dIn-e-hijAjI

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वह दीने-हिजाजी का बेबाक बेड़ा ।
निशां जिसका अक्साए-आलम में पहुँचा।।

मजाहम हुआ कोई खतरा न जिसका
न अम्मां में ठटका न कुल्जम में झिझका।।

किये पै सिपर जिसने सातों समंदर।
वह डूबा दहाने में गंगा के आकर।।