008

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

कौसल्या के चरनन्हि पुनि तिन्ह नायउ माथ।
आसिष दीन्हे हरषि तुम्ह प्रिय मम जिमि रघुनाथ॥1॥

मूल

कौसल्या के चरनन्हि पुनि तिन्ह नायउ माथ।
आसिष दीन्हे हरषि तुम्ह प्रिय मम जिमि रघुनाथ॥1॥

भावार्थ

फिर उन लोगों ने कौसल्याजी के चरणों में मस्तक नवाए। कौसल्याजी ने हर्षित होकर आशीषें दीं (और कहा-) तुम मुझे रघुनाथ के समान प्यारे हो॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुमन बृष्टि नभ सङ्कुल भवन चले सुखकन्द।
चढी अटारिन्ह देखहिं नगर नारि नर बृन्द॥2॥

मूल

सुमन बृष्टि नभ सङ्कुल भवन चले सुखकन्द।
चढी अटारिन्ह देखहिं नगर नारि नर बृन्द॥2॥

भावार्थ

आनन्दकन्द श्री रामजी अपने महल को चले, आकाश फूलों की वृष्टि से छा गया। नगर के स्त्री-पुरुषों के समूह अटारियों पर चढकर उनके दर्शन कर रहे हैं॥2॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

कञ्चन कलस बिचित्र सँवारे। सबहिं धरे सजि निज निज द्वारे॥
बन्दनवार पताका केतू। सबन्हि बनाए मङ्गल हेतू॥1॥

मूल

कञ्चन कलस बिचित्र सँवारे। सबहिं धरे सजि निज निज द्वारे॥
बन्दनवार पताका केतू। सबन्हि बनाए मङ्गल हेतू॥1॥

भावार्थ

सोने के कलशों को विचित्र रीति से (मणि-रत्नादि से) अलङ्कृत कर और सजाकर सब लोगों ने अपने-अपने दरवाजों पर रख लिया। सब लोगों ने मङ्गल के लिए बन्दनवार, ध्वजा और पताकाएँ लगाईं॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बीथीं सकल सुगन्ध सिञ्चाई। गजमनि रचि बहु चौक पुराईं।
नाना भाँति सुमङ्गल साजे। हरषि नगर निसान बहु बाजे॥2॥

मूल

बीथीं सकल सुगन्ध सिञ्चाई। गजमनि रचि बहु चौक पुराईं।
नाना भाँति सुमङ्गल साजे। हरषि नगर निसान बहु बाजे॥2॥

भावार्थ

सारी गलियाँ सुगन्धित द्रवों से सिञ्चाई गईं। गजमुक्ताओं से रचकर बहुत सी चौकें पुराई गईं। अनेकों प्रकार के सुन्दर मङ्गल साज सजाए गए और हर्षपूर्वक नगर में बहुत से डङ्के बजने लगे॥2॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जहँ तहँ नारि निछावरि करहीं। देहिं असीस हरष उर भरहीं॥
कञ्चन थार आरतीं नाना। जुबतीं सजें करहिं सुभ गाना॥3॥

मूल

जहँ तहँ नारि निछावरि करहीं। देहिं असीस हरष उर भरहीं॥
कञ्चन थार आरतीं नाना। जुबतीं सजें करहिं सुभ गाना॥3॥

भावार्थ

स्त्रियाँ जहाँ-तहाँ निछावर कर रही हैं और हृदय में हर्षित होकर आशीर्वाद देती हैं। बहुत सी युवती (सौभाग्यवती) स्त्रियाँ सोने के थालों में अनेकों प्रकार की आरती सजाकर मङ्गलगान कर रही हैं॥3॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

करहिं आरती आरतिहर कें। रघुकुल कमल बिपिन दिनकर कें॥
पुर सोभा सम्पति कल्याना। निगम सेष सारदा बखाना॥4॥

मूल

करहिं आरती आरतिहर कें। रघुकुल कमल बिपिन दिनकर कें॥
पुर सोभा सम्पति कल्याना। निगम सेष सारदा बखाना॥4॥

भावार्थ

वे आर्तिहर (दुःखों को हरने वाले) और सूर्यकुल रूपी कमलवन को प्रफुल्लित करने वाले सूर्य श्री रामजी की आरती कर रही हैं। नगर की शोभा, सम्पत्ति और कल्याण का वेद, शेषजी और सरस्वतीजी वर्णन करते हैं-॥4॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तेउ यह चरित देखि ठगि रहहीं। उमा तासु गुन नर किमि कहहीं॥5॥

मूल

तेउ यह चरित देखि ठगि रहहीं। उमा तासु गुन नर किमि कहहीं॥5॥

भावार्थ

परन्तु वे भी यह चरित्र देखकर ठगे से रह जाते हैं (स्तम्भित हो रहते हैं)। (शिवजी कहते हैं-) हे उमा! तब भला मनुष्य उनके गुणों को कैसे कह सकते हैं॥5॥