०९ सप्तम सर्ग

विषय (हिन्दी)

सप्तक—१

विश्वास-प्रस्तुति राम लखनु सानुज भरत सुमिरत सुभ सब काज। साहित प्रीति प्रतीति हित सगुन सकल सुभ काज॥ १॥
मूल

राम लखनु सानुज भरत सुमिरत सुभ सब काज।
साहित प्रीति प्रतीति हित सगुन सकल सुभ काज॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीराम, लक्ष्मण तथा छोटे भाई शत्रुघ्नजीके साथ भरतजीका स्मरण करनेसे सभी कार्य शुभ हो जाते हैं। साहित्य (मेल-जोल), प्रेम और विश्वासकी दृष्टिसे यह शकुन सब कार्योंका शुभ (सफल) होना बतलाता है॥ १॥

विश्वास-प्रस्तुति सुख मुद मंगल कुमुद बिधु, सगुन सरोरुह भानु। करहु काज सब सिद्धि प्रभु आनि हिएँ हनुमानु॥ २॥
मूल

सुख मुद मंगल कुमुद बिधु, सगुन सरोरुह भानु।
करहु काज सब सिद्धि प्रभु आनि हिएँ हनुमानु॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

सुख, आनन्द तथा मंगलरूपी कुमुदिनियोंके लिये चन्द्रमाके समान तथा शकुनरूपी कमलोंके लिये सूर्यके समान स्वामी श्रीहनुमान् जी को हृदयमें लाकर कार्य करो, सब प्रकारकी सफलता मिलेगी॥ २॥

विश्वास-प्रस्तुति राज काज मनि हेम हय राम रूप रबि बार। कहब नीक जय लाभ सुभ सगुन समय अनुहार॥ ३॥
मूल

राज काज मनि हेम हय राम रूप रबि बार।
कहब नीक जय लाभ सुभ सगुन समय अनुहार॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

रविवारके दिन श्रीरामके स्वरूपका ध्यान करके राजकार्य, मणि, स्वर्ण एवं घोड़े-सम्बन्धी प्रश्न करो। मैं कहूँगा कि यह शकुन समयानुसार विजय, लाभ, मंगल तथा भलाईकी दृष्टिसे शुभ है॥ ३॥

विश्वास-प्रस्तुति रस गोरस खेती सकल बिप्र काज सुभ साज। राम अनुग्रहँ सोम दिन प्रमुदित प्रजा सुराज॥ ४॥
मूल

रस गोरस खेती सकल बिप्र काज सुभ साज।
राम अनुग्रहँ सोम दिन प्रमुदित प्रजा सुराज॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

रस, गोरस, खेती, ब्राह्मणोंके कार्य तथा शुभ साज-सजावटके प्रश्न सोमवारको करे। श्रीरामकी कृपासे उत्तम शासन पाकर प्रजा आनन्दित रहेगी॥ ४॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति मंगल मंगल भूमि हित, नृप हित जय संग्राम। सगुन बिचारब समय सुभ करि गुरु चरन प्रनाम॥ ५॥
मूल

मंगल मंगल भूमि हित, नृप हित जय संग्राम।
सगुन बिचारब समय सुभ करि गुरु चरन प्रनाम॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

मंगलवारको पृथ्वीके लिये, राजाके लिये, युद्ध (विवाद)-में विजयके लिये गुरुदेवके चरणोंमें प्रणाम करके शकुनका विचार समयानुकूल एवं शुभ है, मंगलदायक है॥ ५॥

विश्वास-प्रस्तुति बिपुल बनिज बिद्या बसन बुध बिसेषि गृह काजु। सगुन सुमंगल कहब सुभ सुमिरि सीय रघुराजु॥ ६॥
मूल

बिपुल बनिज बिद्या बसन बुध बिसेषि गृह काजु।
सगुन सुमंगल कहब सुभ सुमिरि सीय रघुराजु॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

अनेक प्रकारके व्यापार, विद्या, वस्त्र तथा विशेषतः घरके कार्योंके लिये श्रीसीता-रामजीका स्मरण करके बुधवारको शकुन बतलाना शुभ है तथा मंगलदायी है॥ ६॥

विश्वास-प्रस्तुति गुरु प्रसाद मंगल सकल, राम राज सब काज। जज्ञ बिबाह उछाह ब्रत, सुभ तुलसी सब साज॥ ७॥
मूल

गुरु प्रसाद मंगल सकल, राम राज सब काज।
जज्ञ बिबाह उछाह ब्रत, सुभ तुलसी सब साज॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

