01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
ग्यानी भगत सिरोमनि त्रिभुवनपति कर जान।
ताहि मोह माया नर पावँर करहिं गुमान॥1॥
मूल
ग्यानी भगत सिरोमनि त्रिभुवनपति कर जान।
ताहि मोह माया नर पावँर करहिं गुमान॥1॥
भावार्थ
जो ज्ञानियों में और भक्तों में शिरोमणि हैं एवं त्रिभुवनपति भगवान् के वाहन हैं, उन गरुड को भी माया ने मोह लिया। फिर भी नीच मनुष्य मूर्खतावश घमण्ड किया करते हैं॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सिव बिरञ्चि कहुँ मोहइ को है बपुरा आन।
अस जियँ जानि भजहिं मुनि माया पति भगवान॥2॥
मूल
सिव बिरञ्चि कहुँ मोहइ को है बपुरा आन।
अस जियँ जानि भजहिं मुनि माया पति भगवान॥2॥
भावार्थ
यह माया जब शिवजी और ब्रह्माजी को भी मोह लेती है, तब दूसरा बेचारा क्या चीज है? जी में ऐसा जानकर ही मुनि लोग उस माया के स्वामी भगवान् का भजन करते हैं॥2॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
गयउ गरुड जहँ बसइ भुसुण्डा। मति अकुण्ठ हरि भगति अखण्डा॥
देखि सैल प्रसन्न मन भयउ। माया मोह सोच सब गयऊ॥1॥
मूल
गयउ गरुड जहँ बसइ भुसुण्डा। मति अकुण्ठ हरि भगति अखण्डा॥
देखि सैल प्रसन्न मन भयउ। माया मोह सोच सब गयऊ॥1॥
भावार्थ
गरुडजी वहाँ गए जहाँ निर्बाध बुद्धि और पूर्ण भक्ति वाले काकभुशुण्डि बसते थे। उस पर्वत को देखकर उनका मन प्रसन्न हो गया और (उसके दर्शन से ही) सब माया, मोह तथा सोच जाता रहा॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
करि तडाग मज्जन जलपाना। बट तर गयउ हृदयँ हरषाना॥
बृद्ध बृद्ध बिहङ्ग तहँ आए। सुनै राम के चरित सुहाए॥2॥
मूल
करि तडाग मज्जन जलपाना। बट तर गयउ हृदयँ हरषाना॥
बृद्ध बृद्ध बिहङ्ग तहँ आए। सुनै राम के चरित सुहाए॥2॥
भावार्थ
तालाब में स्नान और जलपान करके वे प्रसन्नचित्त से वटवृक्ष के नीचे गए। वहाँ श्री रामजी के सुन्दर चरित्र सुनने के लिए बूढे-बूढे पक्षी आए हुए थे॥2॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कथा अरम्भ करै सोइ चाहा। तेही समय गयउ खगनाहा॥
आवत देखि सकल खगराजा। हरषेउ बायस सहित समाजा॥3॥
मूल
कथा अरम्भ करै सोइ चाहा। तेही समय गयउ खगनाहा॥
आवत देखि सकल खगराजा। हरषेउ बायस सहित समाजा॥3॥
भावार्थ
भुशुण्डिजी कथा आरम्भ करना ही चाहते थे कि उसी समय पक्षीराज गरुडजी वहाँ जा पहुँचे। पक्षियों के राजा गरुडजी को आते देखकर काकभुशुण्डिजी सहित सारा पक्षी समाज हर्षित हुआ॥3॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अति आदर खगपति कर कीन्हा। स्वागत पूछि सुआसन दीन्हा॥
करि पूजा समेत अनुरागा। मधुर बचन तब बोलेउ कागा॥4॥
मूल
अति आदर खगपति कर कीन्हा। स्वागत पूछि सुआसन दीन्हा॥
करि पूजा समेत अनुरागा। मधुर बचन तब बोलेउ कागा॥4॥
भावार्थ
उन्होन्ने पक्षीराज गरुडजी का बहुत ही आदर-सत्कार किया और स्वागत (कुशल) पूछकर बैठने के लिए सुन्दर आसन दिया। फिर प्रेम सहित पूजा कर के कागभुशुण्डिजी मधुर वचन बोले-॥4॥