आख्यातेषु लिङ्गभेदो न भवति। अन्येषु क्रियापदेषु तु भवति।
भूतम्
- प्रथमपुरुषः
- निहारा+++(=निभाला)+++ साना+++(=सन्धान किया)+++
- पाई देइ
- स्त्रीः
- सँवारी
कर्मणि भावे च
- एकवचनम्
- बसाई+++(=सं० वशायते>प्रा० वसाइ)+++
- सराहिअ+++(=श्लाघ्यते)+++
- बहुवचनम्
- (+प्रेरणार्थः?) उपजाए बिलगाए+++(=विलग्न किये)+++
- सं० पूज्यन्ते>प्रा० पुज्जिअंति>अ० पुज्जिअहिं
- उघरहिं+++(=उद्घाट्यन्ते)+++
- किएहुँ
वर्तमानम्
- प्रथमपुरुषः
- एकवचनम्
- बरनइ सुनइ करइ चढ़इ आवइ होई बरषइ
- होती बढ़हि
- बहुवचनम्
- सं० गलन्ति>प्रा० गहति>अ० गहहिं, स्मरन्ति>प्रा० सुमरंती>अ० सुमरहिं
- सुधरहिं परिहरहीं गर+++(ल)+++हीं देहिं सुनिहहिं छमिहहिं+++(=क्षमन्ते)+++ पैहहिं+++(=पावेङ्गे)+++ करिहहिं होहिं उघरहिं+++(=उद्घटन्ते)+++ सूझहिं+++(=संज्ञायन्ते)+++
- होहिं
- एकवचनम्
- उत्तमपुरुषः
- सं० वन्दे>प्रा. वंदामि>अ० वंदउँ / बन्दउँ
- करउँ चहउँ
कर्मणि
- प्रथमपुरुषः
- एकवचनम्
- लिखिअ
- पोहिअहिं+++(=पोहे जाते हैं)+++
- एकवचनम्
- उत्तमपुरुषः
- कहावउँ
प्रेरणार्थे
सम्भावनायाम्
- प्रथमपुरुषः
- होउ
भविष्यम्
- हँसिबे
- होइहि लागिहि
विधिः
- प्रथमपुरुषः
- दुरावा+++(=ढाङ्के)+++, पावा
- करै
- हँसें छाँड़े
- मध्यमपुरुषे
- बहुवचनम्
- देहु करहु
- पेखिअ (सं० प्रेक्ष्यते-ताम् >प्रा० पेक्खीअइ-उ)
- बहुवचनम्
आशीः
- द्रवउ+++(=द्रवीभूयात्)+++