028

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

उत्तर दिसि सरजू बह निर्मल जल गम्भीर।
बाँधे घाट मनोहर स्वल्प पङ्क नहिं तीर॥28॥

मूल

उत्तर दिसि सरजू बह निर्मल जल गम्भीर।
बाँधे घाट मनोहर स्वल्प पङ्क नहिं तीर॥28॥

भावार्थ

नगर के उत्तर दिशा में सरयूजी बह रही हैं, जिनका जल निर्मल और गहरा है। मनोहर घाट बँधे हुए हैं, किनारे पर जरा भी कीचड नहीं है॥28॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

दूरि फराक रुचिर सो घाटा। जहँ जल पिअहिं बाजि गज ठाटा॥
पनिघट परम मनोहर नाना। तहाँ न पुरुष करहिं अस्नाना॥1॥

मूल

दूरि फराक रुचिर सो घाटा। जहँ जल पिअहिं बाजि गज ठाटा॥
पनिघट परम मनोहर नाना। तहाँ न पुरुष करहिं अस्नाना॥1॥

भावार्थ

अलग कुछ दूरी पर वह सुन्दर घाट है, जहाँ घोडों और हाथियों के ठट्ट के ठट्ट जल पिया करते हैं। पानी भरने के लिए बहुत से (जनाने) घाट हैं, जो बडे ही मनोहर हैं। वहाँ पुरुष स्नान नहीं करते॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

राजघाट सब बिधि सुन्दर बर। मज्जहिं तहाँ बरन चारिउ नर॥
तीर तीर देवन्ह के मन्दिर। चहुँ दिसि तिन्ह के उपबन सुन्दर॥2॥

मूल

राजघाट सब बिधि सुन्दर बर। मज्जहिं तहाँ बरन चारिउ नर॥
तीर तीर देवन्ह के मन्दिर। चहुँ दिसि तिन्ह के उपबन सुन्दर॥2॥

भावार्थ

राजघाट सब प्रकार से सुन्दर और श्रेष्ठ है, जहाँ चारों वर्णों के पुरुष स्नान करते हैं। सरयूजी के किनारे-किनारे देवताओं के मन्दिर हैं, जिनके चारों ओर सुन्दर उपवन (बगीचे) हैं॥2॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कहुँ कहुँ सरिता तीर उदासी। बसहिं ग्यान रत मुनि सन्न्यासी॥
तीर तीर तुलसिका सुहाई। बृन्द बृन्द बहु मुनिन्ह लगाई॥3॥

मूल

कहुँ कहुँ सरिता तीर उदासी। बसहिं ग्यान रत मुनि सन्न्यासी॥
तीर तीर तुलसिका सुहाई। बृन्द बृन्द बहु मुनिन्ह लगाई॥3॥

भावार्थ

नदी के किनारे कहीं-कहीं विरक्त और ज्ञानपरायण मुनि और सन्न्यासी निवास करते हैं। सरयूजी के किनारे-किनारे सुन्दर तुलसीजी के झुण्ड के झुण्ड बहुत से पेड मुनियों ने लगा रखे हैं॥3॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पुर सोभा कछु बरनि न जाई। बाहेर नगर परम रुचिराई॥
देखत पुरी अखिल अघ भागा। बन उपबन बापिका तडागा॥4॥

मूल

पुर सोभा कछु बरनि न जाई। बाहेर नगर परम रुचिराई॥
देखत पुरी अखिल अघ भागा। बन उपबन बापिका तडागा॥4॥

भावार्थ

नगर की शोभा तो कुछ कही नहीं जाती। नगर के बाहर भी परम सुन्दरता है। श्री अयोध्यापुरी के दर्शन करते ही सम्पूर्ण पाप भाग जाते हैं। (वहाँ) वन, उपवन, बावलिया और तालाब सुशोभित हैं॥4॥

03 छन्द

विश्वास-प्रस्तुतिः

बापीं तडाग अनूप कूप मनोहरायत सोहहीं।
सोपान सुन्दर नीर निर्मल देखि सुर मुनि मोहहीं॥
बहु रङ्ग कञ्ज अनेक खग कूजहिं मधुप गुञ्जारहीं।
आराम रम्य पिकादि खग रव जनु पथिक हङ्कारहीं॥

मूल

बापीं तडाग अनूप कूप मनोहरायत सोहहीं।
सोपान सुन्दर नीर निर्मल देखि सुर मुनि मोहहीं॥
बहु रङ्ग कञ्ज अनेक खग कूजहिं मधुप गुञ्जारहीं।
आराम रम्य पिकादि खग रव जनु पथिक हङ्कारहीं॥

भावार्थ

अनुपम बावलियाँ, तालाब और मनोहर तथा विशाल कुएँ शोभा दे रहे हैं, जिनकी सुन्दर (रत्नों की) सीढियाँ और निर्मल जल देखकर देवता और मुनि तक मोहित हो जाते हैं। (तालाबों में) अनेक रङ्गों के कमल खिल रहे हैं, अनेकों पक्षी कूज रहे हैं और भौंरे गुञ्जार कर रहे हैं। (परम) रमणीय बगीचे कोयल आदि पक्षियों की (सुन्दर बोली से) मानो राह चलने वालों को बुला रहे हैं।