राग बसन्त
विषय (हिन्दी)
(६४)
विश्वास-प्रस्तुतिः
बंदौ रघुपति करुना-निधान।
जाते छूटै भव-भेद-ग्यान॥ १॥
रघुबंश-कुमुद-सुखप्रद निसेस।
सेवत पद-पंकज अज महेस॥ २॥
निज भक्त-हृदय-पाथोज-भृंग।
लावन्य बपुष अगनित अनंग॥ ३॥
अति प्रबल मोह-तम-मारतंड।
अग्यान-गहन-पावक प्रचंड॥ ४॥
अभिमान-सिंधु-कुंभज उदार।
सुररंजन, भंजन भूमिभार॥ ५॥
रागादि-सर्पगन-पन्नगारि।
कंदर्प-नाग-मृगपति, मुरारि॥ ६॥
भव-जलधि-पोत चरनारबिंद।
जानकी-रवन आनंद-कंद॥ ७॥
हनुमंत-प्रेम-बापी-मराल।
निष्काम कामधुक गो दयाल॥ ८॥
त्रैलोक-तिलक, गुनगहन राम।
कह तुलसिदास बिश्राम-धाम॥ ९॥
मूल
बंदौ रघुपति करुना-निधान।
जाते छूटै भव-भेद-ग्यान॥ १॥
रघुबंश-कुमुद-सुखप्रद निसेस।
सेवत पद-पंकज अज महेस॥ २॥
निज भक्त-हृदय-पाथोज-भृंग।
लावन्य बपुष अगनित अनंग॥ ३॥
अति प्रबल मोह-तम-मारतंड।
अग्यान-गहन-पावक प्रचंड॥ ४॥
अभिमान-सिंधु-कुंभज उदार।
सुररंजन, भंजन भूमिभार॥ ५॥
रागादि-सर्पगन-पन्नगारि।
कंदर्प-नाग-मृगपति, मुरारि॥ ६॥
भव-जलधि-पोत चरनारबिंद।
जानकी-रवन आनंद-कंद॥ ७॥
हनुमंत-प्रेम-बापी-मराल।
निष्काम कामधुक गो दयाल॥ ८॥
त्रैलोक-तिलक, गुनगहन राम।
कह तुलसिदास बिश्राम-धाम॥ ९॥
अनुवाद (हिन्दी)
भावार्थ—मैं करुणानिधान श्रीरघुनाथजीकी वन्दना करता हूँ, जिससे मेरा सांसारिक भेद-ज्ञान छूट जाय॥ १॥ श्रीरामजी रघुवंशरूपी कुमुदको चन्द्रमाके समान प्रफुल्लित करनेवाले हैं। ब्रह्मा और शिव जिनके चरणकमलोंकी सेवा किया करते हैं॥ २॥ जो अपने भक्तोंके हृदयकमलमें भ्रमरकी भाँति निवास करते हैं। जिनके शरीरका लावण्य असंख्य कामदेवोंके समान है॥ ३॥ जो बड़े प्रबल मोहरूपी अन्धकारके नाश करनेके लिये सूर्य और अज्ञानरूपी गहन वनके भस्म करनेके लिये अग्निरूप हैं॥ ४॥ जो अभिमानरूपी समुद्रके सोखनेके लिये उदार अगस्त्य हैं और देवताओंको सुख देनेवाले तथा (दैत्योंका दलनकर) पृथ्वीका भार उतारनेवाले हैं॥ ५॥ जो राग-द्वेषादि सर्पोंके भक्षण करनेके लिये गरुड़ और कामरूपी हाथीको मारनेके लिये सिंह हैं तथा मुर नामक दैत्यको मारनेवाले हैं॥ ६॥ जिनके चरणकमल संसार-सागरसे पार उतारनेके लिये जहाज हैं, ऐसे श्रीजानकीरमण रामजी आनन्दकी वर्षा करनेवाले हैं॥ ७॥ जो हनुमान् जी के प्रेमरूपी बावड़ीमें हंसके समान सदा विहार करनेवाले और निष्काम भक्तोंके लिये कामधेनुके समान परम दयालु हैं॥ ८॥ तुलसीदास यही कहता है कि तीनों लोकोंके शिरोमणि, गुणोंके वन श्रीरामचन्द्रजी ही केवल शान्तिके स्थान हैं॥ ९॥