०७ इन्द्रकोप—गोवर्धन-धारण

राग मलार

विषय (हिन्दी)

(१८)

विश्वास-प्रस्तुतिः

ब्रज पर घन घमंड करि आए।
अति अपमान बिचारि आपनो कोपि सुरेस पठाए॥ १॥
दमकति दुसह दसहुँ दिसि दामिनि, भयो तम गगन गँभीर।
गरजत घोर बारिधर धावत प्रेरित प्रबल समीर॥ २॥
बार-बार पबिपात, उपल घन बरषत बूँद बिसाल।
सीत सभीत पुकारत आरत गो सुत गोपी ग्वाल॥ ३॥
राखहु राम कान्ह यहि अवसर, दुसह दसा भइ आइ।
नंद बिरोध कियो सुरपति सों, सो तुम्हरोइ बल पाइ॥ ४॥
सुनि हँसि उठॺो नंद को नाहरु, लियो कर कुधर उठाइ।
तुलसिदास मघवा अपनी सो करि गयो गर्व गँवाइ॥ ५॥

मूल

ब्रज पर घन घमंड करि आए।
अति अपमान बिचारि आपनो कोपि सुरेस पठाए॥ १॥
दमकति दुसह दसहुँ दिसि दामिनि, भयो तम गगन गँभीर।
गरजत घोर बारिधर धावत प्रेरित प्रबल समीर॥ २॥
बार-बार पबिपात, उपल घन बरषत बूँद बिसाल।
सीत सभीत पुकारत आरत गो सुत गोपी ग्वाल॥ ३॥
राखहु राम कान्ह यहि अवसर, दुसह दसा भइ आइ।
नंद बिरोध कियो सुरपति सों, सो तुम्हरोइ बल पाइ॥ ४॥
सुनि हँसि उठॺो नंद को नाहरु, लियो कर कुधर उठाइ।
तुलसिदास मघवा अपनी सो करि गयो गर्व गँवाइ॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

व्रजपर गर्वके साथ (नष्ट करनेकी धमकीके रूपमें घोर गर्जना करते हुए) बादल छा गये। देवराज इन्द्रने (यज्ञ बन्द कर दिये जानेपर) अपना अत्यन्त अपमान समझकर इनको क्रोध करके भेजा था॥ १॥ दसों दिशाओंमें दुःसह बिजली चमकने लगी। आकाशमें घोर अन्धकार छा गया। बादल भयंकर गर्जना करने लगे और प्रबल पवनसे प्रेरित होकर (इधर-उधर) दौड़ने लगे॥ २॥ बार-बार बिजली गिरने लगी। बादल ओले तथा बड़ी-बड़ी (भयावनी) बूँदें बरसाने लगे। गौएँ, बछड़े या गोप-बालक, गोपियाँ तथा ग्वाले सर्दीसे भयभीत होकर आर्त पुकार करने लगे—॥ ३॥ ‘ओ बलराम, अरे श्रीकृष्ण! रक्षा करो। इस समय हमपर असह्य विपत्ति आ पड़ी है। नन्दबाबाने जो देवराज इन्द्रका विरोध किया था, वह तुम्हारे ही बलपर किया था’॥ ४॥ इस (आर्त पुकार) को सुनकर नन्दका शेर हँसा, उठकर खड़ा हो गया और (उसने एक ही) हाथसे पहाड़को उठा लिया। तुलसीदासजी कहते हैं कि इन्द्र अपनी-सी करके (अपने बल-बूतेका असफल परिचय देकर) सारा गर्व खोकर लौट गया॥ ५॥