०२ मंगलाचरण और भगवत्स्वरूप-वर्णन

दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

राम बाम दिसि जानकी, लखन दाहिनी ओर।
ध्यान सकल कल्यानमय, सुरतरु तुलसी तोर॥ १॥

मूल

राम बाम दिसि जानकी, लखन दाहिनी ओर।
ध्यान सकल कल्यानमय, सुरतरु तुलसी तोर॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

भगवान् श्रीरामजीकी बायीं ओर श्रीजानकीजी और दाहिनी ओर श्रीलक्ष्मणजी हैं; यह ध्यान सम्पूर्णरूपसे कल्याणमय है। तुलसीदासजी कहते हैं कि मेरे लिये तो यह कल्पवृक्ष ही है॥ १॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तुलसी मिटै न मोह तम, किएँ कोटि गुन ग्राम।
हृदय कमल फूलै नहीं, बिनु रबि-कुल-रबि राम॥ २॥

मूल

तुलसी मिटै न मोह तम, किएँ कोटि गुन ग्राम।
हृदय कमल फूलै नहीं, बिनु रबि-कुल-रबि राम॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

तुलसीदासजी कहते हैं कि सूर्यकुलके सूर्य श्रीरामजीके बिना करोड़ों गुणसमूहोंका सम्पादन करनेपर भी अज्ञानका अन्धकार नहीं मिटता और न हृदयकमल ही प्रफुल्लित होता है॥ २॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुनत लखत श्रुति नयन बिनु, रसना बिनु रस लेत।
बास नासिका बिनु लहै, परसै बिना निकेत॥ ३॥

मूल

सुनत लखत श्रुति नयन बिनु, रसना बिनु रस लेत।
बास नासिका बिनु लहै, परसै बिना निकेत॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो बिना कानके सुनता है, बिना आँखके देखता है, बिना जीभके रस लेता है, बिना नाकके गन्ध लेता (सूँघता) है और बिना शरीर (त्वचा)- के स्पर्श करता है॥ ३॥

Misc Detail

सोरठा

विश्वास-प्रस्तुतिः

अज अद्वैत अनाम, अलख रूप-गुन-रहित जो।
माया पति सोइ राम, दास हेतु नर-तनु-धरेउ॥ ४॥

मूल

अज अद्वैत अनाम, अलख रूप-गुन-रहित जो।
माया पति सोइ राम, दास हेतु नर-तनु-धरेउ॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो जन्मरहित है, अद्वितीय है, नामरहित है, अलक्ष्य है, (प्राकृत) रूप और (मायाके तीनों) गुणोंसे रहित है और मायाका स्वामी है, वही तत्त्व श्रीरामचन्द्रजी हैं, जिन्होंने (अपने) दास—भक्तोंके लिये मनुष्य-शरीर धारण किया है॥ ४॥

दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

तुलसी यह तनु खेत है, मन बच कर्म किसान।
पाप-पुन्य द्वै बीज हैं, बवै सो लवै निदान॥ ५॥

मूल

तुलसी यह तनु खेत है, मन बच कर्म किसान।
पाप-पुन्य द्वै बीज हैं, बवै सो लवै निदान॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

तुलसीदासजी कहते हैं—यह शरीर खेत है; मन-वचन-कर्म किसान हैं; पाप-पुण्य दो बीज हैं। जो बोया जायगा, वही अन्तमें काटा जायगा (जैसा कर्म किया जायगा, वैसा ही फल प्राप्त होगा)॥ ५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तुलसी यह तनु तवा है, तपत सदा त्रैताप।
सांति होइ जब सांतिपद, पावै राम प्रताप॥ ६॥

मूल

तुलसी यह तनु तवा है, तपत सदा त्रैताप।
सांति होइ जब सांतिपद, पावै राम प्रताप॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

तुलसीदासजी कहते हैं कि यह शरीर तवा है, जो सदा (आध्यात्मिक, आधिभौतिक, आधिदैविक) तीनों तापोंसे जलता रहता है। इस जलनसे तभी शान्ति होती है, जब भगवान् श्रीरामजीके प्रतापसे शान्तिपद (परम शान्तिस्वरूप भगवान् के परमपद)-की प्राप्ति हो जाती है॥ ६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तुलसी बेद-पुरान-मत, पूरन सास्त्र बिचार।
यह बिराग-संदीपनी, अखिल ग्यानको सार॥ ७॥

मूल

तुलसी बेद-पुरान-मत, पूरन सास्त्र बिचार।
यह बिराग-संदीपनी, अखिल ग्यानको सार॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

तुलसीदासजी कहते हैं—इस वैराग्य-संदीपनीमें वेद-पुराणोंका सिद्धान्त और शास्त्रोंका पूर्ण विचार है। यह समस्त ज्ञानका सारतत्त्व है॥ ७॥