विषय (हिन्दी)
सप्तक—१
विश्वास-प्रस्तुति
रघुपति आयसु अमरपति अमिय सींचि कपि भालु। सकल जिआए सगुन सुभ सुमरहु राम कृपालु॥ १॥मूल
रघुपति आयसु अमरपति अमिय सींचि कपि भालु।
सकल जिआए सगुन सुभ सुमरहु राम कृपालु॥ १॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीरघुनाथजीकी आज्ञासे देवराज इन्द्रने अमृत-वर्षा करके सभी वानर-भालुओंको जीवित कर दिया। कृपालु श्रीरामका स्मरण करो, यह शकुन शुभ है॥ १॥
विश्वास-प्रस्तुति
सादर आनी जानकी हनूमान प्रभु पास। प्रीति परस्पर समउ सुभ सगुन सुमंगल बास॥ २॥मूल
सादर आनी जानकी हनूमान प्रभु पास।
प्रीति परस्पर समउ सुभ सगुन सुमंगल बास॥ २॥
अनुवाद (हिन्दी)
हनुमान् जी आदरपूर्वक श्रीजानकीजीको प्रभुके समीप ले आये। यह शकुन सुमंगलका निवास है—परस्पर प्रेम रहेगा, समय सुन्दर (सुकाल) रहेगा॥ २॥
विश्वास-प्रस्तुति
सीता सपथ प्रसंग सुभ सीतल भयउ कृसानु। नेम प्रेम ब्रत धरम हित सगुन सुहावनु जानु॥ ३॥मूल
सीता सपथ प्रसंग सुभ सीतल भयउ कृसानु।
नेम प्रेम ब्रत धरम हित सगुन सुहावनु जानु॥ ३॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीजानकीजीके शपथ-ग्रहणका प्रसंग शुभ है, उनके लिये अग्नि शीतल हो गया था। नियम-पालन, प्रेम (भक्ति), व्रत एवं धर्माचरणके लिये शकुन उत्तम समझो॥ ३॥
विश्वास-प्रस्तुति
सनमाने कपि भालु तब सादर साजि बिमानु। सीय सहित सानुज सदल चले भानु कुल भानु॥ ४॥मूल
सनमाने कपि भालु तब सादर साजि बिमानु।
सीय सहित सानुज सदल चले भानु कुल भानु॥ ४॥
अनुवाद (हिन्दी)
सूर्यवंशके सूर्य श्रीरघुनाथजीने सभी वानर-भालुओंका सम्मान किया, फिर आदरपूर्वक पुष्पकविमान सजाकर उसमें श्रीजानकीजी, लक्ष्मणजी तथा अपने दलसहित बैठकर (अयोध्याको) चले॥ ४॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)
विश्वास-प्रस्तुति
हरषत सुर बरषत सुमन, सगुन सुमंगल गान। अवधनाथु गवने अवध, खेम कुसल कल्यान॥ ५॥मूल
हरषत सुर बरषत सुमन, सगुन सुमंगल गान।
अवधनाथु गवने अवध, खेम कुसल कल्यान॥ ५॥
अनुवाद (हिन्दी)
देवता प्रसन्न होकर पुष्प-वर्षा कर रहे हैं और मंगलगान कर रहे हैं। (इस प्रकार) श्रीअयोध्यानाथ (श्रीराम) अयोध्या चले। यह शकुन कुशल-मंगल तथा भलाईका सूचक है॥ ५॥ (विदेश गया व्यक्ति सकुशल लौटेगा।)
विश्वास-प्रस्तुति
सिंधु सरोवर सरित गिरि कानन भूमि बिभाग। राम दिखावत जानकिहि उमगि उमगि अनुराग॥ ६॥मूल
सिंधु सरोवर सरित गिरि कानन भूमि बिभाग।
राम दिखावत जानकिहि उमगि उमगि अनुराग॥ ६॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीराम प्रेमकी उमंगमें आकर जानकीको समुद्र, सरोवर, नदियाँ, पर्वत, वन तथा विभिन्न भूभाग दिखला रहे हैं॥ ६॥ (प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)
विश्वास-प्रस्तुति
तुलसी मंगल सगुन सुभ कहत जोरि जुग हाथ। हंस बंस अवतंस जय जय जय जानकि नाथ॥ ७॥मूल
तुलसी मंगल सगुन सुभ कहत जोरि जुग हाथ।
हंस बंस अवतंस जय जय जय जानकि नाथ॥ ७॥
