो जाते हैं।

अथ भाग देखना

पाष्णादिकं षट्कमुशन्ति पूर्वामार्द्रादिकं द्वादश मध्यभागम्। पौरन्दराद्यं नवकं भचक्रम् परंच भागं गणको विदग्धाः॥

टीका- पौष्णाजो कहिये रेवती इसको आदि लेकर ६ नक्षत्र रेवती, अश्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी मृगशिर ये ६ नक्षत्र पूर्व भाग के हैं और आर्द्रा को आदि लेकर १२ नक्षत्र आर्द्रा, पुनर्बसु, पुष्य, श्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त चित्रा, स्वाति, विषाखा, अनुराधा ये मध्य भागके हैं और पौरंदर कहिये ज्येष्ठा इसको आदि से लेकर ९ नक्षत्र ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ उत्तराषाढ़, अभिजित, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद ये पर भाग के हैं।

भाग फल देखना

पूर्वभागेः पतिः श्रेष्ठो मध्यभागे च कन्यका।

परभागे च नक्षत्रे द्वयोः प्रीतिर्महीयसो॥

टीका- पूर्व भागी नक्षत्रों वाला लड़का श्रेष्ठ होता है मध्य भाग वाले नक्षत्रों की कन्या श्रेष्ठ होती है और जो दोनों पर भाग के हों तो बड़ी प्रीति रहती है।

अथ ग्रहनपुन्सक देखना

बुधसूर्यसुतौ नपुंसकाख्यौ शशिशुक्रौयुवती नराश्चशेषाः।

शिखभूखपयो मरुद्गणानामधिपा भूमिसुतादयः क्रमेण॥

टीका- बुध शनि नपुन्सक हैं चन्द्रमा शुक्र स्त्री हैं सूर्य, मङ्गल बृहस्पति ये पुरुष हैं जन्ममें बलवान ग्रहका रूप कहना।

अथ भकूट मेलन देखना

मरणं पितृमात्रोश्चसंग्राह्य नवपंचकम्।

**वरस्य पंचमे कन्या कन्याया नवमे वर॥ **

एतत्त्रिकोणकं ग्राह्यं पुत्रपौत्रसुखावहम्।

षडष्टके भवेन्मृत्युर्तन तस्य विचारयेत्॥

टीका- जो वरकीराशिसे कन्याकी राशि ९वें होयतो उस के पिता की मृत्यु हो और जो कन्याकी राशी स वर की राशी ५ पांचवें होय तो उसकी माता की मृत्यु हो, और जो वर की राशी में पांचवें कन्या की राशी हो और कन्या से नवे वर की राशी हो तो यह त्रिकोण शुभ होता है। पुत्र पौत्रके सुखको देने वाली है। ६-८ वें होवे तो मृत्यु हो। अतः यत्न कर विचारिये।

अथ पाये देखना

जन्मेरसेरुद्र सुवर्ण पादे द्विपंच नवमं रजतंशुभम् च।

त्रिसप्तदिक्ताम्रपदं बलिष्ठम्तूर्येष्टसूर्येइतिलोहकष्टम्

टीका- अगर चन्द्रमा लग्न में १ या लग्नसे ६ या ११ होतो सोन के पाये जानिये और २ । ५ । ९ हों तो चाँदी के पाये जानिये और ३ । ७ । १० । हों तो ताँबे के पाये जानिये अगर

सर्वोपरिक्रम

न वर्गवर्णौन गणौ न योनिः द्विर्द्वादशेचैवषडाष्ट के वा।

तारा बिरुद्धं नव पञ्चमं स्याद् राशीश मैत्री शुभदो विवाहे॥

टीका- वर्ग वर्ण, गण, योनी, राशि, षडांष्टक, तारा, नाड़ी नवें, पांचवें इतने गुणों में से कोई भी मत मिलो और वर कन्या का एक स्वामी हो या दोनों में मित्रता हो तो जानो सब चीज मिल गई यह विवाह शुभ दायक होता है।

अथ मङ्गली देखना

लग्ने व्यये च पाताले यामित्रे चाष्टमे कुजे।

पत्नी हन्ति स्वभर्तारं भर्त्ता भार्य्यां हनिष्यति॥

टीका -१ । १२ । ४ । ७ । ८ इन स्थानोंमें जिसके मङ्गलहो वो मङ्गलीहोता है जो वर कन्या मङ्गली हों और उनका विवाह होतो शुभ है जो वर मङ्गली और कन्या सादी या कन्यामङ्गली वर सादा हो तो अशुभ है जो सादर हो उसी की मृत्यु लिखी है।

मङ्गली दोष दूर होना

यामित्रे च यदा सौरिर्लग्ने वा हिबुकेऽथवा।

अष्टमे द्वादशे चैव भौमदोषो न विद्यते॥

टीका- जिसके ७, १, ४, ८, १२ इन स्थानों में शनिश्चर हो तो मङ्गली का दोष उसको नहीं होता।

अथ भद्रा देखना

दशम्या च तृतीयायां कृष्णे पक्षे परे दले।

**सप्तम्यां च चतुर्दश्यां विष्टिः पूर्वदले स्मृता॥ **

**एकादश्यां चतुर्थ्याम् च शुक्ले पक्षेपरे दले। **

अष्टम्याँ पूर्णिमायां च विष्टिः पूर्वदलेस्मृता॥

॥ भद्रा बास चक्रम् ॥

तिथि १० कृष्ण पक्ष में भद्रा *पर दल में बास करते हैं
तिथि १४ कृष्ण पक्ष में भद्रा *पूर्व दलमें बास करते हैं
तिथि ११ शुक्ल पक्ष में भद्रा पर दल में रहते हैं
तिथि १५ शुक्ल पक्ष में भद्रा पूर्व दल में रहते हैं

चंद्रमा के साथ भद्रा का बास देखना

मेष मकर वृष कर्कट स्वर्गे कन्या मिथुन तुला धनुर्नागे। कुम्भ मीन अलि केसरि मृत्यौ विचरति भद्रा त्रिभुवनमध्ये॥

भद्रा चक्रम्

[TABLE]

*पूर्व नाम पहिला और पर नाम पिछला है।

अथ भद्रा फल देखना

स्वर्गे भद्रा शुभम् कार्ये पाताले च धनागमम्।

मृत्युलोके यदा विष्टिः सर्वकार्य विनाशिनी॥

टीका- जो स्वर्ग लोक में भद्रा हों तो शुभ काम करे। और पाताल की भद्रामें लाभ हो। मृत्यु लोक की भद्रा में सर्व कार्य का नाश होता है।

यावत भद्रा जो पत्रे में लिखी रहती हैं तो जानो कि बीत गई जितनी घड़ी पल लिखी उतने ही घड़ी पल दिन चढ़े तक। और जो उपरांत भद्रा जितनी घड़ी पल लिखी हों उतनी घड़ी पलमें ३० घड़ी और जोड़े फिर जोड़में जितनी घड़ी पल आवें जब वे सब घड़ी पल बीत जावेंतो जानो कि भद्रा बीत गई।

कन्या व पुत्र बतलाना

दम्पती पुत्रसंयुक्तौ द्विगुणौ चेन्दुसंयुतौ।

**पंचघ्नौ कन्यकायुक्तौ पंचविंशति शोधितौ॥ **

वामे पुत्रम् विजानीयाद दक्षिणे कन्यकां तथा।

टीका- जो कोई बूझे कि मेरे कितने लड़के और लड़की हैं तो स्त्री पुरुष यानी दोमें जितने पुत्र हों मिला दे फिर दुगने करके एक और मिलावे फिर पांचगुणा करके कन्या भी मिलादे फिर २५ घटादे शेष जो बचे उनमें बांई तरफकाजो जोड़ है वो तो पुत्र और दाहनी तरफ की कन्या जाननी चाहिये।

स्त्री पहले मरे या पुरुष यह देखना।

**अक्षराणि द्विगुणितानि मात्रा च चतुर्गुणा। **

**एकोकृत्यत्रिभिभक्तं शेषं ज्ञेयं च लक्षणम्॥ **

**एकं च पुरुषं हन्ति द्वितीयं नारी तथैव च। **

शून्ये च पुरुषं ज्ञेय एवं प्रश्नस्य लक्षणम्॥

टीका- स्त्री पुरुष के नामके अक्षर गिनकर दुगने करे और मात्रा चौगुनी करके उन सबको एक जगह मिलावे फिर तीनका भाग दे एक बच्चे तो पुरुष मरे दो बचे तो स्त्री मरे और शून्य वचे तो भी पुरुष मरे।

जीवते की कुण्डली है या मरे की।

जन्मांक प्रश्नाँकरन्ध्रांकयुक्तं लग्नेशगुण्यं।

रन्ध्रे शभक्तंविषमे जीवितस्यैव समे च मृत्युमादिशेत्॥

टीका- जन्म लग्न के अंक प्रश्न लग्नके अङ्क और जन्मलग्न से आठवें स्थान के अङ्क एक जगह करके जन्म लग्नेशके साथ गुणा करे और अष्टमेश का भाग दे जो विषम१।३।५ बचे तो जीवतेकी और सम २, ४, ६ बचे तो मरे हुयेकी कुंडलीजाननी।

संक्रान्ति पुण्य काल फलम्।

संक्रांतिकालादुभयत्र नाडिकाः पुण्या मताः षोडश

षोडशोष्णगोः। निशी थतोऽर्वागपरत्र संङ्क्रमे

पूर्वा परा हन्ति न पूर्वभागयोः॥

टीका- संक्रांति के पहले और पीछे १६घड़ी पुण्य काल माना जाता है। आधीरात से पहिले बैठी हो तो दिन के तीसरे भागमें पुण्य काल मानना। और आधीरातके बाद अर्के तो दूसरे दिन के पूर्व भाग पहिले सवेरे अगले दिन माने, और ठीक आधीरात बैठे तो दोनों दिन मानना चाहिये।

त्रिंशतिः कर्कटेनाड्यो मकरस्य दशादिकाः।

तुलामेषस्य विंशास्यात् शेषः षोडश षोडश॥

कर्क की संक्राति का ३० घड़ी पुण्यकाल होता है। और मकर की संक्राति का ४० घड़ी पुन्यकाल माना जाता है। तुला मेषकी संक्रांति का २० घड़ी पुन्यकाल माना जाता है। और राशियोंकी जो संक्रांति रही उनका १६ घड़ी पहिले या पीछे पुण्यकाल जानो।

आदि मध्य अन्त भोगनी चक्रम्

इन राशियों की संक्रांति आदि भोगनी
इन राशियों की संक्रांति मध्य भोगनी
१० ११ १२ न राशियों की अन्त भोगनी है

**याप्युत्तरा पुण्यतमा मयोक्ता सायं भवेत्सा यदि **

**सापि पूर्वा। पूर्वा तु योक्ता यदि सविभाते **

**साप्युत्तरा रात्रिनिशीथिनो स्यात्।१। अर्वाङ् निशीथे **

यदि संक्रमः स्यात्पूर्वेन्हि पुण्यं परतः परेन्हि॥

टीका— जो संक्रांति अन्त भोगनी चक्र में लिखी हैं वो सायंकालमें अर्के तो आदि भोगनी हो जाती हैं और जो आदि भोगनीलिखीहैं वो प्रातःकाल में अर्के तो वो अन्त भोगनी हो जाती हैं और जो आधीरात से पहले अर्के तो वो आदि भोगनी उसकापुण्यकाल पहले दिन। आधीरात से पीछे अर्के तो अन्त भोगनी अगले दिन जानो -?जो ठीक आधी रात पै बैठेतो दोनों दिन उसका पुण्यकाल जानों। अर्क नाम बैठने का है।

अथ संक्रांति मुहूर्ति भेद

**संक्रान्तौ मुहूर्ति भेदा हर पवनयमे वारुणे सार्परौद्रे **

**एषा पंचेन्दुसंज्ञा गुरुकरपितृभे चाग्निदस्रेच सौम्ये। **

**त्वाष्ट्रे मैत्रे च मूले श्रुतिवशुवपुषा त्रीणिपूर्वाखरामे **

**ब्राह्मेऽदित्ये द्विद्वैवे भवति शरकृता दुत्तरा त्रीणि **

**ऋचम्। वाणवेदैः समर्घ स्यान्मध्यस्थं व्योमरामयोः **

मूर्तौपंचदशो याते दुर्भिक्षं च प्रजायते॥

टीका—आर्द्रा, भरणी, स्वाति, शतभिषा, श्लेषा, ज्येष्ठा जो इन नक्षत्रोंमें संक्राँति बैठे तो १५ मुहूर्ती जानो प्रजामेंदुर्भिक्ष पड़े पुष्य, हस्त, मघा, कृतिका, अश्विनी, मृगशिर, चित्रा, अनुराधा श्रवण, मूल, धनिष्ठा, रेवती, तीनों पूर्वा इन नक्षत्रों में अर्के तो ३० मुहर्ती जानो इसका फल साधारण है। रोहणी पुनर्वसु, विशाखा तीनों उत्तरा इन नक्षत्रों में अर्के तो ४५ मुहूर्ती जानों इसका फल बहुत उत्तम और श्रेष्ठ है।

पंचद्व्यद्रि कृताष्ट रामरसभृ यामादि घठ्यःशराः।

विष्टेराश्यसमद्गजेन्द्र रसरामाद्र्यांश्विवाणाब्धिषु॥

याम्येष्वन्त्यघटी त्रयंशु भकरं पुच्छ तथा वासरे

विष्टस्तिथ्य परार्द्धजा शुभकरी रात्रोतु पूर्वार्द्धजा

भद्राके मुखपुच्छ देखने का चक्र

तिथि ०४ ०८ ११ १५ ०३ ०७ १० १४
प्रहर ०५ ०२ ०७ ०४ ०८ ०६ ०१
आदि आ० आ० आ० आ० आ० आ० आ० आ०
घ. मु० ०५ ०५ ०५ ०५ ०५ ०५ ०५ ०५
प्रहर ०८ ०१ ०६ ०३ ०७ ०२ ०५ ०४
अन्त अन्त अन्त अन्त अन्त अन्त अन्त अन्त अन्त
घ. पू० ०३ ०३ ०३ ०३ ०३ ०३ ०३ ०३

भद्रा के मुख की घड़ी त्याज्य और पुच्छ की शुभ काम में लीन हैं।

नोट- प्रहर की गणना तिथि के आरम्भ से करनी चाहिये॥

अथ संक्रांति समय फलम् ।

** सूर्य्योदये विपत्ति र्जगतां मध्यान्हे सकलशस्य विनाशकारिणी। अस्तंगते फलं तृप्तं च सौख्यं सुभिक्षं मंजुलं निशिचार्द्ध रात्रौ॥**

टीका- जो सूर्य निकलने पै संक्रांति बैठे तो प्रजाको भारी और दोपहर में बैठे तो नाश के करने वाली हो। जो सूर्य छिपे बैठे तो राजा को अशुभ हो। जो रात्रिमें बैठे तो शुभ दायक जाननी चाहिये॥ इति जातक प्रकरणम् ॥ १॥

विवाहप्रकरण
भाषा टीका भाग दूसरा


अथ सगाई का मुहूर्त

धरणीदेवोऽथवा कन्यकासहोदरः शुभदिने गीत

वाद्यादिभिः संयुक्तः। वरवृतिं वस्त्रयज्ञोपवीतादिना

ध्रुवयुतैर्व ह्निपूर्वात्रये अर्चयेत्॥

टीका—पिरोहित या ब्राह्मण या कन्या का छोटा भाई या बड़ा भाई शुभ दिन वर का वर्ण करे यानी तिलक करे। वस्त्र यज्ञोपवीत आदि लेकर गाजे बाजे के साथ रोहिणी तीनों उत्तरा कृतिका तीनों पूर्वा ये नक्षत्र और शुभ वार, चन्द्रमा, बुध, शुक्र, गुरु होने चाहिये परन्तु सगाई के पहिले दोनों टेवे वर कन्या के मिला लेने चाहियें जो नहीं मिलाते हैं उनको चाहिये कि विवाह सुझाने में टेवे न देंवर कन्या के नाम से सुझावें या जन्म नाम के से सुझावें या दोनों नाम बोलते हों या दोनों नाम जन्म के हों तो शुभ है।

जन्मपत्र मिलाने में जो जो गुण चाहियें सो लिखते हैं।

वर्णो वश्यं तथा तारा योनिश्च ग्रहमैत्रकं।

गणमैत्रं भकुटं च नाड़ी चेते गुणाधिकाः॥

टीका—वर्ण, वश्य, तारा, योनि, ग्रह मैत्री, गणमैत्री, भकूट, नाड़ी ये मिलाने चाहियें।

अथ विवाह सुझाना

दैवज्ञं पजयेत्पूर्वम् फलं ताम्बूलं गृह्यते।

विप्राय भेटकं दद्याद्विवाहे प्रश्न कारयेत्॥

टीका—कन्या का पिता या कन्या का भाई जब विवाह करना चाहें तो पहिले पण्डित के पास जावे, नारियल या सुपारी, पान, फूल, चावल दक्षिणा, ब्राह्मण की भेटकर तब प्रश्न करै तो वो विवाह शुभ दायक होता है।

**ॠग्वेदोथ यजुर्वेदः सामवेदो ह्यथर्वणः। **

ब्रह्मवाक्यं सदा नित्यं हन्यन्ता तव शत्रवः॥

टीका—चारों वेदों का यही सिद्धान्त है कि ब्राह्मणों के आशीर्वाद से तुम्हारे शत्रुओं का नाश हो।

विवाहे सर्व मांगल्ये यात्रायां गृहगौचरे।

जन्मराशिप्रधानत्वं नामराशि न चिन्तयेत्॥

टीका—विवाह में और शुभ काम में यात्रा में घर बनामे प्रतिष्ठा में गोचर ग्रह देखने में और जितने शुभ काम हैं सबमें जन्मराशि प्रधान है।

देशेग्रामे गृहे युद्धे सेवायां व्यवहारके।
नाम राशि प्रधानत्वं जन्म राशि न चिंतयेत्॥

टीका— देश, गांव घर के विषय में, नौकरी और व्यापारके विषय में नाम राशि से देखे जन्म से नहीं।

**जन्मभं जन्मधिष्ण्येन नामधिष्ण्येन नामभम्। **

**व्यत्ययेन यदा योज्यं दम्पत्योर्निधनप्रदम्॥ **

टीका—वर का जन्म नक्षत्र हो तो कन्याका भी जन्मका नक्षत्र हो या दोनों का बोलता नाम हो। एकका जन्मका एक का बोलता हो तो अशुभ होता है।

**जन्ममासे जन्मभे न च जन्मदिनेपि च। **

ज्येष्ठे न ज्येष्ठगर्भस्य विवाहं कारयेत् क्वचित्॥

टीका—जन्मका मास जन्म का दिन जन्म का नक्षत्र प्रथम गर्भ वाले की उत्पत्ति का विवाह ज्येष्ठ में वर्जित है।

ज्येष्ठ विचार देखना

**न कन्यावरयोर्ज्येष्ठे ज्येष्ठयोः पाणिपीडनम्। **

द्वयोरेकतरे ज्येष्ठे न ज्येष्ठो दोषमावहेत्॥

टीका—जो वर कन्या दोनों प्रथम गर्भ के हों ज्येष्ठ के महीने में व्याह नहीं करे और जो एक जेठा हो तो विवाहकरने में कुछ दोष नहीं, जेठा उसे कहते हैं जो पहिले पैदा हुआ हो यानी तीन ज्येष्ठ नहीं मिलने चाहिये।

**सिंहे गुरौ गते कार्यो न विवाहः कदाचन। **

मेषस्थि ते दिवानाथे सिंहेज्ये च शुभप्रदः॥

टीका— सिंह की वृहस्पति में विवाह न करे मेष के सूर्य में सिंह की वृहस्पति हो, तो विवाह करने में कुछ दोष नहीं होता है।

विवाह के नक्षत्र देखना

**रोहिण्युत्तररेवत्यो मूल स्वातिमृगो मघा। **

**अनुराधा च हस्तश्च विवाहे मङ्गलप्रदाः॥ **

टीका—रोहणी, तीनों उत्तरा, रेवती, मूल, स्वाति, मृगशिर, मघा, अनुराधा, हस्त ये ग्यारह नक्षत्र विवाह के हैं।

विवाह के मास देखना

माघे धनवती कन्या फाल्गुने शुभगा भवेत्।

बैशाखे च तथा ज्येष्ठे पत्युरय्यन्य बल्लभा॥

टीका—माघ के महीनेमें विवाह करे तो कन्या धनवती हो फाल्गुनी में सौभाग्यवती, बैशाख में तथा ज्येष्ट में विवाह होय तो पति को प्यारी हो।

**आषाढ़े कुलवृद्धिः स्यादन्ये मासाश्च वर्जिताः। **

मार्गशीर्षेमपोच्छति विवाहे केऽपि कोविदाः॥

टीका- आषाढ़ में विवाह करे तो कुल की वृद्धि हो, और महीने में विवाह वर्जित है, मार्गशिर के महीने को भी कोई २ आचार्य शुभ कहते हैं।

विवाह में तिथि वार नक्षत्र वर्जित।

**अमावस्या च रिक्ता च वारबेला च जन्मभम्। **

गण्डान्तं क्रू रवाराश्च वर्जनीयाः प्रयत्नतः॥

टीका—अमावस्या और रिक्ता तिथि ४ । ९ । १४ बारवेला और जन्म का नक्षत्र और क्रूर वार रवि, शनि मङ्गल और गडान्त, नक्षत्र ये विवह में वर्जित है॥

विवाह वर्जित योग देखना।

**भद्राकर्कटयोगं च तिथ्यंतं यमघंटकम्। **

दग्धां तिथि च कुलिकं च विवर्जयेत्॥

टीका— भद्रा, कर्कट, योग और तिथी के अन्त की २ घड़ीयमघन्टक योग दग्धातिथि और नक्षत्रके अन्त की ३ घड़ी और कुलिक योग, ये विवाह में वर्जित हैं।

मासांतादि देखना।

मासान्ते दिनमेकन्तु तिथ्यन्तं घटिकाद्वयंम्।

घटिकानां त्रयं भान्ते विवाहेपरिवर्जयेत्॥

टीका—मासान्त कहिये संक्रांति के अन्त का एक दिन तिथ्यन्त कहिये तिथि के अन्त की दो घड़ी, भांत कहिये नक्षत्र के अंत की ३ घड़ी विवाह में वर्जित हैं।

**मासान्ते म्रियते कन्या तिथ्यन्ते स्याद पुत्रिणी। **

नक्षत्रान्ते च वैधव्यं विष्टौ मृत्युर्द्वयोर्भवेत्॥

टीका—महीनेके अन्त में कन्यादान करेतो कन्या की मृत्यु हो तिथि के अन्तमें कन्यादान करे तो अपुत्रणी हो नक्षत्रकेअन्तमें विवाह होयतो विधवा होय भद्रामें बिवाह होतो वरकन्या दोनों की मृत्यु हो सो यत्न कर विचारिये।

