दण्डक
विषय (हिन्दी)
(३७)
विश्वास-प्रस्तुतिः
लाल लाड़िले लखन, हित हौ जनके।
सुमिरे संकटहारी, सकल सुमंगलकारी,
पालक कृपालु अपने पनके॥ १॥
धरनी-धरनहार भंजन-भुवनभार,
अवतार साहसी सहसफनके॥
सत्यसंध, सत्यब्रत, परम धरमरत,
निरमल करम बचन अरु मनके॥ २॥
रूपके निधान, धनु-बान पानि,
तून कटि, महाबीर बिदित, जितैया बड़े रनके॥
सेवक-सुख-दायक, सबल, सब लायक,
गायक जानकीनाथ गुनगनके॥ ३॥
भावते भरतके, सुमित्रा-सीताके दुलारे,
चातक चतुर राम स्याम घनके॥
बल्लभ उरमिलाके, सुलभ सनेहबस,
धनी धन तुलसीसे निरधनके॥ ४॥
मूल
लाल लाड़िले लखन, हित हौ जनके।
सुमिरे संकटहारी, सकल सुमंगलकारी,
पालक कृपालु अपने पनके॥ १॥
धरनी-धरनहार भंजन-भुवनभार,
अवतार साहसी सहसफनके॥
सत्यसंध, सत्यब्रत, परम धरमरत,
निरमल करम बचन अरु मनके॥ २॥
रूपके निधान, धनु-बान पानि,
तून कटि, महाबीर बिदित, जितैया बड़े रनके॥
सेवक-सुख-दायक, सबल, सब लायक,
गायक जानकीनाथ गुनगनके॥ ३॥
भावते भरतके, सुमित्रा-सीताके दुलारे,
चातक चतुर राम स्याम घनके॥
बल्लभ उरमिलाके, सुलभ सनेहबस,
धनी धन तुलसीसे निरधनके॥ ४॥
अनुवाद (हिन्दी)
भावार्थ—हे प्यारे लखनलालजी! तुम भक्तोंका हित करनेवाले हो। स्मरण करते ही तुम संकट हर लेते हो। सब प्रकारके सुन्दर कल्याण करनेवाले, अपने प्रणको पालनेवाले और दीनोंपर कृपा करनेवाले हो॥ १॥ पृथ्वीको धारण करनेवाले, संसारका भार दूर करनेवाले, बड़े साहसी और शेषनागके अवतार हो। अपने प्रण और व्रतको सत्य करनेवाले, धर्मके परम प्रेमी तथा निर्मल मन, वचन और कर्मवाले हो॥ २॥ तुम सुन्दरताके भण्डार हो, हाथोंमें धनुष-बाण धारण किये और कमरमें तरकस कसे हुए हो, तुम विश्व-विख्यात महान् वीर हो! और बड़े-बड़े संग्राममें विजय प्राप्त करनेवाले हो। तुम सेवकोंको सुख देनेवाले, महाबली, सब प्रकारसे योग्य और जानकीनाथ श्रीरामकी गुणावलीके गानेवाले हो॥ ३॥ तुम भरतजीके प्यारे, सुमित्रा और सीताजीके दुलारे तथा रामरूपी श्याम मेघके चतुर चातक, उर्मिलाजीके पति, प्रेमसे सहजहीमें मिलनेवाले और तुलसी-सरीखे रंकको राम-भक्तिरूपी धन देनेमें बड़े भारी धनी हो॥ ४॥
राग धनाश्री
विषय (हिन्दी)
(३८)
विश्वास-प्रस्तुतिः
जयति लक्ष्मणानंत भगवंत भूधर,
भुजग-राज, भुवनेश, भूभारहारी।
प्रलय-पावक-महाज्वालमाला-वमन,
शमन-संताप लीलावतारी॥ १॥
जयति दाशरथि, समर-समरथ, सुमित्रा-
सुवन, शत्रुसूदन, राम-भरत-बंधो।
चारु-चंपक-वरन, वसन-भूषन-धरन,
दिव्यतर, भव्य, लावण्य-सिंधो॥ २॥
जयति गाधेय-गौतम-जनक-सुख-जनक,
विश्व-कंटक-कुटिल-कोटि-हंता ।