गुरुदेव (वसिष्ठजी)-की कृपासे श्रीरामके राज्यमें सभी कार्योंमें सब प्रकार मंगल होता था। तुलसीदासजी कहते हैं कि यज्ञ, विवाह, उत्सव तथा व्रतके लिये गुरुवारको प्रश्न करना सब प्रकार शुभ करनेवाला है॥ ७॥

विषय (हिन्दी)

सप्तक—२

विश्वास-प्रस्तुति सुक्र सुमंगल काज सब कहब सगुन सुभ देखि। जंत्र मंत्र मनि ओषधी सहसा सिद्धि बिसेषि॥ १॥
मूल

सुक्र सुमंगल काज सब कहब सगुन सुभ देखि।
जंत्र मंत्र मनि ओषधी सहसा सिद्धि बिसेषि॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

शुक्रवारको सभी मंगलकारी कार्योंके लिये शुभ शकुन देखकर फल बताये। विशेषतः यन्त्र, मन्त्र, मणि, ओषधि (सम्बन्धी कार्य)-में (यह दिन) अकस्मात् सफलता देनेवाला है॥ १॥

विश्वास-प्रस्तुति राम कृपा थिर काज सुभ, सनि बासर बिश्राम। लोह महिष गज बनिज भल, सुख सुपास गृह ग्राम॥ २॥
मूल

राम कृपा थिर काज सुभ, सनि बासर बिश्राम।
लोह महिष गज बनिज भल, सुख सुपास गृह ग्राम॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

शनिवारको सब शुभकार्य बन्द रखे और विश्राम करे। श्रीरामकी कृपासे लोहे, भैंस तथा हाथीके व्यापारमें भला होगा। घर-गाँवमें सुख-सुविधा रहेगी॥ २॥

विश्वास-प्रस्तुति राहु केतु उलटे चलहिं असुभ अमंगल मूल। रुंड मुंड पाखंड प्रिय असुर अमर प्रतिकूल॥ ३॥
मूल

राहु केतु उलटे चलहिं असुभ अमंगल मूल।
रुंड मुंड पाखंड प्रिय असुर अमर प्रतिकूल॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

देवताओंके विरोधी, पाखण्डप्रिय (क्रमशः) केवल सिर और धड़के रूपमें रहनेवाले राक्षस राहु और केतु उलटे ही चलते हैं। वे (तथा यह शकुन) अशुभ हैं, अमंगलकी जड़ हैं॥ ३॥

विश्वास-प्रस्तुति समउ राहु रबि गहनु मत राजहि प्रजहि कलेस। सगुन सोच, संकट बिकट, कलह कलुष दुख देस॥ ४॥
मूल

समउ राहु रबि गहनु मत राजहि प्रजहि कलेस।
सगुन सोच, संकट बिकट, कलह कलुष दुख देस॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

यह समय सूर्यग्रहण लगनेके समान राजा-प्रजा दोनोंके लिये दुःखदायी है। इस शकुनका फल यह है कि चिन्ता, भारी विपत्ति, झगड़ा, पाप और देशमें दुःख होगा॥ ४॥

विश्वास-प्रस्तुति राहु सोम संगमु बिषमु, असगुन उदधि अगाधु। ईति भीति खल दल प्रबल, सीदहिं भूसुर साधु॥ ५॥
मूल

राहु सोम संगमु बिषमु, असगुन उदधि अगाधु।
ईति भीति खल दल प्रबल, सीदहिं भूसुर साधु॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

राहु और चन्द्रमाका (ग्रहण) योग भयंकर है, अथाह अपशकुनका समुद्र है। अकालादि दैवी उत्पात, भय तथा दुष्टोंके समूह प्रबल होंगे; ब्राह्मण और सत्पुरुष कष्ट पायेंगे॥ ५॥

विश्वास-प्रस्तुति सात पाँच ग्रह एक थल चलहि बाम गति धाम। राज बिराजिय समउ गत सुभ हित सुमिरहु राम॥ ६॥
मूल

सात पाँच ग्रह एक थल चलहि बाम गति धाम।
राज बिराजिय समउ गत सुभ हित सुमिरहु राम॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

सातमेंसे पाँच ग्रह* टेढ़ी गतिसे अपने स्थानोंसे एक स्थानके लिये चले हैं। (इस समय) शासन तो समयानुसार विपरीत ही चलेगा, कल्याणके लिये श्रीरामका स्मरण करो॥ ६॥ (प्रश्न-फल अशुभ है।)