विवाह में किस २ का बल देखना।

बरस्य भास्कर बलं कन्यायाश्च गुरोर्बलम्।

द्वयोचंद्रबलं ग्राह्य विवाहे नान्यथा भवेत्॥

टीका- वरको सूर्य का बल देखे, कन्या को बृहस्पति का बल देखे वर कन्या दोनों को चन्द्रमा का बल देखे।

अष्टमे च चतुर्थे च द्वादशे च दिवाकरे।

विवाहितो वरा मृत्यु प्राप्नोत्यत्रन संशयः॥

टीका- जो वर की राशि से सूर्य ४ । ८ । १२ । होतो विवाह न करे जो करे तो वर की मृत्यु हो इसमें झूंठ नहीं है।

**जन्मन्यथ द्वितीये वा पञ्चमे सप्तमेपि वा। **

नवमे च दिवानाथे पूज्या पाणिपीडनम्॥

टीका- जो बरकी राशिसे सूर्य १ । २ । ५। ७।९ होतो पूजा का विवाह होता है। सूर्य का जप दान पूजादिक करने से विवाहशुभ होता है।

एकादशे तृतीये वा षष्ठे वा दशमेपिवा।

वरस्य शुभदो नित्यं विवाहे दिननायकः॥

टीका- जो वर की राशि से ११ । ३ । ६ । १० सूर्य हो तो शुभ दायक और कल्याण का करने वाला होता है।

सूर्य बल चक्रम्।

१२ सूर्य अशुभ होता है
पूजाका
४१ १० शुभ होता है

गुरू बल देखना।

अष्टमे द्वादशे वापि चतुर्थे वा वृहस्पतौ।

पूजा तत्र न कर्तव्या विवाहे प्राणनाशकः॥

टीका- कन्याकी राशिसे वृहस्पति ४।८।१२ हो तो अशुभ होती है, प्राणघात के करने वाली है।

षष्ठे जन्मनि देवेज्ये तृतीये वशमेपि वा।

भूरिपूजापूजितः स्यात्कन्यायाः शुभकारकः॥

टीका- जो कन्या की राशिसे वृहस्पति ६ । १ । ३ । १० होय तो बहुत सी पूजादान जप आदि करनेसे शुभ होता है।

एकादशे द्वितीये वा पञ्चमे सप्तमेपि वा।

नवमे च सुराचाये कन्यायाः शुभकारकः॥

टीका- जो कन्या की राशिसे बृहस्पति ११ । २ । ५। ७ । ९ होतो कन्या को विवाह में शुभदायक होता है।

गुरू बल चक्रम्।

११ शुभ होता है
१० गुरू पूजा का है
१२ वृहस्पति अशुभ होताहै

उच्चादि गुरुफलम्।

स्वाच्चे स्वभे स्वमैत्रेवा स्वांशेवर्गोत्तमेपि वा।

रिस्फाष्टतूर्यगोपीष्टो नीचारिस्थः शुभोप्यसत्॥

टीका- जो उच्च का वृहस्पति हो या अपने घर का हो या वर्गोत्तमका हो या मित्र के घर का हो या अपने नवांसक में हो तो ४ । ८ । १२ इनमें भी दोष नहीं माना जाता।

झषचापकुलीरस्थो जीवोवाप्यशुभोवरः।

अतिशोभनतां याति विवाहोपनयासदिषु॥

टीका— विवाह और यज्ञोपबीत में मीन, धन कर्क जो इन राशि का बृहस्पति अशुभ भी हो तो भी शुभ जानना॥

कन्या की संख्या देखना।

अष्टवर्षा भवेद् गौरी नववर्षा च रोहिणी।

दशवर्षा भवेत् कन्या, अत ऊर्ध्वं रजस्वला॥

टीका- आठ वर्ष तक कन्याकी गौरी संज्ञा जानो। नव वर्ष तकरोहिणी संज्ञा। दश वर्ष में कन्या संज्ञा जानो इसके उपरांत रजस्वला नाम स्त्री संज्ञा जानो।

रजस्वला दोष देखना।

संप्राप्तैकादशे वर्षे कन्या या न विवाहिता।

मासे मासे पिता भ्राता तस्याः विपति शोणितम्॥

टीका- जो ग्यारहवें वर्ष में कन्या का विवाह नहीं हो तो महीने २ प्रति जो रजस्वला हो उसके दोष का भागी पिता और बड़ा भाई होता है ।

**द्वादशैकादशे वर्षे तस्याः शुद्धिर्न जायते। **

पूजाभिः शकुनैःर्वापि तस्या लग्नं प्रदापयेत्॥

टीका- जो ग्यारह बारह वर्ष की कन्या होय और बृहस्पति भी अच्छा न हो तो लग्न ही विचार पूजा दान करके विवाह कर दे।

**माता चैव पिता चैव ज्येष्ठभ्राता तथैव च। **

**त्रयश्च नरकं यांति दृष्ट्वा कन्यां रजस्वलाम्॥ **

टीका– जो रजस्वला कन्याको माता, पिता, बड़ा भाई देखें तो नरक के अधिकारी होते हैं।

गुर्विन्द्वर्कबला गौरी गुर्विन्दुबल रोहिणी।

रवीदुबलजा कन्या प्रौढा लग्नवला स्मृता॥

टीका- गौरी जो है उसको वृहस्पति चन्द्रमा सूर्य तीनोंका वल देखे तो शुभ है। रोहिणी को गुरु और चन्द्रमा का बल देखे, कन्या को सूर्य और चन्द्रमा का बल देखे, प्रौढ़ा नाम ११ वर्ष की या इससे ऊपर की लग्न बल ही विचार के विवाह करदे।

गौरी ददन्नागलोके बैकुण्ठे रोहिणी ददेत्।
कन्या ददन्मृत्युलोके रौरवं तु रजस्वलाम् ॥

टीका- गौरी का दान करे तो पाताललोक में सुख पावे रोहिणी का दान करे तो बैकुण्ठ लोकमें सुख पावे कन्याका दान करे तो मृत्यु लोक में सुख प्राप्त हो और जो रजस्वला का दान करे तो नर्क में पड़े।

**जीवो जीवप्रदाता च द्रब्यदाता च चन्द्रमा। **

**तेजोदाता भवेत्सूर्यो भूमिदाता महीसुतः॥ **

**जीवहीना मृता कन्या सूर्यहीनो मृतो वरः। **

चन्द्रे हीनेघता लक्ष्मीः स्थानहानिःकुजम्बिना॥

टीका- बृहस्पति जी के दाता हैं चन्द्रमा धन के दाता हैं सूर्य तेजके दाता हैं मङ्गल भूमि के दाता हैं। वृहस्पति हीन होयतो कन्या की मृत्यु हो। सूर्य हीन होय तो वरकी मृत्युहो। चन्द्रमा हीन होय तो लक्ष्मी की हानि हो। मङ्गल हीन होयतो घर की हानि करे।

दश दोष देखना लिख्यते।

**लत्ता पातो युतिर्वेधो यामित्रं बुधपंचकम्। **

**एकार्गलोपग्रहौ च कांतिसाम्यं निगद्यते॥ **

दग्धातिथिश्च विज्ञेया दश दोषा महाबलाः।

**एतान्दोषान् परित्यज्य लग्नं संशोधयेद् बुधः॥ **

टीका- अब दस दोष कहते हैं। १ लता, २ पात, ३ युति ४ वेध, जामित्र, ६ बुध पञ्चक, ७ एकार्गल, ८ उपग्रह ९ क्रांतिसाम्य, १० दग्धातिथि, ये दस दोष विवाह में बलवान हैं इनसे बचाय के लग्न साधना चाहिये।

दश दोष मानना।

लत्ता मालवके देशे पातं च कुरुजांगले।

एकार्गलं च काश्मीरे बेधं सर्वत्र वर्जयेत्॥

टीका- लत्ता दोषमालव देश में माना जाता है, पात दोष कुरु जांगल देश में, एकार्गल दोष काश्मीर देशमें माना जाता है। और वेध दोष सब जगह मानना चाहिये।

**यामित्रं चामरे देशे युतिदोषो कलिंगके। **

उपग्रहं च कैलाशे दग्धा विद्रुमदेशके॥

टीका- या मित्र दोष अमर देशमें माना जाता है, युति दोष कलिंग देशमें, उपग्रह दोष कैलाश देशमें माना जाता है। दग्धा दोष त्रिद्रुम देश में माना जाता है। और ३ दोष सब जगह मानने चाहिये।

वेध, बुध पंचक, दग्धातिथि, क्रांतिसाम्य, युतिये ६ दोष जरूर देखने चहिये और दोष २ देश में माने जाते हैं।

अथ युति दोष देखना।

यत्र गृहे भवेच्चन्द्रो ग्रहस्तत्र यदा भवेत्।

युतिदोषस्तद ज्ञेयो बिना शुक्र शुभाशुभम्॥

टीका- जिस नक्षत्र का चन्द्रमा हो और उसी नक्षत्र पर

और कोई ग्रह होयतो युति दोष होता हैपरन्तु शुक्र के बिना संयुक्त हो तो शुभ, अन्यत्र अशुभ होता है

युति दोष फलम्।

रविणा संयुतो हानिर्भौं मेन निधनं शशी।

करोति मूलनाशंच राहुकेतुशनिश्चरैः॥

टीका- जो सूर्य चन्द्रमा के साथ हो तो हानि करे, भौम होय तो मृत्यु करे और राहु, केतु, शनीश्चर होय तो मूल नाश करे।

**वर्गात्तमगतश्चन्द्रः स्वोच्चे वा मित्रराशिगः। **

**युतिदोषश्च न भवेद्दम्पत्योः श्रेयसी सदा॥ **

टीका- जो चन्द्रमा वर्गोत्तम का हो अथवा उच्च का हो या मित्र राशि का हो तो युति दोष का नाश करे। स्त्री पुरुष दोनों सुखी रहें।

अथ वेध दोष देखना।

एक रेखास्थितिर्वेधो दिननाथादिभिर्ग्रहैः।
विवाहे तत्र मासंतु न जीवति कदाचन॥

टीका- जिस नक्षत्र का लग्न हो और उसी नक्षत्र की रेखा से जो नक्षत्र विंधा हो और उसी नक्षत्र पर सूर्य आदि कोई ग्रह होय तो उसको बेध कहिये। विवाह के एक महीने पीछे मृत्यु करे।

**अश्विनी पूर्वफाल्गुण्या भरणीं चानुराधया। **

अभिजिच्चापि रोहिण्या कृत्तिका च विशाखया॥

**मृगश्चोत्तरषाढेन पूर्वा षाढा तथार्द्रका॥ **

पुनर्वसुश्च मूलेन तथा पुष्यश्च ज्येष्ठया।

**धनिष्ठया तथा श्लेषा मघापि श्रवणेन च॥ **

रेवत्युत्तरफाल्गुन्या हस्तेनोत्तरभाद्रपात्।

स्वात्याशतभिषा विद्धा चित्रया पूर्वभाद्रपात्॥

**विद्धान्येतानि नामानि विवाहे भानिकोविदैः॥ **

टीका- अश्विनी से और पूर्वाफाल्गुणी से एक रेखा है। ऐसे जो दोनों ठौर एक रेखा हो तो बेध होता है ऐसे अट्ठाईस नक्षत्र को जानिये। ये वेध पंचशाला चक्र में समझलें।

वेध फलम् वेध चक्रम्

**

**रविवेधेच वैधव्यंकुज वेधेकुलक्षयम्। बुध वेधे भवेद्वंध्याप्रवज्या गुरु वेधतः। अपुत्राशुक्रवेधेच सौरेचन्द्रे चदुःखिता। परपुरुषरताराहोः केतोः स्वच्छंदचारिणी॥

टीका- जो सूर्य का वेध लगे तो विधवा हो मंगल का वेध लगे तो कुलक्षय होय बुध का लगे तो बंध्या होय, गुरु का बेघ लगे तो सन्यासिनी हो शुक्र का बेध लगे तो पुत्र न हो, शनिश्चर चन्द्रमा का वेध लगे तो दुखी हो, राहुका वेध लगेतो

पर पुरुष गामनी हो, केतु का बेध लगे तो अपनी इच्छानुसार चलने वाली हो।

शनिराहुकुजा दित्या यदाजन्मर्क्ष संस्थिताः।

विवाहिता च या कन्या सा कन्या विधवा भवेत्॥

टीका- शनि, राहु, भौम, सूर्य इनमेंसे कोई ग्रह विवाहसमय में जन्म नक्षत्र पर होय तो कन्या विधवा होय।

अथ यामित्र दोष विचार।

**चतुर्दशे च नक्षत्रे या मित्रं लग्नभास्मृतम्। **

**शुभयुक्तां तदिच्छन्ति पापयुक्तंच वर्जयेत्॥ **

टीका- जो लग्न के नक्षत्र से चोदहवें नक्षत्र पर कोई ग्रह होय तोयामित्र दोष होता है जो सौम्य ग्रह हो तो शुभ दायक है। और पाप ग्रह होय तो वर्जित करे॥

यामित्र फलम्।

**चंद्रश्चाद्रिर्भृगुर्जीवो यामित्रे शुभकारकाः। **

स्वर्भानुमदारा यामित्रे न शुभप्रदाः॥

टीका- जो चन्द्रमा, बुध, बृहस्पति, और शुक्र ये ग्रह जन्म के नक्षत्र से चौदहवें यामित्र पै होय तो शुभदायक है और जो शनि, केतु तथा सूर्य्य, भौम, चौदहवें यामित्र पै हों तो अशुभ होता है।

**चंद्रद्वालग्नतो वापि ग्रपा वर्ज्या श्च सप्तमे। **

तत्रस्थिता ग्रहानूनं व्याधिवैधव्यकारकः॥

टीका- चन्द्रमा से वा विवाह लग्न की राशि से सातवें कोई ग्रह होय तो व्याधि और वैधव्य करे।

अथ मृत्यु पंचक देखना।

धार्य्यातिथिर्मास दशाष्टवेदाः १५।१२।१०।८।४ संक्रातितोयात दिनैश्चयोज्याः। ग्रहैर्विभक्तायति पंचशेषो रोगस्तथाग्निर्नृपवौ रमृत्युः

टीका- अबपंचक देखना कहते हैं तिथि कहिये १५ मास कहिये १२ दश १० अष्ट ८ वेद ४ संक्रांति के जैदिन गये हों तिनको मिला करके ९का भाग दे जो ५ बचे तो पंचक जानिये ऐसेही पांचों अङ्कका विचारके देखे १५ जोड़के ९का भाग देकर ५ बचे तो रोग। १२ जोड़ ९ का भाग देकर ५ बचे तो अग्नि पंचक १० जोड़के ९ का भागदेकर ५ बचे तो अग्नि पंचक १० जोड़के ९ काभाग देकर ५ बचेतो राज पंचक। ४ जोड़के ९ का भाग देकर ५ बचे तो मृत्यु पंचक जानना चाहिये।

पंचक देखने की दूसरी रीति।

।१।१०।१९।२८ इनमें मृत्यु पंचक होता है॥

संक्रांति के जै दिन गये हो उनको गिनके उसमें ४ और जोड़ दे फिर उसमें नौ का भाग दे ५ बचे तो मृत्यु पंचक जानिये, जैसे संक्रांति का एक दिन गया उसमें ४ और जोड़ दे तो ५ होगये तो मृत्यु पंचक जानिये और जो १० अंसगये हों तो उसमें ४ और जोड़े १४ हुये उसमें नौ का भाग दिया तो ५ बचे मृत्यु पंचक जानो जो १९ दिन गये ४ और जोड़े २३ हुये उसमें नौ का भाग दिया नौ दूनी १८ । ५ बचे मृत्यु पंचक जानो जो २८ अंश गये ४ और जोड़े ३२ हुये ९ का भाग दिया नौती २७गए ५ बचे मृत्यु पंचक जानो। रोग पंचक देखना हो १५ और जोड़कर ९का भाग दे ५ तो रोग पंचक अग्नि पंचक देखना हो तो १२ जोड़े राजपंचक देखना हो तो १० जोड़कर ९ का भाग दे चोर पंचक देखना हो तो ८ जोड़ कर नौ का भाग दे। मृत्यु पंचक देखना हो तो ४ जोड़ करनौ का भाग दे।

एके मृत्यु र्द्वयोर्वह्नि श्चतुर्थे राज पंचकम्।
षष्टे चौर अष्टमे रोगं वाणमेवं विचारयेत्॥१॥

टीका- संक्रातिका एकअंश जाने पर मृत्युबाण होता है दूसरे पर अग्नि। चौथे पर राज। छठे पर चोर। आठवे पर रोग होता है।

पंचक चक्रम्।

[TABLE]

पंचक वर्जित देखना।

यद्यर्कवारे किल रोगपंचकं सोमे च राज्यं क्षितिजे च वन्हिः। सौरे च मृत्युधिंषणे च चौरोविवाह काले परिवर्जनीयाः॥
टीका- रविवार को जो रोग पंचक लगे और सोमवारको राज पंचक। भोमवार को अग्नि पंचक शनिश्चर को मृत्युपंचक भृगु को चोर पंचक ये विवाह में वर्जित हैं।

**रोग चौरं त्यजेद्रात्रौ दिवाराज्याग्निपञ्चकम्। **

उभयोः सन्ध्ययोमृत्युरन्यकाले न निंदिताः॥

टीका- रोग, चोर पंचक रात्रि को अशुभ हैं और राज्य अग्निपंचक दिन में वर्जित हैं दोनों कीसन्धि में मृत्यु पंचक निन्दित है और समय वर्जित नहीं है।

क्रांतिसाम्य देखना

ऊर्ध्वास्तिसस्तिरस्रो मध्ये मीनम् लिखेद्बुधः।

सूर्योचन्द्रमसौ दृष्टौ कांतिसाम्यंनिगद्यते॥

मीनः कन्यकया युक्तो मेष सिंहे न सङ्गतः।

**मकरेणवृषः क्रांतिश्चापोपि मिथुनेन च। **

**कर्केण वृश्चिको विद्वो वेधश्च तुलकुम्भयोः। **

क्राँतिसाम्ये कृतोद्वाहो न जीवति कदाचन॥

टीका- क्रांति साम्य देखने की ये रीति है कि सूर्य चन्द्रमा एक रेखा पर हों तो उसे क्रांति साम्य कहते हैं जैसे मीन राशि का तो सूर्य है और कन्या का चन्द्रमा हो तो क्रांति साम्य होता है मीनके सूर्य में जिस दिन कन्या के चन्द्रमा हों तो उसी रोज क्रांति साम्य होगा और कन्या के सूर्य में मीन के चन्द्रमा हो तो भी क्रांति साम्य होगा ऐसे ही १२ राशियों को इस नीचे के चक्र में समझ लेना चाहिये।

क्रांतिसाम्य चक्रम्

१२ सू० ७ सू० ४ सू० ३ सू० १० सू० १ सू०
६ चं० ११ चं० ८ चं० ९ चं० २ चं० ५ चं०
क्रांति० क्रांति० क्रांति० क्राँति क्राँति क्रांति०

क्रांतिसाम्य फलम्

क्राँतिसम्ये च कन्याया यदि पाणि ग्रहो भवेत्।

**कन्या वेधव्यतां याति ईशस्य दुहिता यदि॥ **

टीका- जो क्रांति साम्य में विवाह हो तो महादेव जी की कन्या हो तो भी विधवा हो।

दग्धातिथि चक्रम्

मीन चाषे द्वितीया च चतुर्थी वृषकुम्भयोः।

**मेषकर्कटयोः षष्ठी कन्या युग्मेषु चाष्टमी॥ **

दशमी वृश्चिके सिंहे द्वादशी मकरे तुले।

एतास्तुतिथयोदग्धाः शुभे कर्मणि वर्जिताः॥

**यः कश्चित्तियोदग्धाः मुनिभिः कथितास्फुटां। **

तिथिदग्धा कृष्ण पक्षे शुक्लेचन्द्रेणरक्षति॥

दग्धा तिथि चक्रम्।

[TABLE]

ये दग्धा तिथि शुभ काम में वर्जित हैं इन्हें त्याग दे। यह दग्धा तिथि कृष्णपक्ष में वर्जित हैं। शुक्लपक्ष में शुभ हैं। ऐसा कोई मुनि कहते हैं।

लग्न शुद्धि देखना।

**केंद्रेसप्तमहीने च द्वित्रिकोणे शुभाशुभम्। **

**धने शुभप्रदश्चन्द्रः पापाष्ठेच शोभना॥ **

**तृतीयैकादशे सर्वे सौम्या पापा फल प्रदा। **

ते सर्वे सप्तमस्थाने मृत्युदा वरकन्ययोः॥

टीका- केन्द्र स्थान कहिये १।४।७।१० त्रिकोण कहिये ५।९ जो इन स्थानों में शुभ ग्रहहोंय तो श्रेष्ठहै और २। स्थान चन्द्रमा शुभ होता है और ६ स्थान पापग्रह शुभ होते हैं और ३।११ स्थान सब ग्रह शुभ होते हैं और सातवें स्थान सब ग्रह अशुभ होते हैं। और शुक्ल पक्ष की पंचमी से कृष्णपक्ष की पंचमी पर्यन्त तक का चन्द्रमा श्रेष्ठ बलि होता है और कृष्णपक्ष की छट से ३० अमावस तक का चन्द्रमा अशुभ होता है।

ग्रहों का फल देखना।

शनिः सूर्यश्च लग्नेस्ते चंन्द्रो लग्नेष्टमे रिपौ।

**कुजो लग्नेऽष्टमे चास्ते शुक्रे द्यूनेऽष्टमेरिपौ॥ **

गुरुः मृत्यौ सैंहिकेयो लग्ने सूर्ये च सप्तमे।

**बुधोऽष्टमे च यामित्रे विवाहे प्राणनाशकः॥ **

क्रूरयोरंतरं लग्नं चंद्रम् च परिवर्जयेत्।

वर हन्ति ध्रुवंलग्न शीतरश्मिश्च कन्यकाम्॥

टीका- शनि सूर्य जो लग्न से सातवें होय और चन्द्रमा १ । ६ । ८ और भौम १ । ८ । ७ और शुक्र ७ । ८ । ६ बृहस्पति ८ राहु १ । ७ । ४ और बुध ८ । ७ यह इन स्थानों में विवाह समय प्राण के नाश करने वाले हैं और क्रूर ग्रह के मध्य चन्द्रमा होय तो अथवा लग्न होय तो वर्जिनीय है वर की शीघ्र ही मृत्यु का दाता है चन्द्रमा कन्या की मृत्यु करता है।