वचन-चय-चातुरी-परशुधर-गरबहर,
सर्वदा रामभद्रानुगंता॥ ३॥
जयति सीतेश-सेवासरस, बिषयरस-
निरस, निरुपाधि धुरधर्मधारी।
विपुलबलमूल शार्दूलविक्रम जलद-
नाद-मर्दन, महावीर भारी॥ ४॥
जयति संग्राम-सागर-भयंकर-तरन,
रामहित-करण वरबाहु-सेतू।
उर्मिला-रवन, कल्याण-मंगल-भवन,
दासतुलसी-दोष-दवन-हेतू॥ ५॥
मूल
जयति लक्ष्मणानंत भगवंत भूधर,
भुजग-राज, भुवनेश, भूभारहारी।
प्रलय-पावक-महाज्वालमाला-वमन,
शमन-संताप लीलावतारी॥ १॥
जयति दाशरथि, समर-समरथ, सुमित्रा-
सुवन, शत्रुसूदन, राम-भरत-बंधो।
चारु-चंपक-वरन, वसन-भूषन-धरन,
दिव्यतर, भव्य, लावण्य-सिंधो॥ २॥
जयति गाधेय-गौतम-जनक-सुख-जनक,
विश्व-कंटक-कुटिल-कोटि-हंता ।
वचन-चय-चातुरी-परशुधर-गरबहर,
सर्वदा रामभद्रानुगंता॥ ३॥
जयति सीतेश-सेवासरस, बिषयरस-
निरस, निरुपाधि धुरधर्मधारी।
विपुलबलमूल शार्दूलविक्रम जलद-
नाद-मर्दन, महावीर भारी॥ ४॥
जयति संग्राम-सागर-भयंकर-तरन,
रामहित-करण वरबाहु-सेतू।
उर्मिला-रवन, कल्याण-मंगल-भवन,
दासतुलसी-दोष-दवन-हेतू॥ ५॥
अनुवाद (हिन्दी)
भावार्थ—लक्ष्मणजीकी जय हो, जो अनन्त, छः प्रकारके ऐश्वर्यसे युक्त, पृथ्वीको धारण करनेवाले सर्पराज शेषनागके अवतार, सारे संसारके स्वामी, पृथ्वीके भारको दूर करनेवाले, प्रलयकालके समय अग्निकी भयंकर ज्वालाएँ उगलनेवाले, जगत् के सन्तापको नाश करनेवाले और अपनी लीलासे ही अवतार धारण करनेवाले हैं॥ १॥ दशरथ-पुत्र श्रीलक्ष्मणजीकी जय हो, जो संग्राममें सर्वशक्तिमान् , सुमित्राजीके पुत्र, शत्रुओंका नाश करनेवाले और श्रीरामजी तथा भरतजीके प्यारे भाई हैं। जिनके सुन्दर शरीरका रंग चम्पाके फूलके समान है, जो अत्यन्त दिव्य एवं भव्य वस्त्र और आभूषण धारण किये हैं और सौन्दर्यके महान् समुद्र हैं॥ २॥ विश्वामित्र, गौतम और जनकको सुख उत्पन्न करनेवाले, संसारके लिये करोड़ों काँटेके समान कुटिल राक्षसोंको मारनेवाले, चतुराईकी बहुत-सी बातोंसे ही परशुरामजीका गर्व हरनेवाले और सदा श्रीरामजीके पीछे-पीछे चलनेवाले लक्ष्मणजीकी जय हो॥ ३॥ सीतापति श्रीरामजीकी सेवामें परम अनुरागी, विषय-रसके विरागी, कपटरहित होकर श्रीराम-सेवारूपी धर्मकी धुरीको धारण करनेवाले, अनन्त बलके आदिस्थान, सिंहके समान पराक्रमवाले, मेघनादका मर्दन करनेवाले अत्यन्त महावीर लक्ष्मणजीकी जय हो॥ ४॥ भयानक संग्रामरूपी समुद्रको अनायास ही पार कर जानेवाले, श्रीरामजीके हितके लिये अपनी सुन्दर भुजाओंका पुल बनानेवाले, उर्मिलाजीके पति, कल्याण तथा मंगलके स्थान और तुलसीदासके पापोंके नाश करनेमें मुख्य कारण, ऐसे श्रीलक्ष्मणजीकी जय हो॥ ५॥