पादटिप्पनी
  • ग्रह नौ हैं, जिनमें राहु और केतु अप्रधान माने जाते हैं और उनका वर्णन ऊपर दोहोंमें हो भी चुका। शेष सातमेंसे दो सूर्य और चन्द्र सीधी चालसे चलते हैं तथा मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि—ये वक्री (टेढ़ी गतिवाले) भी होते हैं और उस समय अशुभ माने जाते हैं।
विश्वास-प्रस्तुति खेती बनि बिद्या बनिज सेवा सिलिप सुकाज। तुलसी सुरतरु सरिस सब सुफल राम कें राज॥ ७॥
मूल

खेती बनि बिद्या बनिज सेवा सिलिप सुकाज।
तुलसी सुरतरु सरिस सब सुफल राम कें राज॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

तुलसीदासजी कहते हैं कि रामराज्यमें खेती, मजदूरी, विद्या, वाणिज्य, सेवा, कारीगरी आदि सभी उत्तम कार्य कल्पवृक्षके समान (अभीष्ट) उत्तम फल देते थे॥ ७॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विषय (हिन्दी)

सप्तक—३

विश्वास-प्रस्तुति सुधा साधु सुरतरु सुमन सुफल सुहावनि बात। तुलसी सीतापति भगति, सगुन सुमंगल सात॥ १॥
मूल

सुधा साधु सुरतरु सुमन सुफल सुहावनि बात।
तुलसी सीतापति भगति, सगुन सुमंगल सात॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

तुलसीदासजी कहते हैं कि अमृत, साधु, कल्पवृक्ष, पुष्प, अच्छे फल, सुहावनी बात और श्रीरघुनाथजीकी भक्ति—ये सात मंगलदायक शकुन हैं॥ १॥ (प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)

विश्वास-प्रस्तुति सिद्ध समागम संपदा सदन सरीर सुपास। सीतानाथ प्रसाद सुभ सगुन सुमंगल बास॥ २॥
मूल

सिद्ध समागम संपदा सदन सरीर सुपास।
सीतानाथ प्रसाद सुभ सगुन सुमंगल बास॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

सिद्ध पुरुषोंसे भेंट सम्पत्ति, घर और शरीर (स्वास्थ्य)-का सुख देनेवाली है। श्रीसीतानाथकी कृपासे यह शुभ शकुन परम मंगलका निवास है॥ २॥

विश्वास-प्रस्तुति कौसल्या कल्यानमय मूरति करत प्रनामु। सगुन सुमंगल काज सुभ कृपा करहिं सिय रामु॥ ३॥
मूल

कौसल्या कल्यानमय मूरति करत प्रनामु।
सगुन सुमंगल काज सुभ कृपा करहिं सिय रामु॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

कल्याणकी मूर्ति कौसल्याजीको प्रणाम करनेसे श्रीसीताराम कृपा करते हैं, सभी कार्योंमें परम मंगल होता है। यह शकुन शुभ है॥ ३॥

विश्वास-प्रस्तुति सुमिरि सुमित्रा नाम जग जे तिय लेहिं सुनेम। सुवन लखन रिपुदवन से पावहिं पति पद प्रेम॥ ४॥
मूल

सुमिरि सुमित्रा नाम जग जे तिय लेहिं सुनेम।
सुवन लखन रिपुदवन से पावहिं पति पद प्रेम॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो नारियाँ दृढ़ नियमपूर्वक संसारमें श्रीसुमित्राजीका नाम लेती (जपती) और उनका स्मरण करती हैं, वे लक्ष्मण और शत्रुघ्नके समान पुत्र तथा पतिके चरणोंमें प्रेम पाती हैं॥ ४॥ (शकुन स्त्रियोंके लिये पुत्र तथा पति-प्रेमकी प्राप्तिका सूचक है।)

विश्वास-प्रस्तुति दसरथ नाम सुकामतरु फलइ सकल कल्यान। धरनि धाम धन धरम सुख सुत गुन रूप निधान॥ ५॥
मूल

दसरथ नाम सुकामतरु फलइ सकल कल्यान।
धरनि धाम धन धरम सुख सुत गुन रूप निधान॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज दशरथका नाम उत्तम कल्पवृक्षके समान है, समस्त कल्याणरूप फल फलता (देता) है। पृथ्वी, घर, धन, धर्म, सुख तथा गुण और रूपके निधान पुत्र प्राप्त होंगे॥ ५॥