लग्नदेकादशे सर्वे लग्नपुष्टिकरा ग्रहाः।

**तृतीये चाष्टमे सूर्यः सूर्यपुत्रश्च शोभनः॥ **

चंद्रोधने तृतीये च कुजः षष्ठे तृतीयके।

बुधेज्यौनवषड् द्वित्रि चतुः पंच दशे स्थितौ॥

**शुक्रोद्वित्रिचतुःपंच धर्मकर्मतनुस्थितः। **

राहुर्दशाष्टषटपंच त्रिनवद्वादशे शुभः॥

टीका- लग्नसे ग्यारहवें स्थान सब ग्रह शुभ हैं सूर्य और शनि ८ । ३ । और चन्द्रमा २ । ३ । और भौम ३ । ६ । और बुध वृहस्पति ९ । ६ । २ । ३ । ४ । ५ । १० और शुक्र २ । ३ । ४ । ५ । ९ । १० । इन स्थानों में शुभ हैं और राहु केतु ये १० । ८ । ६ ।५ । ३ । ९ । १२ । इन स्थानों में शुभदायक हैं। १२वें स्थान में मार्गी ग्रह और दूसरे स्थान में बक्री ग्रह होंतो लग्न पर कर्तरी दोष होता है इसीप्रकार सब स्थानोंपर जानना।

अथ गोधूली देखना।

यदा नास्तङ्गतो भानुर्गोधूल्या पूरितं नभः।

सर्वमङ्गल कार्येषु गोधूलिश्च प्रशस्यते॥

टीका- जब तक सूर्य अस्त न हो और गौओं की खुरका धूल आकाश में पूरित हो रही हो तो, यह घटी सकल उत्तम कार्य में मङ्गल की दाता है इसकी गोधूलि कहते हैं।

यत्र चैकादशश्चन्द्रो द्वितीयो वा तृतीयकः।

गोधूलिकः सविज्ञेयः शेषा धूलिमुखाः स्मृताः॥

टीका- जो ग्यारहवें स्थान चन्द्रमा हो अथवा दूसरे तीसरे होय तो उत्तम गोधूली कहा है बाकी स्थान में चन्द्रमा होने से धूली मुख कहते हैं।

**कुलिकः क्रांतिसाम्यं च लग्ने षष्ठाष्टमे शशि। **

तदा गोधूलिकस्त्याः पंचदोषैश्च दूषितः॥

टीका- कुलिकयोग और क्रांतिसाम्य और लग्न में ६ ओर ८ चन्द्रमा हो तो गोधूली लग्न में विवाह नहीं करना, लग्न पांच दोष कर दूषित है। लग्नमें और ७ वें८ वें मङ्गल हो तो गोधूली भङ्ग हो जाता है इसमें वर को हानि होती है।

अंशस्य पतिरंशे च तन्मित्रं वा शूभोपि वा।

पश्यतोवा शुभोज्ञेयः सर्वे दोषाश्च निष्फलाः॥

टीका- अंशका पति जो है नवांश का स्वामी अपने नवांशक में हो अथवा स्वामी का मित्र और शुभ ग्रह होय अथवा इनकी दृष्टि लग्न पर होय तो दोषों को निष्फल करता है।

किं कुर्वन्ति ग्रहाः सर्वे यस्य केन्द्रे बृहस्पतिः।

मत्त मातंगयूथानां शतं हन्ति च केसरी।

टीका- जो केन्द्र स्थान १ । ४ । ७ । १ - इन स्थानों से बृहस्पति अकेले हों और सब ग्रह अरिष्टकारक हों तो क्याकर सकते हैं जैसे अकेला सिंह सैकड़ों हाथियों का समूह हन डारे ऐसे ही बृहस्पति सब दोषों को दूर कर देते हैं।

अथ कन्यादान की लग्न देखना।

दिने सदान्धा वृषमेष सिंहारात्रौ च कन्या मिथुनं कुलीरः। मृगस्तुलाली बधिरो पराह्ने संध्यासु कुब्जाघटधन्विमीनाः॥

टीका- वृष, मेष, सिंह, ये लग्न दिन में अन्धे हैं और कन्या, मिथुन, कर्क ये रात्रि में अन्धे हैं। मकर, तुल, वृश्चिक दुपहरी में बहरे हैं। धन, मीन, कुम्भ संध्या में कुबरे हैं ।

लग्न फल देखना।

दिवान्धो वरहन्ता च रात्र्यन्धोधननाशकः।

दुःखदो बधिरो लग्नः कुब्जो वंशविनाशकः॥

टीका- दिन केअन्धेलग्न में कन्यादान होय तो वर की हानि हो। रात्री के अंधे लग्न में फेरे हों तो धनकी हानि हो। और बहरे लग्न में पाणि ग्रहण हो तो दुःख हो। और कुबरे लग्न में कन्यादान हो तो वंश का नाश करे।

अथयोग वर्जित लिख्यते।

परिघार्द्ध व्यतीपातं वैधृतिं सकलं त्यज्येत्।

विष्कुम्भे घटिकाः पंचशूले सप्त प्रकीर्तिताः॥

**षट् गंडे चातिगंडे च नव व्याघातवज्रयोः। **

एते तु नव योगाश्च वर्ज्या लग्ने सदा बुधैः॥

टीका- ये नव योग सिद्ध हैं तिनकी घड़ी पंडितजनों ने वर्जित करी हैं। परिध की ३० घड़ी और व्यतीपात, वैधृत सम्पूर्ण त्याग करे हैं। विष्कुम्भ की ५ शूलकी ७ गंड, अतिगंड की ६व्याघातकी ९ वज्रकी ९ ये घड़ी शुभ काममें वर्जित करदे।

योग फल देखना।

**व्यतीपाते भवेन मृत्युर्गण्डांते मरणं ध्रुवम्। **

अग्निदग्धो भवेद्वजे रुजश्चैवापि गण्डके॥

वैधब्यं वैधृतीचैव विष्कुंभे कामचारिणी।

**वीर्यहीनोऽतिगण्डे च व्याघाते मृतवत्सका। **

परिधे च भवेद्दासी मंद्यमाँसरता सदा॥

टीका- व्यतिपातमें विवाह करे तो वर की मृत्यु हो। और गण्डांतमें करे तो दोनों की मृत्यु हो। वज्र में करे तो आग लगेगण्डमें करे तो रोग हो वैधृतमें विधवा हो। विष्कुम्भ में कामातुर हो। अतिगंडमें धातुक्षय होय। व्याघात में मृतवत्साहो बालक मर मर जांय। परिध में पराई दासी हो और मांस मदिराका सेवन करने वाली हो ये निषिद्ध योग हैं इन्हें विवाहमें वर्जित करदे।

कन्यादान का लग्न शुद्ध देखना।

व्यये १२ शनिःख १० ऽवनिजश्तृतीये ३ भृगु स्तनो १ चन्द्र खला न शस्ता लग्नेट् क्रविर्ग्लौश्च रिपौ मृतोग्लौलग्नेट्र शुभाराश्च मदेव सर्वे॥

टीका- विवाह लग्न से १२वें शनि १०वें मङ्गल तीसरे शुक्र लग्नोंमें चन्द्रमा पापग्रह और लग्नेश शुक्र चंद्रमा ६।८वेंस्थान में तथा लग्नेश शुक्र, बुध, बृहस्पति, चन्द्रमा, मङ्गल अष्टम स्थान में शुभ नहीं होते हैं।

वार्ता- शुभदायक अच्छा विवाह सुझा के फिर शुभ तिथि शुभवार देखके। चिट्ठी लिखना। ब्राह्मण के यहां पंडित करके लिखे या मिश्र करके। क्षत्रिय के यहां सिंह करके। वैश्य के यहां लाला करके। शूद्र के यहां चौधरी करके लिखे।

विवाह की चिट्ठी लिखना।

** स्वस्ति श्रीसर्वोपमा योग्य सकलगुण निधान गङ्गाजल निर्मल यमुनाजल शीतल पवनपवित्र शुभ चरित्र षट्कर्म सावधान शुभस्थान मीरापुर को लाला हेतराम व लाला हरसहाय जी व समस्त बाल गोपालन को मेरठ से एतान योग लिखितं लाला नैनसुखमलजी व समस्त वाल गोपालन की रामराम वंचना अत्र कुशलं तत्रास्तु अग्रे वृत्तान्तं वाच्यंवरनाम चिरञ्जीव लाला हीरालालजी राशि कर्क सूर्यबल ११ चंन्द्रबल ७ कन्याकी राशि धन ९ गुरुवल २ चंद्रवल ११ अग्रे सम्बत् १९६० वैशाख सुदी ११ रविवार का विवाह श्रेष्ठ है सो आप प्रमाण करना॥ शुभम्॥**

जब चिट्ठी रह जाय फिर लग्न भेजना ७। ९ । ११ । १५ दिनका अच्छे शुभ वार तिथि देखकर लग्न लिखना चाहिये।

अथ लग्न लिखना।

** श्रीगणेशायनमः। ॐ यं ब्रह्म बेदान्तविदो बदंति परं प्रधानं पुरुपंतथान्ये। विश्वोद्गतेः कारणमीश्वरंवा तस्मै नमो विघ्नविनाशनाय।**

जननीजन्मसौख्यानां, वर्धनी कुलसम्पदाम्।

पदवी पूर्वपुण्यानां लिख्यते लग्नपत्रिका॥

अथ शुभ सम्बत्सरेऽस्मिन श्रीनृपतिविक्रमादित्यराज्ये सम्बत् १९६० शाके शालिवाहनस्य १८२५ मासानां मासोत्तमे मासे उत्तमे वैशाख मासे शुभे शुक्ले पक्षेशुभतिथौ ११ एकादश्यां गुरुवासरे ३५ घडी १८ पल हस्तनाम नक्षत्रे ५५ । १३ व्याघातनाम योगे १२ । २४ ववनाम कर्णे ०७।२१ तत्र दिनमानं ३२।५७ रात्रिमाऩम् २८।०३ अहोरात्रयोरैक्यम् ६० । ०० तत्र मेषार्क गतांशाः २३ शेषांशाः ७ तत्रेष्टम् ४ । २० तत् समये वृषलग्नोदये एवं पंचांगशुद्धौ वरनाम चिरंजीव हीरालालजी राशि कर्क सूर्यबल २ चन्द्रबल ३ कन्याकी राशि १० गुरुबल १० चंद्रबल ९ सूर्यबल चंद्रबलगुरुबलत्रिबल सहितलत्तादिदशदोषरहितं पाणिग्रहणं शुभम् मङ्गलं ददाति॥ कन्या के वानसमौड़े ९ पहलावान बैशाख सुदी ६ सौमवार से होगा बर के बान समौड़े ११ पहलावान बैशाखशुदि ४ शनिवार से करना॥ इति शुभम्॥ बुधशनि सौमवार से तेल बान आरम्भ करें॥

बान देखना।

कोदण्डकण्ठीवृषकुम्भपंच कन्याघाटे मीनमेषेच सप्त।

मृगालियुग्मेनव तैल कर्कमन्यत्रतैलंपतिनाशनंच॥

टीका- को दण्ड कहिये धन कण्ठी कहिये सिंह वृष कुम्भ इनके ५ बानहोते हैं कन्या घटी कहिये तुल मीन मेष इनके ७ बान होते हैं, मृग कहिये मकर अलि कहिये वृश्चिक मिथुन कर्क इनके ९बान होते हैं और तरह बान नहीं होते। कन्याकीराशि से बान देखे उससे दो बान वर के ज्यादा बढ़ा कर लिखदे जिस दिन बान करे वह दिन देखले कौन से वार को बान करना अच्छा है॥

तेल चढ़ाने के दिन।

तैलाभ्यङ्गे रवौतापः सौमे शोभा कुजेमृतिः।

बुधेधनं गुरौहानिः शुक्रे दुःख शनौ सुखम्॥

टीका- रविवार को तेल चढ़ावे तो ताप चढ़े सोमवार को अच्छा मङ्गल को कष्ट, बुध को धनका लाभ और गुरु को धन की हानि, शुक्र को दुख, शनि को सुख हो।

तेल दोष दूर करने का उपाय।

अर्के पुष्पं गुरौ दुर्वा भृमिपुत्रे रजस्तथा।

भार्गवे गोमयं दद्यात् तैलाभ्यङ्गा नदूषितः॥

टीका- रविवार को तेल चढ़ावे तो तेल में फूल गेरले, गुरु को दूर्वा, भौमको गंगारज, शुक्रको गोबर, इनके मिलानेसे तेल का दोष दूर हो जाता है इसमें शंसय नहीं है।

अथ कर्तरी दोष देखना।

लग्नाच्चंद्राद्द्वयोर्द्विस्थः पापखेटो यदा भवेत्।

**कर्तरीवर्जनीयास्तु विवाहोपनयादिषु॥
न कर्तरी यदादोषः सौम्यः सूर्यादिः जायते। **

शुभग्रहयुतो लग्नः क्रूरस्थो नास्ति कर्तरी॥

टीका- चन्द्रमा से १२ स्थान तथा दूसरे स्थान जो पाप ग्रह हों तो कर्तरी दोष होता है विवाह यज्ञोपवीत में वर्जित हैं, उन्हीं स्थानों में सौम्य ग्रह हो तो दोष नहीं और क्रूरग्रह हो तो भी दोष नहीं माने।

अथ होलाष्टक देखना।

शुक्लाष्टमी समारभ्य फाल्गुनस्य दिनाष्टकम्।

पूर्णिमामवधिं कृत्वा त्याज्यं होलाष्टकंबुधैः॥

शतरुद्रा विपाशायामैरावत्यां त्रिपुष्करे।

होलाष्टकंविवाहादौ त्यज्यमन्यत्र शोभनम्॥

टीका- फाल्गुण शुक्ला ८ से पूर्णमासी तक होलाष्टक होते हैं सो शतरुद्रा नदी के तीर और विपासा नदी के तीर और ऐरावत नदीके तीर और पुष्कर नदी के तीर इन देशोंमें विवाहादिक और शुभ काम में वर्जित हैं और देशों में नहीं हैं।

चन्द्रमा देखना।

अर्केन्दुश्च वरे श्रेष्ठः कन्यायां न कदाचन।

वरस्य शुभदो नित्यं कन्यका पतिनाशनम्॥

टीका- किसी २ आचार्य का ये मत है कि विवाह में १२ चन्द्रमा वर को हों तो श्रेष्ठ है, कन्या को नहीं। वर को शुभ है जो कन्या को १२ चन्द्रमा हो तो उसके पति का नाश करे।

सासू सुसरे का सुख देखना।

** श्वश्रूःसितोर्कःश्वशुरस्तनुस्तनुर्जामित्रयःस्याद्दयितोमनः शशि। एतद्वलं सँप्रति भाव्यतांत्रिकस्तेषां सुखं संप्रवदेद्वावहितः॥**

टीका- शुक्र तो सासू और सूर्य सुसरा और लग्न शरीर और सप्तमेश भर्ता चंद्रमा मन विवाह लग्न में जो ग्रह बलिष्ट होगा उसी की तरह सुख होगा जैसे शुक्र बलवानहो तो सासूका सुख रहै और सूर्य बलवान हो तो सुसर का सुख रहै इत्यादि

अथ गौना सुझाना।

धातृयुग्मं हयोमैत्रं श्रुतियुग्मकरत्रयम्।

**पुनर्वसुर्द्वयंपूषा मूलं चाप्युत्तरात्रयम्॥
विषमे वत्सरे मासे मार्गे मेषे च फाल्गुने। **

मकरे मिथुने मीने लग्ने कन्या तुला धनुः॥

**भौमार्किवर्जिताःवाराग्रह्यंते च द्विरागमे। **

षष्ठी रिक्ता द्वादशी च अमावस्या च वर्जिता ॥

द्विरागमन चक्रम्।

रो० मृ० अश्व० ऽनु० श्र० ये नक्षत्र गौने में शुभ हैं
ध० ह० चि० स्वा० तीनों ये भी नक्षत्र शुभ हैं
पुष्य रे० मू० उ०३ ये भी नक्षत्र शुभ हैं
मार्ग वैशा फा० गुन ये भी महीने शुभ हैं
१० १२ ये लग्न शुभ हैं
१४ १२ ३० ये तिथि त्याज्य हैं
मङ्गल शनि ये वार वर्जित हैं

दोहा- इष्ट घड़ी छः गुनी करे, सूर्य अंश मिलाय।

भाग तीस का देयके गई लग्न मिल जाय॥

अर्थ- पहिले इष्ट निकाल कर रखले फिर इष्ट की घड़ी को ६ का गुणा कर जितने सूर्य के अंश गये हों वे मिलाकर २० का भाग दे। जितना आवे जिस राशि का सूर्य हो उससे गिनले जो लग्न आवेवह बीत गया जानना चाहिये।

अथ
मुहूर्त प्रकरण

तृतीय भाग

चन्द्रमा वास फल देखना।

लक्ष्मी प्राप्ति
मन सन्तोष
धन सम्पत्ति
कलहागमः
ज्ञान वृद्धि
उत्तम सम्पत्ति
राजसन्मान
मृत्युभय
धर्म लाभ
१० मनवांछित फल
११ सर्व लाभ
१२ हानि करते हैं

आद्यः चन्द्रः श्रियं कुर्यात् मन स्तोपं द्वितीयके। तृतीये धन सम्पत्ति चतुर्थे कलहागमम्॥ पञ्चमे ज्ञानवृद्धिञ्चषष्ठेसंपत्तिरुत्तमाम्। सप्तमे राज सम्मानं। मरणम् चाष्ठमेतया॥ नवमेधर्म लाभं च दशमे मानसेप्सितम् एकादशे सर्वलाभं द्वादशेहानि मेव च॥

टीका- अबकन्या और वर दोनों को चन्द्रबल कहा है। सो इसचक्र में पंडित जन भली प्रकार से सझ लें।

गोधूलि मास निर्णय।

पिंडोभूतोदिनकृति हेमन्तर्तौ स्यादर्धास्ते। तपन समय गोधूलिः। संपूर्णास्ते जलधरमालाकाले त्रेधायोज्या सकलशुभे कार्यादौ॥

टीका- हेमन्त काल के ४ महीने में जब सूर्य गोला कार अस्त समय हो तब गो धूली लग्न होता है। और तपन समयमें ४ मास अर्धास्त सूर्य के समय गोधूली जानो। जल घर माला काल अर्थात् वर्षा के ४ मासमें सम्पूर्ण सूर्य के अस्त समय में गोधूली जानों। सब कामोंमें शुभ है।

जन्म चन्द्रमा देखना।

जन्मर्क्षस्थे शशांके तुपञ्च कर्माणि वर्जयेत्।

यात्रा युद्धं गृहर रम्भे विवाहेक्षौरकर्मणि।

टीका- जन्म के चन्द्रमा में इतने काम बर्जित हैं यात्रा, युद्ध, विवाह, हजामत बनवाना और नये घरमें प्रवेश करना।

अथ चन्द्रमा बास फलम्।

मेषे च सिंहे धनु पूर्वभागे वृषे च कन्या मकरे च याम्ये।

मिथुन तुलाकुंभसु पश्चिमायांकर्कालि मीने दिशि चोत्तरस्याम्॥

अर्थ- १ । ५ । ९ । के चंद्रमा का पूर्व में २। ६ । १० का दक्षिण में ३ । ७ । ११ का पश्चिम में ४ । ८ । १२ का उत्तर दिशा में चंद्रमा का बास रहता है।

सन्मुखे अर्थ लाभाय पृष्ठे चन्द्रे धनक्षयः।

दक्षिणे सुखमम्पत्तिवांमे तु मरणं भवेत्॥

टीका- सन्मुखके चन्द्रमा में लाभ हो पीठ पीछे के चंद्रमा में धन की हानि, दाहिने चंद्रमा सुख सम्पति करे, वायें चंद्रमा मृत्यु करते हैं ।

तीनों लोकों में चन्द्रमा बास फलम्।

तिथिश्च त्रिगुणीकृत्ये एकं च पर मेजयेत्।

शिवनेत्रैर्हरे द्भागं शेषं चन्द्र विधीयते॥

टीका- तिथियों को तिगुनी करके उसमें एक और मिलावे शिव नेत्र जो हैं तीन उनका भाग दे फिर चंद्रमा बास देखे।

एकस्मिन् वसते स्वर्गे युग्मे पाताल मेव च।

शून्ये हि मृत्युलोके तु चन्द्रवासः प्रकीर्तितः॥

टीका- एक बचे तो स्वर्गमें वास जानना, दो बचें तो पाताल में, शून्य बचे तो मृत्यु लोक में।

पाताले चैव चन्द्रे च पञ्च कर्माणि वर्जयेत्।

**तड़ाग कूपवार्नास्ति अन्नंनास्ति च मेदनी॥ **

यात्रायां कुशलं नास्ति पठने नास्ति अक्षरं।

टीका- जो पाताल में चन्द्रमा का बासहो तो इतने काम न करे, तालाब बनाना, कुंवा खोदने में, जल नहीं हो, खेती लगाने में अन्न नहीं हो या यात्रा करने में कुशल नहीं हो और पढ़ने में अक्षर नहीं आवे।

यात्रा कार्यम् प्रवेशे च गृहारंभे च कार्येत्।

कूपादौतु विशेषेण सर्वकार्येषु शिक्षयेत्॥

टीका- यात्रा में, मकान बनाने में, कूप, बावड़ी खोदने में, बाग लगाने में और जितने शुभदायक काम हैं सब में चन्द्रमा का वल जरूर देखे।

चन्द्रमा रङ्ग वाहन देखना।

**मेषे वृश्चिके सिंहे रक्तकु जरवाहनम्। **

**मिथुने युग्मे धनौचैव पीतं तुरगं भवेत्॥ **

**वृषे तुले कर्कटे च बाहनं वृषभस्ममृताम्। **

मकरे कुम्भेकन्यायां कृष्णणं महिषी वाहनम्॥

चन्द्रमा रङ्ग वाहन चक्रम्

मेष वृश्चि सिंह लाल रङ्ग वाहन हाथी
मिथुन मीन धन पीला रङ्ग घोड़ा सवारी
वृष तुल कर्क श्वेत रङ्ग बैल सवारी
मकर कुम्भ कन्या काला रङ्ग भैंसा सवारी