अनुवाद (हिन्दी)
तुलसीदास दोनों हाथ जोड़कर कहते हैं—‘सूर्यवंशविभूषण श्रीजानकीनाथकी जय हो! जय हो!! जय हो!!!’ यह शुभ शकुन मंगलकारी है॥ ७॥
विषय (हिन्दी)
सप्तक—२
विश्वास-प्रस्तुति
अवध अनंदित लोग सब ब्योम बिलोकि बिमानु। नमहुँ कोकनद कोक मन मुदित उदित लखि भानु॥ १॥मूल
अवध अनंदित लोग सब ब्योम बिलोकि बिमानु।
नमहुँ कोकनद कोक मन मुदित उदित लखि भानु॥ १॥
अनुवाद (हिन्दी)
आकाशमें विमानको देखकर अयोध्याके सब लोग ऐसे आनन्दित हो रहे हैं, जैसे उदय होते सूर्यको देखकर कमल तथा चकवा पक्षियोंका मन खिल उठता है॥ १॥ (प्रश्न-फल शुभ है, प्रिय मिलन होगा।)
विश्वास-प्रस्तुति
मिले गुरुहि जन परिजनहि, भेंटत भरत सप्रीति। लखन राम सिय कुसल पुर आए रिपु रन जीति॥ २॥मूल
मिले गुरुहि जन परिजनहि, भेंटत भरत सप्रीति।
लखन राम सिय कुसल पुर आए रिपु रन जीति॥ २॥
अनुवाद (हिन्दी)
शत्रुको युद्धमें जीतकर श्रीराम-जानकी और लक्ष्मण कुशलपूर्वक अयोध्या लौट आये। वहाँ गुरुदेवसे, नगरके लोगोंसे तथा सेवक-सम्बन्धियोंसे मिलकर बड़े प्रेमसे (प्रभु) भरतसे अंकमाल देकर मिले॥ २॥ (प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)
विश्वास-प्रस्तुति
उदबस अवध अनाथ सब अंब दसा दुख देखि। रामु लखनु सीता सकल बिकल बिषाद बिसेषि॥ ३॥मूल
उदबस अवध अनाथ सब अंब दसा दुख देखि।
रामु लखनु सीता सकल बिकल बिषाद बिसेषि॥ ३॥
अनुवाद (हिन्दी)
अयोध्याको अनाथ तथा उजाड़ और सभी माताओंकी दुःखभरी दशा देखकर श्रीराम, लक्ष्मण और जानकीजी—सभी व्याकुल हो गये; उन्हें बहुत दुःख हुआ॥ ३॥ (प्रियजनोंके दुःखसे शोक होगा।)
विश्वास-प्रस्तुति
मिली मातु हित मीत गुरु सनमाने सब लोग। सगुन समय बिसमय हरष प्रिय संजोग बियोग॥ ४॥मूल
मिली मातु हित मीत गुरु सनमाने सब लोग।
सगुन समय बिसमय हरष प्रिय संजोग बियोग॥ ४॥
अनुवाद (हिन्दी)
माताएँ (प्रेमसे) मिलीं; (प्रभुने) हितैषियों, मित्रों तथा गुरुदेव—सभी लोगोंका सम्मान किया। यह शकुन प्रियजनके मिलन एवं वियोगसे होनेवाले हर्ष एवं दुःखका सूचक है॥ ४॥
विश्वास-प्रस्तुति
अमर अनंदित मुनि मुदित मुदित भुवन दस चारि। घर घर अवध बधावने मुदित नगर नर नारि॥ ५॥मूल
अमर अनंदित मुनि मुदित मुदित भुवन दस चारि।
घर घर अवध बधावने मुदित नगर नर नारि॥ ५॥
अनुवाद (हिन्दी)
देवता आनन्दमग्न हैं, मुनिगण प्रसन्न हैं, चौदहों भुवन हर्षयुक्त हैं। अयोध्याके घर-घरमें बधाई बज रही है; नगरके पुरुष-स्त्री (सब) प्रसन्न हैं॥ ५॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)
विश्वास-प्रस्तुति
सुदिन सोधि गुरु बेद बिधि कियो राज अभिषेक। सगुन सुमंगल सिद्धि सब दायक दोहा एक॥ ६॥मूल
सुदिन सोधि गुरु बेद बिधि कियो राज अभिषेक।
सगुन सुमंगल सिद्धि सब दायक दोहा एक॥ ६॥
अनुवाद (हिन्दी)
गुरुदेवने शुभ दिनका विचार करके (श्रीरघुनाथजीका) वैदिक विधिसे राज्याभिषेक किया। यह एक दोहा समस्त श्रेष्ठ मंगल एवं सिद्धियोंको देनेवाला शकुन है॥ ६॥
विश्वास-प्रस्तुति
