०६ यमुना-स्तुति

राग बिलावल

विषय (हिन्दी)

(२१)

विश्वास-प्रस्तुतिः

जमुना ज्यों ज्यों लागी बाढ़न।
त्यों त्यों सुकृत-सुभट कलि भूपहिं, निदरि लगे बहु काढ़न॥ १॥
ज्यों ज्यों जल मलीन त्यों त्यों जमगन मुख मलीन लहै आढ़ न।
तुलसिदास जगदघ जवास ज्यों अनघमेघ लगे डाढ़न॥ २॥

मूल

जमुना ज्यों ज्यों लागी बाढ़न।
त्यों त्यों सुकृत-सुभट कलि भूपहिं, निदरि लगे बहु काढ़न॥ १॥
ज्यों ज्यों जल मलीन त्यों त्यों जमगन मुख मलीन लहै आढ़ न।
तुलसिदास जगदघ जवास ज्यों अनघमेघ लगे डाढ़न॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

भावार्थ—यमुनाजी ज्यों-ज्यों बढ़ने लगीं, त्यों-त्यों पुण्यरूपी योद्धागण कलियुगरूपी राजाका निरादर करते हुए उसे निकालने लगे॥ १॥ बरसातमें यमुनाजीका जल बढ़कर ज्यों-ज्यों मैला होने लगा, त्यों-त्यों यमदूतोंका मुख भी काला होता गया। अन्तमें उन्हें कोई भी आसरा नहीं रहा, अब वे किसको यमलोकमें ले जायँ? तुलसीदास कहते हैं कि यमुनाजीके बढ़ते ही पुण्यरूपी मेघने संसारके पापरूपी जवासेको जलाकर भस्म कर डाला॥ २॥