घात चन्द्रमा देखना।

मेषे आदि वृषे पंच मिथुने नवमस्तथा।

**कर्के द्वयरसःसिंहे कन्यायाँ दश वर्जिताः॥ **

**तुला त्रिणि अलौ सप्त धन वेदा मृगे वसु। **

कुम्भे रुद्रोरविमने घात चंन्द्रः प्रकीर्तितः॥

अथ घात चन्द्र चक्रम्।

मे० वृ० मि० कर्क सिंह क० तुल वृ० धन म• कुम्भ मीन चन्द्रमा
१० ११ ४२ घात

घात चन्द्रमा वर्जित।

प्रयाणकाले युद्धे च कृषौ वाणिज्यसंग्रहे।

वादे चैव ग्रहारम्भे वर्जयेत् घातचन्द्रकम्॥

टीका- यात्रा में युद्ध में खेती में वाणिज में घर बनाने में घात चन्द्रमा वर्जित हैं।

घात चन्द्रमा फल।

रोगे मृत्यु रणे भङ्गो यात्राकाले च बन्धनम्।

बिवाहे विधवा नारी घात चन्द्रफलं स्मृतम्॥

टीका- घात चन्द्रमा में बीमार हो तो मृत्यु हो युद्ध करे तो भङ्ग हो यात्राकरेतो बन्धन हो। विवाह करे तो विधवा होय यह घात चन्द्रमा का फल है।

सन्मुख चन्द्रमा फलम्।

**करणभगणदौषं वार संक्रांतिदोषम्। **

**कुतिथिकुलिकदोषं यामयामार्द्धदषम्॥ **

**कुजशनिरविदोषं राहुकेत्वादि दोषम्। **

हरति सकलदोषं चन्द्रमा सन्मुखस्थः॥

टीका- करण नक्षत्र वार संक्राति तिथि योग यामार्द्ध मङ्गल शनि राहु रवी इतने दोषों को सन्मुख चन्द्रमा करता है।

पुष्य नक्षत्र फलम्।

न योगीयोगं न च लग्नीलग्नम् न तारिका चन्द्र बलं गुरुश्च।

न योगिनी राहु र्नबलिष्टो कालः एतानि विघ्नानि हरंति पुष्यः॥

टीका- योगनी अच्छी न हो, चंद्रमा भी अच्छा नहो, तारा अच्छा न हो गुरुबल भी अच्छा नहो और चन्द्रबल भी अच्छा न हो भद्रा, राहु ये भी अच्छे नहोंपरन्तु पुष्प नक्षत्र उस दिन हो तो इतने दोषों को दूर करता है।

सिंहौयथा सर्वचतुष्पदाना तथैव पुष्यो बलवानु डूनां।

चन्द्रेविरुद्धे प्यथगोचरेपि सिद्वयंति कार्याणि कृतानि पुष्यै॥

टीका- जैसे सिंह चौपायों में बलवान होता है ऐसे ही पुष्य नक्षत्र बलवान होता है चन्द्रमा भी विरोधी हो और गोचर भी विरुद्ध होतो पुष्य नक्षत्रमें कार्य नहीं बिगड़ता है पुष्य नक्षत्र का किया काम सिद्ध होता है।

**समस्तकर्म्मोणित्कालपुष्यो दुष्यो विवाहे मद मूर्छितत्वात्। **

सहस्र पत्रप्रसवे न तस्मादिहापि मुक्तौ भुवि लोकसंघेः॥

टीका- सबही कार्यमें पुष्यनक्षत्र शुभ होते हैं परन्तुविवाहमें अशुभ है क्योंकि ब्रह्मा ने अपनी पुत्री का विवाह पुष्य में ही किया था सो पुत्री को देख कर वीर्य स्खलित हो गया इस वास्ते ब्रह्मा ने श्राप दे दिया ये वार्ता वहां की है जहां साठ हजार बाल ऋषि पैदा हुये थे।

सिद्धयोग देखना।

शुक्रे नन्दा बुधे भद्रा शनौ रिक्ता कुजे जया।

**गुरो पूर्णा तिथिर्ज्ञेया सिद्धियोगः प्रकीर्तिताः॥ **

सिद्धयोग चक्रम्।

[TABLE]

मृत्युयोग देखना।

नन्दा सूर्ये मङ्गले च भद्रा भार्गवचन्द्रयो।

**बुधे जया गुरौ रिक्ता शनौ पूर्णा च मृत्युदा॥ **

मृत्युयोग चक्रम्।

[TABLE]

पंचक देखना।

धमिष्ठापंचकेत्याज्यं तृण काष्ठादिसंग्रहे।

त्याज्या दक्षिणादिग्यात्रा गृहाणांछादनं तथा।

टीका- धनिष्ठाआधे को आद लेकर, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती ये पांच नक्षत्र पंचक के हैं इनमें तृण, काष्ठ आदि नहीं ग्रहण करना। दक्षिण की यात्रा नहीं करना घर नहीं छावना छत नहीं गेरना।

शुक्र के डूबने का फल देखना।

इसमें कौन काम वर्जित है शुक्र का अस्त, पत्रे में लिखा रहता है।

वापीकूपतड़ाग यज्ञगमनं क्षौरं प्रतिष्ठाव्रतम्॥

विद्यामन्दिरकर्णवेधन महादानंगुरोःसेवनम्॥

**तीर्थस्नानबिवाहवेदहवन मन्त्रोपदेशः शुभः। **

दूरेणैव जिजीविषुः परिहरेदस्ते गुरौ भार्गवे॥

टीका-बावड़ी, कूवा, तालाब, बाग, यज्ञ, मकान, गवन, क्षौर, देवालय, मकान की प्रतिष्ठा, कान विधवाना और जो महादान, सुवर्ण का दान करना और गुरु सेवा, तीर्थ यात्रा करना, विवाह करना, देवता का हवन करना, नया व्रत करना, मन्दिर बनाना, मुण्डन, जनेऊ, विद्यारम्भ और जो शुभ कार्य हैं, सी शुक्र के और वृहस्पति के डूबने में नहीं करने चाहिये। जो जीवने की इच्छा करे तो दूर से ही त्यागन करे।

शुक्र दोष परिहार देखना।

एकग्रामे पुरे वापि दुर्भिक्षे राजविग्रहे।

विवाहे तीर्थयात्रायांशुक्रदोषो न विद्यते॥

टीका- गांव के गांव में या शहर के शहर में, दुर्भिक्ष में राज विग्रह में तीर्थ यात्रा में सन्मुख शुक्र का दोष नहीं मानना चाहिये।

**पितृगृहेचेत्कु चपुष्पंसंभवस्त्रीणां न दोषः प्रति शुक्रसम्भवः। **

भृग्वगिरोवत्सवशिष्ठ कश्यपात्रीणां भरद्वाजमुनेः कुले तथा॥

टीका- जो पिता के घर स्त्री को कुच पुष्प अर्थात् रजस्वला हो तो शुंकके अस्त व शुक्र के सन्मुख आने जाने का दोष नहीं है जो स्त्रीइन गोत्रोंकी हैं भृगु, अङ्गिरा, वत्स, वशिष्ठ, कश्यप, अत्री, भरद्वाज, इन ऋषियों के गोत्रवाली को भी आने जाने का दोष नहीं है।

चीज बेचने खरीदने का मुहूर्त।

**पूर्वा विशाखा भरणीषु कृतिका श्लेषासु वै विक्रयणंशुभदिने। **

चित्रांतिमः स्वातिशताश्वि वासवे श्रुतौ च वस्तुक्रयणवरं भवेत्॥

टीका- तीनों पूर्वा, विशाषा, भरणि, कृतिका, श्लेषा तथा शुभ दिन, शुक्र, गुरु, चन्द्र, बुध इन बार में वस्तु बेचना। चित्रा, रेवती स्वाति, शतभिषा, अश्विनि, धनिष्ठा, श्रवण इन नक्षत्रों में और बृहस्पति, शुक्र, सोमवार बुध इन वारों में खरीदना शुभ है।

अथ चन्द्र ग्रहण देखना।

भानोः पंचदशे ॠक्षे चन्द्रमा यदि तिष्ठति।

पौर्णमास्यां निशाशेषे चन्द्रग्रहणमादिशेत्॥

टीका- सूर्य के नक्षत्र से चन्द्रमा १५ वें नक्षत्र पर हो तो पूर्णमासी को चन्द्रमा ग्रहण होता है और केतु चन्द्रमा एक राशि पर हो तो चन्द्र ग्रहण होता है।

सूर्य ग्रहण देखना।

माघो न ग्रस्तनक्षत्रात् षोडशं यदि सूर्यभम्।

अमावस्यादिवाशेषे सूर्यग्रहणमादिशेत्॥

टीका- मावस के दिन सूर्य चन्द्रमा एक राशि पर हों और मावस के दिन सूर्य नक्षत्र और दिन नक्षत्र एक हो तो पड़वाकी संधि में सूर्य ग्रहण होता है। सूर्य नक्षत्र से चन्द्र नक्षत्र तक गिनिये उसमें से ११ निकाल दे शेष १६ नक्षत्र बचें तो निश्चय वो ही सूर्य ग्रहण है।

दोहा- चन्दा से रवि सातवें, रवि राहु एकन्त।

पूनों में पड़वा मिले, निश्चय ग्रहण पड़न्त॥

रवि से राहु सातवें, शशि रवि हो एकन्त।
मावसमें पड़वा मिले, निश्चय ग्रहण पड़न्त॥

ग्रहण का सूतक देखना।

**सूर्यग्रहेतु नाश्नीयात् पूर्वं याम चतुष्टयम्। **

चन्द्रग्रहेतु यामस्त्रीन् बालवृद्धाऽतुरैर्बिना॥१॥

टीका- सूर्य ग्रहण से चार पहर पहिले और चंद्र ग्रहण से तीन पहर पहिले सूतक लग जाता है उस समय बालक वृद्ध और रोगी इनके अतिरिक्त और को भोजन नहीं करना चाहिये ।

चन्द्रमा का निकलना, छिपना

**तिथि गुणितं रजनी परिमानं यम रहितं सित कृष्ण विमिश्रम्। **

वाण शशाँकै विभाजित लब्धं प्रति दिवस चन्द्रोदय मस्तम्॥

टीका- जिस तिथि को चंद्रमा का निकलना व छिपना देखना हो उस तिथि को जितनी रात्रि हो उसे उसी तिथि के अङ्कों से गुणा करे जो गुणनफल आवे उसमें कृष्ण पक्ष में २ जमा करदे और शुक्ल पक्ष में २ घटादे फिर उसे १५ से भाग दे जो लब्धि मिले कृष्ण पक्ष में उतनी रात्रि गये चंद्रमा निकलेगा और शुक्ल पक्ष में उतनी रात्रि गये छिपेगा।

शुभ कर्मों में सूतक पातक देखना

**एकविंशति यज्ञेषु विवाहे दश वासरान्। **

श्राद्धे पाक परिकृया न दोषे मनुब्रवीत्॥

टीका- यज्ञ में २१ दिन पहिले विवाह में दस दिन पहले और श्राद्धमें पकवान तैयार हो जाने पर कोई दोष नहीं लगता परन्तु घर के मनुष्य अलग रहें।

गृहण कौनसी राशि को गहता है

ग्रासस्तृतीयोष्टमगश्चतुर्थस्तथायसंस्थः शुभदःसुनित्यं।

त्रिकोणगो मध्यफलचन्द्रभात्प्रोक्तः सुनिष्टश्च बुधैस्तु शेषाः।

टीका- जिस राशिपै सूर्यहो उससे अपनी राशि तक गिने जो ३,८, ४, ११, उत्तम ५, ९, मध्यम १२, ७, १०, १, २, ६ के अधम जैसी राशि हो वैसा फल जानो, ग्रहण होने के दिन से ३ दिन पहिले के और ३ दिने पीछेके शुक्र डूबने के भी ३ दिन पहिले के और उदय से ३ दिन पीछेके सब कार्यमें वर्जित हैं।

**द्विपंचमे नवमे शुक्ले श्रेष्ठश्चन्द्रोहि उच्यते **

अष्टमे द्वादशे कृष्णे चतुर्थे श्रेष्ठ उच्यते॥

टीका- किसी किसी आचार्यका ये भी मत है कि २, ५, ९, शुक्लपक्ष के चन्द्रमा हैं। ४, ८, १२, कृष्ण पक्ष के चन्द्रमा उत्तम हैं।

औषधि करने का मुहूर्त

पौष्णद्वये चादितिभद्वये चहस्तत्रये च श्रवणत्रयेच।

मैत्रेच मुलेच मृगे च शस्तंभैषज्यकर्म प्रवदन्तिसन्तः॥

टीका-रे, अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य, ह, चि, स्वा,श्र, ध, श,ऽनु, मू०, मृ०, इन नक्षत्रों में दवाई करने से जल्दी रोग दूर होता है।

घात प्रकार देखना

घाततिथिर्घातवारं घातनक्षत्रलग्नकम्।

यात्रायाँ वर्जयेत् प्राज्ञै रन्यकर्मसुशोभितम्॥

टीका- घात तिथि, घातवार घात नक्षत्र घात लग्न घात चन्द्रमा इनको यात्रा में वर्जित करदे और कामों में शुभ हैं।

यात्रा मुहूर्त देखना।

यात्रायां दक्षिणे राहुर्योगिनीवामतः शुभौ।

प्रष्ठतो द्वयमाख्यातम् चन्द्रमाः संम्मुखे शुभः॥

टीका- दाहिनी तर्फ राहु, योगिनी वायें और ये दोनोंपीठ पीछे चन्द्रमा सम्मुख ये शुभदायक हैं।

**सर्वदिग्गमने हस्तः पूषाश्वौ श्रवणो मृगः। **

सर्वसिद्धिः करः पुष्यो विद्यायां च गुरुर्यथा॥

टीका- अबसर्व दिशाओं की यात्रा के नक्षत्र कहते हैं। ह०, रे०,अ०,श्र०,मू०, पुष्य ये नक्षत्र सर्व सुख देने वाले हैंऔर अधिक शुभ हैं जैसे कि विद्या विषय वृहस्पति शुभ है इनके अलावा और नक्षत्र वर्जित हैं।

अथ हवन करने का मुहूर्त।

सैका तिथिर्वारयुता कृताप्ताः शेषेगुणेऽभ्रेभुवि वन्हिवासः।

सौख्याय होमः शशियुग्म शेषे प्राणार्थनाशौ दिवि भूतले च॥

टीका- तिथि, वार को एक जगह करके एक और मिलावे और ४ का भागदे, ३ या शून्य बचे तो अग्निका बासा पृथ्वी में होता है सुख देने वाला है औ १।२ बचे तो अग्नि का वासा पाताल में होताहैप्राण और धनका नाश हो ऐसे क्रम से जानना

अथ ग्रह के मुख में आहुति जाना।

तरणिविद्भृगु भास्करि चन्द्रमाः कुजसुरे ज्यविधुन्तिुदकेतवः

रविभतोदिनभङ्गणयेत्तथाप्रतिखगं तृतीयं न्यसेत॥

टीका- सूर्यके नक्षत्र से उस दिन के नक्षत्र तक गिने जिस दिन हवन करना हो, तीन २ नक्षत्र पर एक २ ग्रह को बांटे जो शुभ ग्रह के मुख में आहुती जाय तो शुभ और पाप ग्रह के मुख में जाय तो अशुभ जानना । वह क्रम यह है कि ३ नक्षत्र तो सूर्यके, ३ बुध के, ३ शुक्र के, ३ शनि के ३ चन्द्रमाके, ३ मङ्गल के, ३ बृहस्पति के ३ राहु के ३ केतु के॥

योगिनी देखना।

प्रतिपत्सु नवम्यां च पूर्वस्यां दिशि योगिनी।

**अग्निकोणे तृतीयायामेकादश्यां तु सा स्मृता॥ **

त्रयोदश्याँ च पंचम्याँ दक्षिणस्याँ शिवप्रियाः।

द्वादश्यां च चतुर्थांच नैर्ऋतकौणगामनी॥

चतुर्दश्यां च षष्ट्यां च पश्चिमायां च योगिनी।

पूर्णिमायां च सप्तम्यां वांयुकोणे तु पार्वती॥

**दशम्यां च द्वितीयायामुत्तरस्यां शिवा भवेत्। **

ईशान्यां दिशि चाष्टम्यां योगिनी समुदाहृता॥

टीका- पड़वा और नवमी को योगिनी पूर्व में बास करती हैं। अग्निकोण में ३।११। दक्षिण में ५।१३ नैऋत्य में १२ ४ पश्चिम में १४।६ वायव्य में १५।७ उत्तर में १०।२ ईशान में ३०।८ ऐसे योगिनी वास कहिये।

योगिनी फल।

योगिनी सुखदा वामे पृष्ठे वांछितदायिनी।

दक्षिणे धनहंत्री च सम्मुखे मरणप्रदा॥

मासस्य प्रतिपत् श्रेष्ठा द्वितायाकामकारिणी॥

आरोग्यदा तृतीया च चतुर्थी कलहप्रदा।

पंचमी च श्रियायुक्ता षष्ठी कलहकारिणी।

भक्षपान समायुक्ता सप्तमी सुखदा सदा।

अष्टमी व्याधिदा नित्यं नवमी मृत्युदा स्मृता।

दशमी भूरिलाभास्याच्चैकादशी च हेमदा।

द्वादशी प्राणसन्देहो सर्वसिद्धां त्रयोदशी।

शुक्ला वा यदि वा कृष्णा वर्जनीया चतुर्दशी।

पौर्णि मायाममायां च प्रस्थानं नैव कारयेत्।

तिथि क्षये च मासान्ते ग्रहणान्ते दिनत्रयम्।

टीका- यात्रा में बांयें योगिनी सुखदायक है पीछे की मनो कामना देने वाली है। दाहिने हानिकारकहै। सन्मुख की मृत्यु करती है। महीनेके शुरूकी पड़वा श्रेष्ठ है। २ काम काज में श्रेष्ठ है। ३ आरोग्य प्रद। ४ क्लेश देने वाली। ५ लक्ष्मी

प्रद। ६ कलहप्रिय। ७ भोजनप्रद। ८ व्याधिप्रद। ९ मृत्युप्रद। १० लाभप्रद। ११ स्वर्गप्रद। १२ प्राणसन्देह। १३ सर्व सिद्धी प्रद। १४ अवश्य त्याज्य है। १५ । ३० और तिथि घटने के दिन मासान्त में कहीं बाहर गांव को भूल के भी न जावे। ग्रहण के अन्त के तीन दिन त्याग के जाना चाहिये।


काल विचार।

आदित्यउत्तरे कालं सौमे वायव्यमेव च।

**भौमे च पश्चिमे कालं बुधे नैर्ऋृृतमेव च॥ **

**गुरुश्च दक्षिणै कालं शुक्रो हानिस्तथैव च। **

शनौपूर्वे तथा कालं एवं कालाः प्रकीर्तिताः॥

काल चक्र विचार।

र० चं० मं० बु० वृ० शु० श०
उत्तर वायव्य पश्चिम नैऋृृत दक्षिण अन्नि पूर्व

इन २ बारों में कालका बासा, इन २ दिशा में रहता है इनमें कहीं को न जाय।

यात्रावार फलम्।

**ताम्बूलं रविवारे च सौमे ओदनमेव च। **

**भौमे धात्रिफलं भक्ष्यं बुधे मिष्टान्न भोजनम्॥ **

गुरो तु दधिसंयुक्तं शुक्रे तु तीक्ष्णमेव च।

आमिषं शनिवारे तु कृत्वा यात्रां ब्रजेन्नरः॥

यात्रावार चक्रम्।

[TABLE]

जिस बारमें यात्राको जाय यदि यह चीज खाकर जायतो शुभहै

दिशाशूल परिहार।

सूर्ये वारे गृतं पीत्वा गच्छेत्सौमे पयस्तथा।

**गुड़मंगलबारे च बुधवारे तिलानपि॥ **

**गुरुवारे दधिर्ज्ञेयं शुक्रवारे यवानपि। **

माषान् भुक्त्वा शनिवारे शूलदोषौ पशांतये॥

टीका- रविवार को जाय तो घी खाकर जाय। चन्द्र को दूध मंगल को गुड़, बुध को तिल, गुरु को दही, शुक्र को जौ शनिश्चर को उड़द ये खाकर यात्रा करे तो दिशाशूल का दोषनहीं होता।

अथ राहु विचार।

रविवारे च नैर्ऋृत्यां सोमे उत्तरमेव च।

आग्नेयां मङ्गलं चैव वुधे पश्चिममेव च॥

**गुरौ ईशानकं प्रोक्तंशुक्रे दक्षिणमेव च। **

शनौ वायव्यकोणेषु एवं राहुः प्रकीर्तितः॥

राहुचक्र विचार।

रविवार चन्द्रवार मङ्गल बुधवार गुरुवार शुक्रवार शनिवार
नैऋत उत्तर अग्नि पश्चिम ईशान दक्षिण वायव्य

रवि विचार।

**यामे युग्मे च रात्रो च यामे पूर्वादिगोरविः। **

यात्रास्मिन्दक्षिणे वामे प्रवेशे पृष्ठके द्वयम्॥

टीका- पहर रात्री रहेसे पहर दिन चढ़े तक सूर्य नारायण पूर्व में बास करते हैं। फिर दो पहर दक्षिण में। फिर एक पहर दिन रहे से एक पहर रात्री गये पश्चिम में। फिर २ पहर गये उत्तर में। सो यात्रा विषय दाहने बायें शुभ है। घर प्रवेश में सन्मुख और पीठ पीछे शुभ है।

अथ गर्भाधान मुहूर्त।

शुभे त्रिकोणे केन्द्रस्थे पापे षष्ठे त्रिलाभके।

पुत्रकामः स्त्रियं गच्छेन्नरो युग्माषु रात्रिषु॥

टीका-जो त्रिकोण ५ । ९ केन्द्र १ । ४ । ७ । १० इन स्थानों में सौम्य ग्रह हों और ३।६।११ इन में पाप ग्रह हों तो ऐसे लग्न में और रजोधर्म से अर्थात् । ६ ८ । १० १२ । १४ । १६ युग्मरात्रि में पुत्र की इच्छा वाला स्त्री प्रसङ्ग करे॥

नाम धरने का मूहूर्त।

**पुनर्वसुद्वयेहस्तत्रये मैत्र द्वये मृगे। **

मूलोत्तराधनिष्ठास्युः द्वादशैकादशे दिने॥

**अन्यत्रापि शुभे योगे वारे बुधशशांकयौः। **

भानौ गुरौ स्थिरे लग्नेवालनामकृतं शुभम्॥

टीका- पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, चित्रा, स्वांति, अनुराधा, ज्येष्ठा, मृगसिर, मूल, उत्तरा तीनों, धनिष्ठा ये नक्षत्र और ११ । १२ दिन बुध चंद्रमा रवि० गुरु इन चारों में और २।५।८।११ इन लग्नों में बालक का नाम धरिये॥

