086

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुचि सुसील सेवक सुमति प्रिय कहु काहि न लाग।
श्रुति पुरान कह नीति असि सावधान सुनु काग॥86॥

मूल

सुचि सुसील सेवक सुमति प्रिय कहु काहि न लाग।
श्रुति पुरान कह नीति असि सावधान सुनु काग॥86॥

भावार्थ

पवित्र, सुशील और सुन्दर बुद्धि वाला सेवक, बता, किसको प्यारा नहीं लगता? वेद और पुराण ऐसी ही नीति कहते हैं। हे काक! सावधान होकर सुन॥86॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

एक पिता के बिपुल कुमारा। होहिं पृथक गुन सील अचारा॥
कोउ पण्डित कोउ तापस ग्याता। कोउ धनवन्त सूर कोउ दाता॥1॥

मूल

एक पिता के बिपुल कुमारा। होहिं पृथक गुन सील अचारा॥
कोउ पण्डित कोउ तापस ग्याता। कोउ धनवन्त सूर कोउ दाता॥1॥

भावार्थ

एक पिता के बहुत से पुत्र पृथक-पृथक्‌ गुण, स्वभाव और आचरण वाले होते हैं। कोई पण्डित होता है, कोई तपस्वी, कोई ज्ञानी, कोई धनी, कोई शूरवीर, कोई दानी,॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कोउ सर्बग्य धर्मरत कोई। सब पर पितहि प्रीति सम होई॥
कोउ पितु भगत बचन मन कर्मा। सपनेहुँ जान न दूसर धर्मा॥2॥

मूल

कोउ सर्बग्य धर्मरत कोई। सब पर पितहि प्रीति सम होई॥
कोउ पितु भगत बचन मन कर्मा। सपनेहुँ जान न दूसर धर्मा॥2॥

भावार्थ

कोई सर्वज्ञ और कोई धर्मपरायण होता है। पिता का प्रेम इन सभी पर समान होता है, परन्तु इनमें से यदि कोई मन, वचन और कर्म से पिता का ही भक्त होता है, स्वप्न में भी दूसरा धर्म नहीं जानता,॥2॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सो सुत प्रिय पितु प्रान समाना। जद्यपि सो सब भाँति अयाना॥
एहि बिधि जीव चराचर जेते। त्रिजग देव नर असुर समेते॥3॥

मूल

सो सुत प्रिय पितु प्रान समाना। जद्यपि सो सब भाँति अयाना॥
एहि बिधि जीव चराचर जेते। त्रिजग देव नर असुर समेते॥3॥

भावार्थ

वह पुत्र पिता को प्राणों के समान प्रिय होता है, यद्यपि (चाहे) वह सब प्रकार से अज्ञान (मूर्ख) ही हो। इस प्रकार तिर्यक्‌ (पशु-पक्षी), देव, मनुष्य और असुरों समेत जितने भी चेतन और जड जीव हैं,॥3॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अखिल बिस्व यह मोर उपाया। सब पर मोहि बराबरि दाया॥
तिन्ह महँ जो परिहरि मद माया। भजै मोहि मन बच अरु काया॥4॥

मूल

अखिल बिस्व यह मोर उपाया। सब पर मोहि बराबरि दाया॥
तिन्ह महँ जो परिहरि मद माया। भजै मोहि मन बच अरु काया॥4॥

भावार्थ

(उनसे भरा हुआ) यह सम्पूर्ण विश्व मेरा ही पैदा किया हुआ है। अतः सब पर मेरी बराबर दया है, परन्तु इनमें से जो मद और माया छोडकर मन, वचन और शरीर से मुझको भजता है,॥4॥