051

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रेम सहित मुनि नारद बरनि राम गुन ग्राम।
सोभासिन्धु हृदयँ धरि गए जहाँ बिधि धाम॥51॥

मूल

प्रेम सहित मुनि नारद बरनि राम गुन ग्राम।
सोभासिन्धु हृदयँ धरि गए जहाँ बिधि धाम॥51॥

भावार्थ

श्री रामचन्द्रजी के गुणसमूहों का प्रेमपूवक वर्णन करके मुनि नारदजी शोभा के समुद्र प्रभु को हृदय में धरकर जहाँ ब्रह्मलोक है, वहाँ चले गए॥51॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

गिरिजा सुनहु बिसद यह कथा। मैं सब कही मोरि मति जथा॥
राम चरित सत कोटि अपारा। श्रुति सारदा न बरनै पारा॥1॥

मूल

गिरिजा सुनहु बिसद यह कथा। मैं सब कही मोरि मति जथा॥
राम चरित सत कोटि अपारा। श्रुति सारदा न बरनै पारा॥1॥

भावार्थ

(शिवजी कहते हैं-) हे गिरिजे! सुनो, मैन्ने यह उज्ज्वल कथा, जैसी मेरी बुद्धि थी, वैसी पूरी कह डाली। श्री रामजी के चरित्र सौ करोड (अथवा) अपार हैं। श्रुति और शारदा भी उनका वर्णन नहीं कर सकते॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

राम अनन्त अनन्त गुनानी। जन्म कर्म अनन्त नामानी॥
जल सीकर महि रज गनि जाहीं। रघुपति चरित न बरनि सिराहीं॥2॥

मूल

राम अनन्त अनन्त गुनानी। जन्म कर्म अनन्त नामानी॥
जल सीकर महि रज गनि जाहीं। रघुपति चरित न बरनि सिराहीं॥2॥

भावार्थ

भगवान्‌ श्री राम अनन्त हैं, उनके गुण अनन्त हैं, जन्म, कर्म और नाम भी अनन्त हैं। जल की बूँदें और पृथ्वी के रजकण चाहे गिने जा सकते हों, पर श्री रघुनाथजी के चरित्र वर्णन करने से नहीं चूकते॥2॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बिमल कथा हरि पद दायनी। भगति होइ सुनि अनपायनी॥
उमा कहिउँ सब कथा सुहाई। जो भुसुण्डि खगपतिहि सुनाई॥3॥

मूल

बिमल कथा हरि पद दायनी। भगति होइ सुनि अनपायनी॥
उमा कहिउँ सब कथा सुहाई। जो भुसुण्डि खगपतिहि सुनाई॥3॥

भावार्थ

यह पवित्र कथा भगवान्‌ के परम पद को देने वाली है। इसके सुनने से अविचल भक्ति प्राप्त होती है। हे उमा! मैन्ने वह सब सुन्दर कथा कही जो काकभुशुण्डिजी ने गरुडजी को सुनाई थी॥3॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कछुक राम गुन कहेउँ बखानी। अब का कहौं सो कहहु भवानी॥
सुनि सुभ कथा उमा हरषानी। बोली अति बिनीत मृदु बानी॥4॥

मूल

कछुक राम गुन कहेउँ बखानी। अब का कहौं सो कहहु भवानी॥
सुनि सुभ कथा उमा हरषानी। बोली अति बिनीत मृदु बानी॥4॥

भावार्थ

मैन्ने श्री रामजी के कुछ थोडे से गुण बखान कर कहे हैं। हे भवानी! सो कहो, अब और क्या कहूँ? श्री रामजी की मङ्गलमयी कथा सुनकर पार्वतीजी हर्षित हुईं और अत्यन्त विनम्र तथा कोमल वाणी बोलीं-॥4॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धन्य धन्य मैं धन्य पुरारी। सुनेउँ राम गुन भव भय हारी॥5॥

मूल

धन्य धन्य मैं धन्य पुरारी। सुनेउँ राम गुन भव भय हारी॥5॥

भावार्थ

हे त्रिपुरारि। मैं धन्य हूँ, धन्य-धन्य हूँ जो मैन्ने जन्म-मृत्यु के भय को हरण करने वाले श्री रामजी के गुण (चरित्र) सुने॥5॥