030

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

एहि बिधि नगर नारि नर करहिं राम गुन गान।
सानुकूल सब पर रहहिं सन्तत कृपानिधान॥30॥

मूल

एहि बिधि नगर नारि नर करहिं राम गुन गान।
सानुकूल सब पर रहहिं सन्तत कृपानिधान॥30॥

भावार्थ

इस प्रकार नगर के स्त्री-पुरुष श्री रामजी का गुण-गान करते हैं और कृपानिधान श्री रामजी सदा सब पर अत्यन्त प्रसन्न रहते हैं॥30॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

जब ते राम प्रताप खगेसा। उदित भयउ अति प्रबल दिनेसा॥
पूरि प्रकास रहेउ तिहुँ लोका। बहुतेन्ह सुख बहुतन मन सोका॥1॥

मूल

जब ते राम प्रताप खगेसा। उदित भयउ अति प्रबल दिनेसा॥
पूरि प्रकास रहेउ तिहुँ लोका। बहुतेन्ह सुख बहुतन मन सोका॥1॥

भावार्थ

(काकभुशुण्डिजी कहते हैं-) हे पक्षीराज गरुडजी! जब से रामप्रताप रूपी अत्यन्त प्रचण्ड सूर्य उदित हुआ, तब से तीनों लोकों में पूर्ण प्रकाश भर गया है। इससे बहुतों को सुख और बहुतों के मन में शोक हुआ॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जिन्हहि सोक ते कहउँ बखानी। प्रथम अबिद्या निसा नसानी॥
अघ उलूक जहँ तहाँ लुकाने। काम क्रोध कैरव सकुचाने॥2॥

मूल

जिन्हहि सोक ते कहउँ बखानी। प्रथम अबिद्या निसा नसानी॥
अघ उलूक जहँ तहाँ लुकाने। काम क्रोध कैरव सकुचाने॥2॥

भावार्थ

जिन-जिन को शोक हुआ, उन्हें मैं बखानकर कहता हूँ (सर्वत्र प्रकाश छा जाने से) पहले तो अविद्या रूपी रात्रि नष्ट हो गई। पाप रूपी उल्लू जहाँ-तहाँ छिप गए और काम-क्रोध रूपी कुमुद मुँद गए॥2॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बिबिध कर्म गुन काल सुभाउ। ए चकोर सुख लहहिं न काऊ॥
मत्सर मान मोह मद चोरा। इन्ह कर हुनर न कवनिहुँ ओरा॥3॥

मूल

बिबिध कर्म गुन काल सुभाउ। ए चकोर सुख लहहिं न काऊ॥
मत्सर मान मोह मद चोरा। इन्ह कर हुनर न कवनिहुँ ओरा॥3॥

भावार्थ

भाँति-भाँति के (बन्धनकारक) कर्म, गुण, काल और स्वभाव- ये चकोर हैं, जो (रामप्रताप रूपी सूर्य के प्रकाश में) कभी सुख नहीं पाते। मत्सर (डाह), मान, मोह और मद रूपी जो चोर हैं, उनका हुनर (कला) भी किसी ओर नहीं चल पाता॥3॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धरम तडाग ग्यान बिग्याना। ए पङ्कज बिकसे बिधि नाना॥
सुख सन्तोष बिराग बिबेका। बिगत सोक ए कोक अनेका॥4॥

मूल

धरम तडाग ग्यान बिग्याना। ए पङ्कज बिकसे बिधि नाना॥
सुख सन्तोष बिराग बिबेका। बिगत सोक ए कोक अनेका॥4॥

भावार्थ

धर्म रूपी तालाब में ज्ञान, विज्ञान- ये अनेकों प्रकार के कमल खिल उठे। सुख, सन्तोष, वैराग्य और विवेक- ये अनेकों चकवे शोकरहित हो गए॥4॥