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01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

सेतु बाँधि कपि सेन जिमि उतरी सागर पार।
गयउ बसीठी बीरबर जेहि बिधि बालिकुमार॥1॥

मूल

सेतु बाँधि कपि सेन जिमि उतरी सागर पार।
गयउ बसीठी बीरबर जेहि बिधि बालिकुमार॥1॥

भावार्थ

पुल बाँधकर जिस प्रकार वानरों की सेना समुद्र के पार उतरी और जिस प्रकार वीर श्रेष्ठ बालिपुत्र अङ्गद दूत बनकर गए वह सब कहा॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निसिचर कीस लराई बरनिसि बिबिध प्रकार।
कुम्भकरन घननाद कर बल पौरुष सङ्घार॥2॥

मूल

निसिचर कीस लराई बरनिसि बिबिध प्रकार।
कुम्भकरन घननाद कर बल पौरुष सङ्घार॥2॥

भावार्थ

फिर राक्षसों और वानरों के युद्ध का अनेकों प्रकार से वर्णन किया। फिर कुम्भकर्ण और मेघनाद के बल, पुरुषार्थ और संहार की कथा कही॥2॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

निसिचर निकर मरन बिधि नाना। रघुपति रावन समर बखाना॥
रावन बध मन्दोदरि सोका। राज बिभीषन देव असोका॥1॥

मूल

निसिचर निकर मरन बिधि नाना। रघुपति रावन समर बखाना॥
रावन बध मन्दोदरि सोका। राज बिभीषन देव असोका॥1॥

भावार्थ

नाना प्रकार के राक्षस समूहों के मरण तथा श्री रघुनाथजी और रावण के अनेक प्रकार के युद्ध का वर्णन किया। रावण वध, मन्दोदरी का शोक, विभीषण का राज्याभिषेक और देवताओं का शोकरहित होना कहकर,॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सीता रघुपति मिलन बहोरी। सुरन्ह कीन्हि अस्तुति कर जोरी॥
पुनि पुष्पक चढि कपिन्ह समेता। अवध चले प्रभु कृपा निकेता॥2॥

मूल

सीता रघुपति मिलन बहोरी। सुरन्ह कीन्हि अस्तुति कर जोरी॥
पुनि पुष्पक चढि कपिन्ह समेता। अवध चले प्रभु कृपा निकेता॥2॥

भावार्थ

फिर सीताजी और श्री रघुनाथजी का मिलाप कहा। जिस प्रकार देवताओं ने हाथ जोडकर स्तुति की और फिर जैसे वानरों समेत पुष्पक विमान पर चढकर कृपाधाम प्रभु अवधपुरी को चले, वह कहा॥2॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जेहि बिधि राम नगर निज आए। बायस बिसद चरित सब गाए॥
कहेसि बहोरि राम अभिषेका। पुर बरनत नृपनीति अनेका॥3॥

मूल

जेहि बिधि राम नगर निज आए। बायस बिसद चरित सब गाए॥
कहेसि बहोरि राम अभिषेका। पुर बरनत नृपनीति अनेका॥3॥

भावार्थ

जिस प्रकार श्री रामचन्द्रजी अपने नगर (अयोध्या) में आए, वे सब उज्ज्वल चरित्र काकभुशुण्डिजी ने विस्तारपूर्वक वर्णन किए। फिर उन्होन्ने श्री रामजी का राज्याभिषेक कहा। (शिवजी कहते हैं-) अयोध्यापुरी का और अनेक प्रकार की राजनीति का वर्णन करते हुए-॥3॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कथा समस्त भुसुण्ड बखानी। जो मैं तुम्ह सन कही भवानी॥
सुनि सब राम कथा खगनाहा। कहत बचन मन परम उछाहा॥4॥

मूल

कथा समस्त भुसुण्ड बखानी। जो मैं तुम्ह सन कही भवानी॥
सुनि सब राम कथा खगनाहा। कहत बचन मन परम उछाहा॥4॥

भावार्थ

भुशुण्डिजी ने वह सब कथा कही जो हे भवानी! मैन्ने तुमसे कही। सारी रामकथा सुनकर गरुडजी मन में बहुत उत्साहित (आनन्दित) होकर वचन कहने लगे-॥4॥