01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
ऐसिअ प्रस्न बिहङ्गपति कीन्हि काग सन जाइ।
सो सब सादर कहिहउँ सुनहु उमा मन लाई॥55॥
मूल
ऐसिअ प्रस्न बिहङ्गपति कीन्हि काग सन जाइ।
सो सब सादर कहिहउँ सुनहु उमा मन लाई॥55॥
भावार्थ
पक्षीराज गरुडजी ने भी जाकर काकभुशुण्डिजी से प्रायः ऐसे ही प्रश्न किए थे। हे उमा! मैं वह सब आदरसहित कहूँगा, तुम मन लगाकर सुनो॥55॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
मैं जिमि कथा सुनी भव मोचनि। सो प्रसङ्ग सुनु सुमुखि सुलोचनि॥
प्रथम दच्छ गृह तव अवतारा। सती नाम तब रहा तुम्हारा॥1॥
मूल
मैं जिमि कथा सुनी भव मोचनि। सो प्रसङ्ग सुनु सुमुखि सुलोचनि॥
प्रथम दच्छ गृह तव अवतारा। सती नाम तब रहा तुम्हारा॥1॥
भावार्थ
मैन्ने जिस प्रकार वह भव (जन्म-मृत्यु) से छुडाने वाली कथा सुनी, हे सुमुखी! हे सुलोचनी! वह प्रसङ्ग सुनो। पहले तुम्हारा अवतार दक्ष के घर हुआ था। तब तुम्हारा नाम सती था॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दच्छ जग्य तव भा अपमाना। तुम्ह अति क्रोध तजे तब प्राना॥
मम अनुचरन्ह कीन्ह मख भङ्गा। जानहु तुम्ह सो सकल प्रसङ्गा॥2॥
मूल
दच्छ जग्य तव भा अपमाना। तुम्ह अति क्रोध तजे तब प्राना॥
मम अनुचरन्ह कीन्ह मख भङ्गा। जानहु तुम्ह सो सकल प्रसङ्गा॥2॥
भावार्थ
दक्ष के यज्ञ में तुम्हारा अपमान हुआ। तब तुमने अत्यन्त क्रोध करके प्राण त्याग दिए थे और फिर मेरे सेवकों ने यज्ञ विध्वंस कर दिया था। वह सारा प्रसङ्ग तुम जानती ही हो॥2॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तब अति सोच भयउ मन मोरें। दुखी भयउँ बियोग प्रिय तोरें॥
सुन्दर बन गिरि सरित तडागा। कौतुक देखत फिरउँ बेरागा॥3॥
मूल
तब अति सोच भयउ मन मोरें। दुखी भयउँ बियोग प्रिय तोरें॥
सुन्दर बन गिरि सरित तडागा। कौतुक देखत फिरउँ बेरागा॥3॥
भावार्थ
तब मेरे मन में बडा सोच हुआ और हे प्रिये! मैं तुम्हारे वियोग से दुःखी हो गया। मैं विरक्त भाव से सुन्दर वन, पर्वत, नदी और तालाबों का कौतुक (दृश्य) देखता फिरता था॥3॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गिरि सुमेर उत्तर दिसि दूरी। नील सैल एक सुन्दर भूरी॥
तासु कनकमय सिखर सुहाए। चारि चारु मोरे मन भाए॥4॥
मूल
गिरि सुमेर उत्तर दिसि दूरी। नील सैल एक सुन्दर भूरी॥
तासु कनकमय सिखर सुहाए। चारि चारु मोरे मन भाए॥4॥
भावार्थ
सुमेरु पर्वत की उत्तर दिशा में और भी दूर, एक बहुत ही सुन्दर नील पर्वत है। उसके सुन्दर स्वर्णमय शिखर हैं, (उनमें से) चार सुन्दर शिखर मेरे मन को बहुत ही अच्छे लगे॥4॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तिन्ह पर एक एक बिटप बिसाला। बट पीपर पाकरी रसाला॥
सैलोपरि सर सुन्दर सोहा। मनि सोपान देखि मन मोहा॥5॥
मूल
तिन्ह पर एक एक बिटप बिसाला। बट पीपर पाकरी रसाला॥
सैलोपरि सर सुन्दर सोहा। मनि सोपान देखि मन मोहा॥5॥
भावार्थ
उन शिखरों में एक-एक पर बरगद, पीपल, पाकर और आम का एक-एक विशाल वृक्ष है। पर्वत के ऊपर एक सुन्दर तालाब शोभित है, जिसकी मणियों की सीढियाँ देखकर मन मोहित हो जाता है॥5॥