01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
तब मैं हृदयँ बिचारा जोग जग्य ब्रत दान।
जा कुहँ करिअ सो पैहउँ धर्म न एहि सम आन॥48॥
मूल
तब मैं हृदयँ बिचारा जोग जग्य ब्रत दान।
जा कुहँ करिअ सो पैहउँ धर्म न एहि सम आन॥48॥
भावार्थ
तब मैन्ने हृदय में विचार किया कि जिसके लिए योग, यज्ञ, व्रत और दान किए जाते हैं उसे मैं इसी कर्म से पा जाऊँगा, तब तो इसके समान दूसरा कोई धर्म ही नहीं है॥48॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
जप तप नियम जोग निज धर्मा। श्रुति सम्भव नाना सुभ कर्मा॥
ग्यान दया दम तीरथ मज्जन। जहँ लगि धर्म कहत श्रुति सज्जन॥1॥
मूल
जप तप नियम जोग निज धर्मा। श्रुति सम्भव नाना सुभ कर्मा॥
ग्यान दया दम तीरथ मज्जन। जहँ लगि धर्म कहत श्रुति सज्जन॥1॥
भावार्थ
जप, तप, नियम, योग, अपने-अपने (वर्णाश्रम के) धर्म, श्रुतियों से उत्पन्न (वेदविहित) बहुत से शुभ कर्म, ज्ञान, दया, दम (इन्द्रियनिग्रह), तीर्थस्नान आदि जहाँ तक वेद और सन्तजनों ने धर्म कहे हैं (उनके करने का)-॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आगम निगम पुरान अनेका। पढे सुने कर फल प्रभु एका॥
तव पद पङ्कज प्रीति निरन्तर। सब साधन कर यह फल सुन्दर॥2॥
मूल
आगम निगम पुरान अनेका। पढे सुने कर फल प्रभु एका॥
तव पद पङ्कज प्रीति निरन्तर। सब साधन कर यह फल सुन्दर॥2॥
भावार्थ
(तथा) हे प्रभो! अनेक तन्त्र, वेद और पुराणों के पढने और सुनने का सर्वोत्तम फल एक ही है और सब साधनों का भी यही एक सुन्दर फल है कि आपके चरणकमलों में सदा-सर्वदा प्रेम हो॥2॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
छूटइ मल कि मलहि के धोएँ। घृत कि पाव कोइ बारि बिलोएँ॥
प्रेम भगति जल बिनु रघुराई। अभिअन्तर मल कबहुँ न जाई॥3॥
मूल
छूटइ मल कि मलहि के धोएँ। घृत कि पाव कोइ बारि बिलोएँ॥
प्रेम भगति जल बिनु रघुराई। अभिअन्तर मल कबहुँ न जाई॥3॥
भावार्थ
मैल से धोने से क्या मैल छूटता है? जल के मथने से क्या कोई घी पा सकता है? (उसी प्रकार) हे रघुनाथजी! प्रेमभक्ति रूपी (निर्मल) जल के बिना अन्तःकरण का मल कभी नहीं जाता॥3॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सोइ सर्बग्य तग्य सोइ पण्डित। सोइ गुन गृह बिग्यान अखण्डित॥
दच्छ सकल लच्छन जुत सोई। जाकें पद सरोज रति होई॥4॥
मूल
सोइ सर्बग्य तग्य सोइ पण्डित। सोइ गुन गृह बिग्यान अखण्डित॥
दच्छ सकल लच्छन जुत सोई। जाकें पद सरोज रति होई॥4॥
भावार्थ
वही सर्वज्ञ है, वही तत्त्वज्ञ और पण्डित है, वही गुणों का घर और अखण्ड विज्ञानवान् है, वही चतुर और सब सुलक्षणों से युक्त है, जिसका आपके चरण कमलों में प्रेम है॥4॥