०७ काशी-स्तुति

राग भैरव

विषय (हिन्दी)

(२२)

विश्वास-प्रस्तुतिः

सेइअ सहित सनेह देह भरि, कामधेनु कलि कासी।
समनि सोक-संताप-पाप-रुज, सकल-सुमंगल-रासी॥ १॥
मरजादा चहुँओर चरनबर, सेवत सुरपुर-बासी।
तीरथ सब सुभ अंग रोम सिवलिंग अमित अबिनासी॥ २॥
अंतरऐन ऐन भल, थन फल, बच्छ बेद-बिस्वासी।
गलकंबल बरुना बिभाति जनु, लूम लसति, सरिताऽसी॥ ३॥
दंडपानि भैरव बिषान, मलरुचि-खलगन-भयदा-सी।
लोलदिनेस त्रिलोचन लोचन, करनघंट घंटा-सी॥ ४॥
मनिकर्निका बदन-ससि सुंदर, सुरसरि-सुख सुखमा-सी।
स्वारथ परमारथ परिपूरन, पंचकोसि महिमा-सी॥ ५॥
बिस्वनाथ पालक कृपालुचित, लालति नित गिरिजा-सी।
सिद्धि, सची, सारद पूजहिं मन जोगवति रहति रमा-सी॥ ६॥
पंचाच्छरी प्रान, मुद माधव, गब्य सुपंचनदा-सी।
ब्रह्म-जीव-सम रामनाम जुग, आखर बिस्व बिकासी॥ ७॥
चारितु चरति करम कुकरम करि, मरत जीवगन घासी।
लहत परमपद पय पावन, जेहि चहत प्रपंच-उदासी॥ ८॥
कहत पुरान रची केसव निज कर-करतूति कला-सी।
तुलसी बसि हरपुरी राम जपु, जो भयो चहै सुपासी॥ ९॥

मूल

सेइअ सहित सनेह देह भरि, कामधेनु कलि कासी।
समनि सोक-संताप-पाप-रुज, सकल-सुमंगल-रासी॥ १॥
मरजादा चहुँओर चरनबर, सेवत सुरपुर-बासी।
तीरथ सब सुभ अंग रोम सिवलिंग अमित अबिनासी॥ २॥
अंतरऐन ऐन भल, थन फल, बच्छ बेद-बिस्वासी।
गलकंबल बरुना बिभाति जनु, लूम लसति, सरिताऽसी॥ ३॥
दंडपानि भैरव बिषान, मलरुचि-खलगन-भयदा-सी।
लोलदिनेस त्रिलोचन लोचन, करनघंट घंटा-सी॥ ४॥
मनिकर्निका बदन-ससि सुंदर, सुरसरि-सुख सुखमा-सी।
स्वारथ परमारथ परिपूरन, पंचकोसि महिमा-सी॥ ५॥
बिस्वनाथ पालक कृपालुचित, लालति नित गिरिजा-सी।
सिद्धि, सची, सारद पूजहिं मन जोगवति रहति रमा-सी॥ ६॥
पंचाच्छरी प्रान, मुद माधव, गब्य सुपंचनदा-सी।
ब्रह्म-जीव-सम रामनाम जुग, आखर बिस्व बिकासी॥ ७॥
चारितु चरति करम कुकरम करि, मरत जीवगन घासी।
लहत परमपद पय पावन, जेहि चहत प्रपंच-उदासी॥ ८॥
कहत पुरान रची केसव निज कर-करतूति कला-सी।
तुलसी बसि हरपुरी राम जपु, जो भयो चहै सुपासी॥ ९॥

अनुवाद (हिन्दी)

भावार्थ—इस कलियुगमें काशीरूपी कामधेनुका प्रेमसहित जीवनभर सेवन करना चाहिये। यह शोक, सन्ताप, पाप और रोगका नाश करनेवाली तथा सब प्रकारके कल्याणोंकी खानि है॥ १॥ काशीके चारों ओरकी सीमा इस कामधेनुके सुन्दर चरण हैं। स्वर्गवासी देवता इसके चरणोंकी सेवा करते हैं। यहाँके सब तीर्थस्थान इसके शुभ अंग हैं और नाशरहित अगणित शिवलिंग इसके रोम हैं॥ २॥ अन्तर्गृही (काशीका मध्यभाग) इस कामधेनुका ऐन१ (गद्दी) है। अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष—ये चारों फल इसके चार थन हैं; वेदशास्त्रोंपर विश्वास रखनेवाले आस्तिक लोग इसके बछड़े हैं—विश्वासी पुरुषोंको ही इसमें निवास करनेसे मुक्तिरूपी अमृतमय दूध मिलता है; सुन्दर वरुणा नदी इसकी गल-कंबलके समान शोभा बढ़ा रही है और असी नामक नदी पूँछके रूपमें शोभित हो रही है॥ ३॥ दण्डधारी भैरव इसके सींग हैं, पापमें मन रखनेवाले दुष्टोंको उन सींगोंसे यह सदा डराती रहती है। लोलार्क (कुण्ड) और त्रिलोचन (एक तीर्थ) इसके नेत्र हैं और कर्णघण्टा नामक तीर्थ इसके गलेका घण्टा है॥ ४॥ मणिकर्णिका इसका चन्द्रमाके समान सुन्दर मुख है, गंगाजीसे मिलनेवाला पाप-ताप-नाशरूपी सुख इसकी शोभा है। भोग और मोक्षरूपी सुखोंसे परिपूर्ण पंचकोसीकी परिक्रमा ही इसकी महिमा है॥ ५॥ दयालु हृदय विश्वनाथजी इस कामधेनुका पालन-पोषण करते हैं और पार्वती-सरीखी स्नेहमयी जगज्जननी इसपर सदा प्यार करती रहती हैं; आठों सिद्धियाँ, सरस्वती और इन्द्राणी शची उसका पूजन करती हैं; जगत् का पालन करनेवाली लक्ष्मी-सरीखी इसका रुख देखती रहती हैं॥ ६॥ ‘नमः शिवाय’ यह पंचाक्षरी मन्त्र ही इसके पाँच प्राण हैं। भगवान् विन्दुमाधव ही आनन्द हैं। पंचनदी (पंचगंगा) तीर्थ ही इसके पंचगव्य२ हैं। यहाँ संसारको प्रकट करनेवाले रामनामके दो अक्षर ‘रकार’ और ‘मकार’ इसके अधिष्ठाता ब्रह्म और जीव हैं॥ ७॥ यहाँ मरनेवाले जीवोंका सब सुकर्म और कुकर्मरूपी घास यह चर जाती है, जिससे उनको वही परमपदरूपी पवित्र दूध मिलता है, जिसको संसारके विरक्त महात्मागण चाहा करते हैं॥ ८॥ पुराणोंमें लिखा है कि भगवान् विष्णुने सम्पूर्ण कला लगाकर अपने हाथोंसे इसकी रचना की है। हे तुलसीदास! यदि तू सुखी होना चाहता है तो काशीमें रहकर श्रीरामनाम जपा कर॥ ९॥

पादटिप्पनी

१. थनोंके ऊपरका भाग जिसमें दूध भरा रहता है।
२. दूध, दही, घी, गोबर और गोमूत्र।