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01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रभु नारद सम्बाद कहि मारुति मिलन प्रसङ्ग।
पुनि सुग्रीव मिताई बालि प्रान कर भङ्ग॥1॥

मूल

प्रभु नारद सम्बाद कहि मारुति मिलन प्रसङ्ग।
पुनि सुग्रीव मिताई बालि प्रान कर भङ्ग॥1॥

भावार्थ

प्रभु और नारदजी का संवाद और मारुति के मिलने का प्रसङ्ग कहकर फिर सुग्रीव से मित्रता और बालि के प्राणनाश का वर्णन किया॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कपिहि तिलक करि प्रभु कृत सैल प्रबरषन बास।
बरनन बर्षा सरद अरु राम रोष कपि त्रास॥2॥

मूल

कपिहि तिलक करि प्रभु कृत सैल प्रबरषन बास।
बरनन बर्षा सरद अरु राम रोष कपि त्रास॥2॥

भावार्थ

सुग्रीव का राजतिलक करके प्रभु ने प्रवर्षण पर्वत पर निवास किया, वह तथा वर्षा और शरद् का वर्णन, श्री रामजी का सुग्रीव पर रोष और सुग्रीव का भय आदि प्रसङ्ग कहे॥2॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

जेहि बिधि कपिपति कीस पठाए। सीता खोज सकल दिदि धाए॥
बिबर प्रबेस कीन्ह जेहि भाँति। कपिन्ह बहोरि मिला सम्पाती॥1॥

मूल

जेहि बिधि कपिपति कीस पठाए। सीता खोज सकल दिदि धाए॥
बिबर प्रबेस कीन्ह जेहि भाँति। कपिन्ह बहोरि मिला सम्पाती॥1॥

भावार्थ

जिस प्रकार वानरराज सुग्रीव ने वानरों को भेजा और वे सीताजी की खोज में जिस प्रकार सब दिशाओं में गए, जिस प्रकार उन्होन्ने बिल में प्रवेश किया और फिर जैसे वानरों को सम्पाती मिला, वह कथा कही॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुनि सब कथा समीरकुमारा। नाघत भयउ पयोधि अपारा॥
लङ्काँ कपि प्रबेस जिमि कीन्हा। पुनि सीतहि धीरजु जिमि दीन्हा॥2॥

मूल

सुनि सब कथा समीरकुमारा। नाघत भयउ पयोधि अपारा॥
लङ्काँ कपि प्रबेस जिमि कीन्हा। पुनि सीतहि धीरजु जिमि दीन्हा॥2॥

भावार्थ

सम्पाती से सब कथा सुनकर पवनपुत्र हनुमान्‌जी जिस तरह अपार समुद्र को लाँघ गए, फिर हनुमान्‌जी ने जैसे लङ्का में प्रवेश किया और फिर जैसे सीताजी को धीरज दिया, सो सब कहा॥2॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बन उजारि रावनहि प्रबोधी। पुर दहि नाघेउ बहुरि पयोधी॥
आए कपि सब जहँ रघुराई। बैदेही की कुसल सुनाई॥3॥

मूल

बन उजारि रावनहि प्रबोधी। पुर दहि नाघेउ बहुरि पयोधी॥
आए कपि सब जहँ रघुराई। बैदेही की कुसल सुनाई॥3॥

भावार्थ

अशोक वन को उजाडकर, रावण को समझाकर, लङ्कापुरी को जलाकर फिर जैसे उन्होन्ने समुद्र को लाँघा और जिस प्रकार सब वानर वहाँ आए जहाँ श्री रघुनाथजी थे और आकर श्री जानकीजी की कुशल सुनाई,॥3॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सेन समेति जथा रघुबीरा। उतरे जाइ बारिनिधि तीरा॥
मिला बिभीषन जेहि बिधि आई। सागर निग्रह कथा सुनाई॥4॥

मूल

सेन समेति जथा रघुबीरा। उतरे जाइ बारिनिधि तीरा॥
मिला बिभीषन जेहि बिधि आई। सागर निग्रह कथा सुनाई॥4॥

भावार्थ

फिर जिस प्रकार सेना सहित श्री रघुवीर जाकर समुद्र के तट पर उतरे और जिस प्रकार विभीषणजी आकर उनसे मिले, वह सब और समुद्र के बाँधने की कथा उसने सुनाई॥4॥