तुलसी

पद्मपुराणमते जलन्धरपत्नी-वृन्दा-लावण्य-दर्शनेन विष्णुर् मुग्धः । तन्-मोहवारणार्थं देवा महादेव-शरणङ्-गताः । महादेवस् तान् उवाच “मायाम् आराधय” । ते मायां तुष्टुवुः। माया तान् उवाच - “अहं रजः-सत्त्व-तमो-गुणैर् गौरी-लक्ष्मी-स्वधा-रूपेण तिष्ठामि । ता युष्माकं कार्य्यं विधास्यन्ति।” तच् छ्रुत्वा देवास् तासां समीपम् आगत्य प्रणेमुः। तास् तेभ्यो बीजानि ददुर्, वाक्यानि जगदुश् च। “यत्र विष्णुस् तिष्ठति तत्रेमानि बीजानि वपत”। देवास् तथा चक्रुः। तद्-बीजेभ्यस् त्रयो वृक्षा अभवन् - धात्री मालती तुलसी च। धात्री स्वधांश-भूता। मालती लक्ष्म्यं-शभूता। तुलसी गौर्य्यंश-भूता ॥ - कल्पद्रुमः

जब ब्रह्मा ने उसे अपनी गोद में लिया तब उसने उनकी दाढ़ी इतने जोर से खींची कि उनकी आँखों से आँसू निकल पड़ा । इसी लिये ब्रह्मा ने इसका नाम ‘जलंधर’ रखा । बड़े होने पर इसने इंद्र की नगरी अमरावती पर अधिकार कर लिया । अंत में शिव जी इंद्र की ओर से उससे लड़ने गए । उसकी स्त्री वृंदा ने, जो कालनेमि की कन्या थी, अपने पति के प्राण बचाने के लिये ब्रह्मा की पूजा आरंभ की । जब देवताओं ने देखा कि जलंधर किसी प्रकार नहीं मर सकता तब अंत में जलंधर का रुप धारण करके विष्णु उसकी स्त्री वृंदा के पास गए । वृंदा ने उन्हें देखते ही पूजन छोड़ दिया । पूजन छोड़ते ही जलंधर के प्राण निकल गए । वृंदा क्रुद्ध होकर शाप देना चाहती थी पर ब्रह्मा के बहुत कुछ समझाने बुझाने पर वह सती हो गई । - हिन्दीशब्दसागरे।

During the early days, sarasvatī, lakṣmī and gaṅgā were wives of Mahāviṣṇu. One day there arose a family quarrel among them. (See under tulasī). As a result of this quarrel, the Devīs cursed each other. sarasvatī cursed lakṣmī and changed her to holy basil plant (tulasī) on the earth. When lakṣmī was about to depart as tulasī, Mahāviṣṇu blessed her thus. “Look! Lakṣmī! you will live in the world as a holy basil and when the curse has been completed you will come back to me. On that day, a river named gaṇḍakī, will start from your body which will be in the shape of the holy basil plant." - devī bhāgavata, skandha 9 via purANa encyclopedia.