विश्वास-प्रस्तुति कलह कपट कलि कैकई सुमिरत काज नसाइ। हानि मीचु दारिद दुरित असगुन असुभ अघाइ॥६॥
मूल

कलह कपट कलि कैकई सुमिरत काज नसाइ।
हानि मीचु दारिद दुरित असगुन असुभ अघाइ॥६॥

अनुवाद (हिन्दी)

झगड़ा, कपट एवं कलियुगकी मूर्ति कैकेयीका स्मरण करनेसे कार्य नष्ट हो जाता है। यह हानि, मृत्यु, दरिद्रता तथा पापसूचक अत्यन्त अशुभ अपशकुन है॥ ६॥

विश्वास-प्रस्तुति राम बाम दिसि जानकी लखनु दाहिनी ओर। ध्यान सकल कल्यानमय, सुरतरु तुलसी तोर॥ ७॥
मूल

राम बाम दिसि जानकी लखनु दाहिनी ओर।
ध्यान सकल कल्यानमय, सुरतरु तुलसी तोर॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरामजीकी बायीं ओर श्रीजानकीजी और दाहिनी ओर श्रीलक्ष्मणजी हैं, इस छबिका ध्यान सब प्रकार कल्याणमय है। तुलसीदासजी कहते हैं कि (यह ध्यान) तुम्हारे लिये तो कल्पवृक्ष (अर्थात् सभी मनोरथ पूर्ण करनेवाला) है॥ ७॥

विषय (हिन्दी)

सप्तक—४

विश्वास-प्रस्तुति मध्यम दिन मध्यम दसा मध्यम सकल समाज। नाइ माथ रघुनाथ पद, जानब मध्यम काज॥ १॥
मूल

मध्यम दिन मध्यम दसा मध्यम सकल समाज।
नाइ माथ रघुनाथ पद, जानब मध्यम काज॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

दिन मध्यम है, दशा मध्यम है, सब समाज (योग) मध्यम हैं, श्रीरघुनाथजीके चरणोंमें मस्तक झुकाकर (प्रणाम करके) कार्य करो, मध्यम फल (विशेष हानि-लाभ नहीं) होगा॥ १॥

विश्वास-प्रस्तुति हित पर बढ़इ बिरोधु जब, अनहित पर अनुराग। राम बिमुख बिधि बामगत, सगुन अघाइ अभाग॥ २॥
मूल

हित पर बढ़इ बिरोधु जब, अनहित पर अनुराग।
राम बिमुख बिधि बामगत, सगुन अघाइ अभाग॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

जब दूसरोंकी भलाईसे (अथवा हितैषीके साथ) विरोध बढ़े, दूसरोंकी बुराईसे (अथवा बुरा चाहनेवालेसे) प्रेम हो तथा मनुष्य श्रीरामसे मुँह मोड़ ले तो (इसके लिये) विधाता ही उलटे हो गये हैं। यह शकुन भरपूर दुर्भाग्य-से-दुर्भाग्यका सूचक है॥ २॥

विश्वास-प्रस्तुति कृपनु देइ पाइय परो, बिनु साधन सिधि होइ। सीतापति सनमुख समुझि जो कीजिअ सुभ होइ॥ ३॥
मूल

कृपनु देइ पाइय परो, बिनु साधन सिधि होइ।
सीतापति सनमुख समुझि जो कीजिअ सुभ होइ॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

जब कृपण कुछ दे, कहीं पड़ा हुआ (धन या सामान) मिल जाय अथवा बिना किसी साधनके सफलता प्राप्त हो तो श्रीरघुनाथजीको अनुकूल समझो जो कुछ (इस समय) किया जायगा, शुभ होगा॥ ३॥

विश्वास-प्रस्तुति पहिलें हित परिनाम गत, बीच बीच भल पोच। सगुन कहब अस राम गति कहबि समेत सकोच॥४॥
मूल

पहिलें हित परिनाम गत, बीच बीच भल पोच।
सगुन कहब अस राम गति कहबि समेत सकोच॥४॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अत्यन्त) संकोचपूर्वक मैं शकुनका फल यह कहूँगा अथवा श्रीरामकी गति (इच्छा) ही ऐसी कहूँगा कि (पूछे गये कार्यमें) पहले भलाई होगी, किन्तु अन्तिम फल बुरा होगा और बीच-बीचमें अच्छाई-बुराई दोनों आती रहेंगी॥ ४॥

