032

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

देखि राम मुनि आवत हरषि दण्डवत कीन्ह।
स्वागत पूँछि पीत पट प्रभु बैठन कहँ दीन्ह॥32॥

मूल

देखि राम मुनि आवत हरषि दण्डवत कीन्ह।
स्वागत पूँछि पीत पट प्रभु बैठन कहँ दीन्ह॥32॥

भावार्थ

सनकादि मुनियों को आते देखकर श्री रामचन्द्रजी ने हर्षित होकर दण्डवत्‌ किया और स्वागत (कुशल) पूछकर प्रभु ने (उनके) बैठने के लिए अपना पीताम्बर बिछा दिया॥32॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

कीन्ह दण्डवत तीनिउँ भाई। सहित पवनसुत सुख अधिकाई॥
मुनि रघुपति छबि अतुल बिलोकी। भए मगन मन सके न रोकी॥1॥

मूल

कीन्ह दण्डवत तीनिउँ भाई। सहित पवनसुत सुख अधिकाई॥
मुनि रघुपति छबि अतुल बिलोकी। भए मगन मन सके न रोकी॥1॥

भावार्थ

फिर हनुमान्‌जी सहित तीनों भाइयों ने दण्डवत्‌ की, सबको बडा सुख हुआ। मुनि श्री रघुनाथजी की अतुलनीय छबि देखकर उसी में मग्न हो गए। वे मन को रोक न सके॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्यामल गात सरोरुह लोचन। सुन्दरता मन्दिर भव मोचन॥
एकटक रहे निमेष न लावहिं। प्रभु कर जोरें सीस नवावहिं॥2॥

मूल

स्यामल गात सरोरुह लोचन। सुन्दरता मन्दिर भव मोचन॥
एकटक रहे निमेष न लावहिं। प्रभु कर जोरें सीस नवावहिं॥2॥

भावार्थ

वे जन्म-मृत्यु (के चक्र) से छुडाने वाले, श्याम शरीर, कमलनयन, सुन्दरता के धाम श्री रामजी को टकटकी लगाए देखते ही रह गए, पलक नहीं मारते और प्रभु हाथ जोडे सिर नवा रहे हैं॥2॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तिन्ह कै दसा देखि रघुबीरा। स्रवत नयन जल पुलक सरीरा॥
कर गहि प्रभु मुनिबर बैठारे। परम मनोहर बचन उचारे॥3॥

मूल

तिन्ह कै दसा देखि रघुबीरा। स्रवत नयन जल पुलक सरीरा॥
कर गहि प्रभु मुनिबर बैठारे। परम मनोहर बचन उचारे॥3॥

भावार्थ

उनकी (प्रेम विह्लल) दशा देखकर (उन्हीं की भाँति) श्री रघुनाथजी के नेत्रों से भी (प्रेमाश्रुओं का) जल बहने लगा और शरीर पुलकित हो गया। दतनन्तर प्रभु ने हाथ पकडकर श्रेष्ठ मुनियों को बैठाया और परम मनोहर वचन कहे-॥3॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आजु धन्य मैं सुनहु मुनीसा। तुम्हरें दरस जाहिं अघ खीसा॥
बडे भाग पाइब सतसङ्गा। बिनहिं प्रयास होहिं भव भङ्गा॥4॥

मूल

आजु धन्य मैं सुनहु मुनीसा। तुम्हरें दरस जाहिं अघ खीसा॥
बडे भाग पाइब सतसङ्गा। बिनहिं प्रयास होहिं भव भङ्गा॥4॥

भावार्थ

हे मुनीश्वरो! सुनिए, आज मैं धन्य हूँ। आपके दर्शनों ही से (सारे) पाप नष्ट हो जाते हैं। बडे ही भाग्य से सत्सङ्ग की प्राप्ति होती है, जिससे बिन ही परिश्रम जन्म-मृत्यु का चक्र नष्ट हो जाता है॥4॥