023

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

बिधु महि पूर मयूखन्हि रबि तप जेतनेहि काज।
मागें बारिद देहिं जल रामचन्द्र कें राज॥23॥

मूल

बिधु महि पूर मयूखन्हि रबि तप जेतनेहि काज।
मागें बारिद देहिं जल रामचन्द्र कें राज॥23॥

भावार्थ

श्री रामचन्द्रजी के राज्य में चन्द्रमा अपनी (अमृतमयी) किरणों से पृथ्वी को पूर्ण कर देते हैं। सूर्य उतना ही तपते हैं, जितने की आवश्यकता होती है और मेघ माँगने से (जब जहाँ जितना चाहिए उतना ही) जल देते हैं॥23॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

कोटिन्ह बाजिमेध प्रभु कीन्हे। दान अनेक द्विजन्ह कहँ दीन्हे॥
श्रुति पथ पालक धर्म धुरन्धर। गुनातीत अरु भोग पुरन्दर॥1॥

मूल

कोटिन्ह बाजिमेध प्रभु कीन्हे। दान अनेक द्विजन्ह कहँ दीन्हे॥
श्रुति पथ पालक धर्म धुरन्धर। गुनातीत अरु भोग पुरन्दर॥1॥

भावार्थ

प्रभु श्री रामजी ने करोडों अश्वमेध यज्ञ किए और ब्राह्मणों को अनेकों दान दिए। श्री रामचन्द्रजी वेदमार्ग के पालने वाले, धर्म की धुरी को धारण करने वाले, (प्रकृतिजन्य सत्व, रज और तम) तीनों गुणों से अतीत और भोगों (ऐश्वर्य) में इन्द्र के समान हैं॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पति अनुकूल सदा रह सीता। सोभा खानि सुसील बिनीता॥
जानति कृपासिन्धु प्रभुताई॥ सेवति चरन कमल मन लाई॥2॥

मूल

पति अनुकूल सदा रह सीता। सोभा खानि सुसील बिनीता॥
जानति कृपासिन्धु प्रभुताई॥ सेवति चरन कमल मन लाई॥2॥

भावार्थ

शोभा की खान, सुशील और विनम्र सीताजी सदा पति के अनुकूल रहती हैं। वे कृपासागर श्री रामजी की प्रभुता (महिमा) को जानती हैं और मन लगाकर उनके चरणकमलों की सेवा करती हैं॥2॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जद्यपि गृहँ सेवक सेवकिनी। बिपुल सदा सेवा बिधि गुनी॥
निज कर गृह परिचरजा करई। रामचन्द्र आयसु अनुसरई॥3॥

मूल

जद्यपि गृहँ सेवक सेवकिनी। बिपुल सदा सेवा बिधि गुनी॥
निज कर गृह परिचरजा करई। रामचन्द्र आयसु अनुसरई॥3॥

भावार्थ

यद्यपि घर में बहुत से (अपार) दास और दासियाँ हैं और वे सभी सेवा की विधि में कुशल हैं, तथापि (स्वामी की सेवा का महत्व जानने वाली) श्री सीताजी घर की सब सेवा अपने ही हाथों से करती हैं और श्री रामचन्द्रजी की आज्ञा का अनुसरण करती हैं॥3॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जेहि बिधि कृपासिन्धु सुख मानइ। सोइ कर श्री सेवा बिधि जानइ॥
कौसल्यादि सासु गृह माहीं। सेवइ सबन्हि मान मद नाहीं॥4॥

मूल

जेहि बिधि कृपासिन्धु सुख मानइ। सोइ कर श्री सेवा बिधि जानइ॥
कौसल्यादि सासु गृह माहीं। सेवइ सबन्हि मान मद नाहीं॥4॥

भावार्थ

कृपासागर श्री रामचन्द्रजी जिस प्रकार से सुख मानते हैं, श्री जी वही करती हैं, क्योङ्कि वे सेवा की विधि को जानने वाली हैं। घर में कौसल्या आदि सभी सासुओं की सीताजी सेवा करती हैं, उन्हें किसी बात का अभिमान और मद नहीं है॥4॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उमा रमा ब्रह्मादि बन्दिता। जगदम्बा सन्ततमनिन्दिता॥5॥

मूल

उमा रमा ब्रह्मादि बन्दिता। जगदम्बा सन्ततमनिन्दिता॥5॥

भावार्थ

(शिवजी कहते हैं-) हे उमा जगज्जननी रमा (सीताजी) ब्रह्मा आदि देवताओं से वन्दित और सदा अनिन्दित (सर्वगुण सम्पन्न) हैं॥5॥