भाँति भाँति उपहार लेइ मिलत जुहारत भूप। पहिराए सनमानि सब तुलसी सगुन अनूप॥ ७॥मूल
भाँति भाँति उपहार लेइ मिलत जुहारत भूप।
पहिराए सनमानि सब तुलसी सगुन अनूप॥ ७॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजा लोग नाना प्रकारके उपहार लेकर मिलते और अभिवादन करते हैं। (प्रभुने) सबका सम्मान करके उन्हें वस्त्राभरण पहनाये। तुलसीदासजी कहते हैं कि यह अनुपम (मंगल) शकुन है॥ ७॥
विषय (हिन्दी)
सप्तक—३
विश्वास-प्रस्तुति
जय धुनि गान निसान सुर बरषत सुरतरु फूल। भए राम राजा अवध, सगुन सुमंगल मूल॥ १॥मूल
जय धुनि गान निसान सुर बरषत सुरतरु फूल।
भए राम राजा अवध, सगुन सुमंगल मूल॥ १॥
अनुवाद (हिन्दी)
देवता जय-जयकार एवं मंगलगान करते, दुन्दुभि बजाते कल्पवृक्षके पुष्पोंकी वर्षा कर रहे हैं, श्रीराम अयोध्या-नरेश हो गये। यह शकुन श्रेष्ठ मंगलोंकी जड़ है॥ १॥
विश्वास-प्रस्तुति
भालु बिभीषन कीसपति पूजे सहित समाज। भली भाँति सनमानि सब बिदा किए रघुराज॥ २॥मूल
भालु बिभीषन कीसपति पूजे सहित समाज।
भली भाँति सनमानि सब बिदा किए रघुराज॥ २॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीरघुनाथजीने ऋक्षराज जाम्बवन्त, विभीषण तथा वानरराज सुग्रीवका उनके समाजके साथ सत्कार किया, फिर भलीभाँति उन सबको आदरपूर्वक बिदा किया॥ २॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)
विश्वास-प्रस्तुति
राम राज संतोष सुख घर बन सकल सुपास। तरु सुरतरु सुरधेनु महि अभिमत भोग बिलास॥ ३॥मूल
राम राज संतोष सुख घर बन सकल सुपास।
तरु सुरतरु सुरधेनु महि अभिमत भोग बिलास॥ ३॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीरामके राज्यमें (सर्वत्र) सुख-सन्तोष है, घरमें तथा वनमें (सब कहीं) सब प्रकारकी सुविधा है। वृक्ष कल्पवृक्षके समान और पृथ्वी कामधेनुके समान मन चाहा भोग-विलास देती है॥ ३॥ (प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)
विश्वास-प्रस्तुति
राम राज सब काम कहँ, नीक एकही आँक। सकल सगुन मंगल कुसल, होइहि बारु न बाँक॥ ४॥मूल
राम राज सब काम कहँ, नीक एकही आँक।
सकल सगुन मंगल कुसल, होइहि बारु न बाँक॥ ४॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीरामका राज्य सब कार्योंके लिये निस्सन्देहरूपसे भला है। यह शकुन सब प्रकार कुशल-मंगल करनेवाला है, बाल भी बाँका नहीं होगा (कोई हानि नहीं होगा।)॥ ४॥
विश्वास-प्रस्तुति
कुंभकरन रावन सरिस मेघनाद से बीर। ढहे समूल बिसाल तरु काल नदी के तीर॥ ५॥मूल
कुंभकरन रावन सरिस मेघनाद से बीर।
ढहे समूल बिसाल तरु काल नदी के तीर॥ ५॥
अनुवाद (हिन्दी)
कुम्भकर्ण, रावण तथा मेघनाद-जैसे वीर नदी-किनारेके विशाल वृक्षके समान कालके वेगमें जड़के साथ गिर गये॥ ५॥ (प्रश्न-फल अशुभ है।)
विश्वास-प्रस्तुति
सकुल सदल रावन सरिस कवलित काल कराल। पोच सोच असगुन असुभ, जाय जीव जंजाल॥ ६॥मूल
सकुल सदल रावन सरिस कवलित काल कराल।
पोच सोच असगुन असुभ, जाय जीव जंजाल॥ ६॥
