०१ पदोंकी वर्णानुक्रमणिका

विषय (हिन्दी)

पद-सूचना — पद-संख्या

अनुवाद (हिन्दी)

अब सब साँची कान्ह तिहारी — ६
अबहिं उरहनो दै गई, बहुरौ फिरि आई — ८
अब ब्रज बास महरि किमि कीबो — ९
आजु उनीदे आए मुरारी — २२
आलि! अब कहुँ जनि नेह निहारि — २७
आली! अति अनुचित, उतरु न दीजै — ४५
ऊधो! या ब्रज की दसा बिचारौ — ३३
ऊधो जू कह्यो तिहारोइ कीबो — ३५
ऊधो! यह ह्याँ न कछू कहिबे ही — ४०
ऊधो हैं बड़े, कहैं सोइ कीजै — ४६
ऊधो! प्रीति करि निरमोहियन सों को न भयो दुख दीन? — ५५
ऐसो हौंहुँ जानति भृंग! — ५४
कबहुँ न जात पराए धामहिं — ५
कहा भयो कपट जुआ जौ हौं हारी — ६०
करी है हरि बालक की सी केलि — २६
कही है भली बात सब के मन मानी — ४९
कान्ह, अलि, भए नए गुरु ग्यानी — ४७
काहे को कहत बचन सँवारि — ५३
कोउ सखि नई बात सुनि आई — ३२
कौन सुनै अलि की चतुराई — ५१
गहगह गगन दुंदुभी बाजी — ६१
गावत गोपाल लाल नीकें राग नट हैं — २०
गोपाल गोकुल बल्लवी प्रिय गोप गोसुत बल्लभं — २३
गोकुल प्रीति नित नई जानि — ५२
छपद! सुनहु बर बचन हमारे — ५७
छाँडो मेरे ललन! ललित लरिकाई — १३
छोटी मोटी मीसी रोटी चिकनी चुपरि कै तू — २
जब ते ब्रज तजि गये कन्हाई — २९
जानी है ग्वालि परी फिरि फीकें — १०
जो पै अलि! अंत इहै करिबो हो — ३९
जौलौं हौं कान्ह रहौं गुन गोए — ११
टेरीं (कान्ह) गोबर्धन चढ़ि गैया — १९
ताकी सिख ब्रज न सुनैगो कोउ भोरें — ४४
तोहि स्याम की सपथ जसोदा! आइ देखु गृह मेरें — ३
दीन्ही है मधुप सबहि सिख नीकी — ४३
देखु सखी हरि बदन इंदु पर — २१
नहिं कछु दोष स्याम को माई — २५
ब्रज पर घन घमंड करि आए — १८
बिछुरत श्रीब्रजराज आजु — २४
भली कही, आली, हमहुँ पहिचाने — ३८
भूलि न जात हौं काहू के काऊ — १२
महरि तिहारे पायँ परौं, अपनो ब्रज लीजै — ७
मधुकर! कहहु कहन जो पारौ — ३४
मधुकर! कान्ह कही ते न होही — ४१
मधुप! समुझि देखहु मन माहीं — ५८
मधुप! तुम्ह कान्ह ही की कही क्यों न कही है? — ४२
(माता) लै उछंग गोबिंद मुख बार-बार निरखै — १
मेरे जान और कछु न मन गुनिए — ३७
मो कहँ झूठेहुँ दोष लगावहिं — ४
मोको अब नयन भए रिपु माई! — ५९
ललित लालन निहारि, महरि मन बिचारि — १७
लागियै रहति नयननि आगे तें — २८
लेत भरि भरि नीर कान्ह कमल नैन — १५
सब मिलि साहस करिय सयानी — ४८
ससि तें सीतल मोकौं लागै माई री! — ३०
सो कहौ मधुप! जो मोहन कहि पठई — ३६
सुनत कुलिस सम बचन तिहारे — ५६
संतत दुखद सखी! रजनीकर — ३१
हरि को ललित बदन निहारु — १४
हा हा री महरि! बारो, कहा रिस बस भई — १६
हे हम समाचार सब पाए — ५०