विश्वास-प्रस्तुति रमा रमापति गौरि हर सीता राम सनेहु। दंपति हित संपति सकल, सगुन सुमंगल गेहु॥ ५॥
मूल

रमा रमापति गौरि हर सीता राम सनेहु।
दंपति हित संपति सकल, सगुन सुमंगल गेहु॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीलक्ष्मी-नारायण, गौरी-शंकर तथा सीता-राममें प्रेम समस्त सम्पत्ति देनेवाला है। दम्पतिके लिये यह शकुन श्रेष्ठ मंगलका घर है॥ ५॥

विश्वास-प्रस्तुति प्रीति प्रतीति न राम पद, बड़ी आस बड़ लोभ। नहिं सपनेहुँ संतोष सुख, जहाँ तहाँ मन छोभ॥६॥
मूल

प्रीति प्रतीति न राम पद, बड़ी आस बड़ लोभ।
नहिं सपनेहुँ संतोष सुख, जहाँ तहाँ मन छोभ॥६॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरामके चरणोंमें प्रेम और विश्वास है नहीं, बड़ी-बड़ी आशाएँ हैं, बड़ा लोभ है। (फलतः) स्वप्नमें भी सन्तोष और सुख नहीं मिलेगा, जहाँ-तहाँ (सर्वत्र) मनमें अशान्ति रहेगी॥ ६॥ (प्रश्न-फल अशुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति पय नहाइ फल खाइ जपु राम नाम षट मास। सगुन सुमंगल सिद्धि सब करतल तुलसीदास॥ ७॥
मूल

पय नहाइ फल खाइ जपु राम नाम षट मास।
सगुन सुमंगल सिद्धि सब करतल तुलसीदास॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

पयस्विनी नदीमें स्नान करके, फल खाकर छः महीने राम-नामका जप करो। तुलसीदासजी कहते हैं कि यह शकुन (यह साधन भी) परम मंगलदायक है, सभी सिद्धियाँ (सफलताएँ) हाथमें आयी हुई समझो॥७॥

विषय (हिन्दी)

सप्तक—५

विश्वास-प्रस्तुति बड़ कलेस कारज अलप, बड़ी आस लहु लाहु। उदासीन सीता रमन, समय सरिस निरबाहु॥ १॥
मूल

बड़ कलेस कारज अलप, बड़ी आस लहु लाहु।
उदासीन सीता रमन, समय सरिस निरबाहु॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

बड़ा कष्ट उठानेपर थोड़ा-सा कार्य होगा, बड़ी आशा होगी, किन्तु लाभ थोड़ा होगा। श्रीसीतानाथ प्रभुकी ओरसे उदासीनता रहेगी, समयके अनुसार (किसी प्रकार) निर्वाहमात्र हो जायगा॥ १॥

विश्वास-प्रस्तुति दस दिसि दुख दारिद दुरित, दुसह दसा दिन दोष। फेरे लोचन राम अब, सनमुख साज सरोष॥ २॥
मूल

दस दिसि दुख दारिद दुरित, दुसह दसा दिन दोष।
फेरे लोचन राम अब, सनमुख साज सरोष॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरामके अब नेत्र फेर लेने (उदासीन हो जाने)-से दसों दिशाओंमें (सर्वत्र) दुःख, दरिद्रता, पाप, असहनीय दशा प्राप्त होगी। दिनोंका दोष (दुर्भाग्य) क्रोध करके साज सजाकर सामने आ गया है॥ २॥

विश्वास-प्रस्तुति खेती बनिज न भीख भलि, अफल उपाय कदंब। कुसमय जानब बाम बिधि, राम नाम अवलंब॥ ३॥
मूल

खेती बनिज न भीख भलि, अफल उपाय कदंब।
कुसमय जानब बाम बिधि, राम नाम अवलंब॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

(इस समय) न खेती करना अच्छा, न व्यापार करना और न भीख माँगना। सभी उपाय असफल होंगे, अभी बुरा समय आया समझो, विधाता प्रतिकूल है। (इस समय) राम-नाम ही (एकमात्र) सहारा है॥ ३॥

विश्वास-प्रस्तुति पुरुषारथ स्वारथ सकल परमारथ परिनाम। सुलभ सिद्धि सब सगुन सुभ, सुमिरत सीताराम॥ ४॥
मूल

पुरुषारथ स्वारथ सकल परमारथ परिनाम।
सुलभ सिद्धि सब सगुन सुभ, सुमिरत सीताराम॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीसीता-रामके स्मरणसे स्वार्थके लिये किये गये मनुष्यके सभी प्रयत्न परमार्थमें परिणत हो जाते हैं तथा सभी सिद्धियाँ सुलभ हो जाती हैं। यह शकुन शुभ है॥ ४॥

