01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
सासुन्ह सादर जानकिहि मज्जन तुरत कराइ।
दिब्य बसन बर भूषन अँग अँग सजे बनाइ॥1॥
मूल
सासुन्ह सादर जानकिहि मज्जन तुरत कराइ।
दिब्य बसन बर भूषन अँग अँग सजे बनाइ॥1॥
भावार्थ
(इधर) सासुओं ने जानकीजी को आदर के साथ तुरन्त ही स्नान कराके उनके अङ्ग-अङ्ग में दिव्य वस्त्र और श्रेष्ठ आभूषण भली-भाँति सजा दिए (पहना दिए)॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
राम बाम दिसि सोभति रमा रूप गुन खानि।
देखि मातु सब हरषीं जन्म सुफल निज जानि॥2॥
मूल
राम बाम दिसि सोभति रमा रूप गुन खानि।
देखि मातु सब हरषीं जन्म सुफल निज जानि॥2॥
भावार्थ
श्री राम के बायीं ओर रूप और गुणों की खान रमा (श्री जानकीजी) शोभित हो रही हैं। उन्हें देखकर सब माताएँ अपना जन्म (जीवन) सफल समझकर हर्षित हुईं॥2॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुनु खगेस तेहि अवसर ब्रह्मा सिव मुनि बृन्द।
चढि बिमान आए सब सुर देखन सुखकन्द॥3॥
मूल
सुनु खगेस तेहि अवसर ब्रह्मा सिव मुनि बृन्द।
चढि बिमान आए सब सुर देखन सुखकन्द॥3॥
भावार्थ
(काकभुशुण्डिजी कहते हैं-) हे पक्षीराज गरुडजी! सुनिए, उस समय ब्रह्माजी, शिवजी और मुनियों के समूह तथा विमानों पर चढकर सब देवता आनन्दकन्द भगवान् के दर्शन करने के लिए आए॥3॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रभु बिलोकि मुनि मन अनुरागा। तुरत दिब्य सिङ्घासन मागा॥
रबि सम तेज सो बरनि न जाई। बैठे राम द्विजन्ह सिरु नाई॥1॥
मूल
प्रभु बिलोकि मुनि मन अनुरागा। तुरत दिब्य सिङ्घासन मागा॥
रबि सम तेज सो बरनि न जाई। बैठे राम द्विजन्ह सिरु नाई॥1॥
भावार्थ
प्रभु को देखकर मुनि वशिष्ठजी के मन में प्रेम भर आया। उन्होन्ने तुरन्त ही दिव्य सिंहासन मँगवाया, जिसका तेज सूर्य के समान था। उसका सौन्दर्य वर्णन नहीं किया जा सकता। ब्राह्मणों को सिर नवाकर श्री रामचन्द्रजी उस पर विराज गए॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जनकसुता समेत रघुराई। पेखि प्रहरषे मुनि समुदाई॥
बेद मन्त्र तब द्विजन्ह उचारे। नभ सुर मुनि जय जयति पुकारे॥2॥
मूल
जनकसुता समेत रघुराई। पेखि प्रहरषे मुनि समुदाई॥
बेद मन्त्र तब द्विजन्ह उचारे। नभ सुर मुनि जय जयति पुकारे॥2॥
भावार्थ
श्री जानकीजी के सहित रघुनाथजी को देखकर मुनियों का समुदाय अत्यन्त ही हर्षित हुआ। तब ब्राह्मणों ने वेदमन्त्रों का उच्चारण किया। आकाश में देवता और मुनि ‘जय, हो, जय हो’ ऐसी पुकार करने लगे॥2॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रथम तिलक बसिष्ट मुनि कीन्हा। पुनि सब बिप्रन्ह आयसु दीन्हा॥
सुत बिलोकि हरषीं महतारी। बार बार आरती उतारी॥3॥
मूल
प्रथम तिलक बसिष्ट मुनि कीन्हा। पुनि सब बिप्रन्ह आयसु दीन्हा॥
