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01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

कलिमल ग्रसे धर्म सब लुप्त भए सदग्रन्थ।
दम्भिन्ह निज मति कल्पि करि प्रगट किए बहु पन्थ॥1॥

मूल

कलिमल ग्रसे धर्म सब लुप्त भए सदग्रन्थ।
दम्भिन्ह निज मति कल्पि करि प्रगट किए बहु पन्थ॥1॥

भावार्थ

कलियुग के पापों ने सब धर्मों को ग्रस लिया, सद्ग्रन्थ लुप्त हो गए, दम्भियों ने अपनी बुद्धि से कल्पना कर-करके बहुत से पन्थ प्रकट कर दिए॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भए लोग सब मोहबस लोभ ग्रसे सुभ कर्म।
सुनु हरिजान ग्यान निधि कहउँ कछुक कलिधर्म॥2॥

मूल

भए लोग सब मोहबस लोभ ग्रसे सुभ कर्म।
सुनु हरिजान ग्यान निधि कहउँ कछुक कलिधर्म॥2॥

भावार्थ

सभी लोग मोह के वश हो गए, शुभ कर्मों को लोभ ने हडप लिया। हे ज्ञान के भण्डार! हे श्री हरि के वाहन! सुनिए, अब मैं कलि के कुछ धर्म कहता हूँ॥2॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

बरन धर्म नहिं आश्रम चारी। श्रुति बिरोध रत सब नर नारी।
द्विज श्रुति बेचक भूप प्रजासन। कोउ नहिं मान निगम अनुसासन॥1॥

मूल

बरन धर्म नहिं आश्रम चारी। श्रुति बिरोध रत सब नर नारी।
द्विज श्रुति बेचक भूप प्रजासन। कोउ नहिं मान निगम अनुसासन॥1॥

भावार्थ

कलियुग में न वर्णधर्म रहता है, न चारों आश्रम रहते हैं। सब पुरुष-स्त्री वेद के विरोध में लगे रहते हैं। ब्राह्मण वेदों के बेचने वाले और राजा प्रजा को खा डालने वाले होते हैं। वेद की आज्ञा कोई नहीं मानता॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मारग सोइ जा कहुँ जोइ भावा। पण्डित सोइ जो गाल बजावा॥
मिथ्यारम्भ दम्भ रत जोई। ता कहुँ सन्त कहइ सब कोई॥2॥

मूल

मारग सोइ जा कहुँ जोइ भावा। पण्डित सोइ जो गाल बजावा॥
मिथ्यारम्भ दम्भ रत जोई। ता कहुँ सन्त कहइ सब कोई॥2॥

भावार्थ

जिसको जो अच्छा लग जाए, वही मार्ग है। जो डीङ्ग मारता है, वही पण्डित है। जो मिथ्या आरम्भ करता (आडम्बर रचता) है और जो दम्भ में रत है, उसी को सब कोई सन्त कहते हैं॥2॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सोइ सयान जो परधन हारी। जो कर दम्भ सो बड आचारी॥
जो कह झूँठ मसखरी जाना। कलिजुग सोइ गुनवन्त बखाना॥3॥

मूल

सोइ सयान जो परधन हारी। जो कर दम्भ सो बड आचारी॥
जो कह झूँठ मसखरी जाना। कलिजुग सोइ गुनवन्त बखाना॥3॥

भावार्थ

जो (जिस किसी प्रकार से) दूसरे का धन हरण कर ले, वही बुद्धिमान है। जो दम्भ करता है, वही बडा आचारी है। जो झूठ बोलता है और हँसी-दिल्लगी करना जानता है, कलियुग में वही गुणवान कहा जाता है॥3॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निराचार जो श्रुति पथ त्यागी। कलिजुग सोइ ग्यानी सो बिरागी॥
जाकें नख अरु जटा बिसाला। सोइ तापस प्रसिद्ध कलिकाला॥4॥

मूल

निराचार जो श्रुति पथ त्यागी। कलिजुग सोइ ग्यानी सो बिरागी॥
जाकें नख अरु जटा बिसाला। सोइ तापस प्रसिद्ध कलिकाला॥4॥

भावार्थ

जो आचारहीन है और वेदमार्ग को छोडे हुए है, कलियुग में वही ज्ञानी और वही वैराग्यवान्‌ है। जिसके बडे-बडे नख और लम्बी-लम्बी जटाएँ हैं, वही कलियुग में प्रसिद्ध तपस्वी है॥4॥