अनुवाद (हिन्दी)
रावणके समान वीरको कुल तथा सेनाके साथ भयंकर कालने अपना ग्रास बना लिया (खा लिया)। यह अपशकुन अशुभ है, हीनता प्राप्त होगी, चिन्ता होगी और संकटमें पड़कर प्राण जायँगे॥ ६॥
विश्वास-प्रस्तुति
अबिचल राज बिभीषनहि दीन्ह राज रघुराज। अजहुँ बिराजत लंक पुर तुलसी सहित समाज॥ ७॥मूल
अबिचल राज बिभीषनहि दीन्ह राज रघुराज।
अजहुँ बिराजत लंक पुर तुलसी सहित समाज॥ ७॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज श्रीरघुनाथजीने विभीषणको अविचल (सुस्थिर) राज्य दिया। तुलसीदासजी कहते हैं कि वे अब भी अपने समाजके साथ लंकापुरीमें विराजमान हैं॥ ७॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)
विषय (हिन्दी)
सप्तक—४
विश्वास-प्रस्तुति
मंजुल मंगल मोद मय मूरति मारुत पूत। सकल सिद्धि कर कमल तल, सुमिरत रघुबर दूत॥ १॥मूल
मंजुल मंगल मोद मय मूरति मारुत पूत।
सकल सिद्धि कर कमल तल, सुमिरत रघुबर दूत॥ १॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीपवनकुमार आनन्दमय मंगलमय मनोहर मूर्ति हैं। उन श्रीरामदूतका स्मरण करनेसे सब सिद्धियाँ (सफलताएँ) करकमलके नीचे (हाथमें) प्राप्त ही रहती हैं॥ १॥ (प्रश्न-फल उत्तम है।)
विश्वास-प्रस्तुति
सगुन समय सुमिरत सुखद, भरत आचरनु चारु। स्वामि धरम ब्रत पेम हित, नेम निबाहनिहारु॥ २॥मूल
सगुन समय सुमिरत सुखद, भरत आचरनु चारु।
स्वामि धरम ब्रत पेम हित, नेम निबाहनिहारु॥ २॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीभरतजीका सुन्दर आचरण स्मरण करनेसे सुख देनेवाला है। इस समयका यह शकुन स्वामी (आराध्य) चुनने, धर्माचरण, व्रत, प्रेम (भक्ति) तथा नियम-पालनको सफल करनेवाला समझो॥ २॥
विश्वास-प्रस्तुति
ललित लखन लघु बंधु पद सुखद सगुन सब काहु। सुमिरत सुभ कीरति बिजय, भूमि ग्राम गृह लाहु॥ ३॥मूल
ललित लखन लघु बंधु पद सुखद सगुन सब काहु।
सुमिरत सुभ कीरति बिजय, भूमि ग्राम गृह लाहु॥ ३॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीलक्ष्मणजीके छोटे भाई शत्रुघ्नजीके सुन्दर चरण स्मरण करनेपर सबके लिये सुखदायी हैं। यह शकुन शुभ है; कीर्ति, विजय, भूमि, ग्राम तथा घरका लाभ होगा॥ ३॥
विश्वास-प्रस्तुति
रामचन्द्र मुख चंद्रमा चित चकोर जब होइ। राम राज सब काज सुभ समउ सुहावन सोइ॥ ४॥मूल
रामचन्द्र मुख चंद्रमा चित चकोर जब होइ।
राम राज सब काज सुभ समउ सुहावन सोइ॥ ४॥
अनुवाद (हिन्दी)
चित्त जब चकोरके समान श्रीरामचन्द्रजीके मुखरूपी चन्द्रमाका ध्यान करनेवाला बन जाता है, तब वही समय सुहावना (मंगलकारी) है। राम-राज्य तो सभी कार्योंके लिये शुभ है ही॥ ४॥ (प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)
विश्वास-प्रस्तुति
भूमि नंदिनी पद पदुम सुमिरत सुभ सब काज। बरषा भलि खेती सुफल प्रमुदित प्रजा सुराज॥ ५॥मूल
भूमि नंदिनी पद पदुम सुमिरत सुभ सब काज।