प्रसूतिस्नान मुहूर्त।

रोहिण्युत्तरेवत्वो र्मूलंख्वात्यनुराधयोः।

**धनिष्ठा च त्रयः पूर्वाज्येष्ठायां मृगशीर्षके॥ **

**एतास्त्याज्याःसदा भानाँ प्रसूतिस्नानकोविदैः॥ **

वारे भोमार्कयोः जीवे स्नानमुक्तं सदैव हि॥

टीका- रोहिणी, तीनों उत्तरा, रेवती, मूल, स्वाति, अनुराधा धनिष्ठा, तीनों पूर्वा, ज्ये०, मृ० ये चौदह नक्षत्र त्याग के जितने और नक्षत्र रहें सो लीजे और मङ्गल गुरु० रवि० ये वार प्रसूति स्नान के लिये शुभ हैं ६ । ८ । १२ ।४ । ९ । १४ ये तिथी न हों॥

कुवां पूजने का मुहूर्त।

मूलादितो द्वयं ग्राह्यं श्रवणश्च मृगः करः।

जलवाप्यर्चने हेयाः शुक्रमंदार्कभूमिजाः॥

टीका— मूल, पूर्वाषाढ, श्रवण, मृगशिर, हस्त, येनक्षत्र शुभ हैं। शुक्र, शनि, रवि, भौमयेवार त्यागके प्रसूति को कूप जलाशय पूजन उत्तम हैं और शुभ तिथी होनी चाहिये॥

स्त्री नवीन वस्त्र धारणम्।

हस्तादिपंचकेऽश्विन्याँ धनिष्ठायां च रेवती।

**गुरोशुक्रे बुधेवारे धार्यं स्त्रीभिर्नवाम्बरम्॥ **

टीका- हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, ऽनुराधा, अश्विनी धनिष्ठा, रेवती और गुरु शुक्र, बुध, इन बारों में स्त्रियों को नये कपड़े पहनावे।

पुरुष नवीन वस्त्र धारणम्।

लग्ने मीने च कन्यायां मिथुने च वृषःशुभः।

**पूषा पुनर्वसुद्वन्द्वे रोहिण्युत्तरभेषु च॥ **

टीका- मीन, कन्या, मिथुन, वृष, इन लग्नों में रेवती, पुनर्वसु, पुष्य, रोहिणी, तीनों उत्तरा इन नक्षत्रों में पुरुषों को नवीन वस्त्र पहरावे तो शुभ है।

नवान्न भोजन व वस्त्रका मुहूर्त।

नवान्नभोजनं ग्राह्यं वस्त्रे प्रोक्तमशेषतः।

वाराधिकौसूर्यभौमौ नक्षत्रं श्रवणो मृगः॥

टीका- नवीन अन्न का भोजन और नवीन वस्त्रधारणकरने के लिए मङ्गल रवि ये वार और श्रवण, मृगशिर यह नक्षत्र उत्तम हैं।

अन्नप्राशन मुहूर्त।

आद्यान्नप्राशने पूर्वा सर्पार्द्रा वरुणोयमः।

नक्षत्राणि परित्यज्य वारे भौमार्क नन्दनौ॥

**द्वादशी सप्तमी रिक्ता पर्वनन्दास्तु वर्जिताः। **

लग्नेषु च झषोग्राह्यो वृषःकन्या च मन्मथः॥

शुक्ले पक्षेशुभे योगे संग्राह्यः शुभचन्द्रमाः।

मासे षष्ठाष्टमे पुंसां स्त्रियोमासि च पञ्चमे॥

अबबालकके अन्न प्राशन विषय इतने वर्जित है- तीनोंपूर्वा श्लेषा, आद्रा, शतभिषा, भरणी रेवती। ये नक्षत्र और भौमशनि ये वार १२ । ७ । ४ । ९ । १४ । ३० ।१५ । १।६। ११ ये तिथि ये सब वर्जित हैं और मीन, बृष, मिथुन, कन्या ये लग्न शुभ हैं और शुक्लपक्ष विषय उत्तम शुभ योग में कीजेऔर शुभ चन्द्रमा हों छटा और आठवां मास पुत्रके अन्न प्राशनमेंश्रेष्ठहै और कन्या को पाँचवे मास में खिलावे।

अथ चूड़ा कर्म मुहूर्त।

पुनर्वसुद्वयं ज्येष्ठा मृगश्च श्रवणद्वयम्।

**हस्तत्रये च रेवत्यां शुक्लपक्षोत्तरायणे॥ **

**लग्नं गोस्त्रीधनं कुंभ मकरो मन्मथस्तथा। **

सोम्यवारे शुभे योगे चूड़ाकर्मस्मृतंबुधैः॥

टीका- पुनर्बसु, पुष्य, ज्येष्ठा, मृगशिर, श्रबण, धनिष्टा, हस्त चित्रा, स्वाति, रेवती, ये नक्षत्र और शुक्लपक्ष उत्तरायण सूर्य और वृष कर्क, कुम्भ, धन, मकर, मीन ये लग्न, चन्द्र, बुध, शुक्र ये बार शुभ योग सर्वाङ्ग श्रेष्ठ हैं जन्म मास और रिक्ता तिथि ये चूड़ाकर्म और भूषण धारण में वर्जित हैं।

अथ मुंडन मुहूर्त।

हस्तत्रये हरिद्वन्द्रेपूर्वाश्च मृगपंचमे।

**मुले पौष्णे च नक्षत्रे वुधाऽर्के गुरुशुक्रयोः॥ **

टीका- हस्त से तीन ह० चि० स्वा०, श्र० ध० पू० तीनों मृगशिर आ० पुन० पुष्य श्ले० मृ० रे० ये नक्षत्र और रवि, बुध, शुक्र गुरु ये बार शुभदायक हैं।

विद्यारम्भ मुहूर्त।

देवोत्थाने मीने चापे लग्ने वर्षे च चमे।

**विद्यारम्भोत्र बर्ज्यश्च ष्ट्यन ध्यायरिक्तकाः॥ **

**रिक्तायां च अमावस्यां प्रतिपच्च विवर्जयेत् । **

बुधेन्दु वासरे मूर्खः शनिर्भोमो मृतपदः॥

**विद्यारम्भे गुरु श्रेष्ठो मध्यमौ भृगु भास्करौ। **

**बुधे सौमे च विद्यायाँ शनिभौमौ परित्यजेत्॥ **

टीका- देवोत्थान कहिये कार्तिक शुक्ला ११ से आषाढ़ शुक्ला १२ तक और मीन, धन, ये लग्न पाँचवें वर्ष में विद्या पढ़ना आरम्भ करना चाहिए ॥६॥ अमावस्या ॥१॥६॥१४॥४ ये तिथि वर्जितहै और बुध चन्द्रमा में विद्या आरम्भ करे तो मूर्ख हो, गुरुवार श्रेष्ठ है शुक्र रवि मध्यम हैं बुध सौम उप विद्याको करे है, शनि, भौम सवत्र त्याज्य है। ह० चि०स्वा०श्र०घ० तीनों पूर्वा अ०मृ०आ० पु० पृ० अश्ले० मू० रे० ये नक्षत्र शुभ हैं।

अथ यज्ञोपवीत मुहूर्त।

पूर्वाषाढाश्विनी हस्तत्रये च श्रवणत्रये।

**ज्येष्ठा भगे मृगे पुष्ये रेवत्यां चोत्तरायणे॥ **

द्वितीयायां तृतीयायां पंचम्याँ दशमीत्रये।

**सूर्ये शुक्रे गुरो चन्द्रे बुधे पक्षे तथासिते॥
लग्ने वृषे धनुः सिंहे कन्यामिथुनयोरपि। **

**व्रतबंधे शुभे योगे ब्रह्मक्षत्रिविशापितेः॥ **

टीका- पूर्वाषाढ़ अ० ह० चि० स्वा० श्र० ध० शत० ज्येο पूर्वाफा० मृ० पुष्य रे० उत्तरायण सूर्यं । २ । ३ ।५। १०।११। १२। १३ ये तिथि रवि शु० गु० बुध, चन्द्रमा ये वार शुक्ल पक्ष और वृष, धन सिंह, कन्या, मिथुन ये लग्न और शुभ योग में जनेऊ ले इनमें ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य, तीन जाति को कहा है (वेद में )- तीनों जाति के जुदे २ भेद कहे हैं।

ब्राह्मण को गर्भ से पाँचवें वर्ष में या आठवें वर्ष में यज्ञोपवीत धारण करना चाहिये इसी प्रकार क्षत्रिय को छटे व ग्यारहवें वर्ष में और वैश्यों को आठवें व बारहवें वर्षमें यज्ञो पवीत धारण करना चाहिये। अगर किसी कारण से यह समय व्यतीत होजाय तो फिर १६वें वर्षमें ब्राह्मण को और २२वें वर्षमें क्षत्री को २४वें वर्ष में वैश्य को यज्ञोपवीत लेना लिखा है। इन वर्षों के बीत जाने पर गायत्री का अधिकारी नहीं रहता है।

कर्ण छेदन मुहूर्त।

श्रुतित्रये दितिद्वन्द्वे मैत्रे हस्तत्रयोत्तरे।

भगे विधि युगे मूले पूषाश्वे सौम्यवासरे।

**द्विस्वभावे घटे लग्ने कर्णवेधः प्रशस्यते। **

चैत्रपौषौ हरिस्वापं वर्षं च युगलं त्यजेत्॥

टीका— श्र०ध०श० पुष्य पु० अनु० ह० तीनों उ०पूर्वाफाल्गुणी रो० मृ० मू० रे० अ० ये नक्षत्र और सोमवार चं०बु० गु० शु० ये० वार शुभ हैं और मिथुन, धन, कन्या,मीन कुम्भ ये लग्न शुभ हैं वैशाख फाल्गुण मार्गशिर माघ ज्येष्ठ आषाढ़ ये महीने शुभ हैं और १ । ३ । ५ । ७ ये वर्ष शुभ हैं चैत्र पौष आषाढ़ शुक्ला ११ से कार्तिक शुक्ला ११ तक और सम वर्ष २। ४ । ६ । ८ त्याज्य हैं। जन्म दिनसे १२ या १६ वें दिन अथवा ६, ७, ८ महीने विषम वर्ण प्रति शुभ हैं।

नींव धरने का मुहूर्त।

पूर्वाषाढ़ादितिद्वन्द्वैविधियुग्मे करत्रयम्।

उत्तराफाल्गुनीहस्तत्रये मूले च रेवती॥

**मैत्राश्विनी व लग्नानिं सिंहकन्याघटोवृषः। **

**मिथुनोमकरो ग्राह्यो वास्तुकर्मणि कोविदैः॥ **

श्रावणश्चाथ वैशाखः कार्तिकफाल्गुनस्तथा।

मासेषु मार्गशीर्षश्व वास्तुकर्मणि शस्यते॥

**वज्रव्याघातशूलानि व्यतीपातश्च गण्डके। **

विष्कुम्भे परिघोवज्रो वारे भौमे च भास्करे॥

टीका- पूर्वाषाढ़ पुनर्वसु, पुष्य, मृगशिर, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, उत्तरा, फाल्गुण, हस्त, चित्रा, स्वात, मूल, रेवती, अनुराधा, अश्विनी ये सब नक्षत्र सिंह, कन्या, कुम्भ, वृष, मिथुन मकर ये लग्न चन्द्रमा, बुध, गुरु, शुक्र ये वार, श्रावण,वैशाख कार्तिक, फाल्गुणी, मार्गशिर ये महीने सब शुभ हैं। बज्र व्याघात शुक्ल, व्याधिपात, गंड, विष्कुभः, परिघ, ये योग और मङ्गल रवि ये वार त्याग कर घर की नींव धरिये।

वापी कूप देव प्रतिष्ठा मुहूर्त।

आद्रा शतभिषाऽश्लेषा विशाषा भरणीद्वयम्।

**त्याज्या चद्वादशीरिक्ता षष्ठी चेंदुक्षयोऽष्टमी॥ **

प्रति पच्चतिथिर्वारौ त्याज्यौ शनिकुजौ तथा॥

देवमूर्तिप्रतिष्ठायां स्थिरे लग्नोत्तरायणे॥

टीका- बावड़ी, कुवां, तालाब, देवता इनकी प्रतिष्ठा देखना आर्द्रा, शतभिषा, ऽश्लेषा विशाखा, भरणी, कृतिका, ये नक्षत्र १ । १२ । ३० । ८ । ६ । ४ । ९ । १४ ये तिथि और शनि मङ्गल ये वार त्याग दे शेष शुभ हैं। वृष, सिंह, वृश्चिक कुम्भ ये लग्नशुभ हैं उत्तरायण सूर्य हों। रवि, चन्द्रमा बुध, गुरु, शुक्र ये वार भी शुभ हैं।

गृह प्रवेश मुहूर्त।

विशाखा भरणी हेयाऽश्लेषाख्यां च मघातथा।

**अमावस्या व रिक्ता च वारे भौमे रवौ तथा॥ **

**गृहप्रवेशो वैशाखे श्रावणे फाल्गुने तथा। **

**आश्विनेच स्थिरेलग्नेग्राह्यः पक्षोबुधैः सितः॥ **

टीका- विशाखा भरणी, श्लेषा, मघा ये नक्षत्र ३० । ४ । ९ । १४ ये तिथि, भौम, रवि ये बार ग्रह प्रवेश विषय वर्जित हैं। वैशाख और श्रावण, फाल्गुन, आश्विन ये मास वृष, सिंह, वृश्चिक, कुम्भ ये स्थिर लग्न और शुक्ल पक्ष, चन्द्रमा, शुक्रगुरु, बुध, शनि ये वार इनमें गृहे प्रवेश उत्तम है।

अथ क्षौर कर्म मुहूर्त।

**पुनर्वसुद्वयं क्षौरे श्रुतियुग्मं करत्रयम्। **

**रेवतीद्वितयं ज्येष्ठा मृगशीर्ष च गृह्यते॥ **

**क्षौरे प्राणहरास्त्याज्या मघा मैत्रं चरोहिणी। **

**उत्तरा कृतिका वारा भानुभौमशनैश्चराः॥ **

**रिक्ताषष्ठयष्टमी हेया क्षौरे चन्द्रक्षयानिशि। **

संध्याविष्टश्च गडांते भोजनांते चगोगृहे॥

टीका- पुनर्वसु, पुष्प, श्रवण, धनिष्ठा, हस्त, चित्रा, स्वाति, रेवती अश्विनी ज्येष्ठा मृगशिर ये नक्षत्र शुभ हैं। और बाकी प्राणहर्ता हैं, तिन्हें त्यागके मघा, अनुराधा, रोहिणी उत्तरा तीनों कृतिका और भौम, शनि, रवि ये वार ४, ६, ८, १४ । ३० ये तिथि रात्रि और संध्या के समय अरु गँडांत नाम मूल आदि नक्षत्र और भद्रा में भोजन करके और गौशाला में भी क्षोर कर्म न करे।

अथ हल चलाने का मुहूर्त।

अनुराधा चतुष्कं च मघादितियुगे करे।

स्वातिश्रुति विधिद्वन्दे रेवत्यामुत्तरात्रयम्॥

गोस्त्री झषे हलंकार्यम्हेयाः सूर्यःशनिःकुजः।

**षष्ठी रिक्ता द्वादशी च द्वितीयाद्वय पर्व च॥ **

त्रिभिस्त्रिभिस्त्रिभिपंच त्रिभिःपंचत्रिर्भिद्वयम्।

सूर्यभाद्दिनभंयावद्धानिर्वृद्धिर्हले क्रमात्॥

टीका- अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़, मघा पुनर्वसु पुष्य, हस्त, स्वाती, श्रवण, रोहिणी, मृगशिर, रेवती, तीनों उत्तरा ये नक्षत्र हल चलाने को शुभ हैं वृष, कन्या, मीन, ये लग्न लीजे और रवि, शनि, मङ्गल ये बार ६ । ४ । १४ । ९ । १२।२ । १५। ३० ये तिथि त्याज्य हैं और सूर्यके नक्षत्र से उस दिन के नक्षत्र तक गिनिए सो इस क्रम से हल चक्रमें समझलीजे प्रथमतीनमें हानि फिर दूसरे तीन में वृद्धि हानि इस प्रकार से हल चक्र से समझ लीजे।


सब चीजों का मुहूर्त।

तिथि वारं च नक्षत्रं नामाक्षरसमन्वितम्।

**द्वित्रिचतुर्भिर्गुणितं रससप्ताष्टभाजितम्॥ **

**आदि शून्ये भवेद्धानि मध्य शून्ये रिपोर्भयम्। **

अन्त्यशून्ये भयेवेन्मृत्युः सर्वांके विजयी भवेत्॥

टीका- तिथि वार नक्षत्र और नाम के अक्षर सबको जोड़े फिर उनको दूने करके ६ का भाग दे फिर तिगुणा करकेसातका भाग दे फिर उनको चौगुना करके आठ का भाग दीजिये जो प्रथम जगहमें शून्य आवे तो हानि हो। मध्यमें शून्यहोतोशत्रु मय अन्त में शून्य हो तो मृत्यु हो और जो तीनों में शेष अङ्क बचे तो विजय होय।

अथ स्वर विचार देखना।

शशिप्रवाहे गमनादिशिस्तं सूर्यप्रवाहेनहि किचिन्नापि।

**प्रष्टुर्जयः स्याद्वहुमानभागे रिक्तेच भागेविफलंसमस्तम् **

**दक्षिणे दुःखदःशुक्रः सन्मुखे हन्ति लोचनम्। **

**वामे पृष्ठे शुभो नित्यं रोधयेच्चास्तंगः शुभम्॥ **

टीका- जो चन्द्र स्वर कहिए वांया चले तो यात्रा कीजे और सूर्य स्वर कहिए दाहिना चले तो ऽशुभ है और गणित कहिये बताने वाले का पृच्छक कहिये पूंछने का एक स्वर चलता होय तो सर्व काम सिद्ध हो जो सुष्मणा कहिए एक का सीधा और दूसरे का उल्टा चले तो सब काम निष्फल हों दक्षिण से यात्रा में जाोशुक्र दाहिने हो तो दुख हो, सन्मुख नेत्र पीड़ा करेऔर बाँये या पीछे पड़ेता शुभ है।

पशु खरीदने व बेचने का मुहूर्त।

पुष्यं भाद्रपदायुग्मं मैत्रंश्रवणमश्विनिः।

**हस्तोत्तरामृगस्वातिस्तथा श्लेषा च रेवती॥ **

**ग्राह्याणिभानि चैतानि क्रयबिक्रयणे बुधैः। **

चन्द्रभार्गव जीवे च वारे शकुनमुत्तमम्॥

टीका- पुष्य, पूर्वा, भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद, ऽनुराधा, श्रवण अश्विनी, हस्त, उत्तरा, तीनों मृगशिर, स्वात, श्लेखा, रेवती ये नक्षत्र खरीदने, बेचने में शुभ हैं और चन्द्रमा, शुक्र, गुरु ये बार और शुभ शकुन देखियेगा तब गाय भैंस घोड़ादि और पशु लीजिए और बेचिये।

मन्त्र उपदेश करने का मुहूर्त।

मन्त्रस्वीकरणं चैवे बहुदुःखफलप्रदम्।

**वैशाखे रत्नलाभश्च ज्येष्ठे च मरणं ध्रुवम्॥ **

आषाढ़े बन्धुनाशः स्यात् श्रावणेतु शुभावहम्।

प्रजाहानिर्भाद्रपदे सर्वत्र सुखमाश्विने॥

टीका- अब मंत्र दीक्षा लेने का शुभाशुभ कहते हैं। जो चैत्र मास में दीक्षा लेय तो बहुत दुख पावे वैशाख में लेवे तो रत्नलाभ, ज्येष्ठ में लेबे तो मृत्यु हो, आषाढ़ में भाई का नाश श्रावण में लेवे तो शुभ हो, भाद्रपद में लेवे तो सन्तान का नाश और आश्विन मास में मन्त्र दीक्षा लेवे तो सब सुख को प्राप्त हो।

**कार्तिके वृद्धिः स्यान्मार्गशीर्षे शुभप्रदः। **

पौषेतज्ज्ञानहानिः स्यान्माघे मेधाविवर्धनम्॥

**फाल्गुने सुखसौभाग्यं सर्वत्र परिकीर्तितम्। **

दीक्षाकर्मफलं मासेश्वेतेषु च शुभाशुभम्॥

टीका- कार्तिक मास में मंत्र दीक्षा ले तो धन की वृद्धि हो मार्गशिर में लेवे तो शुभ हो पौष में ज्ञान हानि हो माघ में ज्ञान की वृद्धि है फाल्गुण में मन्त्र लेवे तो सौभाग्य और यश बड़े।

गांव में या नगर में रहने का मुहूर्त।

ग्रामनाम्ना भवेदृक्षं तदाद्याः सप्त मस्तके।

पृष्ठे सप्त हृदे सप्तपादयोः सप्त तारकः॥

मस्तके च धनी मान्यः पृष्ठे हानिश्च निर्धनः।

हृदये सुखसम्पत्तिः पादे पर्यटनं फलम्॥

टीका- जिस गांव में या शहर में बसना चाहे उस गांव के नामके अक्षर से नक्षत्र कर लीजे। जो नक्षत्र गांव का पावे उसके पहिले प्रथम नक्षत्र पर्यन्त अट्ठाईस जानिये उसमें से गांव का नक्षत्र आदि लेके सात नक्षत्र गांव के माथे पर दीजे और ७ पीठ पर, ७ हृदय पर, ७ पावों पर, तब अपने नक्षत्रसे देखिये, जो माथे पर पड़े तो वंश में धनी होय, सन्मान पावे। पीठ पर हानि, और हृदय पर सुख सम्पत्ति, पांवों में गिरे तो पर्यटन करावे।

अथ रोगी स्नान मुहूर्त।

मघोत्तराब्रह्म भुजङ्ग पोष्णैः पुनर्वसुस्वाति विहीन भेषु। रिक्ताभिः हिने हिमागो च शुक्रेबुधेवार स्नानमरोगजन्तोः।

टीका- मघा, उत्तरा तीनों, रोहिणी, श्लेषा रेवती, पुनर्वसु स्वात, इनका त्याग करना रिक्ता तिथि ४ । ९ । १४ इनको त्याग, चन्द्रमा, शुक्र, बुध ये वार त्याग करे और नक्षत्रों में और वारों में रोगी स्नान करे। बादमें यथाशक्ति ब्रह्मभोजकरे।

यात्रा का मुहूर्त।

उषः प्रशस्यते गर्गः शकुनं च वृहस्पतिः।
अंगिरामनउत्साहो विप्रवाक्यम् जनार्दनः॥

टीका- गर्ग मुनिका तो यह वाक्य है कि ५ घड़ी रात रहे यात्रा करे तो शुभ है। और बृहस्पिति जी का यह वाक्य है कि सुगन देख के यात्रा करे। अङ्गिरा ऋषि का यह वाक्य है कि मनमें आनन्द हो जभी यात्रा करे। और जनार्दनका यह वाक्य है कि ब्राह्मण की आज्ञा लेके यात्रा करे तो शुभ हैं।

