+++(शृङ्गगिरिमाठाधिपतिना भारतीतीर्थेन विरचितम्।)+++
गरुड-गमन तव चरणकमलम् इह
मनसि लसतु मम नित्यम्
मनसि लसतु मम नित्यम् ।
मम तापम् अपाकुरु देव,
मम पापम् अपाकुरु देव ॥ ध्रु॥
जलज-नयन विधि–नमुचि-हरण-मुख-
विबुध-विनुत-पदपद्म,
मम तापम् … ॥
भुजग-शयन-भव मदन-जनक मम
जनन-मरण-भय-हारिन्
मम तापम् … ॥
शङ्ख-चक्र-धर दुष्ट-दैत्य-हर सर्वलोक-शरण
मम तापम् … ॥
अगणित-गुण-गण अशरण-शरणद
विदलित-सुर-रिपु-जाल
मम तापम् … ॥
भक्त-वर्यम् इह भूरि-करुणया
पाहि भारती-तीर्थम्
मम तापम् … ॥