बरषा भलि खेती सुफल प्रमुदित प्रजा सुराज॥ ५॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीभूमिसुता (जानकीजी)-के चरण-कमलोंका स्मरण करनेसे सभी कार्य शुभ (फलदायक) हो जाते हैं। (यह शकुन सूचित करता है कि) अच्छी वर्षा होगी, खेती भलीभाँति फलेगी (फसल अच्छी होगी), प्रजा सुशासन पाकर प्रसन्न रहेगी॥ ५॥
विश्वास-प्रस्तुति
सेवक सखा सुबंधु हित नाइ लखन पद माथु। कीजिय प्रीति प्रतीति सुभ, सगुन सुमंगल साथु॥ ६॥मूल
सेवक सखा सुबंधु हित नाइ लखन पद माथु।
कीजिय प्रीति प्रतीति सुभ, सगुन सुमंगल साथु॥ ६॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीलक्ष्मणजीके चरणोंमें मस्तक झुकाकर सेवक, मित्र तथा अच्छे भाईका हित करो, प्रेम तथा विश्वास रहेगा। यह शुभ शकुन परम हितकारी साथीकी प्राप्ति बतलाता है॥ ६॥
विश्वास-प्रस्तुति
राम नाम रति राम गति राम नाम बिस्वास। सुमिरत सुभ मंगल कुसल तुलसी तुलसीदास॥ ७॥मूल
राम नाम रति राम गति राम नाम बिस्वास।
सुमिरत सुभ मंगल कुसल तुलसी तुलसीदास॥ ७॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीरामनाममें प्रेम हो, श्रीरामका ही भरोसा हो, श्रीरामनाममें ही विश्वास हो। इनका स्मरण करनेसे शुभ फल एवं (सब प्रकारसे) मंगल होता है, कुशल रहती है। इस स्मरणसे ही तुलसी तुलसीदास हो गया॥ ७॥
विषय (हिन्दी)
सप्तक—५
विश्वास-प्रस्तुति
बिप्र एक बालक मृतक राखेउ राम दुआर। दंपति बिलपत सोक अति आरत करत पुकार॥ १॥मूल
बिप्र एक बालक मृतक राखेउ राम दुआर।
दंपति बिलपत सोक अति आरत करत पुकार॥ १॥
अनुवाद (हिन्दी)
एक ब्राह्मण (तथा उसकी स्त्री)-ने अपना मरा बालक लाकर श्रीरामके द्वारपर रख दिया। पति-पत्नी शोकसे अत्यन्त दुःखी होकर विलाप करते हुए पुकार कर रहे थे॥ १॥ (प्रश्न-फल अशुभ है।)
विश्वास-प्रस्तुति
राम सोच संकोच बस सचिव बिकल संताप। बालक मीचु अकाल भइ राम राज केहि पाप॥ २॥मूल
राम सोच संकोच बस सचिव बिकल संताप।
बालक मीचु अकाल भइ राम राज केहि पाप॥ २॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीरामजी संकोचके कारण चिन्तामें पड़ गये, मन्त्री दुःखसे व्याकुल हो गये कि श्रीरामके राज्यमें किसके पापसे बालककी असमयमें मृत्यु हुई॥ २॥ (प्रश्न-फल निकृष्ट है।)
विश्वास-प्रस्तुति
बिबुध बिमल बानी गगन, हेतु प्रजा अपचारु। राम राज परिनाम भल कीजिय बेगि बिचारु॥ ३॥मूल
बिबुध बिमल बानी गगन, हेतु प्रजा अपचारु।
राम राज परिनाम भल कीजिय बेगि बिचारु॥ ३॥
अनुवाद (हिन्दी)
(उसी समय) आकाशसे निर्मल (स्पष्ट) देववाणी हुई कि इसका कारण प्रजाके किसी व्यक्तिका दूषित आचरण है। शीघ्र विचार कीजिये। ‘राम-राज्यमें परिणाम तो उत्तम ही होगा’॥ ३॥ (चिन्ता दूर होगी।)
विश्वास-प्रस्तुति
कोसल पाल कृपाल चित बालक दीन्ह जिआइ। सगुन कुसल कल्यान सुभ, रोगी उठै नहाइ॥ ४॥मूल
कोसल पाल कृपाल चित बालक दीन्ह जिआइ।
सगुन कुसल कल्यान सुभ, रोगी उठै नहाइ॥ ४॥
अनुवाद (हिन्दी)
दयालुहृदय श्रीकोसलनाथ रघुनाथजीने (ब्राह्मणके) बालकको जीवित कर दिया। यह शकुन शुभ है, कुशल एवं कल्याणका सूचक है। रोगी नहाकर उठ खड़ा होगा॥ ४॥
