01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
ग्यान गिरा गोतीत अज माया मन गुन पार।
सोइ सच्चिदानन्द घन कर नर चरित उदार॥25॥
मूल
ग्यान गिरा गोतीत अज माया मन गुन पार।
सोइ सच्चिदानन्द घन कर नर चरित उदार॥25॥
भावार्थ
जो (बौद्धिक) ज्ञान, वाणी और इन्द्रियों से परे और अजन्मा है तथा माया, मन और गुणों के परे है, वही सच्चिदानन्दघन भगवान् श्रेष्ठ नरलीला करते हैं॥25॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रातकाल सरऊ करि मज्जन। बैठहिं सभाँ सङ्ग द्विज सज्जन॥
बेद पुरान बसिष्ट बखानहिं। सुनहिं राम जद्यपि सब जानहिं॥1॥
मूल
प्रातकाल सरऊ करि मज्जन। बैठहिं सभाँ सङ्ग द्विज सज्जन॥
बेद पुरान बसिष्ट बखानहिं। सुनहिं राम जद्यपि सब जानहिं॥1॥
भावार्थ
प्रातःकाल सरयूजी में स्नान करके ब्राह्मणों और सज्जनों के साथ सभा में बैठते हैं। वशिष्ठजी वेद और पुराणों की कथाएँ वर्णन करते हैं और श्री रामजी सुनते हैं, यद्यपि वे सब जानते हैं॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अनुजन्ह सञ्जुत भोजन करहीं। देखि सकल जननीं सुख भरहीं॥
भरत सत्रुहन दोनउ भाई। सहित पवनसुत उपबन जाई॥2॥
मूल
अनुजन्ह सञ्जुत भोजन करहीं। देखि सकल जननीं सुख भरहीं॥
भरत सत्रुहन दोनउ भाई। सहित पवनसुत उपबन जाई॥2॥
भावार्थ
वे भाइयों को साथ लेकर भोजन करते हैं। उन्हें देखकर सभी माताएँ आनन्द से भर जाती हैं। भरतजी और शत्रुघ्नजी दोनों भाई हनुमान्जी सहित उपवनों में जाकर,॥2॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
बूझहिं बैठि राम गुन गाहा। कह हनुमान सुमति अवगाहा॥
सुनत बिमल गुन अति सुख पावहिं। बहुरि बहुरि करि बिनय कहावहिं॥3॥
मूल
बूझहिं बैठि राम गुन गाहा। कह हनुमान सुमति अवगाहा॥
सुनत बिमल गुन अति सुख पावहिं। बहुरि बहुरि करि बिनय कहावहिं॥3॥
भावार्थ
वहाँ बैठकर श्री रामजी के गुणों की कथाएँ पूछते हैं और हनुमान्जी अपनी सुन्दर बुद्धि से उन गुणों में गोता लगाकर उनका वर्णन करते हैं। श्री रामचन्द्रजी के निर्मल गुणों को सुनकर दोनों भाई अत्यन्त सुख पाते हैं और विनय करके बार-बार कहलवाते हैं॥3॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सब कें गृह गृह होहिं पुराना। राम चरित पावन बिधि नाना॥
नर अरु नारि राम गुन गानहिं। करहिं दिवस निसि जात न जानहिं॥4॥
मूल
सब कें गृह गृह होहिं पुराना। राम चरित पावन बिधि नाना॥
नर अरु नारि राम गुन गानहिं। करहिं दिवस निसि जात न जानहिं॥4॥
भावार्थ
सबके यहाँ घर-घर में पुराणों और अनेक प्रकार के पवित्र रामचरित्रों की कथा होती है। पुरुष और स्त्री सभी श्री रामचन्द्रजी का गुणगान करते हैं और इस आनन्द में दिन-रात का बीतना भी नहीं जान पाते॥4॥