विश्वास-प्रस्तुति भागु भाग तजि भाल थलु, आलस ग्रसे उपाउ। असुभ अमंगल सगुन सुनि, सरन रामकें आउ॥ ५॥
मूल

भागु भाग तजि भाल थलु, आलस ग्रसे उपाउ।
असुभ अमंगल सगुन सुनि, सरन रामकें आउ॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

भाग्य ललाटका स्थान छोड़कर भाग गया है (सौभाग्यका समय रहा नहीं)। उपायोंको आलस्यने ग्रस्त कर लिया है। (प्रयत्न समयपर हो नहीं सकेगा।) अमंगलकारी यह अशुभ शकुन सुनकर (अब) श्रीरामकी शरणमें आ जाओ (वे ही रक्षा करनेमें समर्थ हैं।)॥ ५॥

विश्वास-प्रस्तुति गइ बरषा करषक बिकल, सूखत सालि सुनाज। कुसमय कुसगुन कलह कलि, प्रजहि कलेसु कुराज॥ ६॥
मूल

गइ बरषा करषक बिकल, सूखत सालि सुनाज।
कुसमय कुसगुन कलह कलि, प्रजहि कलेसु कुराज॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

वर्षा चली जानेसे भली प्रकार जमा हुआ धान सूख रहा है, किसान व्याकुल हो रहे हैं। यह अपशकुन बतलाता है कि बुरा समय रहेगा, लड़ाई-झगड़ा होगा, बुरे शासनके कारण प्रजाको कष्ट होगा॥ ६॥

विश्वास-प्रस्तुति तुलसी तुलसी राम सिय, सुमिरहु लखन समेत। दिन दिन उदउ अनंद अब, सगुन सुमंगल देत॥ ७॥
मूल

तुलसी तुलसी राम सिय, सुमिरहु लखन समेत।
दिन दिन उदउ अनंद अब, सगुन सुमंगल देत॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

तुलसीदासजी (अपने-आपसे) कहते हैं—तुलसीका तथा श्रीराम-जानकी एवं लक्ष्मणका स्मरण करो। अब दिनोदिन अभ्युदय एवं आनन्द होगा। यह शकुन परम मंगलदायक है॥ ७॥

विषय (हिन्दी)

सप्तक—६

विश्वास-प्रस्तुति उदबस अवध नरेस बिनु, देस दुखी नर नारि। राज भंग कुसमाज बड़, गत ग्रह चाल बिचारि॥ १॥
मूल

उदबस अवध नरेस बिनु, देस दुखी नर नारि।
राज भंग कुसमाज बड़, गत ग्रह चाल बिचारि॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज (दशरथ)-के बिना अयोध्या उजाड़ हो गयी है, देशके सभी स्त्री-पुरुष दुःखी हैं। ग्रहोंकी गतिका विचार करके (इस शकुनका फल) जान पड़ता है कि राज्यका नाश होगा तथा बुरे लोगोंका समूह बढ़ेगा॥ १॥

विश्वास-प्रस्तुति अवध प्रबेस अनंदु बड़, सगुन सुमंगल माल। राम तिलक अवसर कहब सुख संतोष सुकाल॥ २॥
मूल

अवध प्रबेस अनंदु बड़, सगुन सुमंगल माल।
राम तिलक अवसर कहब सुख संतोष सुकाल॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

(श्रीरामका) अयोध्यामें प्रवेश होनेपर बड़ा आनन्द हुआ। श्रीरामके राजतिलकके समयको मैं सुख, सन्तोष और सुकाल (सुभिक्ष)-का सूचक कहूँगा। यह शकुन परम मंगलकी परम्परारूप (अत्यन्त मंगलदायी) है॥ २॥

विश्वास-प्रस्तुति राम राज बाधक बिबुध, कहब सगुन सतिभाउ। देखि देवकृत दोष दुख, कीजिय उचित उपाउ॥ ३॥
मूल

राम राज बाधक बिबुध, कहब सगुन सतिभाउ।
देखि देवकृत दोष दुख, कीजिय उचित उपाउ॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरामके राज्याभिषेकमें देवता बाधक हुए। इस शकुनका सच्चा भाव मैं यही कहूँगा कि देवताओंके द्वारा रचित (आधिदैविक) दोष और दुःख (की प्राप्ति) देख (समझ)-कर उचित उपाय (पूजा-पाठ आदि) करना चाहिये॥ ३॥