विश्वास-प्रस्तुति
बालकु जिया बिलोकि सब कहत उठा जनु सोइ। सोच बिमोचन सगुन सुभ, राम कृपाँ भल होइ॥ ५॥मूल
बालकु जिया बिलोकि सब कहत उठा जनु सोइ।
सोच बिमोचन सगुन सुभ, राम कृपाँ भल होइ॥ ५॥
अनुवाद (हिन्दी)
(ब्राह्मणके) बालकको जीवित हो उठा देख सब कहने लगे—‘मानो यह सोकर उठा है।’ यह शुभ शकुन सोचको दूर करनेवाला है, श्रीरामकी कृपासे भलाई होगी॥ ५॥
विश्वास-प्रस्तुति
सिला सुतिय भइ गिरि तरे मृतक जिए जग जान। राम अनुग्रहँ सगुन सुभ, सुलभ सकल कल्यान॥ ६॥मूल
सिला सुतिय भइ गिरि तरे मृतक जिए जग जान।
राम अनुग्रहँ सगुन सुभ, सुलभ सकल कल्यान॥ ६॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीरामकी कृपासे पत्थर (अहल्या) सुन्दरी स्त्री हो गयी, पर्वत (समुद्रपर) तैरने लगे और मृतक (बालक) जी उठा—यह संसार जानता है। यह शकुन शुभ है, सभी कल्याण सरलतासे प्राप्त होंगे॥ ६॥
विश्वास-प्रस्तुति
केवट निसिचर बिहँग मृग किए साधु सनमानि। तुलसी रघुबर की कृपा सगुन सुमंगल खानि॥ ७॥मूल
केवट निसिचर बिहँग मृग किए साधु सनमानि।
तुलसी रघुबर की कृपा सगुन सुमंगल खानि॥ ७॥
अनुवाद (हिन्दी)
केवट (निषादराज गुह), राक्षस (विभीषण), पक्षी (जटायु) एवं पशुओं (वानरों)-को श्रीरघुनाथजीने कृपा करके आदर देकर सत्पुरुष बना दिया। तुलसीदासजी कहते हैं कि यह शकुन उत्तम मंगलोंकी खान है॥ ७॥
विषय (हिन्दी)
सप्तक—६
विश्वास-प्रस्तुति
राम राज राजत सकल धरम निरत नर नारि। राग न रोष न दोष दुख, सुलभ पदारथ चारि॥ १॥मूल
राम राज राजत सकल धरम निरत नर नारि।
राग न रोष न दोष दुख, सुलभ पदारथ चारि॥ १॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीरामके राज्यमें सभी स्त्री-पुरुष धर्माचरणमें लगे हुए शोभित हैं। राग (भोगासक्ति), क्रोध, दोष (कामादि) और दुःख (किसीको) नहीं है; (सबको) चारों पदार्थ (अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष) सुलभ हैं॥ १॥ (प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)
विश्वास-प्रस्तुति
खग उलूक* झगरत गए अवध जहाँ रघुराउ। नीक सगुन बिबरिहि झगर, होइहि धरम निआउ॥ २॥मूल
खग उलूक* झगरत गए अवध जहाँ रघुराउ।
नीक सगुन बिबरिहि झगर, होइहि धरम निआउ॥ २॥
अनुवाद (हिन्दी)
गीध पक्षी और उल्लू झगड़ा करते हुए अयोध्यामें श्रीरघुनाथजीके पास गये१। यह शकुन अच्छा है, झगड़ा सुलझ जायगा, धर्मपूर्वक न्याय होगा॥ २॥
पादटिप्पनी
- १. किसी वनमें रहनेवाले गीध और उल्लू एक वृक्षके खोड़रके लिये झगड़ पड़े। दोनों उसे अपना घर बतलाते थे। निर्णय करानेके लिये दोनों अयोध्या आये। रघुनाथजीके पूछनेपर गीधने कहा—‘सृष्टिके प्रारम्भमें पृथ्वीपर जबसे मनुष्य बसने लगे, तबसे यह खोड़र मेरे अधिकारमें चला आया है।’ उल्लूने बताया—‘प्रभो! पृथ्वीपर जबसे वृक्षोंकी उत्पत्ति हुई तबसे मैं उसमें रहता हूँ।’ दोनोंकी बात सुनकर श्रीरघुनाथजीने उल्लूको वह खोड़र दिला दिया।
