०९ यमुनातटपर वंशीवादन

राग नट

विषय (हिन्दी)

(२०)

विश्वास-प्रस्तुतिः

गावत गोपाल लाल नीकें राग नट हैं।
चलि री आलि देखन, लोयन लाहु पेखन,
ठाढ़े सुरतरु तर तटिनी के तट हैं॥ १॥
मोरचंदा चारु सिर, मंजु गुंजा पुंज धरें,
बनि बनधातु तन ओढ़ें पीत पट हैं।
मुरली तान तरँग, मोहे कुरँग बिहँग,
जोहैं मूरति त्रिभंग निपट निकट हैं॥ २॥
अंबर अमर हरषत बरषत फूल,
स्नेह सिथिल गोप गाइन के ठट हैं।
तुलसी प्रभु निहारि जहाँ तहाँ ब्रज नारि,
ठगी ठाढ़ी मग लिएँ रीते भरे घट हैं॥ ३॥

मूल

गावत गोपाल लाल नीकें राग नट हैं।
चलि री आलि देखन, लोयन लाहु पेखन,
ठाढ़े सुरतरु तर तटिनी के तट हैं॥ १॥
मोरचंदा चारु सिर, मंजु गुंजा पुंज धरें,
बनि बनधातु तन ओढ़ें पीत पट हैं।
मुरली तान तरँग, मोहे कुरँग बिहँग,
जोहैं मूरति त्रिभंग निपट निकट हैं॥ २॥
अंबर अमर हरषत बरषत फूल,
स्नेह सिथिल गोप गाइन के ठट हैं।
तुलसी प्रभु निहारि जहाँ तहाँ ब्रज नारि,
ठगी ठाढ़ी मग लिएँ रीते भरे घट हैं॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

मनोहर गोपाललाल सुन्दर रीतिसे नट-राग गा रहे हैं, सखी री! चल उन्हें देखने, नेत्रोंके परम लाभको प्रत्यक्ष करने। वे यमुनाजीके तटपर हरसिंगारके वृक्षके नीचे खड़े हैं॥ १॥ सिरपर सुन्दर मोर-चन्द्रिका और मञ्जुल गुञ्जाओंके गुच्छोंको धारण किये हुए हैं। शरीरपर वनकी धातुओंसे बनायी हुई चित्रावली सुशोभित है, पीतपट ओढ़े हैं। मुरलीकी मधुर स्वर-लहरीसे मुग्ध होकर पशु-पक्षी अत्यन्त समीपसे त्रिभङ्गललित मूर्तिको देख रहे हैं॥ २॥ देवता हर्षित होकर आकाशसे फूल बरसा रहे हैं। गोपों और गौओंके समूह प्रेमसे शिथिल हो रहे हैं। (यों कहती-सुनती व्रज-गोपियाँ वहाँ पहुँच गयीं और प्रभुको देखकर मार्गमें जहाँ-की-तहाँ खाली और भरे घड़े लिये (मुग्ध बनी) खड़ी रह गयीं॥ ३॥