विश्वास-प्रस्तुति मंद मंथरा मोह बस कुटिल कैकई कीन्ह। ब्याधि बिपति सब देवकृत समयँ सगुन कहि दीन्ह॥ ४॥
मूल

मंद मंथरा मोह बस कुटिल कैकई कीन्ह।
ब्याधि बिपति सब देवकृत समयँ सगुन कहि दीन्ह॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

नीच मंथराने मोहके वश होकर रानी कैकेयीको (अपनी बातोंसे) कुटिल बना दिया। इस शकुनने बता दिया कि देवताओंद्वारा रचित (आधिदैविक) सम्पूर्ण रोग तथा विपत्तियाँ समयपर आयेंगी॥ ४॥

विश्वास-प्रस्तुति राम बिरहँ दसरथ दुखित, कहति कैकई काकु। कुसमय जाय उपाय सब, केवल करम बिपाकु॥ ५॥
मूल

राम बिरहँ दसरथ दुखित, कहति कैकई काकु।
कुसमय जाय उपाय सब, केवल करम बिपाकु॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज दशरथ श्रीरामके विरहमें दुःखी हैं, (इसपर भी) कैकेयी व्यंग वचन कहती है। बुरा समय आया है, सारे उपाय निष्फल होंगे, केवल कर्मका फल (भाग्यसे प्राप्त कष्ट) रहेगा (उसे भोगना ही होगा)॥ ५॥

विश्वास-प्रस्तुति लखन राम सिय बसत बन, बिरह बिकल पुर लोग। समय सगुन कह करम बस दुख सुख जोग बियोग॥ ६॥
मूल

लखन राम सिय बसत बन, बिरह बिकल पुर लोग।
समय सगुन कह करम बस दुख सुख जोग बियोग॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीराम-जानकी और लक्ष्मणजी वनमें निवास करते हैं, नगरके लोग उनके वियोगमें व्याकुल हैं। इस समय यह शकुन बतलाता है कि प्रारब्धानुसार दुःख-सुख तथा प्रियजनोंसे मिलन और वियोग प्राप्त होगा॥ ६॥

विश्वास-प्रस्तुति तुलसी लाइ रसाल तरु निज कर सींचति सीय। कृषी सफल भल सगुन सुभ समउ कहब कमनीय॥ ७॥
मूल

तुलसी लाइ रसाल तरु निज कर सींचति सीय।
कृषी सफल भल सगुन सुभ समउ कहब कमनीय॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

तुलसीदासजी कहते हैं कि आमके वृक्ष लगाकर श्रीजानकीजी अपने हाथसे उन्हें सींचती हैं। इसपर हम यही कहेंगे कि यह शकुन शुभ है—खेती अच्छी फल देगी, भलाई होगी, समय सुन्दर (सुकाल) होगा॥ ७॥

विषय (हिन्दी)

सप्तक—७

विश्वास-प्रस्तुति सुदिन साँझ पोथी नेवति, पूजि प्रभात सप्रेम। सगुन बिचारब चारु मति, सादर सत्य सनेम॥१॥
मूल

सुदिन साँझ पोथी नेवति, पूजि प्रभात सप्रेम।
सगुन बिचारब चारु मति, सादर सत्य सनेम॥१॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अब शकुन-विचारकी विधि बतला रहे हैं—) किसी शुभ दिन संध्याके समय पुस्तकको निमन्त्रण देकर (कि कल आप मुझे मेरे प्रश्नका उत्तर देनेकी कृपा करें) प्रात:काल प्रेमपूर्वक उसकी पूजा करके बुद्धिमान् पुरुषको आदरपूर्वक शकुनको सत्य मानकर (ग्रन्थके प्रारम्भमें भूमिकामें बताये) नियमोंके अनुसार शकुनका विचार करना चाहिये॥ १॥ (यदि प्रश्न करनेपर यही दोहा निकले तो वह प्रश्न फिर करना चाहिये।)

विश्वास-प्रस्तुति मुनि गनि दिन गनि धातु गनि दोहा देखि बिचारि। देस करम करता बचन सगुन समय अनुहारि॥ २॥
मूल

मुनि गनि दिन गनि धातु गनि दोहा देखि बिचारि।
देस करम करता बचन सगुन समय अनुहारि॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