विश्वास-प्रस्तुति
जती-स्वान* संबाद सुनि सगुन कहब जियँ जानि। हंस बंस अवतंस पुर बिलग होत पय पानि॥ ३॥मूल
जती-स्वान* संबाद सुनि सगुन कहब जियँ जानि।
हंस बंस अवतंस पुर बिलग होत पय पानि॥ ३॥
अनुवाद (हिन्दी)
यती (संन्यासी) और कुत्तेका संवाद सुनकर२ अपने चित्तमें समझकर शकुन बताऊँगा कि सूर्यवंशभूषण श्रीरघुनाथजीके नगर (अयोध्या)-में दूध-पानी पृथक् होता (सच्चा न्याय प्राप्त होता) है॥ ३॥ (विवादमें सत्यकी विजय होगी।)
पादटिप्पनी
- २. श्रीरामके दरबारमें एक बार एक कुत्ता पहुँचा। उसने कहा—‘मुझे सर्वार्थसिद्धि नामक ब्राह्मणने निरपराध मारा है।’ ब्राह्मण बुलाया गया, उसने अपराध स्वीकार कर लिया। वह दरिद्र था, भिक्षा न मिलनेसे भूखा था, क्षुधाकी झुँझलाहटमें उसने कुत्तेको अकारण मारा था। कुत्तेने ही उसके लिये दण्ड चुना कि ‘ब्राह्मण कालंजरके मठका मठाधीश बना दिया जाय।’ ब्राह्मण मठाधीश बना दिया गया। पूछनेपर कुत्तेने बताया—‘मैं पूर्वजन्ममें वहींका मठाधीश था, अत्यन्त सावधानीसे आचरण करता था; किन्तु भूलसे देवांश खा लेनेके कारण मेरी यह गति हुई। यह ब्राह्मण मठाधीश होकर प्रमाद करेगा तो नरकमें ही जायगा।’
विश्वास-प्रस्तुति
राम कुचरचा करहिं सब सीतहि लाइ कलंक। सदा अभागी लोग जग, कहत सकोचु न संक॥ ४॥मूल
राम कुचरचा करहिं सब सीतहि लाइ कलंक।
सदा अभागी लोग जग, कहत सकोचु न संक॥ ४॥
अनुवाद (हिन्दी)
लोग श्रीजानकीजीको कलंक लगाकर श्रीरामकी निन्दा करते हैं। जगत् के लोग सदासे अभागे हैं, (ऐसी बात) कहते उन्हें संकोच और शंका भी नहीं होती॥ ४॥ (अपयश होगा।)
विश्वास-प्रस्तुति
सती सिरोमनि सीय तजि, राखि लोग रुचि राम। सहे दुसह दुख सगुन गत प्रिय बियोगु परिनाम॥ ५॥मूल
सती सिरोमनि सीय तजि, राखि लोग रुचि राम।
सहे दुसह दुख सगुन गत प्रिय बियोगु परिनाम॥ ५॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीरामने सती-शिरोमणि श्रीजानकीजीका त्याग करके लोगोंकी रुचि रखी औैर स्वयं असहनीय दुःख सहा। इस अपशकुनका फल परिणाममें प्रियजनका वियोग है॥ ५॥
विश्वास-प्रस्तुति
बरन धरम आश्रम धरम निरत सुखी सब लोग। राम राज मंगल सगुन, सुफल जाग जप जोग॥ ६॥मूल
बरन धरम आश्रम धरम निरत सुखी सब लोग।
राम राज मंगल सगुन, सुफल जाग जप जोग॥ ६॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीरामके राज्यमें सब लोग अपने वर्ण-धर्म और आश्रम-धर्ममें लगे हुए हैं, अतएव सुखी हैं। यह शकुन मंगलसूचक है; यज्ञ, जप और योग सफल होगा॥ ६॥
विश्वास-प्रस्तुति
बाजिमेध अगनित किए, दिए दान बहु भाँति। तुलसी राजा राम जग सगुन सुमंगल पाँति॥ ७॥मूल
बाजिमेध अगनित किए, दिए दान बहु भाँति।
तुलसी राजा राम जग सगुन सुमंगल पाँति॥ ७॥
अनुवाद (हिन्दी)
तुलसीदासजी कहते हैं कि महाराज श्रीरामने अगणित अश्वमेधयज्ञ किये और अनेक प्रकारसे दान दिये। संसारमें यह शकुन श्रेष्ठ मंगलोंकी परम्पराका द्योतक है॥ ७॥
विषय (हिन्दी)
सप्तक—७
विश्वास-प्रस्तुति