सुत बिलोकि हरषीं महतारी। बार बार आरती उतारी॥3॥
भावार्थ
(सबसे) पहले मुनि वशिष्ठजी ने तिलक किया। फिर उन्होन्ने सब ब्राह्मणों को (तिलक करने की) आज्ञा दी। पुत्र को राजसिंहासन पर देखकर माताएँ हर्षित हुईं और उन्होन्ने बार-बार आरती उतारी॥3॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
बिप्रन्ह दान बिबिधि बिधि दीन्हे। जाचक सकल अजाचक कीन्हे॥
सिङ्घासन पर त्रिभुअन साईं। देखि सुरन्ह दुन्दुभीं बजाईं॥4॥
मूल
बिप्रन्ह दान बिबिधि बिधि दीन्हे। जाचक सकल अजाचक कीन्हे॥
सिङ्घासन पर त्रिभुअन साईं। देखि सुरन्ह दुन्दुभीं बजाईं॥4॥
भावार्थ
उन्होन्ने ब्राह्मणों को अनेकों प्रकार के दान दिए और सम्पूर्ण याचकों को अयाचक बना दिया (मालामाल कर दिया)। त्रिभुवन के स्वामी श्री रामचन्द्रजी को (अयोध्या के) सिंहासन पर (विराजित) देखकर देवताओं ने नगाडे बजाए॥4॥
03 छन्द
विश्वास-प्रस्तुतिः
नभ दुन्दुभीं बाजहिं बिपुल गन्धर्ब किन्नर गावहीं।
नाचहिं अपछरा बृन्द परमानन्द सुर मुनि पावहीं॥
भरतादि अनुज बिभीषनाङ्गद हनुमदादि समेत ते।
गहें छत्र चामर ब्यजन धनु असिचर्म सक्ति बिराजते॥1॥
मूल
नभ दुन्दुभीं बाजहिं बिपुल गन्धर्ब किन्नर गावहीं।
नाचहिं अपछरा बृन्द परमानन्द सुर मुनि पावहीं॥
भरतादि अनुज बिभीषनाङ्गद हनुमदादि समेत ते।
गहें छत्र चामर ब्यजन धनु असिचर्म सक्ति बिराजते॥1॥
भावार्थ
आकाश में बहुत से नगाडे बज रहे हैं। गन्धर्व और किन्नर गा रहे हैं। अप्सराओं के झुण्ड के झुण्ड नाच रहे हैं। देवता और मुनि परमानन्द प्राप्त कर रहे हैं। भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्नजी, विभीषण, अङ्गद, हनुमान् और सुग्रीव आदि सहित क्रमशः छत्र, चँवर, पङ्खा, धनुष, तलवार, ढाल और शक्ति लिए हुए सुशोभित हैं॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्री सहित दिनकर बंस भूषन काम बहु छबि सोहई।
नव अम्बुधर बर गात अम्बर पीत सुर मन मोहई॥
मुकुटाङ्गदादि बिचित्र भूषन अङ्ग अङ्गन्हि प्रति सजे।
अम्भोज नयन बिसाल उर भुज धन्य नर निरखन्ति जे॥2॥
मूल
श्री सहित दिनकर बंस भूषन काम बहु छबि सोहई।
नव अम्बुधर बर गात अम्बर पीत सुर मन मोहई॥
मुकुटाङ्गदादि बिचित्र भूषन अङ्ग अङ्गन्हि प्रति सजे।
अम्भोज नयन बिसाल उर भुज धन्य नर निरखन्ति जे॥2॥
भावार्थ
श्री सीताजी सहित सूर्यवंश के विभूषण श्री रामजी के शरीर में अनेकों कामदेवों की छबि शोभा दे रही है। नवीन जलयुक्त मेघों के समान सुन्दर श्याम शरीर पर पीताम्बर देवताओं के मन को भी मोहित कर रहा है। मुकुट, बाजूबन्द आदि विचित्र आभूषण अङ्ग-अङ्ग में सजे हुए हैं। कमल के समान नेत्र हैं, चौडी छाती है और लम्बी भुजाएँ हैं जो उनके दर्शन करते हैं, वे मनुष्य धन्य हैं॥2॥