007

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

लछिमन अरु सीता सहित प्रभुहि बिलोकति मातु।
परमानन्द मगन मन पुनि पुनि पुलकित गातु॥7॥

मूल

लछिमन अरु सीता सहित प्रभुहि बिलोकति मातु।
परमानन्द मगन मन पुनि पुनि पुलकित गातु॥7॥

भावार्थ

लक्ष्मणजी और सीताजी सहित प्रभु श्री रामचन्द्रजी को माता देख रही हैं। उनका मन परमानन्द में मग्न है और शरीर बार-बार पुलकित हो रहा है॥7॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

लङ्कापति कपीस नल नीला। जामवन्त अङ्गद सुभसीला॥
हनुमदादि सब बानर बीरा। धरे मनोहर मनुज सरीरा॥1॥

मूल

लङ्कापति कपीस नल नीला। जामवन्त अङ्गद सुभसीला॥
हनुमदादि सब बानर बीरा। धरे मनोहर मनुज सरीरा॥1॥

भावार्थ

लङ्कापति विभीषण, वानरराज सुग्रीव, नल, नील, जाम्बवान्‌ और अङ्गद तथा हनुमान्‌जी आदि सभी उत्तम स्वभाव वाले वीर वानरों ने मनुष्यों के मनोहर शरीर धारण कर लिए॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भरत सनेह सील ब्रत नेमा। सादर सब बरनहिं अति प्रेमा॥
देखि नगरबासिन्ह कै रीती। सकल सराहहिं प्रभु पद प्रीती॥2॥

मूल

भरत सनेह सील ब्रत नेमा। सादर सब बरनहिं अति प्रेमा॥
देखि नगरबासिन्ह कै रीती। सकल सराहहिं प्रभु पद प्रीती॥2॥

भावार्थ

वे सब भरतजी के प्रेम, सुन्दर, स्वभाव (त्याग के) व्रत और नियमों की अत्यन्त प्रेम से आदरपूर्वक बडाई कर रहे हैं और नगर वासियों की (प्रेम, शील और विनय से पूर्ण) रीति देखकर वे सब प्रभु के चरणों में उनके प्रेम की सराहना कर रहे हैं॥2॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पुनि रघुपति सब सखा बोलाए। मुनि पद लागहु सकल सिखाए॥
गुर बसिष्ट कुलपूज्य हमारे। इन्ह की कृपाँ दनुज रन मारे॥3॥

मूल

पुनि रघुपति सब सखा बोलाए। मुनि पद लागहु सकल सिखाए॥
गुर बसिष्ट कुलपूज्य हमारे। इन्ह की कृपाँ दनुज रन मारे॥3॥

भावार्थ

फिर श्री रघुनाथजी ने सब सखाओं को बुलाया और सबको सिखाया कि मुनि के चरणों में लगो। ये गुरु वशिष्ठजी हमारे कुलभर के पूज्य हैं। इन्हीं की कृपा से रण में राक्षस मारे गए हैं॥3॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ए सब सखा सुनहु मुनि मेरे। भए समर सागर कहँ बेरे॥
मम हित लागि जन्म इन्ह हारे। भरतहु ते मोहि अधिक पिआरे॥4॥

मूल

ए सब सखा सुनहु मुनि मेरे। भए समर सागर कहँ बेरे॥
मम हित लागि जन्म इन्ह हारे। भरतहु ते मोहि अधिक पिआरे॥4॥

भावार्थ

(फिर गुरुजी से कहा-) हे मुनि! सुनिए। ये सब मेरे सखा हैं। ये सङ्ग्राम रूपी समुद्र में मेरे लिए बेडे (जहाज) के समान हुए। मेरे हित के लिए इन्होन्ने अपने जन्म तक हार दिए (अपने प्राणों तक को होम दिया) ये मुझे भरत से भी अधिक प्रिय हैं॥4॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुनि प्रभु बचन मगन सब भए। निमिष निमिष उपजत सुख नए॥5॥

मूल

सुनि प्रभु बचन मगन सब भए। निमिष निमिष उपजत सुख नए॥5॥

भावार्थ

प्रभु के वचन सुनकर सब प्रेम और आनन्द में मग्न हो गए। इस प्रकार पल-पल में उन्हें नए-नए सुख उत्पन्न हो रहे हैं॥5॥