असमंजसु बड़ सगुन गत सीता राम बियोग। गवन बिदेस कलेस बड़ हानि पराभव रोग॥ १॥मूल
असमंजसु बड़ सगुन गत सीता राम बियोग।
गवन बिदेस कलेस बड़ हानि पराभव रोग॥ १॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीसीता-रामका वियोग हो जानेसे यह शकुन भारी असमंजसका सूचक है। विदेश जाना होगा, बड़ा कष्ट होगा, हानि, पराजय तथा रोगका शिकार बनना होगा॥ १॥
विश्वास-प्रस्तुति
मानिय सिय अपराध बिनु प्रभु परिहरि पछितात। रुचै समाज न राज सुख, मन मलीन कृस गात॥ २॥मूल
मानिय सिय अपराध बिनु प्रभु परिहरि पछितात।
रुचै समाज न राज सुख, मन मलीन कृस गात॥ २॥
अनुवाद (हिन्दी)
ऐसा मानना (विश्वास करना) चाहिये कि बिना किसी अपराधके श्रीजानकीजीका त्याग करके प्रभु पश्चात्ताप कर रहे हैं। उन्हें समाज (में रहना) तथा राज्यका सुख अच्छा नहीं लगता, चित्त खिन्न रहता है तथा शरीर दुर्बल हो गया है॥ २॥ (प्रश्न-फल निकृष्ट है।)
विश्वास-प्रस्तुति
पुत्र लाभ लवकुस जनम सगुन सुहावन होइ। समाचार मंगल कुसल सुखद सुनावइ कोइ॥ ३॥मूल
पुत्र लाभ लवकुस जनम सगुन सुहावन होइ।
समाचार मंगल कुसल सुखद सुनावइ कोइ॥ ३॥
अनुवाद (हिन्दी)
लव-कुशका जन्म पुत्र-प्राप्तिका सूचक शुभ शकुन है। कोई आनन्द-मंगलका सुखदायी समाचार सुनायेगा॥ ३॥
विश्वास-प्रस्तुति
राज-सभाँ लवकुस ललित किए राम गुन गान। राज समाज सगुन सुभ सुजस लाभ सनमान॥ ४॥मूल
राज-सभाँ लवकुस ललित किए राम गुन गान।
राज समाज सगुन सुभ सुजस लाभ सनमान॥ ४॥
अनुवाद (हिन्दी)
लव-कुशने राजसभामें सुन्दर (मधुर) स्वरमें श्रीरामके गुणोंका गान किया। यह शुभ शकुन राज-समाजमें सुयश तथा सम्मानकी प्राप्तिका सूचक है॥ ४॥
विश्वास-प्रस्तुति
बालमीकि लव कुस सहित आनी सिय सुनि राम। हृदयँ हरषु जानब प्रथम सगुन सोक परिनाम॥ ५॥मूल
बालमीकि लव कुस सहित आनी सिय सुनि राम।
हृदयँ हरषु जानब प्रथम सगुन सोक परिनाम॥ ५॥
अनुवाद (हिन्दी)
महर्षि वाल्मीकि लव-कुशके साथ सीताजीको ले आये हैं, यह सुनकर श्रीरामके चित्तमें प्रसन्नता हुई। इस शकुनका फल यह जानना चाहिये कि मनमें पहले प्रसन्नता, पर अन्तमें शोक होगा॥ ५॥
विश्वास-प्रस्तुति
अनरथ असगुन अति असुभ सीता अवनि प्रबेसु। समय सोक संताप भय कलह कलंक कलेसु॥ ६॥मूल
अनरथ असगुन अति असुभ सीता अवनि प्रबेसु।
समय सोक संताप भय कलह कलंक कलेसु॥ ६॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीजानकीजीका पृथ्वीमें प्रवेश कर जाना अनर्थ करनेवाला अत्यन्त अशुभ अपशकुन है। यह शोक, सन्ताप, भय, झगड़े, अपयश और कष्टका समय है॥ ६॥
विश्वास-प्रस्तुति
सुभग सगुन उनचास रस राम चरित मय चारु। राम भगत हित सफल सब तुलसी बिमल बिचारु॥ ७॥मूल
सुभग सगुन उनचास रस राम चरित मय चारु।
राम भगत हित सफल सब तुलसी बिमल बिचारु॥ ७॥
अनुवाद (हिन्दी)
यह उनचास दोहोंवाला छठा सर्ग रामचरितमय होनेसे (बड़ा ही) सुन्दर है। तुलसीदासजी कहते हैं कि शकुन मंगलमय है, रामभक्तोंके लिये प्रत्येक निर्मल (निष्पाप) विचार सफल होगा॥ ७॥