01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
अवधपुरी बासिन्ह कर सुख सम्पदा समाज।
सहस सेष नहिं कहि सकहिं जहँ नृप राम बिराज॥26॥
मूल
अवधपुरी बासिन्ह कर सुख सम्पदा समाज।
सहस सेष नहिं कहि सकहिं जहँ नृप राम बिराज॥26॥
भावार्थ
जहाँ भगवान् श्री रामचन्द्रजी स्वयं राजा होकर विराजमान हैं, उस अवधपुरी के निवासियों के सुख-सम्पत्ति के समुदाय का वर्णन हजारों शेषजी भी नहीं कर सकते॥26॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
नारदादि सनकादि मुनीसा। दरसन लागि कोसलाधीसा॥
दिन प्रति सकल अजोध्या आवहिं। देखि नगरु बिरागु बिसरावहिं॥1॥
मूल
नारदादि सनकादि मुनीसा। दरसन लागि कोसलाधीसा॥
दिन प्रति सकल अजोध्या आवहिं। देखि नगरु बिरागु बिसरावहिं॥1॥
भावार्थ
नारद आदि और सनक आदि मुनीश्वर सब कोसलराज श्री रामजी के दर्शन के लिए प्रतिदिन अयोध्या आते हैं और उस (दिव्य) नगर को देखकर वैराग्य भुला देते हैं॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जातरूप मनि रचित अटारीं। नाना रङ्ग रुचिर गच ढारीं॥
पुर चहुँ पास कोट अति सुन्दर। रचे कँगूरा रङ्ग रङ्ग बर॥2॥
मूल
जातरूप मनि रचित अटारीं। नाना रङ्ग रुचिर गच ढारीं॥
पुर चहुँ पास कोट अति सुन्दर। रचे कँगूरा रङ्ग रङ्ग बर॥2॥
भावार्थ
(दिव्य) स्वर्ण और रत्नों से बनी हुई अटारियाँ हैं। उनमें (मणि-रत्नों की) अनेक रङ्गों की सुन्दर ढली हुई फर्शें हैं। नगर के चारों ओर अत्यन्त सुन्दर परकोटा बना है, जिस पर सुन्दर रङ्ग-बिरङ्गे कँगूरे बने हैं॥2॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नव ग्रह निकर अनीक बनाई। जनु घेरी अमरावति आई॥
लमहि बहु रङ्ग रचित गच काँचा। जो बिलोकि मुनिबर मन नाचा॥3॥
मूल
नव ग्रह निकर अनीक बनाई। जनु घेरी अमरावति आई॥
लमहि बहु रङ्ग रचित गच काँचा। जो बिलोकि मुनिबर मन नाचा॥3॥
भावार्थ
मानो नवग्रहों ने बडी भारी सेना बनाकर अमरावती को आकर घेर लिया हो। पृथ्वी (सडकों) पर अनेकों रङ्गों के (दिव्य) काँचों (रत्नों) की गच बनाई (ढाली) गई है, जिसे देखकर श्रेष्ठ मुनियों के भी मन नाच उठते हैं॥3॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धवल धाम ऊपर नभ चुम्बत। कलस मनहुँ रबि ससि दुति निन्दत॥
बहु मनि रचित झरोखा भ्राजहिं। गृह गृह प्रति मनि दीप बिराजहिं॥4॥
मूल
धवल धाम ऊपर नभ चुम्बत। कलस मनहुँ रबि ससि दुति निन्दत॥
बहु मनि रचित झरोखा भ्राजहिं। गृह गृह प्रति मनि दीप बिराजहिं॥4॥
भावार्थ
उज्ज्वल महल ऊपर आकाश को चूम (छू) रहे हैं। महलों पर के कलश (अपने दिव्य प्रकाश से) मानो सूर्य, चन्द्रमा के प्रकाश की भी निन्दा (तिरस्कार) करते हैं। (महलों में) बहुत सी मणियों से रचे हुए झरोखे सुशोभित हैं और घर-घर में मणियों के दीपक शोभा पा रहे हैं॥4॥
03 छन्द
विश्वास-प्रस्तुतिः
मनि दीप राजहिं भवन भ्राजहिं देहरीं बिद्रुम रची।
मनि खम्भ भीति बिरञ्चि बिरची कनक मनि मरकत खची॥
सुन्दर मनोहर मन्दिरायत अजिर रुचिर फटिक रचे।
प्रति द्वार द्वार कपाट पुरट बनाइ बहु बज्रन्हि खचे॥
मूल
मनि दीप राजहिं भवन भ्राजहिं देहरीं बिद्रुम रची।
मनि खम्भ भीति बिरञ्चि बिरची कनक मनि मरकत खची॥
सुन्दर मनोहर मन्दिरायत अजिर रुचिर फटिक रचे।
प्रति द्वार द्वार कपाट पुरट बनाइ बहु बज्रन्हि खचे॥
भावार्थ
घरों में मणियों के दीपक शोभा दे रहे हैं। मूँगों की बनी हुई देहलियाँ चमक रही हैं। मणियों (रत्नों) के खम्भे हैं। मरकतमणियों (पन्नों) से जडी हुई सोने की दीवारें ऐसी सुन्दर हैं मानो ब्रह्मा ने खास तौर से बनाई हों। महल सुन्दर, मनोहर और विशाल हैं। उनमें सुन्दर स्फटिक के आँगन बने हैं। प्रत्येक द्वार पर बहुत से खरादे हुए हीरों से जडे हुए सोने के किंवाड हैं॥