01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेहिं अवसर मुनि नारद आए करतल बीन।
गावन लगे राम कल कीरति सदा नबीन॥50॥
मूल
तेहिं अवसर मुनि नारद आए करतल बीन।
गावन लगे राम कल कीरति सदा नबीन॥50॥
भावार्थ
उसी अवसर पर नारदमुनि हाथ में वीणा लिए हुए आए। वे श्री रामजी की सुन्दर और नित्य नवीन रहने वाली कीर्ति गाने लगे॥50॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
मामवलोकय पङ्कज लोचन। कृपा बिलोकनि सोच बिमोचन॥
नील तामरस स्याम काम अरि। हृदय कञ्ज मकरन्द मधुप हरि॥1॥
मूल
मामवलोकय पङ्कज लोचन। कृपा बिलोकनि सोच बिमोचन॥
नील तामरस स्याम काम अरि। हृदय कञ्ज मकरन्द मधुप हरि॥1॥
भावार्थ
कृपापूर्वक देख लेने मात्र से शोक के छुडाने वाले हे कमलनयन! मेरी ओर देखिए (मुझ पर भी कृपादृष्टि कीजिए) हे हरि! आप नीलकमल के समान श्यामवर्ण और कामदेव के शत्रु महादेवजी के हृदय कमल के मकरन्द (प्रेम रस) के पान करने वाले भ्रमर हैं॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जातुधान बरूथ बल भञ्जन। मुनि सज्जन रञ्जन अघ गञ्जन॥
भूसुर ससि नव बृन्द बलाहक। असरन सरन दीन जन गाहक॥2॥
मूल
जातुधान बरूथ बल भञ्जन। मुनि सज्जन रञ्जन अघ गञ्जन॥
भूसुर ससि नव बृन्द बलाहक। असरन सरन दीन जन गाहक॥2॥
भावार्थ
आप राक्षसों की सेना के बल को तोडने वाले हैं। मुनियों और सन्तजनों को आनन्द देने वाले और पापों का नाश करने वाले हैं। ब्राह्मण रूपी खेती के लिए आप नए मेघसमूह हैं और शरणहीनों को शरण देने वाले तथा दीन जनों को अपने आश्रय में ग्रहण करने वाले हैं॥2॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भुज बल बिपुल भार महि खण्डित। खर दूषन बिराध बध पण्डित॥
रावनारि सुखरूप भूपबर। जय दसरथ कुल कुमुद सुधाकर॥3॥
मूल
भुज बल बिपुल भार महि खण्डित। खर दूषन बिराध बध पण्डित॥
रावनारि सुखरूप भूपबर। जय दसरथ कुल कुमुद सुधाकर॥3॥
भावार्थ
अपने बाहुबल से पृथ्वी के बडे भारी बोझ को नष्ट करने वाले, खर दूषण और विराध के वध करने में कुशल, रावण के शत्रु, आनन्दस्वरूप, राजाओं में श्रेष्ठ और दशरथ के कुल रूपी कुमुदिनी के चन्द्रमा श्री रामजी! आपकी जय हो॥3॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुजस पुरान बिदित निगमागम। गावत सुर मुनि सन्त समागम॥
कारुनीक ब्यलीक मद खण्डन। सब बिधि कुसल कोसला मण्डन॥4॥
मूल
सुजस पुरान बिदित निगमागम। गावत सुर मुनि सन्त समागम॥
कारुनीक ब्यलीक मद खण्डन। सब बिधि कुसल कोसला मण्डन॥4॥
भावार्थ
आपका सुन्दर यश पुराणों, वेदों में और तन्त्रादि शास्त्रों में प्रकट है! देवता, मुनि और सन्तों के समुदाय उसे गाते हैं। आप करुणा करने वाले और झूठे मद का नाश करने वाले, सब प्रकार से कुशल (निपुण) श्री अयोध्याजी के भूषण ही हैं॥4॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कलि मल मथन नाम ममताहन। तुलसिदास प्रभु पाहि प्रनत जन॥5॥
मूल
कलि मल मथन नाम ममताहन। तुलसिदास प्रभु पाहि प्रनत जन॥5॥
भावार्थ
आपका नाम कलियुग के पापों को मथ डालने वाला और ममता को मारने वाला है। हे तुलसीदास के प्रभु! शरणागत की रक्षा कीजिए॥5॥