प्रस्थान करना।

यज्ञोपवीतकं शस्त्रंमधुं च स्थापयेत्फलम्।

विप्रादि के तथा सर्वे स्वर्ण धान्यवरादिकम्॥

टीका- ब्राह्मण को तो जनेऊ धरना चाहिए, क्षत्रीको शत्र वैश्य को मीठा शूद्र को फल, और जातियोंको अन्न या सौना। प्रस्थान उसे कहतेहैं कि यात्रा करने के दिन नहीं जाना हो तो पहिले दिन कुछ चीज दूसरे के यहां धर दे। सो ऊपर लिखी चीज रखनी चाहिए।

यात्रा के समय शकुन देखना।

इन्धनंचतथागारं गुडं सर्पिस्तथाऽशुभम्।

अभक्तो मलिनोमन्द तथा नग्नश्च ब्राह्मणः॥

टीका-यात्रा में घर से निकलते ही लकड़ी, अग्नि, गुड़, घी, तेल, नग्नसिर, फकीर, हीजड़ा, छींक, नग्न, ब्राह्मण, घर से निकलते ही अशुभ हैं।

अच्छे शकुन देखना।

श्रुति विप्र निनादश्च नद्यावर्तः सकौतुकः।

सुभगा स्त्रीशुभः शब्दो गम्भीरः सुमनोहरः॥

टीका- वेद पढ़ते ब्राह्मण। गाना गाती या नाचती वेश्या गौ,हाथी, धींवर भरा हुआ जल का घड़ा या मशक भरी हुई। भङ्गी भरा डला लिये। बाजा, घंटा बजता हुआ, फूलऔर फुलहार माली मोतियोंकी या फूलोंकी माला पहरे कन्या। स्त्री सुहागन गोद भरी हुई। ये शकुन शुभ दायक हैं।

दिशाशूल देखना।

**शनौचन्द्रेत्यजेत्पूर्वा दक्षिणां च दिशां गुरौ। **

सूर्ये शुक्रे पश्चिमांच वुधे भौमे तथोत्तरे।

टीका- शनिश्चर को और सोमवार को पूर्व में दिशाशूल जानो, बृहस्पतिको दक्षिण में रवि और शुक्र को पश्चिम में। बुध और मङ्गल को उत्तरमें दिशाशूल जानिये। यात्रा समय ये त्यागने चाहिये।

**अनुराधात्रयं हस्तो मृगाश्वोच दितिद्वायम्। **

**यात्रायां रेवती शस्ता निंद्यार्द्राः भरणीद्वयम्॥ **

मघोत्तरा विशाखा च सर्पश्वान्ये च मध्यमाः।

**षष्ठो रिक्ता द्वादशी च पर्वाणि च विवर्जयेत्॥ **

लग्नं कन्या मन्मथश्च मकरश्च तुलाधरः।

यात्रा चन्द्रबले कार्या शकुनं च विचारयेत्॥

टीका- अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, हस्त, मृगशिर, अश्विन, पुष्प पुनर्वसु, रेवती ये नक्षत्र शुभ हैं। आर्द्रा, भरणी, कृतिका, मघा, उत्तरा तीनों विशाखा, श्लेषा यह अशुभ हैं शेष नक्षत्र मध्यम हैं। ६ । ४ । ९ । १२ । १४ । ३० । १५ ये तिथि और व्यतीपात योग वर्जित हैं। कन्या, मिथुन, तुल, मकर ये लग्न शुभ हैं। चन्द्रबल और शकुन विचार कर यात्रा कीजे।

नित्य दिशा देखना।

तिथि वारं च नक्षत्रंनामाक्षरसमन्वितम्।

**नवभिश्चहरेद्भाग शेषं दिनदशोच्यते॥ **

**रविश्चन्द्रो भौमराहु गुरुमन्दज्ञके हितौ। **

क्रमेण तादिशा ज्ञेया फलं पूर्वोक्तमेवहि॥

टीका- तिथि वार नक्षत्र अपने नामके अक्षर सब इकट्ठेकर के ९ से भाग दे। १ बचे तो सूर्य की दशा जानना २ वचे तो चन्द्रमा की, ३वचेतोभौमकी। ४रहेंतो राहुकी। ५वचेतोगुरुकी। ६ बचे तो शनि की। ७ बचे तो बुधकी। ८ बचे तो केतु की। शून्य बचे तो शुक्र की। फल इसका ऐसा जानो जैसा वर्ष में मुग्धा दशा का है।

**जन्म तारा चतुर्गुण्या तिथिवारसमन्विता। **

**अष्टभिस्तु हरेद्भागं शेषांके च दशा स्मृता। **

रविचन्द्रकुजज्ञाश्च गुरुशुक्रशनिः क्रमात्।

शून्यशेषे यदा जातो राहोरपि दशा स्मृता॥

टीका- जन्म नक्षत्र को दिन नक्षत्र तक गिने फिर चौगुणा करे तिथि वार मिलावे आठका भागदे जो १ वचेतो रवि २ बचेतो चंद्रमा ३ बचे तो भौम ४ बचे तो बुध ५ बचे तो गुरु ६ बचे तो शुक्र, ७बचे तो शनि पूरा भाग लगेतो राहु और केतुकी दशा जाननी चाहिए।

चौखट का मुहूर्त।

सूर्यर्क्षाद्यगमैःशिरस्यथ फलं लक्ष्मीस्ततः कौण भैः

**नागैरुद्रसनंततो गजमितैः शाखासु सांख्य भवेत्॥ **

देहल्याँगुणभैः मृतिर्गृहपतेर्मध्यस्थितैः वेदभैः।

सौख्यं चक्रमिदं विलोक्यसुधिया द्वारं विधेयं शुभम्॥

टीका- सूर्य के नक्षत्र से ४ तो शिर के हैं उनमें चौखट लगावे तो लक्ष्मी को प्राप्ति हो और तिस के अगले ८ कौणके हैं ये ऊजड़ करे, फिर अगले शाखाओं के सुखकारी हैं अगले ३ देहलीके मृत्युकारक हैं। अगले ४ मध्यके सौख्य कारक है।

घर का दर्वाजा लगाने का मुहूर्त।

**भवेत्पूषणी मैत्रपुष्ये च शक्रा करे हस्त चित्रा नले चादिते च। **

गुरौ शुक्र चन्द्राऽकि सौम्येषु वारे तिथौ नन्द पूर्णा जया द्वार शाखा॥

टीका- रे०, अनु०, पुष्य, ज्ये०, ह०, चि०, स्वा०, पुन० यह नक्षत्र गु०, शु०, चन्द्र, शनि ये वार हों, १ । ६ । ११ । ३ । १३ । ८ । ५। १०।१५ ये तिथि हों। २।३।५।८।६।९।१२।११ ये लग्न, दरवाजा लगाने में शुभ हैं।

कुवां खोदने का मुहूर्त।

**हस्तस्तिस्रो वासवं वारूणं च शैव पित्रश्यं त्रीणिचैवोत्तराणि। **

प्रजापत्यं चापि नक्षत्रमाहुः कूपारम्भे श्रेष्ठमाद्या मुनीन्द्राः॥

टीका- ह०, चि०, स्वा०, ध०, श०, आ०, म०, उ० तीनों रो० ये नक्षत्र और चं०, बु०, गु०, शुक्र ये वार २।३।५।७।१०।१३।१५ इन तिथियों में कुआँ बनाना व खोदना शुभ है।

पुनः द्वितीय क्रम देखना।

कूपचक्रं प्रवक्ष्यामि यदुक्तं ब्रह्मयामले।

रोहिण्यादि लिखेच्चक्रं यावन्तिष्ठति चंद्रमा॥

एकमध्ये द्वयं पूर्वे तृतीयेऽग्निमेव च।

याम्ये बाणसंगयश्च नैऋतेषठमेवच॥

पश्चिमे युग्मवायुश्च उत्तरे त्रयईरितः।

ईशाने त्रयो दातव्या वृद्धं रक्षादनुक्रमात्॥

मध्येशीघ्रलं स्वादु पूर्वे भूमौ च खण्डितम्।

आग्नेयां च जलं प्रोक्तंयान्येच निर्जलं भवेत्॥

**नैऋत्यां च जलं प्रोक्तं पश्चिमे क्षारमेव च। **

**वायव्ये चैव पाषाणं उत्तरेच सद्भवेत्॥ **

**ईशाने मनसा शुद्धिः वापी कूपस्य लक्षणम्। **

**ध्रुवे करजल मैत्रे वासवे पितृभेषु च॥ **

रविमदन द्वितीया पंचमी सप्तमीशु च।

**घटवृष हरिलग्ने जीव शुक्रार्की वारे। **

मुनिवर कथितोयं कूपकारम्भ सिद्धो॥

[TABLE]

टीका- रोहणी से आदि लेकर २७ नक्षत्र तक इस प्रकार गिन कर धरे कि १ मध्य में,२ पूर्व में, ३ अग्नि में, ५दक्षिणमें,६ नैऋत्य में, २पश्चिममें, २वायव्य में ३ उत्तर में ३ ईशान में। अव रोहिणी से दिन नक्षत्रतकजो
संख्याआवे उसके अनुसार चक्र देखकर फल कहै।

बाग लगाने की प्रतिष्ठा का मुहूर्त।

गोसिंहालिंग तेष चोत्तरेगते भानो बुधादित्रये।

चंद्रार्केच शुभा बुधे अमी यदारामप्रतिष्ठाकार्या

टीका- वृष, सिंह, वृश्चिक इन राशि के सूर्य उत्तरायण बुध, गुरु, शुक्र, रवि, चन्द्रमा ये वार शुभ हैं। श्लेषा, भरणी, कृतिका, शतभिषा, विशाखा ये नक्षत्र अमावस्या ४ । १४ । ९ । ८ । ६ । १२ ये तिथि अशुभ हैं।

सगाई में लड़की के शिर में डोरी गेरना

विश्वस्वातिवैष्णव पूर्वात्रय मैत्रे बस्बाग्नेयैर्वाकर

पीड़ोचितिऋक्षैः। वस्त्रालंकारादि समेतैः फलपुष्पैः सन्तोष्यादौस्यादनुकन्यावरणं सत्।

टीका- उत्तराषाढ़, स्वाति, श्रवण, तीनों पूर्वा, अनुराधा, धनिष्ठा, कृतिका, विवाह नक्षत्र इतने नक्षत्रों में चं०, गु०, शु०, बुध इन वारों में कन्या के शिर में डोरे गेरे और अच्छे वस्त्र और चीज पहरावे।

अथ कष्ट योग देखना।

शतभिषाकरआर्द्रा स्वातिमूलत्रि पूर्वा। भरणी सहितपुष्यो।

भौममन्दार्कवासः प्रथमदिन चतुर्थी द्वादशी षष्ठीभूता।

हरिहरविधि रक्षा रोगिणां काल मृत्युः॥

टीका- शतभिषा, हस्त, आद्रा, स्वाति, मूल, पूर्वा तीनों भरणी, पुष्य ये नक्षत्र हों और भौम, शनिश्चर, रवि ये बार और १, ४, १२,६, ३० ये तिथि ऐसे योग में कोई बीमार हो तो विष्णु आदि भी रक्षा करें तो भी नहीं बचे।

ज्वालामुखी योग।

पड़बा मूलपंचमी भरणी आठे कृतिका नवमी

**रोहिणी दशमी श्लेषा ज्वालामुखी॥ **

जन्मै तो जीवे नहीं, बसै तो ऊजड़ होय॥

कामनी पहरे चूड़ियां, निश्चय विधवा होय॥

कुवें नीर झांके नहीं, खाट पडोन उठन्त।

जोतिषी जो जाने नहीं, ज्योतिष कहता ग्रंथ॥

टीका- पड़वा के दिन मूल पंचमी के दिन भरणी, आठे को कृतिका, नौमी को रोहणी, दशमी को श्लेषा, ये नक्षत्र अग्निमुखी हैं। जो इनमें जन्म ले तो जीवे नहीं और घर में बसे तो ऊजड़ होय और स्त्री चूड़ी पहरे तो विधवा हो, इनमें कुवां नहीं झाँके और जो बीमार होकर खाट में पड़े तो उठे नहीं, ये बात जोतिष का ग्रन्थ कहता है।

सूतक निर्णय देखना।

महिष्योऽजास्तथा गावो ब्राह्मण्यादिस्त्रियस्तथा।

दशरात्रेण शुध्यन्ति भूमिस्थं च नवोदकम्॥१॥

टीका- भैंस, बकरी, गाय, दूध के पशु और ब्राह्मणी आदि स्त्रियाँ बच्चा होने पर और भूमि में मेघ का जल ये दश रात्री में शुद्ध होते हैं।

दशाहाच्छुध्यते माता अवगाह्य पिता शुचिः॥२॥

टीका- मातातो दश दिनमें शुद्ध होती है और पिता स्नान करने से तुरन्त ही शुद्ध हो जाता है।

मृतक पातक निर्णय देखना।

यदा तदा भवेद्दाहः सूतकं मृतिपूर्वकम्।

टीका- निर्णय सिंधुमें लिखा है कि दाह तो किसी हीदिन हो परन्तु पातक मृत्यु के ही दिन से मानना चाहिए और ख्याह भीउसी तिथि में होना चाहिये जिसमें मृत्यु हो।

मरने में पातक देखना।

सर्वेषां च दशांहंस्यात् सूतकीनां च सत्यजेत्।

**चतुर्थे दशरात्रं स्यात् षट् रात्रिश्च पञ्चमे॥ **

**षष्ठे तुचतुरो ज्ञेया सप्तमे च दिनत्रयम्। **

**अष्टमे दिनमेकन्तु नवमे प्रहरद्वयम्॥ **

**दशमे स्नान मात्रेण एवं गोत्र प्रसूतकम्॥ **

टीका- मरने में चारों वर्णों का दश दिन का सूतक होता है इस वास्ते सूतकियों को त्याग करे। परन्तु ये भी प्रमाण है कि जो चौथी पोड़ी हो तो १० दिन तक सूतक माने और पांचवी में ६ दिन का, छटी में ४ दिन का सातवींमें ३ दिन का आठवीं में १ दिन का नवींमें २ पहर तक का दशवींमें स्नान करने ही से शुद्ध हो जाते हैं। ये गोत्र के ऊपर सूतक कहा है।

त्रिपुस्कर योग वर्जित।

यमलादित्रिपुष्करमूलमघावसुवासवपंचक पंचयुता।

भरणीनहीकीजेप्रेतक्रिया, क्षयजात कुटुम्बस्वयंत्रिया॥

टीका- यमलादि त्रिपुस्कर ये योगमुल, मघा, धनिष्ठा, श०, पूर्वा भा०, उ०, भा०, रे०, भ० इनमें प्रेतकी क्रिया नहीं करे और जो करे तो कुटुम्ब वालों में या अपने घर में और भी दुःख प्राप्त हो।

त्रिपुस्कर योग देखना।

**भद्रातिथौ रविजभूतनयार्कवारे द्वीशार्यमाजचरणादिति वन्हि विश्वे। **

त्रैपुस्करो भवतिमृत्यु विनाशवृद्धौत्रैगुण्यदोद्विगुण कृद्वसुतक्षाचान्द्रः॥

टीका— भद्रा तिथियों में से कोई सी तिथि हो और शनि या मङ्गल या रविवार इन वारों में से बार होय और विशाखा उत्तरा फाल्गुणी पूर्वा भाद्रपद ऐसे योगको त्रिपुष्कर कहते हैं। इसमें मृत्युहानि हो तो ३ होंय और वृद्धि जन्म भी तीनही होयऔर येही तिथि और येही वार और ध०, चि०, मू०ये नक्षत्र होयतो उसको द्विस्कर कहते हैं और इसमें हानि वृद्धि जन्म दो होते हैं।

नीव धरने में शेष नाग विचार।

सिंहे कन्यां तुलायां भुजगपतिमुख शम्भु कोणेग्निखाते, वायव्ये शेष वक्रे अलिधन मकरे ईश खातं वदन्ति। कुंभे मीनेचमेषे नैर्ऋति दिशि मुखं खात वायव्य कोणे उद्भे मिथुने कुलीरे अग्निदिशि मुखं राक्षसी कोणखातम्॥

टीका-सिंह, कन्या, तुला के सूर्य में शेष नाग का मुख ईशान दिशामें रहता है, अग्नि दिशा में खोदे और चिने वृश्चिक धन, मकर के सूर्य में शेष का मुख वायव्य में रहता है ईशानमें चिने कुम्भ, मीन, मेष के सूर्य में शेष का मुख नैर्ऋतु में होता हैवायव्य में चिने, वृष, मिथुन, कर्क के सूर्यमें शेष का मुख अग्नि दिशा में रहता इसलिए नैऋत से चिने।

शेष नाग फल देखना

**शिरः खनेत् मातृपित्रोश्चहंता खनेत् पृष्ठं भयरोगपीड़ा। **

पुच्छं खनेच्च त्रिषु गोत्रहानिः स्त्रीपुत्र लाभो धनंवामकुक्षौ।

टीका—यदि शेष नाग के शिर पर खुदवावे तो माता पिता की हानि होय और पीठ पर खुदवावे तो भय रोग पीड़ा होय और पूंछ पर खुदवावे तो तीन गोत्रकी हानि होवे और जो खाली जगह पर खुदवावे तो स्त्री, पुरुष, धन इत्यादिका लाभ होवे।

पृथ्वी का सोना देखना।

प्रद्योतनात् पंचनखांकसूर्यो नवेन्दुः षड़विंश मितानि भानि। सुप्ता मही नैव गृहं विधेयं तड़ागवामी खननं नशस्तम्।

टीका- सूर्य के नक्षत्र से ५ वें २० वें ९ । १२ । १९ । २६ । इन नक्षत्रों पर पृथ्वी सोती है सोती हुई तालाब, बावड़ी, कुंआ, हबेली इत्यादि के निमित्त खुदवावे नहीं।

तिथि निर्णय देखना।

या तिथिः समनुप्राप्य उदयं यादि भास्करः।

सा तिथिः सकला ज्ञेया दानध्ययनकर्मसु॥

टीका- जिस तिथि में सूर्य उदय होता है वह तिथि सारे दिन मानी जाती है दान के करनेमें और विद्या के पढ़ने में।

व्रतनिर्णय देखना।

शिवंवा शिवदुर्गां च दीपिकाचाहुतांशनीम्।
जन्माष्टमी चन्द्रषष्ठीं पूजयेत् प्रथमे दले॥१॥

टीका- शिवजी का व्रत और दुर्गा का व्रत दिवाली और होली जन्माष्टमी, चन्दन षष्ठी, सत्यनारायण आदि व्रत तिथि के पहिले भाग में करने चाहिये।

**एकादशी यदा नष्टा परतो द्वादशी भवेत्। **

**उपोष्या दशमी विद्वा मुनिरुद्दालकोब्रवीत्॥ **

टीका- यदि एकादशी की हानि हो तो १२ छोड़के दशमी वेधा एकादशी में व्रत करले।

**नवमी पलमेकन्तु दशभ्यश्च तिथिक्षयः। **

तदा एकादशी त्याज्या द्वादश्यां व्रतमाचरेत्॥२॥

टीका- नवमी १ पल हो दशमी का क्षय नाम बिल्कुल नहीं हो तो उस एकादसी को छोड़कर द्वादशीमें व्रत करना चाहिये।

हरिबासर देखना।

**आभाका सित पक्षे तु मैत्र श्रवण रेवती। **

संगमे नैव भोक्तव्यंद्वादशी द्वादशाहरेत्॥

टीका- जो एकादशी व्रत किया होवे और अगले दिन द्वादसी को अनुराधा नक्षत्र हो और महीना आषाढ़ का होवे और भाद्रपद में द्वादशी को श्रवण होवे और कार्तिक में द्वादशी को रेवती और चांदनी रात होय। जो इनमें भोजन करे तो बारह व के किये हुये एकादशी व्रत के फल को नष्ट कर देती है।

मैत्रस्य प्रथमे पादे श्रवणे च द्वितीयके।

रेवती अंतपादेषु भोजनं च विवर्जयेत्॥

टीका- अनुराधा प्रथम चरण में श्रवण के दूसरे में रेवती के चौथे चरण में भोजन नहीं करना।

सर्व प्रतिष्ठा मुहूर्त देखना।

**जलाशयारामसुरप्रतिष्ठा सौम्यायने जीवशशांक शुक्रे। **

दृश्ये मृदुक्षिप्रचर ध्रुवे स्यात्योक्षे सिते स्वर्क्ष तिथिक्षणेवा॥

टीका- कुवां आदि सर्व प्रतिष्ठा में उत्तरायण सूर्य हो और गुरु, चंद्र, शुक्र उदय हों और मृ० रे० चि० अनु० ह० अश्वि० पुष्य, अभि०, स्वात पुन०, श्र०, ध०, श०, रो० तीनों उत्तरा और शुक्लपक्ष और जिस देवताकी प्रतिष्ठा करावे उसीका नक्षत्रतिथि मुहूर्त में लेना इस विधी से सब देवताओं की प्रतिष्ठा श्रेष्ठ है।

**रिक्तारवर्जे दिवसेशु शस्तः शशांकपापैस्त्रिभवाङ्ग संस्थैः। **

व्यंत्याष्टगेः सत्खचरैर्मृगेंद्रेसूर्योघटे कौयुवतौ च विष्णुः॥

टीका- रिक्ता तिथि ४। ९। १४ और मङ्गलवारको त्याग कर देना और लग्न शुद्धि चन्द्रमा, सूर्य, भौम, शनी, राहु, केतु,ये ग्रह । ३ । ६ । ११ स्थान में होवे और शुभ ग्रह बुध गुरु शुक्र १२ । ८ । छोड़ कर २ । ४ । १ । ५ । ७ । ९ । १० । में होवे तो प्रतिष्ठा करनी। और सिंह लग्न में सूर्यं की। कुम्भ में ब्रह्मा की कन्या में विष्णु की स्थापना करनी चाहिए।

शिवो नृयुग्म द्वितनो च देव्यः क्षुद्राश्चरे सर्व इमे
स्थिरक्षे।पुष्ये ग्रहा विघ्नपयक्ष सर्पभूता- दयोत्ये श्रवणे जिनश्च॥

टीका- मिथुन लग्न में शिवजी की स्थापना और ३, ६, ९, १२ इन लग्नों में दुर्गा की और २, ५, ८, ११, इन लग्नों में क्षुद्रा देवी चौंसठ योगिनी की और पुष्प में नव ग्रहों की सूर्य की हस्तमें, गणेशजी, यक्ष, शेष और भूतादि देवताओं की रेवतीमें और श्रवणमें जिन देवताओं की स्थापना श्रेष्ठ है॥

