091

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

मरुत कोटि सत बिपुल बल रबि सत कोटि प्रकास।
ससि सत कोटि सुसीतल समन सकल भव त्रास॥1॥

मूल

मरुत कोटि सत बिपुल बल रबि सत कोटि प्रकास।
ससि सत कोटि सुसीतल समन सकल भव त्रास॥1॥

भावार्थ

अरबों पवन के समान उनमें महान्‌ बल है और अरबों सूर्यों के समान प्रकाश है। अरबों चन्द्रमाओं के समान वे शीतल और संसार के समस्त भयों का नाश करने वाले हैं॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

काल कोटि सत सरिस अति दुस्तर दुर्ग दुरन्त।
धूमकेतु सत कोटि सम दुराधरष भगवन्त॥2॥

मूल

काल कोटि सत सरिस अति दुस्तर दुर्ग दुरन्त।
धूमकेतु सत कोटि सम दुराधरष भगवन्त॥2॥

भावार्थ

अरबों कालों के समान वे अत्यन्त दुस्तर, दुर्गम और दुरन्त हैं। वे भगवान्‌ अरबों धूमकेतुओं (पुच्छल तारों) के समान अत्यन्त प्रबल हैं॥2॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रभु अगाध सत कोटि पताला। समन कोटि सत सरिस कराला॥
तीरथ अमित कोटि सम पावन। नाम अखिल अघ पूग नसावन॥1॥

मूल

प्रभु अगाध सत कोटि पताला। समन कोटि सत सरिस कराला॥
तीरथ अमित कोटि सम पावन। नाम अखिल अघ पूग नसावन॥1॥

भावार्थ

अरबों पातालों के समान प्रभु अथाह हैं। अरबों यमराजों के समान भयानक हैं। अनन्तकोटि तीर्थों के समान वे पवित्र करने वाले हैं। उनका नाम सम्पूर्ण पापसमूह का नाश करने वाला है॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हिमगिरि कोटि अचल रघुबीरा। सिन्धु कोटि सत सम गम्भीरा॥
कामधेनु सत कोटि समाना। सकल काम दायक भगवाना॥2॥

मूल

हिमगिरि कोटि अचल रघुबीरा। सिन्धु कोटि सत सम गम्भीरा॥
कामधेनु सत कोटि समाना। सकल काम दायक भगवाना॥2॥

भावार्थ

श्री रघुवीर करोडों हिमालयों के समान अचल (स्थिर) हैं और अरबों समुद्रों के समान गहरे हैं। भगवान्‌ अरबों कामधेनुओं के समान सब कामनाओं (इच्छित पदार्थों) के देने वाले हैं॥3॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सारद कोटि अमित चतुराई। बिधि सत कोटि सृष्टि निपुनाई॥
बिष्नु कोटि सम पालन कर्ता। रुद्र कोटि सत सम संहर्ता॥3॥

मूल

सारद कोटि अमित चतुराई। बिधि सत कोटि सृष्टि निपुनाई॥
बिष्नु कोटि सम पालन कर्ता। रुद्र कोटि सत सम संहर्ता॥3॥

भावार्थ

उनमें अनन्तकोटि सरस्वतियों के समान चतुरता है। अरबों ब्रह्माओं के समान सृष्टि रचना की निपुणता है। वे करोडों विष्णुओं के समान पालन करने वाले और अरबों रुद्रों के समान संहार करने वाले हैं॥3॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धनद कोटि सत सम धनवाना। माया कोटि प्रपञ्च निधाना॥
भार धरन सत कोटि अहीसा। निरवधि निरुपम प्रभु जगदीसा॥4॥

मूल

धनद कोटि सत सम धनवाना। माया कोटि प्रपञ्च निधाना॥
भार धरन सत कोटि अहीसा। निरवधि निरुपम प्रभु जगदीसा॥4॥

भावार्थ

वे अरबों कुबेरों के समान धनवान्‌ और करोडों मायाओं के समान सृष्टि के खजाने हैं। बोझ उठाने में वे अरबों शेषों के समान हैं। (अधिक क्या) जगदीश्वर प्रभु श्री रामजी (सभी बातों में) सीमारहित और उपमारहित हैं॥4॥

03 छन्द

विश्वास-प्रस्तुतिः

निरुपम न उपमा आन राम समान रामु निगम कहै।
जिमि कोटि सत खद्योत सम रबि कहत अति लघुता लहै॥
एहि भाँति निज निज मति बिलास मुनीस हरिहि बखानहीं।
प्रभु भाव गाहक अति कृपाल सप्रेम सुनि सुख मानहीं॥

मूल

निरुपम न उपमा आन राम समान रामु निगम कहै।
जिमि कोटि सत खद्योत सम रबि कहत अति लघुता लहै॥
एहि भाँति निज निज मति बिलास मुनीस हरिहि बखानहीं।
प्रभु भाव गाहक अति कृपाल सप्रेम सुनि सुख मानहीं॥

भावार्थ

श्री रामजी उपमारहित हैं, उनकी कोई दूसरी उपमा है ही नहीं। श्री राम के समान श्री राम ही हैं, ऐसा वेद कहते हैं। जैसे अरबों जुगनुओं के समान कहने से सूर्य। (प्रशंसा को नहीं वरन) अत्यन्त लघुता को ही प्राप्त होता है (सूर्य की निन्दा ही होती है)। इसी प्रकार अपनी-अपनी बुद्धि के विकास के अनुसार मुनीश्वर श्री हरि का वर्णन करते हैं, किन्तु प्रभु भक्तों के भावमात्र को ग्रहण करने वाले और अत्यन्त कपालु हैं। वे उस वर्णन को प्रेमसहित सुनकर सुख मानते हैं।