०८ गोचारण अथवा छाक-लीला

राग गौरी

विषय (हिन्दी)

(१९)

विश्वास-प्रस्तुतिः

टेरीं (कान्ह) गोबर्धन चढ़ि गैया।
मथि मथि पियो बारि चारिक मैं,
भूख न जाति अघाति न घैया॥ १॥
सैल सिखर चढ़ि चितै चकित चित,
अति हित बचन कह्यो बल भैया।
बाँधि लकुट पट फेरि बोलाईं,
सुनि कल बेनु धेनु धुकि धैया॥ २॥
बलदाऊ! देखियत दूरि तें,
आवति छाक पठाई मेरी मैया।
किलकि सखा सब नचत मोर ज्यों,
कूदत कपि कुरंग की नैया॥ ३॥
खेलत खात परसपर डहकत,
छीनत कहत करत रोग दैया।
तुलसी बालकेलि सुख निरखत,
बरषत सुमन सहित सुर सैया॥ ४॥

मूल

टेरीं (कान्ह) गोबर्धन चढ़ि गैया।
मथि मथि पियो बारि चारिक मैं,
भूख न जाति अघाति न घैया॥ १॥
सैल सिखर चढ़ि चितै चकित चित,
अति हित बचन कह्यो बल भैया।
बाँधि लकुट पट फेरि बोलाईं,
सुनि कल बेनु धेनु धुकि धैया॥ २॥
बलदाऊ! देखियत दूरि तें,
आवति छाक पठाई मेरी मैया।
किलकि सखा सब नचत मोर ज्यों,
कूदत कपि कुरंग की नैया॥ ३॥
खेलत खात परसपर डहकत,
छीनत कहत करत रोग दैया।
तुलसी बालकेलि सुख निरखत,
बरषत सुमन सहित सुर सैया॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

(एक बार श्यामसुन्दर दाऊ भैया और अपने सखाओंके साथ गौ चराने वनमें गये हुए थे। घरसे छाक आनेमें देर हो गयी, भूख बहुत लगी थी। बालस्वभावसे सोचा कि जैसे दही मथनेसे मक्खन निकलता है, वैसे ही जल बिलोनेसे भी निकल जायगा। वे बार-बार पानीको मथ-मथकर उसको झागसहित पीने लगे, पर उससे न तो भूख मिटी न पेट भरा; तब यह मनमें आया कि गायोंको बुलाकर उनके थनोंमें मुँह लगाकर दूध पीयें। इसी उद्देश्यसे वे गायोंको पुकारने लगे—)
कन्हैयाने गोवर्धनपर चढ़कर गायोंको पुकारा और बोले कि पानीको मथ-मथकर तीन-चार बार पी लिया, पर भूख नहीं मिटी। घैया (गायोंके थनमें मुँह लगाकर दूध पीने) की भाँति अघाया भी नहीं (पेट भी नहीं भरा)॥ १॥ (जब गायें नहीं आयीं,) तब कन्हैया पर्वतकी चोटीपर चढ़ गये और चकित-चित्त होकर (इधर-उधर) देखने लगे (गौएँ क्यों नहीं आयीं)। इतनेमें बलदाऊ भैयाने बड़े हितकी बात कही (कि वंशी बजाओ तो गायें आ जायँगी। यह सुनकर) कन्हैयाने छड़ीके सिरेमें पीताम्बर बाँधकर, उसे घुमाते हुए (वंशी-ध्वनि करके) गायोंको (फिर) बुलाया। वंशीकी मनोहर ध्वनिको सुनकर गायें बड़े वेगसे दौड़ आयीं॥ २॥ (इतनेमें ही दूरसे देखकर बोले—देख-देख) बलदाऊ भैया! मेरी मैयाकी भेजी हुई छाक दूरसे आती दिखायी देती है। (यह सुनते ही) सब सखा किलक-किलककर मोरकी तरह नाचने लगे, बंदर और हरिनकी भाँति कूदने लगे॥ ३॥ (छाक आ पहुँची, तब) खेलते हुए उसे खाने लगे, एक-दूसरेको ललचाने लगे, (परस्पर) छीना-झपटी करने लगे, कहने-सुनने लगे और बेईमानी करने लगे। तुलसीदासजी कहते हैं कि श्रीबालकृष्णकी बालकेलिका आनन्द देखकर देवता अपने स्वामी (इन्द्र) के साथ पुष्पोंकी वर्षा करने लगे॥ ४॥