बिटौड़ेका मुहूर्त देखना।

सूर्यक्षाद्रसभैरधस्थलगतैः पाकोरसेः संयुक्तः।

शीर्षेयुग्नमिते शवस्य दहनं मध्ये युगे सर्पभी॥

प्रागाशादिसुवेदभैश्च सुहृदः स्यात्संगमो रोगभीः।

क्वाथादेः करणं सुखचगदितं काष्टादिसंस्थापने॥

टीका- सूर्य के नक्षत्र से अगले ६ नक्षत्रों में बिटोड़ा रक्खे तो बहुत अच्छे पाक पकाये जाया करें और उन अगले दो नक्षत्रों में धरे तो उसके उपलों से मुर्दा फुके उनसे अगले ४ नक्षत्रों में सर्प का भय रहे, उनसे अगले ४ नक्षत्रों में मित्र भोजन पके उनसे अगले ८ में रोगी के लिये काढे पकें उनसे अगले ४ नक्षत्रों में शुभदायक होता है।

गोद लेने का मुहूर्त।

**हस्तादि पंचक भिषग्वसु पुष्य भेषु सूर्यक्षमाज गुरु भार्गव वासरेसु। **

रिक्ता विवर्जित तिथिष्वलिकुम्भ लग्ने सिंहे वृषे भवति दत्त परिग्रहोयम्॥

टीका- हस्त से पाँच ह०, चि० स्वा विशाखा अनुराधा अश्विनी धनिष्ठा पुष्य नक्षत्र सू० मं० गु० शु०, ये बार ये ४, ९, १४ छोड़ के बाकी तिथियों में वृश्चिक, कुम्भ, सिंह वृष, इन लग्नों में पुत्र गोद लेना शुभ है।

पशु व्याहने के वर्जित मास।

**माघ बुधे च महिषी श्रावणे पड़वा दिवा। **

सिंहे गांवः प्रसूयन्ते स्वामिनों मृत्युदायका॥

टीका- माघ के महीने में बुध के दिन भैंस, श्रावण में घोड़ी दिन में और सिंह के सूर्य में गौ व्याहे तो स्वामीको मृत्युदायक होता है तत्काल उसको दान करके शांति करे।

वधु प्रवेश मुहूर्त देखना।

**ध्रुवः क्षिप्र मृदुः श्रोत्र वसु मूलमघानिले। **

वधुः प्रवेशो सन्नेष्ठो रिक्ताराके बुधेपरे॥

टीका- उत्तरा, ३, रो, ह०, अश्विनी, पुष्य, अभि०, मृ०, रे०, चित्रा, ऽनु०, श्र०, ध०, मू०, मधा, स्वा० में ४, ९, १४ ये तिथि मङ्गल, रवि, बुधवार को छोड़कर नई वधू को घर में लेजाना चाहिये।

बाग लगाने कामुहूर्त देखना।

**लतागुल्मवृक्षारोपो हस्त पुष्याश्विनी ध्रुवैः। **

विशाखा मृदु मूला हि वारुणैश्च प्रशस्यते॥

गुरौ केन्द्रे विपापेखे विधौ वारि विधूयते।

शुभ युक्ते क्षिते वन्धौ सद्वारे वा शुभोदये॥

टीका- पेड़, बेल, गुच्छे इनके लगाने में हस्त, पुष्य, अश्विनी तीनों उत्तरा, रोहिणी, विषाखा, मृर्गाशर, रेवती, चित्रा, ऽनुराधा मूल, श्लेषा, सतभिषा ये नक्षत्र और वृष, कर्क कन्या, तुल, धन ये लग्न केन्द्र १-४-७-१० इन स्थानों में गुरु और लग्न में या १० वें चन्द्रमा २।५।१०।१३ ये तिथि चं० बु० शु० ये वार शुभ हैं केन्द्र में पाप ग्रह न हो और ४ स्थान शुभ ग्रहों से युक्त हों इनमें बाग लगावे जब पेड़ बोवे तव ये मन्त्र पढ़ोः-

**वसुधेति च शीतेति पुन्य देति धरेति च। **

नमस्ते शुभगे देवो द्रुमोयं वृद्धतामिति॥

मुख्य द्वार का मुहूर्त।

कर्के कुम्भे च सिंहे मकरे च दिवाकरः।

**पूर्वे वा पश्चिमे वापि द्वारं कुर्याच्चवेश्मनाम्॥ **

मेषे वृषे वृश्चिके च तुले चापि यदा रविः।

**गृहद्वारं तदा कुर्यादुत्तरंवापि दक्षिणम्॥ **

**धनुर्मिथुनकन्यायाँ मीने च यदि भानुमान्। **

**न कर्तव्यं तदा गेहं कृते दुःखमवाप्नुयात्॥ **

कर्क- कुम्भ सिंह मकरके सूर्यमें घरबनावे तो घर का दरवाजा पूर्व अथवा पश्चिम की ओर करना चाहिये॥ मेष, वृष, वृश्चिक और तुला के सूर्य में उत्तर अथवा दक्षिण को घर का द्वारशुभ है। धन, मिथुन, कन्या और मीन के सूर्य हों तो घरका बनाना शुभ और दुःखप्रद है।

साद पहरने का और पुंसवनका मुहूर्त पुनर्वसु पुष्य मू० रे० पूर्वा भा०, उत्तरा भा० पूर्वाषा० उत्तराषा० अ०मृ०ह० ये नक्षत्र गु० भौ० र० ये वार २
दुकान करने का मुहूर्त ऽनु० उ० तीनों रो० अश्व, पुष्य० पु०श० ह० श्र० ये नक्षत्र २
राजाके देखनेका मुहूर्त उत्तरा तीनों श्र० श०ध० मृ०पु० अनु० रो० रे० पुष्य अश्विनी ह० चि० शुभ तिथि शुभ वार हों
नौकरी करने का मुहूर्त ह० चि० अनु० रे० अश्विनी सृ० पुष्य ये नक्षत्र बु०गु०शु०ये वार शुभतिथि योनि, राशि, गण, वर्गमिलावे
नाव बनाने का मुहूर्त पूर्वा तीनों ऽश्ले, म, अ, पु, श, मृ, ये तक्षत्र शुभवार २
दांयचलाने का मुहूर्त पूर्वातीनोंउत्तरतीनों म० श्ले० ज्ये० आद्रा० ध०श्र०कृ०भ०भू०अनु० ये नक्षत्र शुभ तिथि शुभवार
बीज बोने का मुहूर्त ह०चि०स्वा० म० पुष्य उत्तरा तीनों रो० मृ० ध० रे० अ० मू० ऽनु० ये नक्षत्र शुभ तिथि शुभवार में
जच्चाको बाहर निकालने का मुहूर्त ज्ये० ऽनु० पु० पुष्य रो० श्ले • मृ० ह० रेउत्तराषाढ़ श्र० ध० ये नक्षत्र र० च० गु० शु० ये वार ५
युद्ध करने का मुहूर्त आद्रा० भ० पूर्वातीनों मू० ऽश्ले० म० ये नक्षत्र ३
पुल बांधने कामुहूर्त उत्तरा तीनों रो० स्वा भृ० ये नक्षत्र मं० र० गु० ये वार, शुभ लग्न २

॥ इति मुहूर्त प्रकरण समाप्त ॥

प्रश्न प्रकरण
( भाषा टीका )

चतुर्थ भाग

जो कोई आके पूछे कि मेरा प्रश्न है तो उससे पण्डित यों कहै कि तुम अपना हाथ अपने शरीर पर घरो जहां वो अपना हाथ धरे वहां का फल इस प्रकार कहै।

**शिरो मुखं कर्ण नेत्रंस्पृष्ट्वापृच्छति यो नरः। **

सुवर्णधनधान्यानां लाभस्तत्र न संशयः॥

स्कंधग्रीवाकंठहस्तस्पर्शे लाभोहि दुःखतः।

**कुक्षीनाभिमसालंभे भक्षपानादि सिध्यति। **

जंघालिंगकटीस्पर्शे कन्यालाभसमुद्भवः।

जानुगुल्फपदस्पर्शे महाक्लेशः प्रजायते॥

केशस्पर्शे भवेन्मृत्युः कार्यसिद्धिर्न जायते।

काष्टकं कमठस्पर्शे ग्रहपीड़ा भयं भवेत्॥

सुगन्धमद्यपानादिस्पर्शे सिद्धिः प्रजायते।

**शून्यालये श्मशाने च शुष्ककाष्ठक्षते तरौ॥ **

**गुल्फभस्माधमस्थाने प्रश्नक्लेशः प्रजायते। **

**देवस्थाननदीतीरे दिव्यस्थाने शुभं भवेत्॥ **

शुभं दृष्टि ऋतं सिद्धिर्विदिक्षु च न जायते॥

टीका- माथे मुख कान नेत्र इनपैधरे तो लाभ हो। कंधा गला हाथ कल्ले छुबे तो कष्टसे लाभ हो। कोख नाभीमें अच्छा भोजन पावे, जांघ लिंग कमर पै कन्या या पुत्र का लाभ हो। घोंटू कौनी परकलेशहो या मृत्युहो। फलफूलपररक्खेतोसिद्धिहो तृण काष्ट अग्नि इनमें कष्ट हो। सुगन्ध या मद्य पान में सिद्धि हो। सूने घर में श्मसान में भस्म पै बैठ के पूछे तो क्लेश हो देवता के मकान पै या नदी पै या गौशाला में या सन्मुख होके पूछे तो शुभदायक होता है।

कन्या होगी या पुत्र ये देखना।

**नामाक्षराणि त्रिगुणी कृतानि तुरङ्गदेशे तिथि मिश्रितानि। **

अष्टौ च भागो लभते च शेषं सर्म च कन्या विषमे कुमारः॥

टीका- गर्भणीके नामके अक्षर तिगुने करें जिसमें घोड़ा के अक्षर देश के अक्षर मिलावे वर्तमान तिथि मिलावे ८ आठ का भाग दे शेष अङ्क सम नाम २।४।६ इस प्रकार बचेतो कन्या विषमनाम १।३।५ इस प्रकार बचे तो पुत्र हो।

**तत्प्रश्नलग्ने रविजीवभोमास्तृतीय सप्ते नव पंचमे वा। **

गर्भे पुमान्वै ऋषिभिः प्रणीतःश्चान्यैर्ग्रहैःस्त्रा विबुधैः प्रणीता॥

टीका- जो कोई पूछे मेरे पुत्र होगा या कन्या उस वक्त लग्न देख के धरे, लग्न से तीसरे ७।९।५। जो इनमें सूर्य वृ०मं० ये ग्रह हो तो पुत्र हो इन स्थानमें और ग्रह हों तो पुत्री जानो।

**नखद्वयः गर्भिणि नामधेयम् तिथिप्रयुक्तम शर संयुत्त च। **

एकेन हीनं नव भागधेयम् समे च कन्या विषमे कुमारः॥

टीका- नख नाम बीसमें गर्भणी स्त्रीके नामके अक्षर उस दिनकी तिथिजोड़के, पांच और मिलावे एकघटाके नवका भागदे १।३।५।७ बचे तो पुत्र हो और २।४।६।७ वचे तो कन्याहो॥

मुट्ठी में प्रश्न देखना।

**मेषे रक्तं वृषे पीतं मिथुने नीलवर्णकम्। **

**कर्के च पाण्डुरोज्ञेय सिंहे धूम्रंप्रकीर्तितम्॥ **

**कन्यायाँ नील वर्णं स्यात् श्वेतवर्ण तथातुले **

**वृश्चिके ताम्रमिश्रं च चापे पीतं विनिर्दिशेत्। **

नक्रेकुम्भे कृष्णवर्णम्मीने पीतं वदेत्सुधीः॥

टीका- जो कोई कहे मेरी मुट्ठी में क्या है मेष लग्न हो तो लालरङ्गकी वस्तु कहै वृषमें पीला मिथुन में नीला कर्कमें पीला सिंह में धुवें के सारङ्ग कहै, कन्या में नीला तुल में सफेदवृश्चिक में लाल धन में पीला मकर में काला कुम्भ मेंभी काला मीन में पीला रङ्ग कहै।

कार्य प्रश्न देखना।

**दिशाप्रहरसंयुक्ता तारका वारमिश्रिता। **

**अष्टभिस्तु परेद्भागं शेषं प्रश्नस्य लक्षणम्॥ **

पञ्चके त्वरिता सिद्धिः षट् तुर्ये च दिनत्रयं।

त्रिसप्तके विलम्बश्चद्वौ चाष्टौ नहि सिद्धिदौ॥

टीका- जो कोई पूछे मेरा काम कब तक होगा पूछने वाले का जिस दिशामें मुंह हो वो दिशा पहर नक्षत्र और वार सबकोएक जगह करके ८ का भाग दे १ या ५ वचे तो जल्दी काम सिद्ध हो ६ ।४ बचे तो तीन दिन में हो ३ ।७ बचे तो देर में होगा २ या शून्य बचे तो होगा नहीं।

पंथा प्रश्न देखना।

तिथिप्रहरसंयुक्ता तारका वारमिश्रिता।

**सप्तभिस्तु हरेद्भागं शेषतु फलमादिशेत्॥ **

**एकेन गमने सिद्धिर्द्वाभ्यां मार्गश्च एव च। **

तृतीयेचार्धमार्गेवै चतुर्थे ग्राम आदिशेत्॥

पञ्चमे पुनरावृतिः षष्ठे क्लेशः प्रजायते।

**सप्तमे शून्यता वृत्तिरिति ज्ञेयं विचक्षणैः॥ **

टीका- जो कोई पूछे हमारा आदमी परदेश से कब आवेगा तो तिथि वार पहर नक्षत्र जोड़ के ७ का भाग दे १ बचे तो घर पै कहना २ बचेतो रास्तेमें ३ वचेतो अर्धमार्ग में फंस गया ४ बचे तो गांव के पास आगया है ऐसा कहै ५ बचे तो रास्ते में से फिर गया ६ बचे तो कष्ट हो गया शून्य बचे तो जानो मर गया॥

**धनसहजगतौ गुरुभार्गवौ कथयतोऽन्यगमनं प्रवासिपुंसां। **

तनुहिवुनगताविमौ च तद्वज्झटिति नृणां कुरुते गृहप्रैवशम्॥

टीका- पूछनेके वक्त जो लग्न हो उससे दूसरे स्थान गुरु और तीसरे स्थान शुक्र हो तो जल्दी आना कहे। पहले स्थान शुक्र और चौथे स्थान गुरु हो तो जानो आगया।

अथ जौ देखना।

पितृदोषो भवेन्मेषे क्षुधाहानिर्विवर्णता।

**वृषे गगनदेव्यास्तु ज्वरदुःस्वप्ननेत्ररुक॥ **

मिथुने च महामायादोषो वेलाज्वरोनिलाः।

**कर्के च शाकिनीदोषो हास्यरोदनमौनता॥ **

सिंहे जले प्रेतदोषो दिवा शीचे ज्वरोरुचिः।

**ग्रहदोषश्च कन्यायां क्रोधालस्यारुचिर्यथा॥ **

**क्षेत्रपालभवो दोषस्तुले संतानपीडनम्। **

वृश्चिके नागदोषश्च ज्वालादेहे कुबुद्धिता॥

चापे देहे भवेद्दोषो ज्वरःशोकोदरव्यथा॥

मकरेचण्डिकादोषो देहभङ्गो ज्वरोनिलः॥

**मलिनप्रेतदोषश्च कुम्भे देहस्य पीड़नम्। **

मीने चापेऽङ्गनदोषो ज्वरजंजालदर्शनम्॥

टीका- जब कोई जौ दिखाने आवे उन जौ को बाहर २ गिने। १ बचे तो मेष लग्न जानना। २बचे तो वृष ऐसे ही जो जौ बचे १२ से गिनती में वो ही लग्न जानना फिर उसका फल कहना। मेष में पित्रोंका दोष कहना। फिर गायत्री जपो। उसे भूख नहीं लगती। २ देवी का दोष हलका बुखार रहे। ३ महामाया का दोष। ४ शाकुनीदेवीकी पूजा करो। ५ जलकाप्रेत है उसका दोष जो इसने खाया है वो चीज दरिया के किनारे धर दो। ६ ग्रहों का दोष ग्रहोंका दान करो, ७संतान का दोष ब्राह्मण के लड़के को कपड़े पहराओ और क्षेत्रपाल का दोष चौमुखा तेलका दीवा बालके सिन्दूर, उड़द, स्याही, दही, उनमें धर उसके शिर परको उतार कर चौराहे पर रक्खो। ८ देवताका दोष। देही में आग सी लगी रहे। देवता का पूजन करो। ९ बचे तो अङ्ग रोग कहना। १० चण्डी देवीका दोष चंडीकी जात दोया कन्या जिमावो ११प्रेतका दोष कुछ प्रेतका उताराउतार करधरो या गायत्री जपवाओ १२ योगिनी देवी का दोष देवी या माता का उठावना घरो।

**व्यये धर्मे तृतीये च षष्ठे पापो यदा भवेत्। **

**हते जले कुजे दोषों तस्य दोषः कुलोद्भवः॥ **

शनौ जले कुजे शस्त्रे गरे सूर्यश्चवैस्वतः।

राहुश्चविविक्रतो नष्टः शांतिपूजा द्विजार्चना॥

टीका- १२ । ९ । ३ । ६ इन स्थानों में जो पाप ग्रह हों तो जल से डूब के मरे हुए या जहर देने से मरे हुए का दोष जानो औरजो शनि होतो जलमें डूबे हुएका दोषा मङ्गल होतो शस्त्र से मरे हुए का दोष। सूर्य हो तो कोठे से गिरे हुए का दोष। या और कोई कुगती से मरा हो उसका दोष, जो ऐसा दोष हो तो पीपल की पूजा या शिवजी की पूजा या ब्राह्मण जिमावे तो दोष दूर हो।

वस्तु खोई जाने का प्रश्न।

**अंधश्च चिपिटाक्षश्च काणाक्षोदिव्यलोचन। **

गणयेद्रोहिणीपूर्वं सप्तवार मनुक्रमात्॥

टीका- अन्धा, चिपटा, कांणा, सलोचना ये चार प्रकारके नक्षत्र हैं रोहिणी से ७ दफै, फिर उसका फल कहे।

रो० पुष्य उ. फा. वि० पू०षा० धनि० रे० ये नक्षत्र अन्धे हैं
मृ० श्ले० ह० अनु० उ०षा० श० अ० ये नक्षत्र चिपटे हैं
आ० मं० चि० ज्ये० अभि० पू०भा० भ० ये नक्षत्र कांणे हैं
पु० पू.फा. स्वा० मू० श्र० उ०भा० कृ० ये नक्षत्र सलोचन हैं

अंधे च लभते शीघ्रं मंदे चैव दिनत्रयम्।
काणाक्षे मासमेकंतु सुनेत्रै नैव दृश्यते॥

टीका-अन्धे लग्नं में जाय तो जल्दी मिले। चिपटामें तीन दिन में मिले। काँणे में एक महीने में। सलोचन में नहीं मिले।

**तिथिवारंच नक्षत्रं प्रहरेण समन्वितम्। **

दिक् संख्ययाहतेचैव सप्तांकैर्बिभजेत्पुनः॥

एकेन भूतले द्रव्यं द्वयं चेद्भाण्डसंस्थितम्।

**तृतीये जलमध्यस्थमंतरिक्षे चतुर्थके॥ **

**तुषस्थं पंचमे तुस्यात् षष्ठे गोमयमध्यगम्। **

सप्तमे भस्म मध्यस्थमित्येतत्प्रश्नलक्षणम्॥

टीका- जो कोई कहै मेरी चीज जाती रही है उस दिन की तिथि बार नक्षत्र पहर सबकोजोड़े १० गुणा करदे ७ का भाग दे १ बचे तो पृथ्वी में कहना २ बचे वरतन में ३ बचे तो जलमें ४ बचे तो छत में ५ बचे तो भूसे में ६ बचे तो गोबर में ७ बचे तो भस्म में कहना।

पशु खोये जाने का प्रश्न।

**द्युमणिभान्नवभेषुवनस्थि तस्तदनुषट्सु च कर्ण पथे स्थितः। **

अचलभेष गतोअचिरात्ग्रहम् द्वयगतेए गत व मृतं त्रिषु॥

टीका– सूर्य नक्षत्र से ९ वा नक्षत्र हो तो बन में गया। ६ में रास्ते में हैं। ७ में जल्दी घर आ जाय २ से नहीं मिले ३ में जानों मर गया।

वर्षा नक्षत्र संज्ञा देखना।

**दशार्द्राद्या स्त्रियस्तारा विशाखाद्या नपुंसकाः। **

तिसि स्त्रियश्च मूलाद्या पुरुषाश्च चतुर्दशः॥

स्त्रीपुंसयोर्महावृष्टिस्त्रिनपुंकयोः क्वचित्।

स्त्री स्त्री शीतलछाया योगे पुरुषयोनं च॥

टीका- आर्द्रा से लेकै दस नक्षत्र स्त्री है। विशाखा से ३ नक्षत्र नपुंसक हैं चौदह नक्षत्र पुरुष है। जो स्त्री नक्षत्र हो सूर्य पुरुष में आवे तो वर्षा हो। स्त्री नपुंसक में वर्षा थोड़ी हो। स्त्री २ नक्षत्रों में मेघ छाया रहै वर्षे नहीं। पुरुष२ नक्षत्रों में वर्षा नहीं हो।

दूसरा जोग वर्षा का।

उदयाष्तं गतः शुक्रो बुधश्च वृष्टिकारकः।

जलराशिस्थिते चन्द्रेपक्षान्ते संक्रमे तथा॥

टीका- शुक्र बुध के उदय अस्त में वर्षा होती है और चन्द्रमा जल राशि में होतो पक्षके अन्त तक या संक्रांति तक वर्षा हो।

बुधः शुक्रः समीपस्थः करोत्येकार्णवां महीम्।
तयोरन्तर्गतोभानुः समुद्रमपि शोषयेत्॥

टीका- जो बुध शुक्र एक राशि पर हो तो सारी पृथ्वी में जल वर्षे और जो इनके बीच में सूर्य आ पड़े तो समुद्र के भी जल को सोख जाय।

चलत्यंगारके वृष्टिः त्रिधा वृष्टिः शनैश्चरे।

वारिपूर्णां महीं कृत्वा पश्चात्संचरते गुरुः॥

टीका- और जो मङ्गल चले तो वर्षा हो। शनिश्चर के चलने में जहां तहाँ वर्षा हो इनके पीछे गुरु हो तो सारी पृथ्वी में जल वर्षे।