मुनि (सात), दिन (सात) तथा धातु (सात) अर्थात् सात सर्ग; प्रत्येक सर्गके सात-सात सप्तक तथा प्रत्येक सप्तकके सात-सात दोहे गिनकर, दोहेको देखकर फलका विचार करो। देश, कर्म तथा प्रश्नकर्ताके वचनके अनुसार उस समय शकुन होगा॥ २॥ (जैसे शब्दोंमें प्रश्न पूछा गया है, जिस कर्मके सम्बन्धमें पूछा गया है, जिस समय और जिस स्थानमें पूछा गया है, सबका प्रभाव देखकर प्रश्नका फल कहना चाहिये। यदि यही दोहा प्रश्न करनेपर निकले तो फिर वही प्रश्न करना तथा फल देखना चाहिये।)

विश्वास-प्रस्तुति सगुन सत्य ससि नयन गुन, अवधि अधिक नयवान। होइ सुफल सुभ जासु जसु, प्रीति प्रतीति प्रमान॥ ३॥
मूल

सगुन सत्य ससि नयन गुन, अवधि अधिक नयवान।
होइ सुफल सुभ जासु जसु, प्रीति प्रतीति प्रमान॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

चन्द्रमा (एक), नेत्र (दो), गुण (तीन)—नीतिमान् के लिये सच्चे शकुनकी यह अधिक-से-अधिक सीमा है। (एक दिन तीनसे अधिक प्रश्न न करे।) जिसका जैसा प्रेम और विश्वास है, उसीके अनुसार शकुन शुभ तथा सफल होगा॥ ३॥ (प्रश्न-फल मध्यम है।)

विश्वास-प्रस्तुति गुरु गनेस हर गौरि सिय राम लखन हनुमान। तुलसी सादर सुमिरि सब सगुन बिचार बिधान॥ ४॥
मूल

गुरु गनेस हर गौरि सिय राम लखन हनुमान।
तुलसी सादर सुमिरि सब सगुन बिचार बिधान॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

तुलसीदासजी कहते हैं—गुरुदेव, गणेश, श्रीगौरी-शंकर, श्रीसीता-राम तथा लक्ष्मणजी और हनुमान् जी का आदरपूर्वक स्मरण करके सब प्रकारके शकुनका विधिपूर्वक विचार करना चाहिये॥ ४॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति हनूमान सानुज भरत राम सीय उर आनि। लखन सुमिरि तुलसी कहत सगुन बिचारु बखानि॥ ५॥
मूल

हनूमान सानुज भरत राम सीय उर आनि।
लखन सुमिरि तुलसी कहत सगुन बिचारु बखानि॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

तुलसीदासजी कहते हैं कि (पहले) श्रीहनुमान् जी, छोटे भाई शत्रुघ्नके साथ, भरतजी, श्रीसीतारामजी और लक्ष्मणजीको हृदयमें ले आओ; इनका स्मरण करके तब शकुनका विचार करके फल बताओ॥ ५॥ (फल उत्तम है।)

विश्वास-प्रस्तुति जो जेहि काजहि अनुहरइ, सो दोहा जब होइ। सगुन समय सब सत्य सब, कहब राम गति जोइ॥ ६॥
मूल

जो जेहि काजहि अनुहरइ, सो दोहा जब होइ।
सगुन समय सब सत्य सब, कहब राम गति जोइ॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो जिस कार्यके लिये प्रश्न करता है, वही उसी (कार्यसम्बन्धी) दोहा जब हो, तब उस शकुनके समय जो पूछा गया है, वह सब पूर्ण सत्य होगा। श्रीरामजीकी गति (इच्छा-कृपा) पर भरोसा करके (प्रश्नफल) कहना चाहिये॥ ६॥ (प्रश्न-फल सन्दिग्ध है।)

विश्वास-प्रस्तुति गुन बिस्वास बिचित्र मनि सगुन मनोहर हारु। तुलसी रघुबर भगत उर बिलसत बिमल बिचारु॥ ७॥
मूल

गुन बिस्वास बिचित्र मनि सगुन मनोहर हारु।
तुलसी रघुबर भगत उर बिलसत बिमल बिचारु॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

तुलसीदासने विश्वासरूपी तागेमें शकुनरूपी विचित्र मणियोंकी यह मनोहर माला बनायी है। श्रीरघुनाथजीके भक्तोंके हृदयपर यह निर्मल विचारके रूपमें शोभित होती है। (श्रीरामभक्तोंके हृदयमें यह शकुन-विचार विराजमान रहता है।)॥ ७॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)