अनुवाद (हिन्दी)
‘श्रीकृष्णगीतावली’ गोस्वामी श्रीतुलसीदासजीका अति ललित व्रजभाषामें रचित बड़ा ही रसमय और अत्यन्त मधुर गीति-काव्य है। इसमें कुल ६१ पद हैं, जिनमें २० बाललीलाके, ३ रूप-सौन्दर्यके, ९ विरहके, २७ उद्धव-गोपिका-संवाद या भ्रमरगीतके और २ द्रौपदी-लज्जा-रक्षणके हैं। सभी पद परम सरस और मनोहर हैं। पदोंमें ऐसा स्वाभाविक सुन्दर और सजीव भावचित्रण है कि पढ़ते-पढ़ते लीला-प्रसंग मूर्तिमान् होकर सामने आ जाता है।
गोस्वामीजीके इस ग्रन्थसे यह भलीभाँति सिद्ध हो जाता है कि श्रीराम-रूपके अनन्योपासक होनेपर भी श्रीगोस्वामीजी भगवान् श्रीरामभद्र और भगवान् श्रीकृष्णचन्द्रमें सदा अभेदबुद्धि रखते थे और दोनों ही स्वरूपोंका तथा उनकी लीलाओंका वर्णन करनेमें अपनेको कृतकृत्य तथा धन्य मानते थे। ‘विनयपत्रिका’ आदिमें भी श्रीकृष्णरूपका महत्त्व कई जगह आया है, पर श्रीकृष्णगीतावलीमें तो वह प्रत्यक्ष प्रकट हो गया है।
श्रीकृष्णगीतावलीके पदोंका भावार्थ भी साथ दे दिया गया है, इससे पदोंका भाव समझनेमें कुछ सुविधा होगी। आशा है श्रीकृष्णप्रेमी पाठक-पाठिकाएँ गोस्वामीजीकी इस अनूठी रचनासे प्रेमपथके साधनमें प्रगति तथा परम आनन्द लाभ करेंगे।
हनुमानप्रसाद पोद्दार
श्रीनाम-नवमी सं० २०१४
रतनगढ़ (राजस्थान)