**भानोरग्रेमहीपुत्रो जलशोषः प्रजायते। **

भानोः पश्चात् धरासूनः वृष्टिर्भवति भूयसी॥

टीका- और जो सूर्य के आगे मङ्गल होय तो प्रजा के जल को सोख जाय और पीछे होय तो वर्षा ज्यादा हो।

ग्रहण का फल देखना।

**यदैकमासे ग्रहणं जायते शशिसूर्ययोः। **

शस्त्र कोपैः क्षयं याति तदा भयं परस्परम्॥

**ग्रस्तोदितौ च ग्रस्तास्तौ धान्यभूपालनाशकौ। **

सर्वग्रस्तौ चन्द्रसूर्यो दुर्भिक्षमरणप्रदो॥

टीका- जो एक महीने में सूर्य चन्द्र दोनों ग्रहण पड़े तो राजाओं में युद्ध हो शत्रु कोपे और नाश हो। जो सूर्य चन्द्रमा ग्रहण होते उदय हो वा अस्त हों तो अन्न का नाश और राजा का नाश हो सर्वग्रहण हो तो दुर्भिक्ष हो और मरण हो॥

ग्रहण आदि दोष देखना।

ग्रहकृत्वा सुवृष्टिश्च हानिश्च भयकारकः।

विद्युत्पातोऽग्निदाहोथ परीवेषश्च रोगकृत्॥

दिग्दाहेग्निभयं कुर्यान्निर्धातः नृपपीडनम्।

द्वन्द्वायुश्च डंवसश्चचौरभीतिप्रदायकौ॥

ग्रहयुद्धे राजयुद्ध केतू दृष्टे तथैव च।

ग्रहणाँते महावृष्टिः सर्वदोषविनाशिनी॥

टीका- जो बिना वायु आकाश में धूर वर्षे बिना मेघ विजली चमके सूर्य का लाल मण्डल होना और सूर्य छिपे पीछे लाल पीला आकाश दीखे, बिना बादलगरजे आकाश का गड़ गड़ानाहो तो चोर भय हो राजाओं में भय युद्ध हो बीमारी का भय हो और जो केतु उदय होय तो युद्ध हो। जो ग्रहण के पीछे वर्षा होयतो सारा दोष दूर होजाय।

॥ अथ पवन परीक्षा ॥

**आषाढ़े पूर्णिमायांच नैर्ऋृते यदिमारुतः॥ **

**अनावृष्टि र्धान्यनाशो जलं कूपे न दृश्यते॥ **

आषाढ़े पूर्णिमायां तु बायव्ये यदि मारुतः।

**धर्मसिद्धिस्तदा लोके धनेधान्यं गृहे गृहे॥ **

आषाढ़े पूर्णिमायां तु ईशान्ये वाति मारुतः।

सुखिनेहि तदा लोके गीतवाद्य परायणाः॥

वह्निकोणेवह्निभीतिः पश्चिमे च जलाद्भयम्।

अन्यत्रयदि वायुः स्यात् सुभिक्षं जायते तदा।

टीका- जो आषाढ़ की पूर्णिमा को सूर्य के अस्त समय नैऋृत की वायु चले तो वर्षा थोड़ी हों अन्न का नाश हो कुयेभी सूख जांय। वायव्य की वायु चले तो लोक में धर्मशीलता रहे धन धान्य की वृद्धि हो जो ईशान की चले तो लोक में सुख आनन्द रहे। अग्निकोणकी चले तो आगबहुत लगे। पश्चिम की चले तो जल का भयहो। और दिशा की चले तो सुभिक्ष हो। उत्तर की या पूर्व की या दक्खिनकी चले तो आनन्दहो।

पूर्णिमा फल देखना

सर्वमासे पूर्णिमायांभूमिकम्पोयदा भवेत्।

**उल्कातारा वज्रपातैर्ग्रस्तास्तो शशीसूर्य्यकौ॥ **

**धूम्रकेतु शक्रः चापः ग्रहणे बहुधा यदा। **

**तदासौ सर्ववस्तूनां जायते च महर्धता॥ **

टीका- पूर्णिमा को भूमि कांपे। उल्कापात दिन में तारा टूटे। बज्रपात बिजली गिरे चन्द्र सूर्य ग्रसे या केतु उदय हो या धनुष निकले तो सब वस्तु मंहगी हों।

ग्रह वक्री फलम्

भौमे वक्रेअनावृष्टिः बुधेवक्रे रसक्षयः।

गुरौ वक्रेसमर्धःस्या च्छुक्रेवेप्रजासुखम्॥

**शनैवक्रे महाघोर क्षयं याति महीपतिः। **

**यदा वक्रा पंचखेटाः राजराङ्विनाशदः॥ **

टीका- जो भौम यानी मङ्गल वक्री हो तो वर्षा नहीं होय बुध वक्री होय तो रस महंगे होंय। गुरु बक्री हो तो पृथ्वी पै अन्न मंदाहोय। शुक्रवक्री हो तो प्रजाकी सुख होय। शनिवक्री होतो महाघोर युद्ध होय। किसी राजा का क्षय होय। जो पांच ग्रह वक्री हों तो राजों के राजा की मृत्यु हो।

ज्येष्ठ अमावस्या फलम्

रविवारेण संयुक्ता यदा स्यानमघज्येष्ठयोः।

**अमावस्या तदा पृथ्वी रुन्ड्डामुन्डा च जायते। **

टीका- माघ, ज्येष्ठकी अमावस्या को जो रविवार पड़े तो शीश कट २ कर पृथ्वी में पड़े।

तेरह तिथि फलम्

**एकपक्षे यदा यान्ति तिथयश्च त्रयोदश। **

त्रयस्तत्र क्षयं यान्ति वाजिनो मनुजा गजाः॥

टीका- जो एक पक्ष में १३ तिथि हों तो मनुष्यों का नाश करे और घोड़ों का नाश करे और हाथियों की क्षय हो त्रयोदश तिथि का पक्ष तीनों योनी को निसिद्ध है।

अथ होली धूम्र फलम्

पूर्वे वायुर्होलिकायां प्रजाभूपालयोः सुखम्।

पलायनं च दुर्भिक्षं दक्षिणे जायते ध्रुवम्॥

**पश्चिमे तृणसंपत्तिरुत्तरे धान्य संभवः। **

**यदि खे च शिखावृद्धिः राज्ञोदुर्गस्य संक्षयः॥ **

टीका- जो होली को पूर्व की हवा चले तो राजा प्रजा को सुख हो, और दक्षिण पवन चले तो देश भङ्ग और दुर्भिक्ष करे। पछबा चले तो तृण सम्पति बढ़े, उत्तर पवन चलेतो धान्य वृद्धि हो जो होली का धुवां आकाश को सीधा जायते।राजा का गढ़ छूट जाय।

शनि राशि फल लिख्यते

शनि चक्रंनराकरं लिखेद्यत्र शनिर्भवेत्।

**तन्नक्षत्रं मुखे दत्वा यावन्नाम नरस्य च॥ **

तावद्विचारयेत्तत्र ज्ञेय तत्र शुभाशुभम्।

एकं मुखे च नक्षत्रं चत्वारि दक्षिणे करे॥

**त्रयं त्रयं पादयोश्च वामहस्ते चतुष्टयम्। **

**ललाटे द्वितयंनेत्रे हृदि पंच गुदे द्वयम्॥ **

**एकैकं दक्षिणे कुक्षौ नक्षत्राणि क्रमेण च। **

होनिर्मुखे दक्षहस्ते लाभो वामे च रोगता॥

हृदि श्रीर्मस्तके राज्यं पादे पर्यटनं फलम्॥

**नेत्रे सुखं गुदे मृत्युः कुक्षौ शोकं विचिंतयेत्। **

जपादिपूजनार्चाभिः कल्याणं जायते सदा॥

अन्यान्येवं विचार्याणि बाहनादि बहूनि च॥

टीका— अथ शनि चक्र का विचार कहते हैं। शनि चक्र आदमी की सूरत का लिखे। जिस नक्षत्र को शनि हो तिस से जन्म नक्षत्र तक गिने फिर शनि नक्षत्र से अङ्ग प्रति सब नक्षत्र स्थापित करे जिस अङ्ग में जन्म नक्षत्र पड़े उसका फल जानिये १ नक्षत्र मुख में धरें। चार दाहिने हाथ में, ३ दक्षिण पांवमें, ३ बांये पांव में, ४ वांये हाथ में, २ ललाट में, ३ नेत्र, ५ हृदय २ गुदा १ दाहिनी कोख में इस प्रकार नक्षत्र धरे। जो मुख में जन्म नक्षत्र पड़े तो हानि करे, वाये हाथमें रोग, हृदय लक्ष्मी ललाट राजपद, दक्षिण हाथ में लाभ, दाहने पांवमेंभ्रमावे, नेत्रमें सुख, गुदा में मृत्यु, कोख में शोक करेै, तिस निमित्त जपदान पूजा ब्राह्मण भोजनादि से कल्याण सुख होय और अनेक बाहनादि विचारके भी फल होते हैं सो अन्य ग्रन्थ विषय कहा है।

मेषे शनौ गुर्जरेषु प्रभासे चार्बुद वृषे।

मिथुने जायते पीड़ा स्थले मूलस्थलेषु च

कर्के कश्मीर के बाधा शक्रप्रस्थो मृगाधिपे।

अनैश्चरैव कन्यायां मालवाख्ये च संक्षयम्॥

**तुलावृश्चिक चापेषु यदि याति शनैश्चरः। **

न वर्षन्ति तदा मेघा पृथ्वी दुर्भिक्षपीड़िता॥

सुभिक्षं मकरे कुम्भे जायते बहुधा शनौ॥

**मीने च सर्व लोकानां दुर्भिक्षन्तु क्षयो भवेत्। **

टीका- मेष का शनि हो तो गुजरात देश में पीड़ा करै वृष का प्रभास क्षेत्रऔर अर्बुक देश में, मिथुन का मूलस्थली देश में कर्क का काशी देश में, सिंह का इन्द्रप्रस्थ देश में, कन्या का मालव देश में पीड़ा करे। तुल, वृश्चिक, धन का होय तो मेघ थोड़ा वर्षे, पृथ्वी दुर्भिक्ष से दुखी हो, कुम्भ, मकर का होय तो अन्न का सुकाल करै। मीन का होय तो सर्वत्र काल पड़े दुर्भिक्ष से पीड़ा होय।

द्वादश राशि गुरु फलम्

मेषे गुरौ सुभिक्षम् च सुवृष्टिश्च सुखी नरः।

वृषे गुरौ स्वल्प वृष्टि प्रजापीड़ा च विग्रहः॥

**अनावृष्टिः प्रजानाशोरोरवंमिथुने गुरौ। **

**कर्के गुरौ महावृष्टि र्देशभङ्गो महर्धता॥ **

सिंहे गुरौ सुभिक्षम् च सुवृष्टिश्चप्रजासुखम्।

**कन्यागुरौ रोग पीड़ा सुभिक्षम् शस्यजन्म च॥ **

**तुले गुरौ सस्यनाशो वहुक्षीरं प्रजायते॥ **

अलौ जीवे च दुर्भिक्षम् राजचौरोरगाद्भयम्।

चापे गुरौ शुभावृष्टिः शुभं शस्यमहर्धता॥

**दुर्भिक्षं मकरे जीवो राजयुद्धं पशुक्षयः॥ **

कुम्भे गुरौ च दुर्भिक्षयम् धातुमूलं महर्धता।

दुर्भिक्षम् दक्षिणे देशे झषे जीवे न चान्यगे॥

टीका- जब मेष राशि का बृहस्पति आवे तब सुभिक्ष हो। वर्षा अधिक हो, मनुष्य सुखी रहैं। जब वृष राशी का हो तो वर्षा थोड़ी हो, प्रजा में पीड़ा हो, विग्रह फैले। और मिथुन का हो, तब वर्षा अच्छी होय। बैर पढ़े प्रजा को पीड़ा हो और कर्क उच्च स्थान का होता वर्षा बहुतहो, और कोई देश भङ्ग होय अन्न महंगा हो। सिंह का हो तो सुभिक्ष करे, वर्षा अधिक हो प्रजा सुखी रहे। कन्या के गुरु होय तो रोग धान्योत्पत्ति और अन्न सस्ता हो। तुल के गुरु खेती का नाश करै, दूध बहुत होय, वृश्चिक के गुरु में राज चोर सर्प भय दुर्भिक्ष करे। धन के गुरु वर्षा खेती बहुत करे रस महंगा करे मकर के गुरु महादुर्भिक्ष, राजाओं में युद्ध, पशुओं का नाश करें। कुम्भ के गुरु होंय तो दुर्भिक्ष धातु महंगा करे। मीन के गुरु होंय तो दक्षिण देश में दुर्भिक्ष करें अन्य देश में नहीं।

दीप मालिका फलम्

भानुभोमार्किवारेषु कार्तिकेन्दुक्षयो भवेत्।

आयुष्मान् स्वातिसयुक्तो नृपनाशः पशुक्षयः॥

टीका- जो कार्तिक मास दिवाली रवि भोम शनिवार की हो और स्वाति नक्षत्र आयुष्यान् योग हो तो राजाओं में युद्ध और पशुओं का नाश हो।

कितना दिन चढ़ा या रहा देखना

छाया पांदेरसोपेते रेकविंशशतं भजेत्।
लब्धांके घटिका ज्ञेयाःशेषांके च पलाः स्मृताः॥

टीका- अपने शरीर की छाया अपने पांऊ से नापना जितने पाऊं छाया हो उसमें ६ और मिलावे फिर १२१ में भाग दे जितनी वार भाग लगे सो घड़ी दिन जानो जो चढ़ता हो तो चढ़ता जानो और उतरता हो तो बाकी दिन रहा जानो और जो भाग देकर शेष बचे सोई पल जानिये।

रात्रि ज्ञानम् देखना

सृर्पभान्मध्यनक्षत्रं सप्त संख्याविशोधितम्।

**विंशतिघ्न नवहृतं गता रात्रिः स्फुटा भवेत्॥ **

टीका- जो आधीरात नक्षत्र हो उससे सूर्य नक्षत्र तक गिने फिर उसमें से सात घटावे जो बाकी रहै उनको २० से गुणा करे फिर नों का भाग दे जो अंक शेष बचे सो उतनी रात गई समझना चाहिये।

छपकीली का दोष दूर करना

पिनाकिनं नमस्कृत्य जपेन्मन्त्रषड्डक्षरम्।

**शतं सहस्रमथवा सर्वदोषनिवारणम्॥ **

शिवालये प्रदद्याच्च दीपं दोषप्रशान्तये।

टीका- जिस किसीके शरीर पर छपकली गिरजावे चढ़जावे तों शान्ति के लिये सारे वस्त्र धोवे और गङ्गाजल से स्नान करे घी नमक तेल का दान करे ॐ नमः शिवाय ये १०० या १००० मन्त्र जपै शिवालय में दीपक वाले तो शुभ है॥

छींक विचार देखना

पूर्वे छिक्का भवेन्मृत्यु राग्नेयां शोक एव च।

**हानिश्य दक्षिणे भागे नैर्ऋृते प्रियदर्शनम्॥ **

**पश्चिमे मिष्टभोज्य च वायव्ये धनलाभदा। **

उत्तरे कलहश्चैव ईशाने च शुभास्मृता॥

दिशाष्टकं विचार्यैवेएवं ज्ञेयं विचक्षणेः।

टीका-पूर्व कीछींक हो तो मृत्यु करे। अग्नि कोण की हो तो शोक हो दक्षिण की हो तो हानि कर नैऋतकीमें लाभ। पश्चिम की शुभ। वायव्य की शुभ। उत्तर की कलह। ईशानकी शुभ। इसी प्रकार आठों दिशा का फल देखना। सोते और उठते में छींक का होना शुभ नहीं है। यदि भोजन के अन्तमें छींक हो तो अगले दिन अच्छे पदार्थ का लाभ हो किसी कार्यके करने मात्र का विचार करते छींक हो तो वह काम नहीं बनता। उस काम के करने के लिये थोड़ी देर तक अवश्य ठहर जाना चाहिए। यात्रा के समय पीछे की या वाऐं की तरफ की छींक अच्छी होती है सामने और दाहिने तरफ की बुरी होती है।

चरु प्रमाण देखना

एकद्वित्रिचतुर्थभागं व्रीहिर्धृत यवास्तथा।

तिलाः क्रमेण योक्तव्या यथा श्रद्वा च शर्करा॥

टीका-चावल एक हिस्सा घृत दो हिस्से जौ तीन हिस्से तिल चार हिस्से जैसी श्रद्धा हो उतनी शुद्ध शर्करा नाम खांड़ मिलावे ये चरु का प्रमाण है।

चूला बनाने का विचार

रवि शनि मङ्गल को हरो और वार लो जोड़।

**रिक्ता भद्रा छोड़ के चूल्हे को दो ठौर। **

स्त्री को सङ्ग में रखने का विचार

**युद्धेषु पृष्ठतः कुर्यात् मार्गे अग्रतोनिः सरेत्। **

**ऋतुकालेतु वामांगी पुण्य काले तु दक्षिणे॥ **

टीका- युद्ध में स्त्री को पीठ पीछे रास्ते में अगाड़ी रक्खे। ऋतुकाल के समय बाँई तरफ रक्खे। पुन्यकाल के समय दाहिनी तरफ रखना चाहिये।

॥ नक्षत्र संज्ञा चक्रम ॥

ध्रुव स्थिर उत्तरा तीनों, रोहिणी, रविवार
चर चल स्वाति, पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, चंद्रवार
उग्र, क्रूर पूर्वा तीनों, भरणी, मघा, मङ्गलवार
मिश्र, साधारण विशाखा क्रतिका, बुधवार
क्षिप्र, लघु हस्त, अश्विनी, पुष्य, अभिजित, गुरुवार
मृदु, मैत्र मृगशिर,रेवती, चित्रा, ऽनुराधा भृगुवार
तिक्षण दारुण मूल, ज्येष्ठा, आर्द्रा, श्लेषा, शनिवार

नौतनी का श्लोक दोनों पक्ष का।

मयूराणां मेघः कुवलयकदम्बो मधुलिहाम्।

**सरोजनां भानुः कुसुम् समयः काननभुवाम्॥ **

**चकोराणां चन्द्रः प्रथयति यथा चेतसि सुखम्। **

तथास्माकं प्रीतिम् जनयति तवालोकनमिदम्॥

अन्वय- मेघः यथा मयूराणां चेतसि सुखं प्रथयति। कुवलय कदम्बो यथा मधुलिहाँचेतसि सुखं प्रथयति। भानुः यथा सरोजानां चेतसि सुखं प्रथयति। कुसमयमयः यथा कानन भुवाम् चेतसि सुखं प्रथयति। चन्द्रःयथा चकोराणां चेतसि सुखं प्रथयति। तथाइदम् तव आलोकनमस्माकं चेतसि प्रीतिजनयति।१।

टीका- जैसे वादल गर्जन से सौरों के चित्तमें महा सुख प्राप्त होता है और जैसे कमल का पुष्प भोंरौंके चित्त में सुख देता है और जैसे सूर्य नारायण तालाबों के फूलों को सुख देते हैं और जैसे बसन्त ऋतु वन में रहने वालों को सुख देती है और चन्द्रमा चकोर पक्षी के चित्त को सुख देता है ऐसे ही आपका दर्शन हमारे चित्त में प्रीति को पैदा करता है।

**नागोभाति मदेन कंजलरुहैः पूर्णेन्दुना शर्वरी। **

**शीलेन प्रमदा जवेन तुरगो नित्योत्सवै र्मन्दिरम्॥ **

वाणी व्याकरणेन हंसमिथुनेर्नद्यः सभाः पंडितेः

सत्पुत्रेण कुलं नृपेण वसुधा लोकत्रयं विष्णुना॥

टीका- आपके सम्बन्ध होने से हम बड़े शोभा को प्राप्त हुये। क्यों करके जैसे हाथी मद करके शोभा को प्राप्त होता है। जल कमल करके शोभा को प्राप्त होता है और पूर्ण चन्द्रमा से रात्रि शोभा को प्राप्त होती है शीलता से स्त्री शोभा को प्राप्त होती है और घोड़ा ज्यादा चलने से शोभा को प्राप्त होता है। और मंदिर में नित्य उत्सव होने से मंदिर की शोभा है। और वाणी की व्याकरण करके शोभा है। नदियां हंसोके जोड़े से शोभा प्राप्त होती हैं। और पंडितकी सभाकरके शोभा है। और कुलकी सतपुत्र होने से शोभा है। राजा की पृथ्वी करके शोभा है।और विष्णु भगवान से त्रिलोकी की शोभा है। एसे हीआपके सम्बन्ध होने से हमारी और आपको शोभा है।

गङ्गा पापं शशी तापं दैन्यं कल्पतरुस्तथा।

पापतापं तथा दैन्यं हंति सज्जनसङ्गमः॥

टीका- गङ्गाजीके स्नान करने से सब पाप दूर होजाते हैं। और चन्द्रमा के दर्शन करनेसे ताप नाम गर्मी दूर हो जाती है। ज कल्पवृक्ष है उसके दर्शन से दरिद्रता दूर हो जाती है पाप ताप दरिद्रता ये तीनों सज्जनों के मिलने से दूर हो जाते हैं सो आप ऐसे सज्जन हैं कि आपके मिलने से सब दुःख दूरहो गये।

दूरे हिं श्रुत्वा भवदीय कीर्तिम् कर्णौ च तृप्तौ नहिं चक्षुषी मे।

तयोर्विवादं परितकामः समागतोहंतवदर्शनाय॥१॥

अर्थ- आपकी कीर्ति को दूर ही से सुनकर कान तो तृप्त हो गये, नेत्र हमारे तृप्त नहीं हुये। उन दोनों में (कान नेत्रों में) विवाद होने लगा, उसको दूर करने के लिये आपके दर्शन के लिये हम यह यहाँ आये हैं सो जैसे सुने वैसे ही देखे, विवाद दूर हो गया।

पंचगव्य पंचामृत पंचपल्लव पंचरत्न
गौ मूत्र गोघृत बड़ का पत्ता सोना
गो गोबर गो दधि गूलर का पत्ता चांदी
गो दूध गो दूध पीपल का पत्ता तांबा
गो घृत गङ्गाजल आम का पत्ता मूंगा
गो दधि शहत पिलखन का पत्ता मोती

सं० १९९३ वैशाख शुदि ८ को समाप्तम्॥
पता— रामस्वरूप शर्मा नारायण पुस्तकालयः
हरिहर प्रेस, शहर मेरठ।
Printer-S. L. Gupta, Hindi Pustkalya Press, Mathuar.


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