01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
चारु चित्रसाला गृह गृह प्रति लिखे बनाइ।
राम चरित जे निरख मुनि ते मन लेहिं चोराइ॥27॥
मूल
चारु चित्रसाला गृह गृह प्रति लिखे बनाइ।
राम चरित जे निरख मुनि ते मन लेहिं चोराइ॥27॥
भावार्थ
घर-घर में सुन्दर चित्रशालाएँ हैं, जिनमें श्री रामचन्द्रजी के चरित्र बडी सुन्दरता के साथ सँवारकर अङ्कित किए हुए हैं। जिन्हें मुनि देखते हैं, तो वे उनके भी चित्त को चुरा लेते हैं॥27॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुमन बाटिका सबहिं लगाईं। बिबिध भाँति करि जतन बनाईं॥
लता ललित बहु जाति सुहाईं। फूलहिं सदा बसन्त कि नाईं॥1॥
मूल
सुमन बाटिका सबहिं लगाईं। बिबिध भाँति करि जतन बनाईं॥
लता ललित बहु जाति सुहाईं। फूलहिं सदा बसन्त कि नाईं॥1॥
भावार्थ
सभी लोगों ने भिन्न-भिन्न प्रकार की पुष्पों की वाटिकाएँ यत्न करके लगा रखी हैं, जिनमें बहुत जातियों की सुन्दर और ललित लताएँ सदा वसन्त की तरह फूलती रहती हैं॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गुञ्जत मधुकर मुखर मनोहर। मारुत त्रिबिधि सदा बह सुन्दर।
नाना खग बालकन्हि जिआए। बोलत मधुर उडात सुहाए॥2॥
मूल
गुञ्जत मधुकर मुखर मनोहर। मारुत त्रिबिधि सदा बह सुन्दर।
नाना खग बालकन्हि जिआए। बोलत मधुर उडात सुहाए॥2॥
भावार्थ
भौंरे मनोहर स्वर से गुञ्जार करते हैं। सदा तीनों प्रकार की सुन्दर वायु बहती रहती है। बालकों ने बहुत से पक्षी पाल रखे हैं, जो मधुर बोली बोलते हैं और उडने में सुन्दर लगते हैं॥2॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मोर हंस सारस पारावत। भवननि पर सोभा अति पावत॥
जहँ तहँ देखहिं निज परिछाहीं। बहु बिधि कूजहिं नृत्य कराहीं॥3॥
मूल
मोर हंस सारस पारावत। भवननि पर सोभा अति पावत॥
जहँ तहँ देखहिं निज परिछाहीं। बहु बिधि कूजहिं नृत्य कराहीं॥3॥
भावार्थ
मोर, हंस, सारस और कबूतर घरों के ऊपर बडी ही शोभा पाते हैं। वे पक्षी (मणियों की दीवारों में और छत में) जहाँ-तहाँ अपनी परछाईं देखकर (वहाँ दूसरे पक्षी समझकर) बहुत प्रकार से मधुर बोली बोलते और नृत्य करते हैं॥3॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुक सारिका पढावहिं बालक। कहहु राम रघुपति जनपालक॥
राज दुआर सकल बिधि चारू। बीथीं चौहट रुचिर बजारू॥4॥
मूल
सुक सारिका पढावहिं बालक। कहहु राम रघुपति जनपालक॥
राज दुआर सकल बिधि चारू। बीथीं चौहट रुचिर बजारू॥4॥
भावार्थ
बालक तोता-मैना को पढाते हैं कि कहो- ‘राम’ ‘रघुपति’ ‘जनपालक’। राजद्वार सब प्रकार से सुन्दर है। गलियाँ, चौराहे और बाजार सभी सुन्दर हैं॥4॥
03 छन्द
विश्वास-प्रस्तुतिः
बाजार रुचिर न बनइ बरनत बस्तु बिनु गथ पाइए।
जहँ भूप रमानिवास तहँ की सम्पदा किमि गाइए॥
बैठे बजाज सराफ बनिक अनेक मनहुँ कुबेर ते।
सब सुखी सब सच्चरि सुन्दर नारि नर सिसु जरठ जे॥
मूल
बाजार रुचिर न बनइ बरनत बस्तु बिनु गथ पाइए।
जहँ भूप रमानिवास तहँ की सम्पदा किमि गाइए॥
बैठे बजाज सराफ बनिक अनेक मनहुँ कुबेर ते।
सब सुखी सब सच्चरि सुन्दर नारि नर सिसु जरठ जे॥
भावार्थ
सुन्दर बाजार है, जो वर्णन करते नहीं बनता, वहाँ वस्तुएँ बिना ही मूल्य मिलती हैं। जहाँ स्वयं लक्ष्मीपति राजा हों, वहाँ की सम्पत्ति का वर्णन कैसे किया जाए? बजाज (कपडे का व्यापार करने वाले), सराफ (रुपए-पैसे का लेन-देन करने वाले) आदि वणिक् (व्यापारी) बैठे हुए ऐसे जान पडते हैं मानो अनेक कुबेर हों, स्त्री, पुरुष बच्चे और बूढे जो भी हैं, सभी सुखी, सदाचारी और सुन्दर हैं॥